गुरु गोविंदसिंह जी
आज के भौतिक युग में अपने बहु संख्यक होने के कारण देश के शासन -प्रशासन में अपना प्रभुत्व कायम हो जाने के कारण हमारे वर्तमान शासक गुरु गोविंद सिंह जी और उनके निर्मल खालसा -पंथ के अनगिनत परोपकारो को भूलते जा रहे हैं ---इसका सबसे बड़ा प्रमाण नवम्बर 1984 में उस समय की सताधारी पार्टी द्वारा पूर्व नियोजित निर्मम सिक्ख नरसंहार और सिक्ख स्त्रियों को बहुत बड़े स्तर पर अपमानित किए जाने की दुखद धटना क्रम को लेकर देखा जा सकता हैं--इस शासक पार्टी के कुछ नेताओ ने देश की राजधानी दिल्ली में अपने नेतत्व में हजारो सिक्खों का कत्लेआम कराया --हमारा तथाकथित लोकतांत्रिक सिस्टम तथा इसकी निष्पक्ष न्यायपालिका आज तक किसी भी दोषी को दंडित नहीं कर सकी हैं ----????
ऊपर से देश के वर्तमान गुहमंत्री सिक्खों को नवम्बर 84 का सिक्ख कत्लेआम भूल जाने का मशवरा दे रहे हैं ? यह कैसी विडंबना हैं ?
यह श्री गुरु गोविंद सिंह जी और उनके खालसा -पंथ के परोपकारो का कैसा सिला हैं ??
जिस धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपने पुरे परिवार का बलिदान किया --आज उन्ही की बनाई हुई कौम को अपनी पहचान बनाए रखने में कई संकटों का सामना करना पड रहा हैं ---
जिस धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपने पुरे परिवार का बलिदान किया --आज उन्ही की बनाई हुई कौम को अपनी पहचान बनाए रखने में कई संकटों का सामना करना पड रहा हैं ---
देश यह सच्चाई भूल चूका है की मात्र ९ बर्ष की आयु में गुरूजी ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपने पिता गुरु तेगबहादरजी को बलिदान के लिए प्रेरित किया था ---जब मुग़ल साम्राज्य की फौजे 'करो या मरो' की तर्ज पर हिन्दुओ को मार -मार कर मुसलमान बना रही थी ,तब कश्मीर के ब्राहमण गुरू तेग बहादर जी के दरबार में याचिका लेकर पहुंचे और दया की गुहार लगाईं --अपने धर्म का वास्ता दिया तब गुरूजी ने कहा की ----'जाओ,उनसे कहो की पहले हमारे गुरु का धर्म परिवर्तित करो --फिर हम अपना धर्म बद्लेगे !'
इस तरह अपना शीश देने वो दिल्ली चल पड़े --चांदनी -चौक पर उन्होंने अपना शीश देश और कौम की खातिर निछावर किया --जहाँ उनका शीश काटा था वहां आज गुरुद्वारा( शीशगंज साहेब) बना हैं --
(गुरुद्वारा शीशगंज साहेब , देहली )
( और यह हैं ८४ के दंगो के टाइम जलता हुआ शीशगंज गुरुद्वारा )
( जुल्म करते मुग़ल सैनिक और सहते निरह सिक्ख )
( जुल्म करते मुग़ल सैनिक और सहते निरह सिक्ख )
पिता के बलिदान के समय गुरूजी की आयु महज ९ साल की ही थी --इस अल्प आयु में ही गुरूजी ने युध्य विधा में पारंगत हासिल की --कई लड़ाईयां उन्होंने लड़ी ---आंनदपुर साहिब में अपना ठिकाना बना कर वो अपने आने वाले मुरीदो को कहते थे की मेरे लिए नजराने लाना हो तो माया (पैसे ) नहीं शास्त्र और घोड़े लाए --उन्होंने फौज भी इक्कठा करनी शुरू कर दी --
गुरूजी के चार बेटे थे --चारो होनहार ---!
