गुरु गोविन्द सिंह जी वीर बली |
जो ही दुष्टा मार सिआर किआ |
सब जोर और जुलम हटाए दिए |
सब खलकत नाल पियार किआ |
(कलगीधर गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज )
शाम हमने गुरूद्वारे में ही गुजारी --छोटा -सा हाल है गुरूद्वारे का !वेसे ईमारत काफी बड़ी है --रात को हमने लंगर छक कर किया --बड़ी टेस्टी दाल और खीर बनी थी --गुरु साहेब को खीर बड़ी पसंद थी-- इसलिए उनके हर स्थान पर खीर बनती ही है --रात बहुत ठंडी थी --थके इतने थे की यदि मक्खी भी भिनभिनाती तो उड़ाने वाला कोई नही था ---
सुबह ६ बजे ही नींद खुल गई --कमरे में गुरु वाणी का मीठा स्वर गूंज रहा था--कुछ लेडिस तैयार हो गई थी --कुछ हो रही थी --अपुन तो भाई आलसी नंबर वन ! सबसे लास्ट में नंबर लगाते है ताकि कोई पीछे से खट--ख़ट न करे --सब चिल्लाने लगे तो फटाफट नहाने चली गई --अरे बाप रे !!!इतना ठंडा पानी ,मेरे तो होश उड़ गए --मै बम्बईया निवासी गर्मी में भी गरम पानी से नहाने वाली भला इस बर्फ के ताजा पानी से कोन नहाएगा ? मै तो वापस आ गई ,कोई बोला नीचे जाकर गरम पानी ले आओ, अब भला ३माले से कोन नीचे जाकर पानी ऊपर लाएगा--सबको जल्दी थी चड्डा सा. दो बार बुलाकर चले गए थे --सबने धमकाना शुरू कर दिया की हम चले जाएगे फिर अकेले आना -धमकी काम कर गई और मैने नहा लिया --अजी ,नहा क्या लिया सिर्फ ड्रायक्लीन कर ली यानी दो लोटे डाल लिए वो क्या कहते है -- 'कव्वा स्नान' ! होटल की बड़ी याद आ रही है कम से कम पानी तो गरम मिल जाता--आप लोग जब यहाँ आए तो होटल में ही रुके --
तैयार होकर छोटे बेग में दो दिन के कपडे रक्खे --क्योकि हमारा सामान यही रहेगा --हमे सिर्फ दो ड्रेस ,दो स्वेटर ,गर्म टुओपा,एक बरसाती (रेन कोट) पहनने के जुते, गुलुकोश का डिब्बा कुछ ड्रायफ़ूड, शाल इत्यादि |
रखने को कहा गया था --
गुरुद्वारा गोविन्द -घाट :-
गुरुद्वारा गोविन्द -घाट का पुराना नाम घघरिया गाँव था --संन १९६२ के सितम्बर माह में इस गुरूद्वारे का निर्माण हुआ था --जो १९६५ को सम्पूर्ण हुआ --कहते है की जिस दिन यहाँ अखंड पाठ का भोग पड़ा था उसी दिन रात को गुरु ग्रन्थ साहेब के ऊपर एक ज्योति के दर्शन हुए थे जिसे सारी संगत ने देखा था--
नीचे आए तो चड्डा सा.मिल गए --नाराज होने लगे बहुत देर हो गई थी सब चले गए थे --हम चुपचाप वहां से खिसक लिए --सीधे गुरूद्वारे गए माथा टेका मन ही मन चोपाई सा. का पाठ किया चाय पी --नाश्ता कियाऔर दोड़ते हुए घोड़ो के आफिस आ गए --वहां चड्डा सा. खड़े हमारा इन्तजार कर रहे थे --हमको घोड़ो पर सवार किया और विदा किया--की अब हम गोविन्दधाम ही मिलेगे --घोड़ो का किराया 1600रु.तीन दिन के लिए बुक किया है--पालकी का किराया पूछा तो पता चला की 5000रु. !चलो अपने घोड़े ही भले ; अब हम तीसरे दिन ही यहा पहुंचेगे --यहाँ आपको कपडे घुलवाना हो तो दे सकते है --वापसी में मिल जाएगे --एक कपडे का 20 रु. ---
(पीछे गोविन्द -घाट की इमारत दिखाई दे रही है )
ठंडी बहुत थी --ठंडी -ठंडी हवा से और ठंडी लग रही थी --मै पूरी तरह पेक !घोड़े पर सवार थी मेरे साथ -साथ रेखा चल रही थी --बहुत खुश गवार मोसम था --साथ -साथ अलकनंदा नदी बह रही थी --यहाँ से पहाड़ शुरू होते है --
मै और रेखा दोनों एक -एक घोड़े पर सवार हो गए--साथ में एक आदमी हम दोनों के घोड़ो की रास पकडे चल रहा था--काफी संगत हाथो में डंडे लिए पैदल रही थी --जवान और बुड़े काफी लोग पैदल ही जा रहे थे --इच्छा तो हमारी भी थी पैदल चलने की पर ऊपर घोड़े न मिले तो १३ किलो मीटर का यह खतरनाक रास्ता केसे तेय होता--इसलिए हमने नीचे से ही घोड़े करने में अपनी भलाई समझी --कभी मै आगे कभी रेखा आगे--यू ही करवा बढता गया --धुप निकलने लगी थी --धुंध साफ हो रही थी --
(ऊपर से गोविन्द -घाट का विहंगम द्रश्य )
कुछ दूर आए तो यहाँ से दो रास्ते हो जाते है --आगे एक रास्ता लेफ्ट वाला 'फूलो की घाटी ' जाता है --हम राइट वाले रास्ते से आगे बढ़ गए --वापसी में कोशिश करेगे --इच्छा तो बहुत है फूलो की घाटी देखने की --!
