मेरे अरमान.. मेरे सपने..

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

डलहोजी ( १ )




डलहोजी 






ता. १२ जुलाई


    सुबह ८बजे नींद खुली -- अभी भी थकान बाकी थी -- धर्मशाला की याद ताजा हो गई उसी खुमारी में तैयार होने लगे -- अगले पड़ाव की उत्सुकता बनी हुई थी की डलहोजी कैसा होगा ---?


    पठान कोट में बहुत गर्मी थी -- उतनी ही गर्मी हम सबके पेट में हो गई -- इस लिए सबसे पहले लस्सी पीने पहुंचे --  पठानकोट की लस्सी बड़ी 
फेमस हे -  यह बात प्रीत ने बताई क्योकि वो यही का रहने वाला हे --
 खेर, बिना नाश्ता किए हम लस्सी पीने चल दिए -- |


    लस्सी चांदी के बड़े - बड़े गिलासों में मिलती हे-- हम तो आधा भी नही पी सकते -- इसलिए १\३ करना पड़ा -- नाश्ता तो भूल ही चुके थे क्योकि लस्सी से ही पेट भर चूका था |


    ऐ. सी. कार में जब तक बैठे रहे तब तक की पहाड़ियां शुरू नही हो गई --और जैसे ही ऊँची-ऊँची पहाड़ियां शुरू हुई हमने शीशे खोल दिए --
वाह ! क्या नजारा था ! बेमिसाल कुदरत बिखरी पड़ी थी --- ठंडी हवा के झोके गले मिल रहे थे -- मानो पूछ रहे हो 'कहाँ थी इतने दिन ?'


( दूर से खिंचा पहाड़ियों का द्रश्य )

    जैसे - जैसे ऊपर जा रहे थे मनमोहक द्रश्यावली मन को मोह रही थी -- बादलो के बीच हमारी कार चली जा रही थी -- धुप आँख मिचोली खेल रही थी -- चीड और देवदार के लम्बे -लम्बे पेड़ हमे बाहों में समेटने को आतुर थे-- चक्करनुमा रास्तो से गाडी भागी जा रही थी --
    आगे, कुछ स्थानीय बच्चे गाडियों को रोक कर कुछ बेच रहे थे -- हमने देखा वो नाशपती थे -- एकदम मुलायम ,ताजा ! मेने - "पुछा कितने के है ?" बच्चे बोले - 30रु. के? मै कुछ बोलू इतने में एक बोला -- '20 दे दो मेडम!' मैने देखा करीब 2 किलो के बराबर थे -- हमारे बाम्बे में तो 20रु पाव मिलते हे वो भी इतने ताजा कभी नही मिले -- खेर ,हमने तुरंत लेने में ही अपनी भलाई समझी-- मुझे डर था कही वो १० रु  न बोल दे -- मैने फटाफट सारे  नाशपती झोले में रखे -- इतने स्वादिष्ट नाशपती, मैने कभी नही खाए थे --

( यही से नाशपती खरीदी थी पैसे लेते ही बच्चे रफूचक्कर )


( डलहोजी का सुंदर नज़ारा )


    कुछ देर रुक कर हम भी चल दिए -- सुहाने सफर पर --
डलहोजी धोलाधार पर्वतश्रंखलाओ के मध्य स्थित एक खूबसुरत पर्यटन  स्थल है यह चम्बा जिले में स्थित हे -- उस समय के वायसराय लार्ड डलहोजी को यह स्थान बहुत ही पसंद था - अपनी गर्मी की छुटियाँ वो यही गुजरते थे -- इसतरह  इस पर्वतीय स्थल का नाम डलहोजी ही पड गया | समुद्र -तल से इसकी उंचाई 2036 मीटर हे -- लक्ष्मी नारायण मन्दिर यहाँ का प्रसिध्द मन्दिर हे | डलहोजी दुसरे पर्यटन स्थल की तरह भीड़ - भाड वाला न  होकर सुनसान और शांत हे -- यहाँ की दुकानो में देशीपन झलकता हे -- आधुनिकपन न के बराबर हे -- यहाँ होटल भी अच्छे व् मध्यमवर्गीय हे - रेस्तरा में शराब नही बिकती हे -- हा, खाना वेज नानवेज दोनों मिलता हे -- पाव भाजी बिलकुल न खाए क्योकि यह कद्दू की बनी होती हे और वो मुझे जरा भी पसंद नही आई -- 'ममोज ' जरुर अच्छे लगे जो स्थानीय लोग निचे बैठकर गर्म - गर्म बनाते हे सस्ते  भी हे १० रु का एक ! यहां  का मालरोड बहुत छोटा हे -- तिब्बत  मार्केट भी हे -- जहाँ  से हमने कुछ शाले खरीदी --


