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गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

यात्रा जगन्नाथपुरी ( YATRA JAGANNATHPURI --1 )




* यात्रा जगन्नाथपुरी *
भाग --1 


मंदिर का प्रवेश द्वार 

28 मार्च 2017  

28 मार्च को मेरा जन्मदिन भी था और इसी  दिन मैं अपनी सहेली और उसके परिवार के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा को निकल पड़ी | 
मेरी काफी सालो से ये अभिलाषा थी की एक बार जगन्नाथ पूरी के दर्शन को जरूर जाउंगी , क्योकि मेरा   इतनी दूर जाना मुश्किल ही नहीं असम्भव ही था | और सरदार फैमिली की होने के कारण किसी का झुकाव भी इस मंदिर में  नहीं था ,कोई मुझे इतनी दूर लेकर नहीं जाना चाहेगा , इसलिए मेरा मन बहुत व्याकुल था |

आखिर काफी परिवार वालो की असहमति होने के बावजूद भी मैं निकलने में सफल हुई। ... जय घुमक्क्ड़ी !!!!

12 बजे अपने  निवास स्थल वसई से मैंने लोकल पकड़ी वी. टी. जाने के लिए , वी  टी  मेरे घर से काफी दूर था और मुझे 3 :15 की कोणार्क एक्सप्रेस  पकड़नी थी | पौने 2 बजे मेरी लोकल चर्चगेट स्टेशन पहुंची | वहां से टैक्सी लेकर मैं वी टी (पुराना नाम ) नया नाम छत्रपति शिवजी टर्मिनस C S T  के 14 नंबर प्लेटफॉर्म पर पहुंची  पर अभी तक न मेरी सहेली का पता था ना गाडी का खेर, अभी काफी टाईम था मैं वही एक बेंच पर बैठकर उन लोगो का इन्तजार करने लगी |

3 बजे से पहले ही सब आ गए और गाडी भी अपने राईट टाईम पर प्लेटफार्म पर लग गई और हम सब B 4  के अपने A C कम्पार्टमेंट में आ गए जहाँ आकर बम्बई की गर्मी से कुछ राहत मिली | गाड़ी 20 मिनिट लेट चली और हम सब गप्पे मारने  में मशगूल हो गए |

शाम को सबने ताश खेलने और गप्पे हाकने में निकाल दिया | ट्रेन सब छोटे बड़े स्टेशनों को सलाम करती हुई रेंगती रही ये हमको 36 घंटे में भुवनेश्वर उतार दे तो समझो पार हुए |सारे रास्ते जलेबी के समान शब्दमाला के पोस्टर दिखलाई देते रहे वो तो शुक्र करो की उनके निचे ही अंग्रेजी शब्दों में स्थानीय नाम लिखे थे वरना तो अपने राम जलेबी की गोलाइयों में खो जाते |.

सुबह 4 बजे पहुंचने  वाली गाड़ी 7 बजे भुवनेश्वर पहुंची वहां से 8 बजे की दूसरी ट्रेन पकड़कर हम 10 बजे पूरी स्टेशन पहुंचे उधर हमने 100 रु में एक ऑटो किया और अपने नियत बुकिंग रूम की और चल दिए यह रूम, रूम नहीं था बल्कि सियूट था दो बेडरूम और एक हॉल था जिसमे फ्रीज़ भी रखा था और किराया 1800 सो रुपये पर डे था हम सब  A C चलाकर थोड़ा विश्राम करने लगे फिर एक एक नहाकर तैयार होकर निकलने लगा ठीक 12 बजे सब तैयार होकर मंदिर दर्शन को निकल पड़े। ...

