मेरे अरमान.. मेरे सपने..

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

( पटना ) राजगीर ! नालंदा ! ( 2 )

31  अगस्त 2010 


२८ तारीख से मुम्बई से सफ़र शुरू किया था--३० तारीख को हम यहाँ पहुंचे --कल पूरा दिन हम तख्त हरमिंदर साहब में ही रहे--


सिक्ख -पंथ के चार तख़्त हे --जहां से सिक्ख कोम को आदेश मिलते हे  और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी संचालन करती  हे--जिसका  नाम हे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेंटी-- ये तख्त हे =


(१)तख्त हरमिंदर साहिब अमृतसर |(पंजाब )
(२)तख्त हरमिंदर साहिब पटना साहब | (बिहार )
(३)तख्त हुजुर साहिब अविचल नगर (नांदेड, महाराष्ट्र)
(४)तख्त केशगढ़  साहिब आनंदपुर साहिब (पंजाब )       


"चायsssssss  चाय वाले की आवाज से नींद खुली --८ बज रहे थे --सारी  रात सो नही सके --गर्मी बहुत थी --उस पर बिजली की लानत ! जनाब, पटना   में बिजली का बड़ा रोना  हे--बार -बार जाती रहती हे -- ?
एक  बात बड़ी पसंद आई सुबह ही रूम पर चाय मिल गई --समझो जहाँ मिल गया --बेड-टी की आदत जो पड़ गई हे --


खेर, तैयार होकर हम गुरूद्वारे सा.पहुंचे--पाठ  किया फ़िर नाश्ता करने गए --तब तक गाडी आ गई थी --गाडी हमे गुरूद्वारे की प्रबन्धक कमेटी की तरफ से मिल गई  थी--वरना प्रायवेट गाडी वाले तो लुटते हे ---   



( रेखा और मै नाश्ता करने जा रहे हे )

(गुरूद्वारे जाते हुए मिस्टर )

और अब हम जा रहे हे --गंगा किनारे से सटे हुए बाज़ार चोक की और --
शहर में काफी गंदगी हे --मेंन बाज़ार की सडक पर ही टनो कचरा पड़ा हे-- इससे ट्राफिक जाम लगता रहता हे --गर्मी से वेसे ही बुरा हाल हे --यदि यहाँ आने का प्रोग्राम बनाए तो सर्दिया  ही बेस्ट हे --
हमने चोक से लस्सी पी ताकि ठंडक बनी रहे --यहाँ के मुनेर के लड्डू काफी फेमस हे जो की चावल के बने होते हे--और सिलाव का खाजा बड़ा पसंद आया वेसे खाजा यहाँ सभी जगह मिलता हे --          

इतिहास :-

पटना शहर के इतिहास की बात हो जाए --

पटना शहर बिहार राज्य की राजधानी हे--इसे ३००० हजार वर्ष से लेकर अब तक भारत देश का गोरव शाली शहर होने का दर्जा प्राप्त हे --गंगा किनारे बसा हुआ यह शहर बहुत -सी ऐतिहासिक इमारतो के लिए भी जाना जाता हे --पटना शहर मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था, यह चन्द्र गुप्त  मोर्य,सम्राट अशोक ,चन्द्र गुप्त दिवतीय व् समुद्र गुप्त यहाँ के महान शासक हुए हे --चीनी यात्री व्हेगसांग का प्रथम आगमन यही हुआ--महान                              कुटनितीज्ञ  कोटिल्य,ने अर्थशास्त्र की रचना यही की थी --यही विष्णु शर्मा ने पञ्चतन्त्र लिखी थी --फेमस विश्व विधालय नालंदा भी यही हे --
मुगलों और अंग्रेजो के समय भी पटना शहर व्यापर के लिए प्रमुख शहर माना जाता था--|

आजादी के बाद बिहार स्वतंत्र राज्य बना और पटना उसकी राजधानी बना --आजकल इसका एक नाम और हे वो हे ' लालू का पटना  |'


चलो -- अब हम पहुँच चुके हे,  राजगीर  = राजगीर पर्वत पर भगवान बुध्द ने कई उपदेश दिए --जापान के बुध्द -संध ने इसकी चोटी पर एक  शांति -स्तूप बनाया हे --स्तूप के चारो कोनो पर भगवान बुध्द की मुर्तिया स्थापित की हे --पहाड़ पर पैदल मार्ग के साथ ही एक रोप -वे का भी इंतजाम हे --जो आपको फटाफट पहाड़ पर चडा देगा --चित्र देखिए ---

