मेरे अरमान.. मेरे सपने..

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

# सुनहरी यादें #

* याद आते हो तो कितने ----
अपने -से लगते हो तुम ----
वर्ना,  हर लम्हां गुजरता हे ----
तुम्हारे ख्यालो में ----
चुप -सी आँखों में आज ----
फिर वही सवाल उठा ----
क्या राहत मिलेगी मुझे ----
इन बंद फिजाओ में ----!
खेर, अँधेरे  भी  भले -जीने के लिए ----
गैर, हो जाते हे सभी चेहरे उजालो में----
मुस्कुराओ तो भी अच्छा हे ----
बेरुखी भी भली तुम्हारी ----
बेअसर हे सभी बाते यहाँ मलालो में ----
याद आते हो तो एहसास -ऐ -ख़ुशी मिलती हे ----
यूँ तसल्ली भी गिरफ्तार हे सो (१००) तालो में----|           

5 टिप्‍पणियां:

  1. यूँ तसल्ली भी गिरफ्तार हे सो (१००) तालो में----
    बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति .

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  2. सुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
    भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
    बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।

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  3. अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।

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  4. "माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...

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  5. शुक्रिया संजय जी , मै सोच ही रही थी की आप कहाँ चले गए --स्वागत हे आपका |

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......