थोड़ी चर्चा जगन्नाथपुरी की :---

भगवान जगन्नाथ का मंदिर श्रीकृष्ण (विष्णु ) का मंदिर है और यह वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है यह मंदिर उड़ीसा राज्य के पूरी शहर में स्थित है | हिन्दू समाज के चारधाम  तीर्थो में एक धाम जगन्नाथ पूरी का भी आता है | गंगोत्री ,यमनोत्री , बद्रीनाथ  और केदारनाथ  के अलावा चार धाम द्वारकापूरी ,रामेश्वरम ,बद्रीधाम और जगन्नाथपुरी ये दोनों चार धाम यात्रा कहलाती है यहाँ से हर साल निकलने वाली रथयात्रा काफी मशहूर है देश विदेश से काफी लोग इसको देखने आते है  इस यात्रा में भगवान कृष्ण उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा का ये मंदिर है |
कलिंग शैली में बना ये मंदिर 4 ,00 ,000 स्क्वायर फुट में फैला हुआ है | इस मंदिर के शिखर पर भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र मंडित है जो अष्टधातु से निर्मित है | मुख्य मंदिर 214 फुट लम्बा है | यहाँ का ध्वज बदलने का दृश्य देखने लायक और रोंगटे खड़े करने लायक है क्योकि मंदिर के पंडे  उल्टा मंदिर में चढ़ते  है और बिना किसी सहारे के....इतने बड़े मंदिर पर चढ़कर ध्वज बदलते है वो दृश्य कभी भूल नहीं सकती | यह क्रिया हर शाम को 5 बजे शुरू  होती है और एक घंटा चलती है फिर वो ध्वज नीचे आकर बिकते है , सारा दृश्य स्वप्न की भांति नजर आता है | कैमरा बाहर जमा करवा लेते है वरना वीडियो जरूर बनती |

मंदिर की कुछ अनोखी कहानियाँ :---

1.  इस मंदिर से जुडी अनेक कहानियां प्रचलित हैं कहते है ----'' मालवा नरेश इन्द्रद्युम्न  को स्वप्न में एक मूर्ति दिखाई दी थी तब उसने कड़ी तपस्या की और भगवान विष्णु ने खुश होकर उसको आदेश दिया की वो पुरी के समुंद्र तट पर जाये जहाँ उसको एक लकड़ी का लठ्ठा मिलेगा जिससे उसको बिलकुल वैसी ही मूर्ति बनवानी  है जो स्वप्न में दिखाई दी थी  | राजा ने ऐसा ही किया पूरी के समुन्द्र तट पर तैरता हुआ उसको एक लकड़ी का लट्ठा दिखाई दिया जिसे लेकर वो राजमहल में आ गया पर किसी भी कारीगर से वो लट्ठा हिला तक नहीं राजा आश्चर्य में आ गया किया जाय  तो क्या ?
आखिर भगवान विष्णु बूढ़े  कारीगर के वेश में राजा के सामने उपस्थित हुऐ और मूर्ति  बनाने की इच्छा  व्यक्त की राजा ने स्वीकृति दे दी लेकिन बूढ़े कारीगर की ये शर्त थी की मूर्ति  एक महीने में तैयार हो जाएगी लेकिन वो अकेला एकांत में वो मूर्ति बनाएगा जिसे कोई देख नहीं सकेगा | तब राजा ने उस बूढ़े को एक कमरे में मूर्ति तैयार करने को कहा ,कारीगर कमरे में बंद  हो गया रोज  कमरे से  खट -ख़ट की आवाजें आती रहती थी किसी को भी उधर झाकनें की मनाही थी  लेकिन आखरी दिनों में जब खट - खट की कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी तो राजा ने सोचा की कही बूढ़ा कारीगर मर तो नहीं गया और उसने कमरे में झांक लिया , राजा के झांकते ही बूढ़ा कारीगर बाहर आ गया और बोला  अभी मूर्तियां अधूरी है हाथ नहीं बने है पर अब इन मूर्तियों को ऐसे ही स्थापित करना पड़ेगा जैसी प्रभु की इच्छा ''--- और वो कारीगर चला गया | बाद में राजा ने अंदर देखा तो तीन मूर्तियां बनी थी जिनके हाथ नहीं थे ,,,ये मूर्तियां भगवान जगन्नाथ , श्रीकृष्ण उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की थी  और राजा ने इन्ही मूर्तियों को स्थापित किया |

आज भी 12  वर्ष बाद जब दो अषाढ़ आते है तो मूर्ति बदली जाती है   इसी तरह राजा को स्वप्न आता है लकड़ी को ढूँढा जाता है इस लकड़ी  ढूंढ़न को दारू खोजन पर्व कहते है लकड़ी का टुकड़ा तैरकर मिलता है और एकांत में मूर्ति का निर्माण होता है फिर दौबारा मूर्तियों की स्थापना होती है |

2. एक और कहानी महाराजा रणजीत सिंह से संबंधित है जिन्होंने इस मंदिर को कई किलो सोना दान में  दिया था और मशहूर हिरा कोहनूर भी देना चाहते थे  परन्तु तब तक अंग्रेजो ने अपना कब्जा पंजाब पर जमा दिया था और वो  हिरा ब्रिटिश ले गए ,वरना आज कोहनूर हिरा जगन्नाथ भगवान के मुकुट की शोभा बनता |