( रोप - वे )


(ऊपर जाते हुए )
  

( नजदीक से )
              


(इसमें मिस्टर बैठे हुए हे )


( पहाड़ी से दिखता हुआ बड़ा घंटा )   




(पहाड़ी पर मै --बहुत दूर  घंटा दिखाई दे रहा हे  )




(शांति -स्तूप  पीछे  दिखाई दे रहा हे )


(  अपनी सहेलियों के साथ  )   

( चीनी भाषा में लिखा आलेख ) 


(चारो कोनो पर लगी मूर्ति ) 
(स्तूप के पास लगी हुई शेर की प्रतिमा )


(भगवान् बुध्द के मन्दिर के बाहर खड़ी रेखा ) 

राजगीर छोटी-सी जगह हे --छोटी -मोटी दुकाने हे --रोप -वे का शुल्क २५रु हे --यह सुबह 8 बजे से शुरू होकर12.30 तक रहता हे ,बाद में 2.00 से शाम ५बजे तक खुला रहता हे --पहाड़ी पर बड़ा मनोरम द्रश्य देखने को मिला -- यहाँ कई खूबसुरत बगीचे बने हुए हे -- मंदिर भी हे -ठंडी -ठंडी हवा के झोके गर्मी भुला देते हे --काफी सेलानी धूम रहे थे --काफ़ी सुन्दर वातावरण था     
हम जब वापस हुए तो १ बज रहा था उनका लंच -टाइम हो गया था -रोप -वे बंद हो गए थे-- अब हमे यही २बजे तक इन्तजार करना था--हमारे बहुत से साथी नीचे उतर गए थे --पास ही एक स्टाल पर ठंडा कोक पीने गए-- नीचे के चित्र तब उतारे जब लंच -टाइम हुआ था --वरना रोप-वे रुकते नही हे --चालू स्थिति में ही चड़ना पड़ता हे --वरना वो चेयर खाली जाती हे -

(रेखा की मम्मी,जो एक हार्ड पेशेंट भी हे )

(उतरने में बड़ा डर लग रहा हे ) 
(नीचे उतरते रोप-वे )
रोप वे पर जाने के लिए सबसे पहले रेखा की मम्मी तेयार हुई --सब डर रहे थे --मै तो डरने में नंबर वन हूँ --ऊंचाई  देखकर मेरी हालत पतली हो जाती हे -सबसे आखिर में मुझे चड़ा ही दिया --इतना सुन्दर नजारा था और मैने आँखे बंद कर रखी थी--कुछ ऊपर आई तो हाथो के झरोखो से देखा,  सामने वाले झूले में एक जवान लडकी मुझे देखकर हंस रही थी --वो ऊपर से नीचे उतर रही थी -मुझे बड़ी शर्म आई मेने तुरंत आँखे खोल दी -दिल मजबूत किया --और सबकुछ ठीक था --डर भाग चूका था --इतना सुन्दर माहोल !क्या कहने --? आप हवा में तैर रहे हो एक कुर्सी पर बैठे हुए --नीचे दूर तक जमींन नही दिख रही हो;   कैसा लगेगा ? एक गाना याद आ रहा हे ---
                   " आज मै ऊपर आसमा नीचे "               

नीचे उतरते ही तेज भूख लगी फिर वही एक छोटे -से होटल में खाना खाया --३ बज गए थे अब हम नालंदा जा रहे थे--नालंदा पटना शहर से सिर्फ १३ की. मी. हे --यहाँ विद्यालय तो नही हे पर उसके अवशेष जरुर हे --पास ही एक लेजर शो का हाल था जो हमे नालंदा के बारे में बताएगा--हम सब वो देखने चल दिए टिकिट था २० रु. --बहुत अच्छा शो लगा---        

(नालंदा के खँडहर )


(नालंदा के खंडहर ) 



(खूब सुरत बगीचा )

नालंदा सड़क से २कि. मी. अन्दर हे --पैदल जाना पड़ता हे --रास्ता बड़ा सुन्दर हे पर गर्मी  से परेशान हो गए-- इसलिए ज्यादा धूम नही सके --थोड़ी दूर जाकर वापस आ गए --
नजदीक ही पावपूरी ५कि. मी.दूर थी नालंदा से --जहाँ जेन मन्दिर थे और गर्म पानी के कुंड थे --पर सब थक गए थे --इसलिए प्रोग्राम केंसिल कर के वापस पटना चल दिए --|     

( वापस आते हुए ) 

(गंगा किनारे एक फोटू )

वापस लोट रहे थे तब ड्राइवर ने बताया की आप लोग बोध्दगया क्यों नही गए --किसी को पता ही नही था --सबलोग उसी पर चड गए --पहले क्यों नही बताया -?वो बोला मुझे क्या मालूम आप लोग मेरे मालिक से मिले थे -खेर ,इस बार छुट गया अगली बार देखेगे --

जारी ---

18 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय दर्शन कौर जी
    नमस्कार !
    बहुत ही सुन्दर सैर तस्वीरों के साथ बहुत खूबसूरत हैं
    यात्राओं का सचित्र सुंदर वर्णन ..... धन्यवाद इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिये...

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  2. आपके साथ पटना राजगीर नालंदा की यात्रा करके बहुत अच्छा लगा

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  3. सभी फोटो सुंदर है पर सहेलियों के साथ वाला ज्यादा सुंदर लगा

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  4. धन्यवाद संजय जी, आगे की यात्रा के लिए भी तेयार रहे --हमेशा की तरह --:)

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  5. रोचक यात्रा वर्णन ...चित्र भी बहुत खूबसूरत हैं ...आपके साथ हमने भी नालंदा घूम लिया

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  6. बहुत ही सुन्दर यात्रा-नामा .तसवीरें बहुत ही सुन्दर,बहुत कुछ ब्यान कर देती हैं.
    आपकी अगली पोस्ट का हमेशा इंतज़ार रहता है.
    सलाम.

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  7. अले, एक ही पोस्ट में इत्ता सारा घूम लिया...मजा आ गया.
    ______________________________
    'पाखी की दुनिया' : इण्डिया के पहले 'सी-प्लेन' से पाखी की यात्रा !

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  8. हाँ बोध गया जाना चाहिए था ... आप पटना घूम आईं , वर्णन इतना सजीव किया है कि सबकुछ आँखों के आगे जीवंत हो उठा . काश मैं पटना में होती तो अपने घर बुलाती ...

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  9. @ सगेबोब जी
    @वृक्षा रोपण जी
    @ संगीता जी
    @सुरेन्द्र जी
    @पाखी जी
    @रश्मी जी
    सबको धन्यवाद इसी तरह आते रहे --:)

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  10. चित्रों के साथ बिलकुल सजीव संस्मरण । आनंद आ गया ।

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  11. चाय नाश्ते और भूख के साथ एक और रोचक सफ़रनामा । दर्शन जी आपको भूख बहुत
    लगती है क्या ? कमोवेश आपके हर लेख में लंच डिनर का जिक्र अवश्य होता है । खैर
    रब्ब दी इस दुनियाँ में आये हो । तो खाओ । पियो । मौज उङाओ । खाना पीना हँसना
    बोलना । सबसे प्यार मुहब्बत से पेश आना । यही इंसानियत की बेहतर पहचान है ।
    अब मुझे भी भूख लग आयी । वरना टिप्पणी और भी लिखता । शेष लंच के बाद ।

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  12. बहुत सुंदर तस्वीरें उतार लाईं हैं आप।
    इसी महीने नालंदा राजगीर से आए हैं तो सब यादें ताज़ा हो गई। \बहुत आच्छा यात्रा संस्मरण।

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  13. @राजीव जी, इतनी व्यस्तता के बाबजूद आप यहाँ आए --धन्यवाद |
    मेरी अगली पोस्ट खाने से ही शुरू हो रही हे --माफ़ी !
    पंजाबी लोग ऐसे ही होते हे राजीव साहेब ! पहले खाजा,फिर काम दूजा ! धन्यवाद

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  14. पटना राजगीर नालंदा की यात्रा करके बहुत अच्छा लगा| धन्यवाद्|

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  15. शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
    सूचनार्थ

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......