गुरूजी ने अनेक लड़ाईयां लडी --उस समय औरंगजेब बादशाह था --शाही सेना ने बहुत उत्पात मचा रखा था --गुरूजी का भंगानी का युध्य ,चमकौर और मुक्तसर का युध्य और आनंद साहेब का युध्य प्रसिध्य हैं --- चमकौर की कच्ची गडी में गुरूजी ने ४० सिक्खों की फौज के साथ जिस हिम्मत और दलेरी से दस लाख मुग़ल शाही सेना से टक्कर ली ,ऐसी मिसाल इतिहास में कही नहीं मिलती --
(युध्य में वीरता से लड़ते गुरु गोविन्द सिंह जी )
चित्र --गुरुद्वारा हजूर साहेब
युध्य में शानदार विजय प्राप्त की पर चमकौर की लड़ाई में गुरूजी के दोनों बड़े पुत्र शहजादा अजीतसिंह और शहजादा जुझार सिंह वीरगति को प्राप्त हुए ---दोनों छोटे पुत्रो को माता गुजरी जी अपने साथ पुराने सेवादार गंगू के घर ले गई --इस सेवादार ने लालच में आकर धोखे से दोनों बालको को कोतवाल को पकडवा दिया --जिसने सरहिंद के सूबेदार वजीर खां के हवाले कर दिया --वजीर खां गुरु जी से बहुत जलता था उसने दोनो छोटे साहिबजादों शहजादे जोरावर सिंह और शहजादे फतेहसिंह को नीवं में जिन्दा चुनवा दिया -- दोनों बालक बहुत छोटी उम्र में ही शहीद हो गए --माताजी से यह देखा नहीं गया वो स्वर्ग सिधार गऐ------
चित्र --गुरुद्वारा हुजुर साहेब
( जिन्दा दिवार में चुनते हुए छोटे साहिबजादो को )
चित्र --गुरुद्वारा हुजुर साहेब
चित्र --गुरुद्वारा हुजुर साहेब
(सिक्ख फौजों को बन्दुक चलाने की तालीम देते हुए दसवे पातशाह )
चित्र --गुरुद्वारा हुजुर साहेब
चित्र --गुरुद्वारा हुजुर साहेब
अपने चारो बच्चो की मौत की खबर सुनकर गुरूजी बहुत क्रोधित हुए -- हैरान और दुखी हो उन्होंने औरंगजेब को बहुत लानते दी और दहाड़ते हुए बोले --'क्या हुआ गीदड़ के धोखे से शेर के चार लाल खो चुके हैं .परन्तु शेर अभी जिन्दा हैं ,जो की बदला लेकर रहेगा "
तब उन्होंने गुस्से में औरंगजेब को एक चिठ्ठी लिखी --जिसे 'जफरनामा ' कहा गया --यह पत्र फारसी लिपि में था जफरनामा यानी जीत का पत्र------
तब उन्होंने गुस्से में औरंगजेब को एक चिठ्ठी लिखी --जिसे 'जफरनामा ' कहा गया --यह पत्र फारसी लिपि में था जफरनामा यानी जीत का पत्र------
"चार मुए तो क्या हुआ
जीवन कई हजार "
" यानी मेरे चार बच्चे नहीं हैं तो क्या हुआ --
मेरे चार हजार बच्चे अभी भी जीवित हैं"
ऐसे वचन कहना हर किसी के बस की बात नहीं हैं ---उन्होंने औरंगजेब को ललकार कर कहा की --"तेरा कर्म लूटना और धोखा -फरेब हैं पर मेरी राह सच्चाई की हैं --तुने अपने ही भाईयो का खून पिया हैं --तू जल्लाद हैं"
कहते हैं की औरंगजेब इस पत्र को पढ़कर खूब तडपा-- उसकी तडप को मीर मुंशी जी कुछ यु लिखते हैं :---
"मुझे अपना पता नहीं गुनाह बहुत किये हैं,
मालुम नहीं किस सज़ा में गिरफ्तार हूँगा !"
तब औरंगजेब गुरूजी से मिलने को तडपने लगा --उसने गुरूजी से मिलने की इच्छा प्रकट की; उस समय औरंगजेब दक्षिण में मराठो से युध्य कर रहा था--- तब गुरूजी उससे मिलने दक्षिण की और चल पड़े .----
(अपने बच्चो के लिए व्याकुल गुरूजी --जंगलो में भटकते हुए )
अभी गुरूजी राजस्थान ही पहुंचे थे की औरंगजेब की म्रत्यु का समाचार उन्हें मिला --दक्षिण के छोटे से गाँव खुलताबाद में इस सदी का सबसे बेरहम ज़ालिम बादशाह औरंगजेब का अंत हुआ --
"दो फूल भी मज़ार पे उनके नहीं फलक ,
लेकर जमीं जिन्होंने हजारों बनाए बाग़ !" -अज्ञात
अपने जीवनकाल में जिसने अनेक जुल्म ढाए --ऐसे बादशाह का यू लाचारी में अंत हुआ ..-...हर अत्याचारी का एक न एक दिन अंत होता ही है ---? १९८४ में मारे गए सिक्खों का लहू भी चित्कारेगा --और उन्हें मारने वाले कभी चैन से नहीं रह पाएगे -- क्योकि इस अदालत के ऊपर भी एक और अदालत हैं--जहाँ इंसाफ होता हैं -----
