मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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सोमवार, 23 मई 2011

लागी छूटे न !!!!!



लागी छूटे न




लागी छूटे न अब तो सनम !
  चाहे जाए जिया ,तेरी कसम !!



पर मै जानती हूँ  तेरे दिल में मै नही हूँ    ?
मेरा प्यार , मेरा अहसास !सब खोखला है 
तू मुझसे प्यार नही करता  ?
 मैं  तेरी आरजू इन आँखों में लिए भटकती रहूंगी 
तुझ से मिलने को अब मैं तरसती रहूंगी 

वो खुशनुमा दिन !
वो खुशनुमा राते !

जब हम मिलकर प्यार किया करते थे 
  वो कदम के पेड़ की छाया....
वो रजनीगन्धा के फुल....
जूही की मदमस्त खुशबु से सराबोर 
वह तेरे दिल का आँगन ........
जहां तेरी मुस्कुराती तस्वीर मेरे मन को हर्षाती थी !
जहां कभी मैं निशब्द चली आती थी ,
तेरे दिल के दरवाजो को झंकृत कर के 
न शोर !
न कोई कोलाहल !
   
खामोशी से लरजते वो तेरे अशआर 
मुझे अंदर तक रोंद गए है....





अब वो बात कहाँ .....

तेरी विरह अग्नि में मै, जल रही हूँ ज़ालिम !
बूंद -बूंद पिघल रही हूँ ज़ालिम !  
इस तपिश से मुझे बचा ले ज़ालिम !

कैसे तुझे  चाहू !
कैसे तुझे पाऊ !
कैसे तुझे देखू !

इस दिल की लगी से मुझे बचा ले यारा !
           इस पीड़ा से मुक्ति दिला दे यारा !!


" दूर है फिर भी दिल के करीब निशाना है तेरा "


35 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत खूब वियोग शृंगार की
उत्कृष्ट रचना पेश की है आपने!
--
वियोग कैसे लिखा जाता है
अब तो आपसे ही सीखना पड़ेगा
दर्शन जी!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

लागी छूटे न अब तो सनम !
चाहे जाए जिया ,तेरी कसम !!

ek filmi gane se suru ki aapne kavita ...aur fir usme jaan daal di...:)

kaise virah aur viyog ko aapne dikhaya hai..ye kabil-e-tareef hai..:)

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत बोल रहे हैं भाव ...
मुखरित हो गया है विरह ..
सुंदर कविता .

संजय भास्‍कर ने कहा…

क्या बात है गज़ब का शब्द संयोजन.
बहुत प्यारी रचना बन पडी है
.......बहुत खूब बहुत ही बेहतरीन रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

" दूर है फिर भी दिल के करीब निशाना है तेरा "
अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं बहुत अच्छी सुन्दर रचना, बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

खूबसूरत और कोमल एहसासों से भरी रचना ...

संध्या शर्मा ने कहा…

वह तेरे दिल का आँगन ........
जहां तेरी मुस्कुराती तस्वीर मेरे मन को हर्षाती थी !
जहां कभी मैं निशब्द चली आती थी ,
तेरे दिल के दरवाजो को झंकृत कर के
न शोर !
न कोई कोलाहल !
कोमल अहसासों से भरी भावपूर्ण रचना......

prerna argal ने कहा…

bahut hi baduyaa virah ki peeda ko darsaati hui saarthak rachanaa.bahut hi sunder shabdon ka chayan.badhaai aapko.



please visit my blog and leave the commnts also.

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

प्रणय में विरह वेदना को किस तरह उजागर किया है आपने , लगता है की ऐसी कुछ कहानी एक नहीं बहुत सी बिखरी पड़ी हैं. आप ने सबके दुःख को समेट कर बांध लिया है.

विशाल ने कहा…

बहुत खूबसूरत नज़्म है .
लागी छूट जाए तो
हम कहाँ हम है,
बस ज़िन्दगी ख़तम है.

विशाल ने कहा…

आप की कलम दिनबदिन बेहतर होती जा रही है,दर्शन कौर जी.
खुदा खैर करे .

