११ जुलाई 2010
रात को बहुत अच्छी नींद आई --सुबह आँखें खुली तो कमरा एकदम ऐ.सी.की तरह ठंडा हो चूका था --रात को एक्स्ट्रा रजाईयां ली थी फिर भी ठण्ड लग रही थी-पर धुप निकल चुकी थी --पर्दे हटाए तो चीख निकलते -निकलते रह गई --इतना सुंदर द्रश्य --देखते ही रह गई (सुबह का मन- मोहक द्रश्य )
p
(पालमपुर का चोराहा )
(और यहाँ मे )
नहा -धोकर तैयार होकर हम ने नाश्ता किया --पहाड़ो पर आलू के परांठे बहुत मिलते हे -नाश्ता करके हम धुमने चल दीऐ 'न्युग्ल केफे '--यहाँ बहुत सुन्दर पार्क बना हे बिच मे एक झोपड़ी नुमा काटेज बना हे-- बड़ा अच्छा मोसम था--अमृतसर की गर्मी हम भूल चुके थे ---- (न्युगल केफे )
(न्युगल केफे के पार्क में )
(न्युगल केफे के पार्क में मिस्टर सिह )
सामने जो झोपडी दिखाई दे रही हे वो कचरा -धर हे --उसमे एक चरसी बैठा चरस के कश खीच रहा था --मेरी लडकियाँ डर गई --हम तुरंत वहां से चल दीऐ ---वेसे भी हमे नेशनल पार्क जाना था --पर सब ने मना कर दिया --सो,हम पालमपुर से धर्मशाला को चल दिए --- पालमपुर से धर्मशाला की यात्रा बहुत अच्छी रही रस्ते भर पालमपुर के चाय के खेत दीखते रहे --रात की बारिश ने शमां खुशनुमा बना दिया था --आम के पेंड़ो से आम गिरकर सड़क पर पड़े थे --बच्चो ने २-३ किलो आम इक्कठा कर लिए -- यहाँ के आम छोटे -छोटे होते हे बिलकुल जामुन के बराबर --पर मीठे बहुत थे
(चाय के फेमस खेत )
और अब हम पहुच गए धर्मशाला में --वहां रुके नही सीधे ऊपर गए वहां भी हमारा स्वागत किया बारिस ने --मेक्लोडगंज ऊपर के हिस्से को कहते हे
जारी ----
क्या बात है । मजा आ गया ।
जवाब देंहटाएंजितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
सिलसिला जारी रखें ।
अपने ही शहर की बातें आप की जुबां से सुनकर अच्छा लगा.अगली किश्त का इंतज़ार है.
जवाब देंहटाएंतसवीरें लाजवाब हैं.
धन्यवाद ,राजीवजी बहुत दिन बाद टाइम मिला --शुक्रिया|
जवाब देंहटाएंसगेबोबजी,आपके शहर को अपनी नजरो से देखकर जो समझ आया वो लिखा हे यदि त्रुटी (गलती हो जाए तो मुझे जरुर आवगत कराए ---धन्यवाद |
बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक…मजा आ गया
जवाब देंहटाएंaapki pot ke zariye hum bhi ghoom aye
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी ,इसी तरह आते रहे|
जवाब देंहटाएंबहुत नेचुरल और सुन्दर पोस्ट.फोटो भी अच्छी
जवाब देंहटाएंThank you,Kunwar Kusumeshji---
जवाब देंहटाएंदर्शन जी, इस यात्रा से परिचित कराने का हार्दिक आभार। वर्चुअली ही सही, आपके बहाने हमने भी घूम लिया पालमपुर।
जवाब देंहटाएं-------
क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
जाकिर भाई ,मेरे ब्लोक पर आपका स्वागत हे धन्यवाद
जवाब देंहटाएंओह तो आखिर पहुँच ही गए धर्मशाला ।
जवाब देंहटाएंअब तो आप के साथ हम भी वहां की यादें ताज़ा करेंगे ।
धौलाधार रेंजिज का दृश्य तो मन को मोह लेता है ।
धन्यवाद डा.साहेब ,आपका स्वागत हे--आखिर श्रध्दा सुमन अर्पित हो ही गए--बहुत बहुत शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंआदरणीय दर्शनजी , १९९४-९५ में लगभग डेढ़ वर्ष पालमपुर मेरी कार्य स्थली रहा है. आपके द्वारा प्रस्तुत चित्रों ने तो जैसे मुझे दोबारा पालमपुर पहुंचा दिया.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !