एक बार फिर डलहौजी की यात्रा
भाग 1
28 सितम्बर 2014
मैँ बड़ी बेटी , बेटा सन्नी और बहु किरण हम चारों सुबह फटाफट उठकर तैयार हुए .आज सुपर फ़ास्ट जम्मूतवी ट्रेन से पठानकोठ जा रहे है ..वैसे तो हम शादी में जलन्धर जा रहे है पर वहां हमको 1-2 अक्टूम्बर को पहुंचना है इसलिए सोचा की 2 दिन के लिए डलहौज़ी भी हो आयेगे क्योकि सन्नी और किरण पहले वहां नहीं गए हुए थे ।
शादी किरण की भाभी के भाई की थी जो नवांशहर में होनी थी हमको भी उन्होंने इन्वाइट किया था काफी फ़ोर्स था इसलिए मुझे भी जाना पड़ा।
गाड़ी में काफी लोग थे दूल्हा उसके पापा- मम्मी,किरण की भाभी और किरण के मम्मी पाप भी थे ।सब साथ ही जा रहे है....गाड़ी में बहुत मज़े किये....सबके साथ इतना लम्बा सफ़र देखते ही देखते कब पास हो रहा था।
गाड़ी में काफी लोग थे दूल्हा उसके पापा- मम्मी,किरण की भाभी और किरण के मम्मी पाप भी थे ।सब साथ ही जा रहे है....गाड़ी में बहुत मज़े किये....सबके साथ इतना लम्बा सफ़र देखते ही देखते कब पास हो रहा था।
कोटा जंक्शन आते ही देवर देवरानी उनके दोनों बेटे दोनों बहुएं और मेरी एक ननद हमसे मिलने गाडी पर आये ।कोटा में करीब 20 मिनट गाडी रूकती है । बॉम्बे से चला रेलवे का सारा स्टाफ यहाँ बदलता है ।मिस्टर जब इस गाडी में आते थे तो कोटा अपने घर चले जाते थे और दूसरे दिन वापस दूसरी गाडी लेकर बॉम्बे आते थे। खेर , अब तो TT की नोकरी से रिटायर्ड हो गए है।
हा तो कोटा से काफी खाने का सामान और मिठाई आ गई थी। वैसे तो खाने का काफी सामान हमारे पास था।जिसे रास्ते भर हम खाते रहे ...
यहाँ एक रोचक मामला हुआ :-
हुआ यू की हम दिनभर थर्ड AC में बैठे बैठे बोर हो गए थे और हम कुछ लेडिस घूमने गाडी में निकल पड़े ।इस बोगी से उस बोगी में जाना हिलते हुए बड़ा मज़ा आता है। हम जैसे ही पेंट्री-कार में पहुंचे वहां उन्होंने माताजी को बैठा रखा था नवरात्रि के दिन थे और माताजी की बहुत बढ़िया झांकी बना रखी थी । हम लोगो ने दर्शन किये और प्रसाद लिया ।लगे हाथो वेटरों ने हमको शाम को 7 बजे आरती में भी इन्वाइट कर लिया । अब हम 7 बजे का इंतजार करते रहे जैसे ही 7 बजे हम सब चल दिए पर हमको थोडा और जल्दी जाना था क्योकि ठीक 7 बजे उन्होंने आरती शुरू कर दी ।हम जब पहुँचे तब तक समापन हो चूका था । खेर ,उन्होंने कहा की अब आप भजन गा दो और हम लोग जो याद थे वो भजन गाने लगे उनमें से एक ढोलकी बजाने लगा और हम सब तालिया । आसपास से भी कई मुसाफिर आ गए और सब तालियां बजाने लगे यह सब 1 घण्टे तक चला बहुत ही बढ़ियाँ माहौल हो गया था पर हमको बहुत गुस्सा आया क्योकि मोबाईल और कैमरा हम अपनी सीट पर ही छोड़कर आये थे वरना फोटु खीच लेते यादगार रहती ।हम लोगो ने सारे सफ़र में बहुत इंजॉय किया ....
