मेरे अरमान.. मेरे सपने..

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

मेक्लोंडगंज, ( धर्मशाला )

५ जुलाई को बॉम्बे से यात्रा शुरु की थी --आज ११ जुलाई है --सुबह पालम पुर से निकले थे --रास्ते मे चामुंडा -माता  का मन्दिर देखते हुए --आगे बड़े    -१२बजे तक हम धर्मशाला पहुचे - --


(पहुँच गए धर्मशाला में )




मेक्लोंडगंज में धुसते ही जोरदार बारिश ने हमारा स्वागत किया --फिर पहाड़ी पर 'जाम'लगा हुआ था--- इसलिए थोड़ी परेशानी हुई, पर इस खुबसूरत पहाड़ी शहर ने हम सब का मन मोह लिया--मेरा अंतर्मन तो वेसे ही पहाड़ो को देखकर नाचने लगता हे --लेकिन यह शहर वाकई में खूब सुरत हे-- यदि ऐसा न होता तो तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा यहाँ अपनाआशियाना न बनाते --इसलिऐ बोध्य भिक्षु काफी नजर आ रहे थे ---
                         
  

बारिश  रुक गई थी --और मोसम बहुत ही खुशनुमा हो गया था-भीगा -भीगा समा था --चारो तरफ ठंडी हवा के झोके ,बादलो के झुण्ड,दूरधोलाधार की पहाड़ीयां,मन शायरी करने को मचल रहा था -- कार से उतरकर हम पैदल ही चल पड़े-भागसु नाग मन्दिर देखने --दोनों तरफ      पहाड़ी लोगो की दुकाने सजी हुई थी --छोटा -सा बाज़ार हे  -- मेरीलडकियों ने कुछ ज्वेलरी खरीदी ---
हम मंदिर में पहुचे यह शिव मंदिर हे काफी पुराना मंदिर हे --सामने ही  तालाब  में बच्चे -बड़े मस्ती कर रहे थे -कुछ दूर एक झरना हे -यह उसी का पानी हे - -पूछा- तो पता चला की २किलो मीटर हे झरना  --देखने की बहुत इच्छा थी -पर नही गए क्योकि रास्ता खराब था--और हम दोनों इतना पैदल चल नही सकते थे --बच्चो को कहा --तुम लोग धूम आओ हम यही पर बैठकर   इन्तजार करते हे --पर उन्होंने भी मना कर दिया --भूख जोरो की लग रही थी ,सुबह के आलू के पराठे कब के रफूचक्कर हो चुके थे --एक छोटे से होटल की छत पे खाना खाने पहुचे ---      


(खाना आया नही हे --पेट में चूहे कबड्डी कर रहे हे )

खाना खाकर हम चल दिए -दलाई -लामा-टेम्पल देखने --चीन के अत्याचारों  से दुखी हो दलाईलामा ने तिब्बत छोड़ मेक्लोंडगंज को अपना धर बनाया -- यह मठ तिब्बती करीगरी का बेजोड़ नमूना हे --यहाँ भगवान बुध्द की मूर्तियों पर सोने की पालिश हुई हे-- यह ३ मंजिला भवन हे निचे की मंजिल पर बहुत से भिक्षु इधर -उधर धूम रहे थे --कुछ अपना काम कर रहे थे --हम भी उनसे इजाजत लेकर ऊपर चढ़ गए --सीढियों  पर ही एक बड़ा -सा टोपा बना था--इसे क्या कहते हे पता नही ?- ऊपर सुंदर -सी बड़ी भगवान बुध्द की मूर्ति लगी

  
(यह शायद घंटा हो सकता हे )  
                                
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(  दलाई लामा टेम्पल )


(भगवनबुध्द की मूर्ति )

(तिब्बती -मठ के बाहर लगी मूर्ति )  


(मठ के अंदर का द्रश्य )



हल्की-हल्की बारिस होने लगी थी --हम भी भागकर कार में धुस गऐ --बहुत अच्छी जगह लगी हमेशा याद रहेगी --काफी स्थान देखने बाकी हे फिर जाने कब मोका मिलेगा--? वेसे दुबारा जरुर आउंगी --बिदा --|
रात को पठान कोट पहुचे --पहले होटल गए  --रूम अच्छे थे --यहाँ गर्मी बहुत हे --ऐ.सी. रूम लेना पड़ा -- थक गए --जल्दी सोना पडेगा--सुबह हमको डलहोजी के लिए निकलना हे ---
जारी ---

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर पोस्ट.....पहुँच ही गए धर्मशाला ।आपके बहाने हमने भी घूम लिया धर्मशाला.... अच्छी फोटो

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  2. गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!