3.  कहते है भगवान जगन्नाथ मंदिर का ध्वज हवा की विपरीत दिशा में लहराता है |

4.  इस मंदिर में विशाल रसोईघर है जिसे 500 रसोइये अपने 300 सहयोगियों के साथ दिनभर में 9 बार बनाते है क्योकि भगवान को 5 बार नाश्ता और 4 बार खाने का भोग लगता है | सारा रसोई मानव निर्मित हाथों से ही बनता है | कहते है रसोई घर में खाना मिटटी के बर्तनो में बनता है , और सात बर्तनो में एक के ऊपर एक बर्तन रखे जाते है और खाना सबसे पहले ऊपर वाले बर्तन में पकता है और  सबसे नीचे वाले बर्तन में सबसे आखरी में पकता है जबकि चूल्हे की आंच सबसे पहले नीचे ही आती है |  रसोई घर साधारण जनता को देखने नहीं दिया जाता |

5. इस मंदिर में विदेशी पर्यटको का प्रवेश वर्जित है साथ ही मुस्लिम और ईसाई सम्प्रदाय के लोगो का भी प्रवेश वर्जित है | कहते है अपने समय में बनी प्रधानमंत्री इंदिरागांधी को इस मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया था |यहाँ अपना नाम और गोत्र बताने पर ही मंदिर में प्रवेश मिलता है |

6 . भोग लगने के बाद वो सारा  खाना बाहर आनंद बाजार में बिकने को आ जाता है | कहते है जितना भी खाना खरीदो वो कभी व्यर्थ नहीं जाता थोड़ा भी खाना लो तो सारे मेंबर  में खप जाता है | रोज 56 पकवानो से भगवान को भोग लगता है और वो सभी पकवान आनंद बाजार में बिकने को आते है कोई भी खाना कभी बर्बाद नहीं होता न फेंका जाता है  |

7 . कहते है मंदिर की चार  दीवारी के अंदर समुन्द्र की आवाज़ भी नहीं आती और बाहर निकलते ही समुन्दर का  शोर सुनाई देता है |




रास्ते की ग्रिनरी 


टाईम पास 


 भगवान के 56 भोग चित्र -- गूगल दादा से 


आनंद बाजार का दृश्य चित्र -- गूगल दादा से 

जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा मंदिर के सामने से चित्र -- गूगल दादा से 


भगवान जगन्नाथ सुभद्रा और बलराम चित्र --गूगल से 


आज की यात्रा इतनी ही शेष जल्दी ही  ...


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10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बुआ कमाल कर दिया,वहाँ की सारी यादें ताजा हक गयी।

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  2. बुआ जी बहुत सुंदर पोस्ट लिखी है आपने। आने वाली पोस्ट का इंतजार रहेगा।

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  3. वाह बुआ। पुरी आज तक जाना नहीं हुआ, पर आपकी आँखों से पुरी दर्शन भी कोई कम सौभाग्य की बात नहीं है।

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  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. बहुत बढ़िया बूआ जी ।

    आज आपके लेख के जरिये पूरी की यात्रा फिर हो गयी

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  6. शानदार आगाज बुआजी

    आगे लिखने से पहले थोड़ी जानकारी इकट्ठा कर लेना।

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  7. ललित जी गलती से 36छप गया 56 भोग भगवान को चढ़ते है ये बात बचपन से सुनी है

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  8. @आज भी 12 वर्ष बाद इसी तरह राजा को स्वप्न आता है लकड़ी का टुकड़ा तैरकर मिलता है और एकांत में मूर्ति का निर्माण होता है फिर दौबारा मूर्तियों की स्थापना होती है।

    1-ये झूठ है, जिस वर्ष दो आषाढ़ होते हैं उस वर्ष प्रतिमाएँ बदली जाती हैं। प्रतिमा बदलने के लिए लकड़ी ढूँढने के पर्व को दारू खोजन कहा जाता है। सारी जानकारी मेरे ब्लाॅग पर है।
    2- भगवान को 56 व्यंजनों का भोग लगता है, 36 नहीं।


    ललित जी की कमेंट किसी कारण से डिलीट हो गई थी सॉरी

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......