* माउंट आबू *
( रेत का समुंदर )
१४ मई १९९८
आज सुबह से ही गर्मी बहुत हो रही है --हवा भी गर्म चल रही है --मोसम अचानक बदल गया है --बाद में मालुम पड़ा की पोखरण में देश का पहला परमाणु परीक्षण हुआ है --आबू में इससे गर्मी बड गई है --
आज आए हुए हमे ५दिन हो गए है --इतना गर्म दिन आज पहली बार लगा है --खेर ,दिन में हम पहले गुरूद्वारे गए --गुरुद्वारा काफी बड़ा है --अरदास की फिर कुछ देर वहा बैठकर हमने लंगर भी खाया --उन्होंने हमारे लिए भी बनवाया था --हमको और वही रुकने का कह रहे थे--पर हमारे पास अभी २दिन के लिए रूम और था फिर हमारा रिटर्न रिजर्वेशन था --चलो अभी 2दिन और है घुमने के लिए --
यहाँ के बाजारों में चमड़े की जूतियाँ बहुत मिलती है जिन्हें 'मोजडी 'कहते है यह बड़ी सुंदर होती है --टिकाऊ भी होती है --यहाँ मेहँदी भी बहुत मिलती है ढेर सारे स्टाल शाम को मालरोड पर सजे रहते है --यहाँ पीतल ,ताम्बे,कांसे पर नक्कासी की हुई वस्तुए भी बहुत मिलती है --लकड़ी के खिलोने तो अन्यास आपका मन मोह लेगे --राजस्थानी ड्रेस में सजे रंग -बिरंगे यह खिलोने देखने में ही बड़े खूब सुरत लगते है
और सबसे आकर्षण तो है --यहाँ की 'कठपुतलियाँ' जो हर दूकान पर टंगी हुई दिख जाएगी --आप भी देखे :---
आज आए हुए हमे ५दिन हो गए है --इतना गर्म दिन आज पहली बार लगा है --खेर ,दिन में हम पहले गुरूद्वारे गए --गुरुद्वारा काफी बड़ा है --अरदास की फिर कुछ देर वहा बैठकर हमने लंगर भी खाया --उन्होंने हमारे लिए भी बनवाया था --हमको और वही रुकने का कह रहे थे--पर हमारे पास अभी २दिन के लिए रूम और था फिर हमारा रिटर्न रिजर्वेशन था --चलो अभी 2दिन और है घुमने के लिए --
यहाँ के बाजारों में चमड़े की जूतियाँ बहुत मिलती है जिन्हें 'मोजडी 'कहते है यह बड़ी सुंदर होती है --टिकाऊ भी होती है --यहाँ मेहँदी भी बहुत मिलती है ढेर सारे स्टाल शाम को मालरोड पर सजे रहते है --यहाँ पीतल ,ताम्बे,कांसे पर नक्कासी की हुई वस्तुए भी बहुत मिलती है --लकड़ी के खिलोने तो अन्यास आपका मन मोह लेगे --राजस्थानी ड्रेस में सजे रंग -बिरंगे यह खिलोने देखने में ही बड़े खूब सुरत लगते है
और सबसे आकर्षण तो है --यहाँ की 'कठपुतलियाँ' जो हर दूकान पर टंगी हुई दिख जाएगी --आप भी देखे :---
(काठपुतलियाँ )
( काठपुतली का खेल )
यहाँ आपको कठपुतली का खेल भी देखने को मिल जाएगा --!
