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गुरुवार, 14 मार्च 2024

कश्मीर फाइल # भाग 4

कश्मीर फाईल #भाग 4
#दुधपत्री (श्रीनगर)
4 सेप्टेंबर 2023



कल हम श्रीनगर आ गए ।रात को डल लेक घूमकर कमरे में आ गए।
अब आगे,... रातभर मस्त नींद आई ।सुबह खिड़की से बाहर का नजारा देखा तो देखती ही रह गई। होटल के पीछे गॉर्डन था ओर उसमें खूबसूरत गुलाब खिले थे ।मुझे आश्चर्य हुआ हमारे इधर गुलाब के पौधे होते है मगर यहाँ पेड़ था और उस पर इतने गुलाब थे जितने हमारे इधर पेड़ पर आम भी नही होते।सफेद गुलाब देखकर मन खुश हो गया। पास ही अनार का पेड़ था और उस पर भी अनार लदे हुए थे।
इतने में फोन की घण्टी बजी होटल के केन्टीन का फोन था "नाश्ता तैयार हैं आ जाइये" हमने 2 चाय रूम में मंगवा ली और फ्रेश होने चल दिये।
थोड़ी देर में गुलफ़ाम बने हम दोनों नीचे उतर रहे थे। होटल का डायनिंग हॉल नीचे बेसमेंट में बना हुआ था। काफी खूबसूरत,नक्कासीदार बड़ा हॉल था। नाश्ते में आज पोहे,उपमा बना था साथ ही ब्रेड मक्खन ओर ब्रेड जाम भी था। हमने छककर नाश्ता किया। हम इन्दोरियों को पोहे दूसरी जगह के अच्छे नही लगते फिर भी ठीक ठीक ही थे।
नीचे 3-4 फैमिली ओर मिली जिन्होने टूर पैकेज हमारी कम्पनी से ही लिए थे। कोई गुजरात से था तो कोई केरल से था एक गोवा का था और एक फारनर था। सभी ने हमारी कम्पनी से ही पैकेज लिए थे।
नाश्ता कर के हम चल दिये दुधपत्री देखने।श्रीनगर से 45 km दूर 2 घण्टे के अंतराल में पड़ता हैं दुधपत्री।
समुद्र तल से देखा जाय तो 2,730 मीटर की ऊँचाई पर है ये हिल स्टेशन।
हमारी गाड़ी श्रीनगर की भीड़ को चीरती हुई लगातार आगे बड़ रही थी ।रास्ते मे छोटे छोटे खूबसूरत गांव ओर गांव के सकरे रास्ते दिल को मोह रहे थे।बच्चे स्कूल जा रहे थे ओर औरतें बच्चो को बस में चढ़ा रही थी।
यहाँ मैंने एक चीज देखी हैं महिलाये, जवान हो या बच्ची सभी के सर पर चुन्नी थी कोई भी महिला बगैर चुन्नी के घर से नही निकल रही थी। महिलाएं स्कूटी चला रही हो या कार चला रही हो पर सबके सर पर पल्लू था। मेरे ख्याल से सिर्फ मुस्लिम महिलाएं ही बुरखा पहने थी। लेकिन हिन्दू ओर सिख महिलाएं भी सर पे पल्लू रखे घूम रही थी।बड़ा ही मनभावन दृश्य था।मुझे याद हैं मेरी माँ और मोसिया भी ऐसे ही सर पर पल्लू रखे रहती थी।
दुधपत्री
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कहते हैं, दुधपत्री को देखे बिना कश्मीर की यात्रा अधूरी समझो।
दुधपथरी का अर्थ है दूध की घाटी। ऐसा कहा जाता हैं कि कश्मीर के प्रसिध्द सन्त शेखउलआलमशेखनूरदिननूरानी को नमाज़ पढ़ना था और उसके लिए (वजू के लिए) पानी चाहिए था तो पानी की तलाश में उन्होंने अपनी निगाहे इधर उधर घुमाई पर उनको दूर-दूर तक पानी दिखाई नही दिया तो उन्होंने अल्लाह से प्रार्थना की ओर अपनी छड़ी से जमीन को खोदा तो दूध निकला, परन्तु उनको दूध नही पानी चाहिए था तो तुरंत पानी का चश्मा फूट पड़ा ।मतलब दूध की तरह दिखने वाला पानी निकला तभी से इस जगह को दुधपथरी कहते हैं।
हमारी गाड़ी ने दुधपत्री में जैसे ही प्रवेश किया तो सामने ही बड़ा सा बोर्ड लगा था।चारो ओर हरियाली बिखरी पड़ी थी। हम आगे बढ़ गए।