ढेरों सलाम .

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बहुत ही अच्छे भाव हैं ... कभी ये रंग कभी वो

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

कमाल कर दिया जी, गहरा वियोग है.

दुष्यंत कुमार ने कहा है....

गमे जाना, गमे दौरां, गमे हस्ती, गमे ईश्क
जब गम ही गम दिल में भरा हो तो ग़ज़ल होती है

मदन शर्मा ने कहा…

वह तेरे दिल का आँगन ........
जहां तेरी मुस्कुराती तस्वीर मेरे मन को हर्षाती थी !
जहां कभी मैं निशब्द चली आती थी ,
तेरे दिल के दरवाजो को झंकृत कर के
न शोर !
न कोई कोलाहल !
खूबसूरत और कोमल एहसासों से भरी रचना ..
वाह! दे दनादन आप सुन्दर कवितायें लिखी जा रही हैं अब देश भ्रमण कब होगा ?
अगले देश भ्रमण की प्रतीक्षा है !!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

शुरू और अंत में दिए गानों से मेल खाती सुन्दर रचना ।

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत सुंदर संवेदनशील भाव समेटे हैं दर्शन कौर धनोएजी

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मिलने की वेदना लिएये बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति .....

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत ही सुंदर कविता !और बहुत ही गहरे भाव !
गहरी वेदना है आपकी कविता में.
आपकी लेखनी को नमन.

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

very nice .....beautiful feelings

SANDEEP PANWAR ने कहा…

दूर फ़िर भी है, दिल के करीब,

विभूति" ने कहा…

waah! kya likh diya apne har shabd jaise dil ko chu gaya... bhut khubsurat lkha hai apne...

Urmi ने कहा…

जब हम मिलकर प्यार किया करते थे
वो कदम के पेड़ की छाया....
वो रजनीगन्धा के फुल....
जूही की मदमस्त खुशबु से सराबोर
वह तेरे दिल का आँगन ........
जहां तेरी मुस्कुराती तस्वीर मेरे मन को हर्षाती थी !
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! दिल को छू गयी! लाजवाब और भावपूर्ण रचना!

Sushil Bakliwal ने कहा…

किस्सा ये दर्द सुनाते हैं कि मजबूर हैं हम.

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !

G.N.SHAW ने कहा…

सम्बेदंशील कविता ! आप के हर कविता में एक विरह की पीड़ा होती है !

Sunil Kumar ने कहा…

प्रणय में विरह वेदना, बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है..अलग रंगत.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...मन के भाव खूबसूरती से लिखे हैं

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर, क्या बात है

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

प्रेम रंग से भीगी हुई सुंदर कविता।
शुभकामनाएं।

Unknown ने कहा…

जिसके होने से घर रोशनी से नहा जाता
जिसके कहने से कोई बात घर मे होती है
वो मेरा प्यार चुपचाप है दम तोड़ रहा
कैसे लौटे मोहब्बत बस यही सोच रहा

प्यार घुटता है घर मे तो फिर ऐसा करे
आकाश से करे प्यार जिए सबके लिए
लकड़ी की छत तले दम घुटता है मेरा
ले कुल्हाडी अब तोड़ दू सभी दीवारें

इस जेल से निकल बाहर खुले मे आ
नए प्यार के रंगों से सजा दू तुमको
जैसे धरती को मिलाया है बदलिया से
ऐसे हम तुम करे प्यार खामोशी से

होंगी मजबूरिया सनम तेरी और मेरी भी
होंगे गम तंगी के भूख और बेकारी के
मत मांगो तुम हिसाब जमाने भर के
प्यार कर, हमें क्या लेना है जमाने से

Unknown ने कहा…

http://hariprasadsharma.blogspot.com/2009/11/blog-post.html

Unknown ने कहा…

bahut hee bhavul prem kee shandaar abhivyakti hai

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रेम की पराकाष्ठा है ... विरह का अंत नही .... बहुत ही लाजवाब उम्दा लिखा है ...

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत सुंदर
कभी यहाँ भी पधारें