    १२बजे हम डलहोजी पहुँच गए -- सीधे सुभाष चोक पहुचे -- यहां काफी टेक्सियाँ खड़ी थी -- बस स्टेंड भी यही था -- यही से चम्बा और खजियार के लिए वाहन मिलते हे -- लेकिन  हमको होटल चाहिए था सस्ता, सुन्दर, टिकाऊ सो; मिल गया -- 900 रु किराया पर --


(पतिदेव आराम के मुड में )


( होटल के कमरे के अंदर से खिंची तस्वीर )


( ऊपर होटल से लिया फोटो )

(थोड़ी देर में ही ये बदलो का झुण्ड न जाने कहा से आ गया )

(  होटल हालीडे  प्लाजा )

    होटल में हमको  पंहुचा कर प्रीत चला गया -- कल से उसके कालेज खुल रहे थे और उसे धर भी जाना था -- हमने खाना खाने को कहा तो उसने मना कर दिया बोला धर जाकर ही खाउगा -- बहुत अच्छा लड़का लगा -- बेटे की कमी पूरी कर दी थी -- बेटा सन्नी ( IT इंजिनियर ) हमारे साथ नही आया - उसको आफिस से छुट्टी नही मिल सकी -- वैसे उसे धुमने में खास दिलचस्पी नही हे -- फ़ुटबाल-कप भी चल  था-- न आने का एक कारण  यह भी था- फिर हमारे 'शेडो' (पप्पी ) का ख्याल भी उसी को रखना पड़ता हे -- खेर, हमने खाना मंगवाया और थोडा आराम करने लगे -- शाम को माल रोड जो धुमना हे--

10 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय दर्शन कौर जी
    नमस्कार !
    बहुत ही अच्छा लगा डलहोजी का सफ़र
    आप लोग कितने खुशनसीब हैं ....
    डलहोजी की सचित्र सैर कराने के लिये धन्यवाद|

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  2. खूबसूरती को बहुत सुन्दर कैद किया है

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  3. ਬਹੁਤ ਹੀ ਵਧੀਆ ਯਾਤਰਾ ਕਰਾ ਰਹੇ ਹੋ ਤੁਸੀਂ.ਮੁਬਾਰਕਾਂ.

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  4. बहुत बढ़िया वर्णन , आपने तो हमें भी बैठे - बैठे डलहौजी की सैर करवा दी , धन्यवाद् !

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  5. बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत ।
    डलहौजी में पानी की बड़ी कमी रहती है गर्मियों में ।
    अब खजियार की सैर भी करवाइए ।

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  6. डा. साहेब ,बस आ ही पहुचे खजियार में !खजियार की तो बात ही निराली हे --वेसे लगता हे काफी धुमक्कड़ तबियत हे जनाब की !

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  7. दिनेश रोहिला जी, डा.ZEAL आपका स्वागत हे --
    हमेश की तरह नम्बर वन संजय जी आपका शुकिया |
    सगेबोब जी आपका बहुत -बहुत शुक्रिया | पंजाबी में लिखना बहुत सुकून वाला रहा |

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  8. bahut khoob likha aapne.... yadi aap chahen to mere paper voice of asians ke liye voiceofasians@hotmail.com per bhee bhej sakti hain. dhanyavaad

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......