फिर मिलूंगी कब ???
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मैं तुमसे फिर कब मिलूंगी ?
कब ! कब ???
जब चन्द्रमा अपनी रश्मियाँ बिखेर रहा होगा तब ।
या जब जुगनु टिमटिमा रहे होंगे ?
या जब रात का धुंधलका छाया होगा ?
या जब दूर सन्नाटे में किसी के रोने की आवाज़ होगी तब ?
या कहीं पास पायल की झंकार होगी ?
या चूड़ियों की कसमसाहट होगी तब ?
क्या मैँ तुमसे मिल पाउंगी ---?
तीसरे पहर की वो अलसाई हुई सुबह ---
उस सुबह में पड़ती ओंस की नन्ही नन्ही बूंदें---
दूर~~पनघट से आती कुंवारियों की हल्की सी चुहल--
या रात की रानी की बेख़ौफ़ खुशबु ---
नींद से बोझिल मेरी पलकें और
उस पर सिमटता मेरा आँचल...?
बोलो ! क्या मैं तुमसे तब मिल पाउंगी ..?
सावन की मस्त फुहारों के बीच
झूलों की ऊँची उड़ानों के साथ
पानी से भीगते दो अरमानों के साथ
या हवा में तैरते कुछ सवालों के साथ
क्या, तब मैं तुमसे मिल पाउंगी ?
थरथराते होठों के साथ
सैज पर बिखरी कलियों के साथ
मिलन के मधुर गीतों के साथ
ढ़ोलक पर थिरकती उँगलियों के साथ
या गूँजती शहनाई की लहरियों के साथ
क्या सच में ! मैं तुमसे मिल पाउंगी ----?
इन्हीं उधेड़े हुए कुछ पलो के साथ
कुछ गुजरी ,कुछ गुजारी यादों के साथ
खामोश गाती ग़ज़लों के साथ
आँखों से बह निकले तिनकों के साथ
कुछ यू ही अलमस्त ख्यालों के साथ
क्या हम फिर मिल पायेगे....
क्या हम मिल पायेगे ...
13 टिप्पणियां:
Milna ham dono
ka bhi to
hai aur kisi ka
hi nirnay.
वाह
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आज बातें कम, लिंक्स ज्यादा - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मिलते हैं जल्द ही :)
उत्कृष्ट रचना की प्रस्तुति।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना, मुझे खुशी होगी अगर आप मेरे ब्लॉग पर आएँगे.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
तुमसे तो मिल ली ☺
थॅंक्स राकेश जी
थॅंक्स शास्त्री जी
थॅंक्स
हा क्यों नहीं बिटियाँ की शादी भी जल्दी आ रही है बोरिया बिस्तर बांध लो
थॅंक्स आजमी साहब
थॅंक्स नितीश
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