सब लोग जालंधर उतर गए और अब हम चारो पठानकोट जा रहे थे अकेले हो गए थे इसलिए चुपचाप बैठे रहे ।
सुबह 11 बजे हमारी गाडी चक्कीबैंक पहुंची जो अब पठानकोट रोड के नाम से जाना जाता है .....वहां बेटे का FB दोस्त प्रीत अपनी कार से लेने आ रहा था हम स्टेशन पहुंचे तो प्रीत वहाँ आया नहीं था हम उसका इंतजार करने लगे वही एक मालगाड़ी मिलिट्री का सामान लेकर खड़ी थी हमने कुछ फोटु खिंचवाए तब तक प्रीत भी आ गया और अब हम उसकी कार से डलहौज़ी जायेगे....
खूबसूरत द्रश्य मन को मोह रहे थे ठंडी हवा के झोके मन को धपकिया दे रहे थे...और हमारी कार तेजी से डलहौजी जा रही थी ।रास्ते में बारिश भी हो जाती थी फिर बंद हो जाती थी
रास्ते में एक गाँव के पास प्रीत ने गाडि रोकी और वहां से हमारे लिए आम पापड़ ख़रीदे मैंने भी वहां से कुछ फ्रूट्स ख़रीदे जो एकदम फ्रेश थे और सस्ते भी थे
खूबसूरत द्रश्य मन को मोह रहे थे ठंडी हवा के झोके मन को धपकिया दे रहे थे...और हमारी कार तेजी से डलहौजी जा रही थी ।रास्ते में बारिश भी हो जाती थी फिर बंद हो जाती थी
रास्ते में एक गाँव के पास प्रीत ने गाडि रोकी और वहां से हमारे लिए आम पापड़ ख़रीदे मैंने भी वहां से कुछ फ्रूट्स ख़रीदे जो एकदम फ्रेश थे और सस्ते भी थे
डलहौजी मैं इसके पहले 2010 में जून में आई थी , उस समय भी हम प्रीत के साथ ही थे जो हमको डलहौजी के एक होटल में छोड़कर चला गया था । तब हमको ज्यादा आनन्द आया था।तब हमने खूब इंजॉय किया था।
शेष अगले अंक में जारी -----------
शेष अगले अंक में -----
दूल्हे की मम्मी और मैं
सन्नी और दूल्हा
हमारा डिब्बा
शेष अगले अंक में -----
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, मेरा भारत महान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंbadiya yatra sansmaran ..
जवाब देंहटाएंथॅंक्स कविता
हटाएंबढ़िया यात्रा संस्मरण
जवाब देंहटाएंथैक्स सुमन
हटाएंआभार
जवाब देंहटाएंथॅंक्स राकेश जी
हटाएंइसे कहते है एक तीर से दो निशाना ।
जवाब देंहटाएंशादी में जाना भी हो गया और डलहौसि घूमना भी ।
बहुत कम लोगों को ट्रेन के सफ़र में माता जी की आरती करने का मौका मिलता है ।
पढ़कर मजा आ गया।
सही कहा किशन । मैँ वैसे भी माताजी की भक्त हूँ । माता का आशीर्वाद मिला मुझे
हटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंलेख पढ़कर अच्छा लगा, पर ड़लहौजी के बारे में विस्तार से नहीं लिखा, उम्मीद है अगले लेखा में मिलेगा ! लग रहा है कुछ फोटो चलती गाड़ी से ही लिए है !
जवाब देंहटाएंडलहौजी के बारे में मैंने पहले शायद लिखा है अपने पुराने लेख में प्रदीप
हटाएंBadhiya post hai par shadi ke baare me jyada lag rahi hai
जवाब देंहटाएंशादी में तो गई थी हर्षिता । इसलिए परिचय भी जरुरी था । आगे शादी का वर्णन नहीं आएगा ।सिर्फ घुमक्कडी ही आएगी।
हटाएंक्या बात है शादी की शादी और वहां से डलहौजी....
जवाब देंहटाएंवैसे डल्हौजी बहुत ही खूबसूरत जगह है ....चलो देखते है अगले लेख में आपकी नजरो से .
थॅंक्स रितेश
हटाएंबहुत दिनों से आपकी पोस्ट का इंतजार था। बहुत ही बढि़या वर्णन। आप सब ने मातारानी के भजन गा कर समां बांध दिया होगा। अगली पोस्ट में डलहौजी के बारे में जानने को मिलेगा ........ प्रतीक्षा रहेगी ।
जवाब देंहटाएंथॅंक्स स्वाति अगली पोस्ट में जरूर लिखुंगी ।
हटाएंMaja aa gaya ye post padhkar. Lagta hai khub enjoy kiya aap logon ne...
जवाब देंहटाएंThanks,