यहाँ गेस्ट -हाउस बहुत बने है -- राजभवन स्थित ' कला - दीर्धा ' देखने लायक है --राजस्थान के महामहिम राज्यपाल का यह ग्रीष्मकालीन मुख्यालय भी है--इस टाईम राजस्थान सरकार का सारा काम काज यही होता है --तब यहाँ अफसरों की फोज नजर आती है --
म्यूजियम और आर्ट गेलरी :--
राज भवन परिसर में १९६२ मे गवरमेंट म्यूजियम स्थापित किया गया , ताकि इस इलाके की पुरानी संपदा को सरंक्षण मिल सके --यहाँ आपको आबू के इतिहास के बारे में सबकुछ मालुम पड़ता है --
(यह है मेढंक के शक्ल की चट्टान )म्यूजियम और आर्ट गेलरी :--
राज भवन परिसर में १९६२ मे गवरमेंट म्यूजियम स्थापित किया गया , ताकि इस इलाके की पुरानी संपदा को सरंक्षण मिल सके --यहाँ आपको आबू के इतिहास के बारे में सबकुछ मालुम पड़ता है --
शाम को ४ बजे हम यहाँ की फेमस टोड-रॉक देखने चल पड़े -रास्ता निक्की झील से ही जाता है --थोडा उबड़ -खाबड़ और पथरीला है--पर आप चढ सकते है -आज मेने निश्चय किया की इस बार मै ऊपर चोटी पर जरुर जाउंगी --चाहे जो हो ? और हम धीरे -धीरे ऊपर आ ही गए ---
(जेस ,सन्नी ,निक्की और मै )
इसे टोड़- रॉक कहते है --यहाँ से आबू का जो द्रश्य दिखलाई देता है--वो अविश्वरनीय है --ऐसा लगता है की मानो यह मेंढक अभी कूदकर झील की गहराइयो मै खो जाएगा --यहाँ से निक्की झील का अस्तित्व भी अनोखा नजर आता है --सारा आबू दिखाई देता है --यह पहाड़ी भी काफी ऊँची है --इसका पथरीला रास्ता है पर आप आराम से चढ सकते है --यहाँ पर भी सेलानियो की काफी भीड़ जमा रहती है --पर चट्टान नामो से भरी हुई है --सारी चट्टान पर चाक और कोयले से नाम .शहर ,दिनांक छपी हुई है -पता नही लोग क्यों पुरातन संपती को इस तरह नुकसान पहुंचाते है --
यहाँ से निक्की -झील का शानदार द्रश्य दिखलाई देता है :--
(निक्की झील का विहंगम द्रश्य )
निक्की -झील का इतिहास :-
निक्की- झील को माउंट -आबू का दिल कहते है --यह शहर के बीचो -बीच स्थित है --सारे शहर का आकर्षण यह झील ही है --इसके चोरो तरफ पर्वत श्रंखलाए है --झील के बीचो -बीच एक टापू बना है जहां फाउन्टेन चलता है जिसकी धारा 80 फुट ऊँची जाती है --कडाके की ठंडी पड़े तो यह झील जम भी जाती है --वेसे यहाँ बर्फ नही पड़ती --
कहते है की एक हिन्दू देवता ने अपने नाख़ून से इसे खोदा था --इसलिए इसका नाम निखि झील पड़ा ,जो कालांतर में " निक्की " नाम से प्रसिध्य हुआ --इसके चारोऔर पहाडियों होने के कारण इस झील की सुन्दरता मोहित करती है --ढाई किलो मीटर के दायरे में फैली हुई इस झील के चारो तरफ सडक बनी हुई है --जिसके किनारे पर बहुत सुंदर बगीचा बना है --जहां हर समय सैलानियों की भीड़ जमा रहती है --नोका - विहार से इसकी खुबसुरती में चार चाँद लग जाते है --
कहते है की एक हिन्दू देवता ने अपने नाख़ून से इसे खोदा था --इसलिए इसका नाम निखि झील पड़ा ,जो कालांतर में " निक्की " नाम से प्रसिध्य हुआ --इसके चारोऔर पहाडियों होने के कारण इस झील की सुन्दरता मोहित करती है --ढाई किलो मीटर के दायरे में फैली हुई इस झील के चारो तरफ सडक बनी हुई है --जिसके किनारे पर बहुत सुंदर बगीचा बना है --जहां हर समय सैलानियों की भीड़ जमा रहती है --नोका - विहार से इसकी खुबसुरती में चार चाँद लग जाते है --
(राजस्थान का उत्सव -मेला )
वन्यजीव अभ्यारण्य :--
वन्यजीव अभ्यारण्य 228 वर्ग मीटर में फैला है --इसे १९६० में धोषित किया गया --भालू ,चीतल ,बंदर ,तेंदुआ,साम्भर .लंगूर देखे जा सकते है --यहाँ आप प्रवासी पक्षी भी देख सकते है --यहाँ २५० पक्षियों की किस्मे पाई जाती है --ओर पोधो की १५०प्रजातिया पाई जाती है --
रात को हम खाना खाने माल रोड पर चल दिए ---वही थाली वाली पुरानी जगह पर जहा के 'खमंड- ढोकले' बच्चो को बहुत पसंद थे --
आबू से ढाई किलो मीटर दूर है ,हनुमान जी का मन्दिर --यहाँ ७०० सीढियां उतरने के बाद गुरु विशिष्ट जी का आश्रम आता है --जिसे हम नही देख सके --क्योकि हमें जानकारी बाद में मिली --
उसी तरह अम्बा जी का मन्दिर भी हम नही देख सके --क्योकि वहां निर्माण कार्य हो रहा था --और हम जा नही सके क्योकि परमाणु -टेस्ट के कारण आबू झुलसने लगा था --गर्मी काफी बड गई थी --और हमने एक अच्छे बच्चे की तरह वहाँ से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी ---
(माँ आंबे का मन्दिर )
इस तरह मेरी आबू की एक शानदार यात्रा का समापन हुआ --
जल्दी ही एक नए सफ़र पर ----- दर्शन 'दर्शी '
22 टिप्पणियां:
माउंट आबू के खूब दर्शन कराये आपने
मेंडक चट्टान,निक्की झील घुमाके
'खमंड ढोकला' भी खिलाये आपने
यह यात्रा न भुलेंगें कभी हम
नए सफर का भी इंतजार करेंगें हम.
जय हो ,जय हो,दर्शन दी की जय हो.
बडी भयंकर गर्मी शुरू हो गई है। अब तो फिर से हिमालय हो जाये।
माउंट आबू की यात्रा करके मजा आ गया।
आपके साथ आबू यात्रा में बहुत आनंद आया.
नीरज
तेरह साल पुरानी माउंट आबू की यादों को शेयर करने के लिए शुक्रिया!
यात्रा संस्मरण बहुत बढ़िया लगाया है आपने!
वाह जी वाह , फिर से माउंट आबू घूमकर मज़ा आ गया । टोड रॉक बहुत बढ़िया लगा ।
इति श्री माऊंटआबू कथा,नीरज की सलाह मान लेते हैं और अब हिमालय की ओर चलते हैं, बड़ी गर्मी हैं। दिल्ली जाकर गर्म कपड़ों का इंतजाम भी करना हैं। यहां से क्यों बो्झा ढोएं?
बढ़िया यात्रा रही।
राजस्थान की संस्कृति की झलक देख कर ह्रदय प्रसन्न हो गया..
अब तो जाना पड़ेगा माउन्ट आबू ..
सुन्दर जानकारी
बहुत सुंदर झलकियाँ ......सुंदर यात्रा संस्मरण
सुंदर यात्रा संस्मरण अब तो जाना पड़ेगा माउन्ट आबू .
आदरणीया दर्शन जी,
मुआफी चाहूंगा.व्यस्तता के कारण आपके ब्लॉग पर नहीं आ पाया.
आपने तो माऊंट आबू सारा ही घुमा दिया.बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने.
तसवीरें तो सुन्दर हैं ही.बहुत आभार.
दर्शन 'दर्शी' बहुत ही कवितामयी नाम है.
अब तो नज़्म ही होनी चाहीये.
हमे तो घर बैठे ही इतनी सुन्दर जगह के दर्शन करवा दिये। सुन्दर तस्वीरें बता रही हैं ये जगह देखने योग्य है। धन्यवाद दर्शन जी।
आज पहली बार आपके ब्लाग पर आना हुआ। माउण्ट आबू पर पोस्ट देखी दिल खुश हो गया। लेकिन एक बात समझ नहीं आयी, आपने जैसलमेर के रेत के धोरे, ऊँट की सवारी और पोकरण के साथ माउण्ट आबू को कैसे मिला दिया? दोनों क्षेत्र काफी नजदीक हैं लेकिन एक रेगिस्तान है तो दूसरा पर्वतीय क्षेत्र है और माउण्ट आबू राजस्थान का हिल स्टेशन भी।
आदरणीया दर्शन जी,
माउंट आबू घूमकर मज़ा आ गया
.....मज़ा आ गया
धनोय जी ..लगता है की यात्रा का प्रोग्राम बनाना पडेगा ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! जानकारी भी लाभप्रद !
आपके साथ घूमकर ज्यादा अच्छा लगा
आप अच्छी गाइड हैं ,
घूमने से ज्यादा मजा आपकी कमेंट्री में आया.
राम-राम जी,
अब लग रहा है, कि अपनी बाइक निकाल ही लू, बाइक पर लम्बी यात्रा करे काफ़ी दिन हो लिये है, हर की दून को छोड के पहले यही करनी पड्ती दिख रही है, झील के फोटो देख कर तो कुछ ज्यादा ही मन कर रहा है।
आपने तो हमे हमारे जन्मस्थल के दर्शन करवा दिए बहुत खुबसूरत विवरण |
बहुत सुन्दर चित्रों के साथ शुक्रिया दोस्त |
बहुत सुन्दर यात्रा विवरण ... पढके ऐसा लगा मनो हम भी वहीँ घूम रहे हैं ...
आपके साथ आबू यात्रा में बहुत आनंद आया|धन्यवाद|
सुन्दर चित्र और विवरण, धन्यवाद!
सुन्दर चित्र और विवरण...........आपके साथ आबू यात्रा में बहुत आनंद आया.........
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