मेरे अरमान.. मेरे सपने..

रविवार, 27 मार्च 2011

एक माँ की पुकार (maa)



रोज खबरों में पढती हु की आज फलाना बेटे ने 'माँ ' को मार दिया , आज जला दिया , आज हाथ काट दिए--आज घर से निकाल दिया--- सुनकर रोगंटे खड़े हो जाते है :-   









माँ की  ममता का नही है मोल 
जिन  नोनीहालो  को---
सरेआम वो बदन जला रहे है 
जिस माँ ने उनको जन्म दिया 
अपना खून पिलाकर जवान किया 
आज वो उसके खून के प्यासे नजर आ रहे है !

बेअदब ! बदतमीज ! कीड़ो की तरह 
इस समाज में गंदगी फेला रहे है 
क्यों मैने इन्हें जन्म दिया ?
क्यों मैने इन्हें खून दिया ?
क्यों वो आज मेरे ही दुश्मन नजर आ रहे है !

जिन राहो पर मैने उन्हें चलना सिखाया 
उंगली पकड़ दोड़ना सिखाया  
आज 'उन्ही' हाथो को काट के 'कड़े' ले जा रहे है ! 
तहजीब ! तालीम ! नकार दी उन्होंने 
रब से डरना छोड़ दिया --
या खुदा !अब तू ही इन्साफ कर 
इन गन्दी गलियों के शहंशाहो पर 
क्यों ये अपनी जिन्दगी तबाह कर रहे है !

मै तो माँ हु सिर्फ दुआ ही दे सकती हु 
क्यों बे-परवाह है ये तेरे बने मोहरे ?
क्यों जलाते है ये अपनी ही जन्मदायी को ? 
क्यों बिठाते है ये कोठो पे अपनी ही बहनों को ? 
क्यों बेचने पर विवश है ये अपनी ही बीबियो को ?
क्यों अपनी ही जिन्दगी को नरक बना रहे है !

ऐ खुदा !तू ही इन्साफ कर 
इन बदनसीबो पर तेरा कहर नजर आ रहा है !
क्यों सारे नोजवान आज 'कसाव ' बने फिरते है 
आज क्यों मुझे इन पर तरस आ रहा है !  
      

27 टिप्‍पणियां:

  1. सत्यता और विडम्बना से परिपूर्ण!
    बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति!

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  2. पढ़कर दुःख तो होता है ।
    मार्मिक ।

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  3. बहुत ही मार्मिक रचना.

    ऐ खुदा !तू ही इन्साफ कर
    इन बदनसीबो पर तेरा कहर नजर आ रहा है !

    खुदा ही रहम करे ऐसे बेटों पर.

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  4. आदरणीय दार्शन कौर जी नमस्कार ! दिल को छूती कविता लिखी है आपने. काश लोगों के समझ में ये बात आती एक दिन उन्हें भी इसी स्थिति से गुजरना है.

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  5. बहुत ही मार्मिक रचना.खुदा ही रहम करे ऐसे बेटों पर....

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  6. आदरणीय दार्शन कौर जी
    नमस्कार !
    संवेदनशील प्रस्तुति
    हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  7. @सभी ब्लोक जगत का मै ह्दय से आभारी हु --और उनकी शुभ कामनाए कबुल करती हु--शाम को पार्टी है जरुर-जरुर आए --धन्यवाद !

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  8. मै तो माँ हु सिर्फ दुआ ही दे सकती हु...

    ये बात भी आपने बिलकुल सच कही..पूत कपूत तो हैं पर माता कुमाता कैसे हो सकती है...संवेदनशील प्रस्तुति

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  9. दर्शन कौर जी जन्‍मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं............

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  10. दुखद है बच्चों का माँ के साथ ऐसा दुर्व्यवहार।

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  11. behad sundar lekhni..
    sach much ye kitna pida dayak hai kavita padh kar mahsus hua..

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  12. वर्तमान की ज्वलंत समस्या का मार्मिक चित्रण है यह । खैर..

    जन्मदिन की शुभकामनाएं तो स्वीकार कीजिये ।

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  13. मार्मिक और संवेदनशील प्रस्तुति
    दर्शन कौर जी जन्‍मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं............

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  14. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें

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  15. आदरणीय दार्शन कौर जी
    संवेदनशील प्रस्तुति
    जन्मदिन की मुबारकबाद देते हुए ढ़ेरों शुभकामनायें

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  16. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें

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  17. बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति ....
    बहुत दुःख होता है ....निःशब्द करती रचना

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  18. 'तुम जियो हजारों साल,साल के दिन हों पचास हजार'
    यूँ तो आप अजर हो,अमर हो,'दर्शन' हो आत्मा के,पर आज के दिन जो दुर्लभ मानव चोला आपने ग्रहण किया,और हमें अपने दर्शन
    देकर सौभाग्यशाली बनाया इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई और ढेर सी शुभकामनाएँ.मेरी यह दुआ है कि आप अपनी निर्मल सक्षम लेखनी के माध्यम से ब्लॉग जगत को यूँ ही धन्य करती रहें आदरणीय 'धनोय'जी.

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  19. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें दर्शन जी ।

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  20. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें

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  21. मां तो है मां,
    मां तो है मां,
    मां जैसा दुनिया में,
    है और कोई कहां,

    दर्शन जी,
    कोशिश करता हूं कि आपको आगे से ब्लॉग पर न आने की शिकायत का मौका न दूं...

    जय हिंद...

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  22. आदरणीय दर्शन कौर जी हमारी और से भी जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनायें ,माँ के बारे में लिखी आप की रचना सुन्दर सार्थक है माँ ने जो प्रश्न खड़े किये क्यों बेंचते क्यों बिठाते कोठे पे समाज की विसंगतियों को दर्शाते हुए करार जबाब है -बधाई हो
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
    कृपया हमारे ब्लॉग पर भी आयें सुझाव व् समर्थन दें
    http://surendrashuklabhramar.blogspot.com

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  23. bahut sahi kha aapne....hum bacche ab apni maa ki kadr krna bhul gye hai....dil se likha aapne or dil tk [ahuchaya v...mubark

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......