सर्दियों में इस बोर्ड के आगे गाड़ीयां नही जाती क्योकि भारी हिमपात के कारण सड़क मार्ग बंद हो जाता हैं पर लोग पोनी की मदद से दुधपत्री देखने जाते है। हमारे टाइम ऐसा कुछ नही था हमारी गाड़ी जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी रास्ता ऊपर-नीचे लहराता हुआ चल रहा था।लम्बे पेड़ और घास के मैदान खूबसूरती बिखेर रहे थे।सड़क के साइड में  बड़ी बड़ी छत्रीयां लगी थीं जिन पर सरसों की रोटी और हरा साग परोसा जा रहा था और गुलाबी रंग की नमकीन  चाय का लुत्फ़ लोग उठा रहे थे।
कुछ घुमाव के बाद मानो स्वर्ग के दर्शन हो गए। हमारे सामने थी हरे घास से भरी एक विशाल कटोरी-नुमा घाटी। दाएं से बाएं, दूर-दूर तक फैली हरियाली पृष्ठभूमि में चीड़ और देवदार के पेड़ों का चौड़ा और ऊंचा परदा और इस परदे के पीछे क्षितिज पर पीर पंजाल की बर्फ से ढंकी पर्वत शृंखला। लगता था कि ईश्वर ने एक भव्य स्टेज बनाया हैं और मैं इस रंगमंच की एकमात्र कलाकार हूँ।
हमारी गाड़ी एक पॉइंट पर पहुँची जिधर  कुछ घोड़े वाले खड़े थे। हमको देख एक पोनी वाला आ गया मैंने भाव पूछा तो 3200 में एक पोनी बोल रहा था यानी कि 2 पोनी का 6हजार रु मांग रहा था। मुझे पता था कि यहाँ बहुत स्केम चलता है तो मैंने दोनों पोनी का आधा रेट लगाकर बोला।पहले तो वो तैयार नही हुआ फिर 3 हजार,2 हजार बोलने लगा।पर मैंने 2 घोड़ो का सिर्फ 3 हजार ही बोला और वो आखिर में तैयार हो गया। मैं बड़ी खुश ,की मैंने एक किला फतेह कर लिया लेकिन हाय री किस्मत! मैंने यहाँ भी 1हजार ज्यादा दे दिया। अगर थोड़ी देर ओर मोलभाव कर रही होती तो वो हम दोनों को 2 हजार में भी ले जाता।
खेर,पोनी पर बैठकर हम आगे चल दिये ।उबड़ खाबड़ रास्ता था पर बहुत ही खूबसूरत था।हम बड़े मजे से चल रहे थे । हमारे घोड़े वाले दोनों बहुत ही सज्जन आदमी थे, उन्होंने हमको एक बच्चे की तरह आराम से पोनी पर बैठाया ओर सम्भालकर आगे बढ़े।बीच-बीच मे हमारे फोटू ओर वीडियो भी उतार रहे थे।
20 -25 मिनिट बाद हम दुधपत्री नामक जगह पर पहुँचे  जिधर एक नदी उछलती हुई आगे बढ़ रही थीं।ये शालीगंगा नदी थी जिसका पानी एकदम साफ था।ओर बर्फ की मानिंद ठंडा! मैं जब इसमें उतरी तो मेरे दोनों पैर सुन्न हो गए।पर ये जगह इतनी खूबसूरत ओर सुकूनभरी थी कि कह नहीं सकते। यहाँ की ठंडी हवा, पानी का कल-कल करता शोर और फिजा  में फैली खुशबू दिल को सुकुन दे रही थी।
में काफी देर तक इन पत्थरोँ पर बैठी आंख बंद कर के दिन दुनियां से बेखबर ख्यालों में घूमती रही।फिर घोड़े वाले ने आवाज लगाई तो मैं उठ खड़ी हुई।
फिर हमने कहवा पिया जो मुझे ज्यादा पसंद नही आया। कुछ देर रुककर हम पोनी से अपनी कार तक आ गए। आने के टाइम पोनी वाले बहुत पीछे पड़ते है उनको 100-100 ₹ दिए पर उन्होंने नही लिए फिर 200-200 दिए तब भी ओर मांग रहे थे।अब हमने पीछा छुड़ाने में ही अपनी समझदारी दिखाई और कार में बैठ गए।
3 घण्टे हमने यहाँ व्यतीत किये पर मन नही भरा।वापसी में हमने भी एक टेंट वाले के पास बैठकर मक्के की रोटी, नदरु का अचार ओर कोई हरा साग खाया।टेस्टी था।फिर गुलाबी चाय भी पी।सस्ता ही था
100₹ मे 1मक्की की रोटी,अचार ओर साग।
4 बजे हम वहां से रुक्सत हुए।अब 2 घटे में श्रीनगर आएगा तब तक 1 नींद ली जाए।कैसा रहेगा🤪

वैसे इस साग ओर रोटी से हमारी थोड़ी तबियत खराब हो गई थी ।शायद हमने ज्यादा खा ली थी☺️













      





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