    Happy Republic Day.........Jai HIND

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  3. मनमोहक छवियों से सुसज्जित मेक्लोंडगंज (धर्मशाला) का रोचक यात्रा वृतांत - आभार - गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई

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  4. धर्मशाला का सफ़र छोटा रहा जी ।
    डल लेक और उसके आगे की घाटी , और धौलाधार पर्वतों की चोटियाँ --बड़ी मनभावन हैं ।
    खैर इसकी कमी डलहौजी में पूरी हो जाएगी ।
    अच्छा चल रहा है यात्रा विवरण ।

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  5. ६२ वे गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए | सारे ब्लोगर जगत को अभिनन्दन !
    डा.साहेब , असल में धर्मशाला का कोई प्रोग्राम ही नही था --हम तो पालमपुर से सीधे पठानकोट जा रहे थे --रास्ते में प्रीत (बेटे का दोस्त ) बोला की धर्मशाला बहुत अच्छा हिल स्टेशन हे अगर चलना हे तो गाडी मोडू ! नाम तो बहुत सुना था सो ,चल दिए---इस तरह एक खुबसुरत स्थान देखने को मिल गया --पर एक दिन डलहोजी में कम करना पड़ा --फुर्सत में धर्मशाला दोबारा जाउंगी |

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  6. संजय जी ,कुवर जी ,राकेश जी बहुत -बहुत धन्यवाद् --गणतन्त्र दिवस की मंगल कामना करते हुए-|

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  7. आपके साथ हमारी भी ये दर्शन-पठन यात्रा चल रही है । धन्यवाद.
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित...

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  8. धन्यवाद सुशीलजी ,६२ वे गणतन्त्र दिवस की आपको भी शुभकामनाए | जल्दी ही'डलहोजी'में मिलेगे-|

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  9. आपको तो फ़ोटोग्राफ़र या TV रिपोर्टर होना चाहिये । क्या बात है । सचित्र सैर कराने के लिये धन्यवाद ।

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  10. धर्मशाला की सचित्र सैर कराने के लिये धन्यवाद|

    गणतन्त्र दिवस की मंगलकामना|

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  11. वाह, कित्ते प्यारे-प्यारे चित्र . अब तो मुझे भी यह जगह घूमनी है. ...'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है .

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  12. राजीव जी ,आपने तो मुझे वेसे ही रिपोर्टर बना दिया--धन्यवाद इस नए लेबल के लिए --!

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  13. जरुर जाइएगा पाखी जी ,इतनी खूब सुरत जगह को ही जन्नत कहते हे --?आपका स्वागत हे जल्दी मेरे दोस्त बनिए |

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  14. आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं

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  15. दर्शन कौर जी आपकी यात्रा से तो हमें जलन हो रही है ....
    आप लोग कितने खुशनसीब हैं ....
    यूँ परिवार के साथ कितना सुखद अनुभव रहा होगा न .....
    विवाह के पहले गई थी हिमाचल ....
    धर्मशाला भी ...
    अब तो हलकी सी याद भर है ....

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  16. धन्यवाद संजय जी ,हरकिरतजी ,आप लोगों के आने से मन प्रसनं हो जाता हे - ऐसा लगता हे बरसो बाद मिले हे |

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  17. अरे आप धर्मशाला में थे ...किसी काम की बजह से दिल्ली में हूँ, अगर ऐसा मालूम होता तो जरुर रुक जाता यहाँ ....खैर मलाल तो है ....पर मेक्लोडगंज को जिस तरह से आपने निहारा है .....सबका मन करेगा ...यहाँ आने का ......और अब अगर दुबारा कभी आये तो जरुर बताना ...बहुत खूब

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  18. बहुत ही अच्छा लगा धर्मशाला का सफ़र .जब आप दोबारा आयेंगी तो बहुत सारी छूटी हुई जगहों के दर्शन करवाने का ज़िम्मा मेरा . हाँ , एक दिन से काम हरगिज़ नहीं चलेगा.

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  19. केवलराम जी ,आपका स्वागत हे --कई नामी ब्लोगर्स के ब्लोक पर आपकी टिपण्णी पढ चुकी हु --पहली बार आने के लिए धन्यवाद ! इसी तरह आते रहे --लगता हे आप भी धर्मशाला रहते हे --फिर तो आना ही पड़ेगा |

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  20. सगेबोब जी ,कुछ घंटे ही मिले थे --इसलिए ज्यादा जगह धूम न सकी --अगली बार जरुर आप को इत्तला करके औउगी --धर्मशाला तो बार -बार आने की जगह हे --अगली बार आप के साथ --|

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......