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रविवार, 23 जनवरी 2011

# * पालमपुर की यात्रा ( 2) * #


११ जुलाई 2010 
   रात को बहुत अच्छी नींद आई --सुबह आँखें खुली तो कमरा एकदम ऐ.सी.की तरह ठंडा हो चूका था --रात को एक्स्ट्रा रजाईयां  ली थी फिर भी ठण्ड लग रही थी-पर धुप निकल चुकी थी --पर्दे हटाए तो  चीख निकलते -निकलते रह गई --इतना सुंदर द्रश्य --देखते ही रह गई 
   
(सुबह का   मन- मोहक  द्रश्य ) 


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(पालमपुर का चोराहा )            
(और यहाँ  मे )
नहा -धोकर तैयार होकर हम ने नाश्ता किया --पहाड़ो पर आलू के परांठे बहुत मिलते हे -नाश्ता करके हम धुमने चल दीऐ  'न्युग्ल केफे '--यहाँ बहुत सुन्दर पार्क बना हे बिच मे एक झोपड़ी नुमा काटेज बना हे-- बड़ा अच्छा मोसम था--अमृतसर की गर्मी हम भूल चुके थे ----    
(न्युगल केफे ) 

(न्युगल केफे के पार्क में )

(न्युगल केफे के पार्क में मिस्टर सिह ) 
सामने जो झोपडी दिखाई दे रही हे वो कचरा -धर हे --उसमे एक चरसी बैठा चरस के कश खीच रहा था --मेरी लडकियाँ डर गई --हम तुरंत वहां से चल दीऐ ---वेसे भी हमे नेशनल पार्क जाना था --पर सब ने मना कर दिया --सो,हम पालमपुर से  धर्मशाला को चल दिए ---                          
पालमपुर से धर्मशाला की यात्रा बहुत अच्छी रही रस्ते भर पालमपुर के चाय के खेत दीखते रहे --रात की बारिश ने शमां खुशनुमा बना दिया था --आम के पेंड़ो से आम गिरकर सड़क पर पड़े थे --बच्चो ने २-३ किलो आम इक्कठा कर  लिए -- यहाँ के आम छोटे -छोटे होते हे बिलकुल जामुन के बराबर --पर मीठे बहुत थे 
   
(चाय के फेमस खेत )
और अब हम पहुच गए धर्मशाला में --वहां रुके नही सीधे ऊपर गए वहां भी 
हमारा स्वागत किया बारिस ने --मेक्लोडगंज  ऊपर के हिस्से को कहते हे
जारी ----

13 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है । मजा आ गया ।
    जितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
    सिलसिला जारी रखें ।

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  2. अपने ही शहर की बातें आप की जुबां से सुनकर अच्छा लगा.अगली किश्त का इंतज़ार है.
    तसवीरें लाजवाब हैं.

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  3. धन्यवाद ,राजीवजी बहुत दिन बाद टाइम मिला --शुक्रिया|
    सगेबोबजी,आपके शहर को अपनी नजरो से देखकर जो समझ आया वो लिखा हे यदि त्रुटी (गलती हो जाए तो मुझे जरुर आवगत कराए ---धन्यवाद |

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  4. बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक…मजा आ गया

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  5. धन्यवाद संजय जी ,इसी तरह आते रहे|

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  6. बहुत नेचुरल और सुन्दर पोस्ट.फोटो भी अच्छी

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  7. दर्शन जी, इस यात्रा से परिचित कराने का हार्दिक आभार। वर्चुअली ही सही, आपके बहाने हमने भी घूम लिया पालमपुर।

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    क्‍या आपको मालूम है कि हिन्‍दी के सर्वाधिक चर्चित ब्‍लॉग कौन से हैं?

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  8. जाकिर भाई ,मेरे ब्लोक पर आपका स्वागत हे धन्यवाद

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  9. ओह तो आखिर पहुँच ही गए धर्मशाला ।
    अब तो आप के साथ हम भी वहां की यादें ताज़ा करेंगे ।
    धौलाधार रेंजिज का दृश्य तो मन को मोह लेता है ।

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  10. धन्यवाद डा.साहेब ,आपका स्वागत हे--आखिर श्रध्दा सुमन अर्पित हो ही गए--बहुत बहुत शुक्रिया !

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  11. आदरणीय दर्शनजी , १९९४-९५ में लगभग डेढ़ वर्ष पालमपुर मेरी कार्य स्थली रहा है. आपके द्वारा प्रस्तुत चित्रों ने तो जैसे मुझे दोबारा पालमपुर पहुंचा दिया.
    धन्यवाद !

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......