28 टिप्पणियां:
ये ही तो नहीं हो पा रहा है इस देश भारत में जहाँ 3500 सिखों की जघन्य मौत के बाद एक को भी इन्साफ़ नहीं मिला है, और ना ही मिलने की कोई किरण बाकि है, हर किसी को वोट की पडी है, जिसे देखो वो गुजरात के 750 मुस्लिम की मौत के बारे ड्रामा करता है जबकि वहाँ पर 300 हिन्दू भी मारे गये थे उस पर सबकी बोलती बन्द हो जाती है बिल्कुल 3500 सिखों की मौत की तरह। सिख पंथ कोई धर्म नहीं था ये पंथ मुगलों के अत्याचार से तंग आकर हिन्दुओं की रक्षा के लिये बनाया गया एक समूह था, जिसमें उस समय प्रत्येक हिन्दू के लिये परिवार का सबसे बडा लडका हिन्दू की रक्षा करने वाली टोली में भेज दिया जाता था जिसे सरदार कहा जाता था, उसके लिये समाज से अलग कुछ नियम थे जैसे सिर व दाडी के बाल बढाना। बाद में यही सरदार व इनकी आने वाली पीढी भी सरदार कहलायी, मेरे दादाजी के छोटे भाई(असली दादाजी तीस वर्ष की उम्र में स्वर्ग सिधार गये थे) बताया करते थे कि उनके दादा भी सरदार थे परन्तु बाद की पीढी सरदार ना बनके स्वामी दयानंद सरस्वती के दिखाये आर्यसमाज की परम्परा पर चली थी और आज तक चल रही है।
ये ही तो नहीं हो पा रहा है इस देश भारत में जहाँ 3500 सिखों की जघन्य मौत के बाद एक को भी इन्साफ़ नहीं मिला है, और ना ही मिलने की कोई किरण बाकि है, हर किसी को वोट की पडी है, जिसे देखो वो गुजरात के 750 मुस्लिम की मौत के बारे ड्रामा करता है जबकि वहाँ पर 300 हिन्दू भी मारे गये थे उस पर सबकी बोलती बन्द हो जाती है बिल्कुल 3500 सिखों की मौत की तरह। सिख पंथ कोई धर्म नहीं था ये पंथ मुगलों के अत्याचार से तंग आकर हिन्दुओं की रक्षा के लिये बनाया गया एक समूह था, जिसमें उस समय प्रत्येक हिन्दू के लिये परिवार का सबसे बडा लडका हिन्दू की रक्षा करने वाली टोली में भेज दिया जाता था जिसे सरदार कहा जाता था, उसके लिये समाज से अलग कुछ नियम थे जैसे सिर व दाडी के बाल बढाना। बाद में यही सरदार व इनकी आने वाली पीढी भी सरदार कहलायी, मेरे दादाजी के छोटे भाई(असली दादाजी तीस वर्ष की उम्र में स्वर्ग सिधार गये थे) बताया करते थे कि उनके दादा भी सरदार थे परन्तु बाद की पीढी सरदार ना बनके स्वामी दयानंद सरस्वती के दिखाये आर्यसमाज की परम्परा पर चली थी और आज तक चल रही है।
अच्छी जानकारी वाली पोस्ट,
बहुत बढिया
श्री गुरू गोविन्द सिंह जी को शत शत नमन.
आपकी पावन लेखनी को नमन.
ईश्वर की अदालत सबसे बड़ी अदालत है.
जुल्मी ना कभी बचा है, न कभी बच पायेगा.
शत शत नमन ... सच्चे वीर गुरु गौबिंद सिंह जी की जरूरत है आज फिर ...
बहुत दर्दनाक हादसे थे ।
गुरूजी के बलिदान और बहादुरी को ज़माना कभी नहीं भुला पाएगा ।
उन्हें शत शत नमन ।
बहुत अच्छी जानकारी ..
आभार !!
शत शत नमन...बहुत सुंदर और प्रेरक चित्रमय आलेख..
@ सही कहा संदीप --सिक्ख कोइ एक जाती विशेष नहीं हैं-- पञ्च प्यारे जो पहले सिक्ख बने थे वो कोई एक जाती व् धर्म के नहीं थे ! महाराज गुरु गोविन्द सिंह जी ने उनकी बहादुरी और वीरता को देखकर ही उनका चुनाव किया था -उस समय घर का हर बड़ा लड़का बाल रखकर सरदार बनने में अपने आप को गौरवशाली महसूस करता था --यह तो आज की स्थिति अलग हो गई हैं ?
हम तो आज भी अपने आपको हिन्दू ही समझते हैं और सारे त्यौहार उसी तरह मनाते हैं
@ सबको कोटि -कोटि धन्यवाद ! मेरे इस पहले प्रयास पर आप सब की टिप्पणियाँ से मेरा मनोबल बढाने के लिए --शुक्रिया !
बहुत ही उपयोगी ऐतिहासिक पोस्ट लिखी है आपने!
--
वहे गुरूजी का खालसा!
वाहे गुरूजी की फतह!!
दर्शन जी
जानकारी की लिए शुक्रिया लेकिन अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं कुछ कहना चाहूंगा......
गुरु गोबिंद सिंह जी या सिख धर्म के बाकी गुरु जी कभी मृत अवस्था में नहीं गए....
उनका "सचखंड गमन" हुआ है या दूसरे शब्दों में कहें तो "ज्योति-ज्योत" समाये हैं.....
मृत्यु शब्द का इस्तेमाल मेरे हिसाब से सही नहीं है, बाकी आप स्वयं इतनी संजीदा लेखिका हैं....
आशा करता हूँ आप मेरी इस बात का बुरा नहीं मानेंगी और मेरी प्रार्थना को मान देंगी....!!
दशमेश गुरु गोविन्द सिंह जी का जीवन और कृतित्व वन्दनीय है! धन्य है भारत भूमि जहाँ ऐसे महापुरुषों ने जन्म लिया!
@सॉरी सुरेंदर जी,आपका कथन सौ आने सही हैं ..मुझे अफ़सोस हैं मुझ्से ऐसी गलती कैसे हो गई..? आपका धन्यवाद !
आज भी सोच कर रौंगटे खडे हो जाते है बच्चो को ज़िन्दा चिनवा दिया गया …………श्री गुरू गोविन्द सिंह जी को शत शत नमन.
कल के चर्चा मंच पर, लिंको की है धूम।
अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।।
बस हम यही कहेंगे ..".वाहे गुरु जी दा,खालसा ,वाहे गुरु जी दी ,फ़तेह ".... अच्छा प्रयास, यह बयान कोई और दर्ज करता
तो खुद्दारी होती ,ख़ुशी होती ......../
आदरणीय दर्शन कौर जी नमस्ते !!बहुत ही उपयोगी पोस्ट लिखी है आपने! जीतनी भी तारीफ़ की जाय कम है
गुरु गोविन्द सिंह जी का जीवन और कृतित्व वन्दनीय है! धन्य है भारत भूमि जहाँ ऐसे महापुरुषों ने जन्म लिया!
श्री गुरू गोविन्द सिंह जी को शत शत नमन.
शान्ति बहुत हुई....
बहुत हुई अहिंसा की कायरता...
अब जरुरत है क्रांति की..
इन्कलाब की... अब उठ्ठो...
जागो... कफ़न बाँध लो माथे पर... शूरवीरों...
मेरी माँ भारती के वीर सपूतो... उठ्ठो... जागो...
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...
मदन शर्मा जी आप के विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ|
अहिंसा अब नपुंसकता में परिणत हो गयी है और इस नपुंसक कौम के लोग सब को ऐसा ही बना देना चाहते हैं, आज तो औरंगजेब और बाबर अकबर जैसे आक्रमणकारी भी कितनों के आदर्श हो गए हैं|
गोधरा के बदले की आम जन की करवाई को सरकारी दंगा कहा जाता है और एक के बदल दस हजार की हत्या के बारे में कोई बात ही नही करता |
बहुत सही जानकारी|
guru govind singh ji ke baare main bahut achchi jaankaari di aapne .bahut badhaai aapko .
मुझे ये बताते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही है , की आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (१६)के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें यही कामना है /आपका
ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर स्वागत है /आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए / जरुर पधारें /
itihaas yese ronte khade kar dene vaale haadso se bhara pada hai.bahut dukh hota hai padhkar aapki post ne dil bhaari kar diya.guru govind singh ji ko naman.
सुन्दर चित्रो> के साथ सुन्दर जान कारी..धन्यवाद..
दर्शी जी इस पोस्ट के लिए तो नमन है आपको ....
तस्वीरों के साथ आपने सारे दर्द ताजा कर दिए ....
मैंने भी खूब लिखा है गुरु गोविंग जी के ऊपर ....
जब जब लिखा नान भर आया ....
खास कर साहिबजादों की शहीदी पर तो आँखें नम हो जाती है ....
गुरु नानक जयंती पर भी लिखिए .....
छत्री का पूत हूँ ब्राह्मण का नाही
( गुरू गोविन्द सिंह जी )
छत्री का पूत हूँ ब्राह्मण का नाही
( गुरू गोविन्द सिंह जी )
छत्री का पूत हूँ ब्राह्मण का नाही
( गुरू गोविन्द सिंह जी )
Veer ji mout sabad ja marna sabad gurbani ch bahut aaya hai
Muhe marne ka chao hai.
Pehla maran kabool
Purja purja kat marey
aur beant sabad
Ham ek satkar k liye satgur ji k liye j sabd use karte hai
Koi baat nhi unho ne agar eh sabad use kita hai ta
Bhool chook muaf kar dena ji
Na hum Hindu na hum musalman
Hum hai har ke balak
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