फूलो की घाटी :--
यह घाटी गोविन्द -घाट के बाद शुरू होती है--प्राकृतिक प्रेमी यहअक्सरआते है --कई हेमकुंड यात्री भी वापसी में यहाँ जाते है --इस घाटी में सभी जंगली प्रजाति के फूल है-- सन 1982 को इसे राष्ट्रिय-उधान के रूप में घोषित किया है --यहाँ कई जानवर देखने को मिल जाएगे --
फूलो की घाटी 11000 फीट की उंचाई पर स्थित है और 2 मील तक फेली हुई है --इस फूलो की घाटी पर एक विदेशी महिला मिस जोन्स जो लन्दन के शाही बागीचो की पर्यवेक्षक थी --जो रानीखेत के पादरी की पत्नी मिसेस स्मिथ के साथ सन 1922 में भ्रमण करती हुई पहाड़ी पर चढकर इस घाटी में उतर आई थी --उसे यह जगह इतनी पसंद आई की वो हर साल यहाँ आती रही --एक दिन उसका पैर यही फिसल गया जिसके कारण उसकी म्रत्यु हो गई --
आज भी इस महिला की यहाँ समाधि बनी हुई है --यहाँ 150 फूलो की प्रजातियाँ पाई जाती है --ऐसे फूल संसार में और कही देखने को नही मिलते है --हिमपात के बाद मोसम के बदलते ही फूलो की किस्मे भी बदल जाती है --यहाँ सिर्फ इन फूलो को देखना चाहिए छूने की मनाई है --क्योकि जंगली प्रजाति होने के कारण कोई जहरीला फूल हो सकता है ---
(रास्ते में मिला एक फूल )
( खुबसूरत फूलो की छटा )
( ओंस में डूबा एक फूल )
हम काफी आगे निकल आए है --पूरी घाटी पर सूरज चमक रहा है -गर्मी होने लगी हमने स्वेटर उतर कर घोड़े पर रख दिए है-- और प्रकृति का मजा लेने पैदल हाथ में डंडा लिए चल पड़े है-- हमारा घोडा हमसे आगे चल रहा है रास्ते में कई दुकाने है जहां चाय मिलती है -कई लोग आलू के पराठो का मज़ा ले रहे थे --हम भी चाय पीने और पराठा खाने रुक गए -- एक पराठा 30 रु. में साथ में दही और बिसलरी बाटल 20 रु. में, चाय 10 रु.में !खाने का सामान काफी महगा है -- महगा होगा ही सही क्योकि इतनी दूर बेचारे उठाकर लाते है --
(घोड़े से उतर कर पैदल चलते हुए )
( हवा काफी ठंडी है इसलिए स्कार्फ बाँधा है )
( इन्तजार हो रहा है --इन्तजार का फल मीठा होता है न !! )
नाश्ते के बाद हम ने पास बह रही अलकनंदा नदी के मजे लिए --बहुत हुडदंग मचाई -- देखे :--
(रेसत्रा के पीछे बह रही नदी )
(रेखा और मै *** हम साथ -साथ है )
( तेरा साथ है तो फिर क्या कमी है )
नदी का पानी एकदम ठंडा है और सफ़ेद झग है--शोर मचाता हुआ शांति से बह रहा है --थोड़ी देर मस्ती करके वापस घोड़ो पर बैठ गए --रास्ता बड़ा उबड़ -खाबड़ है --एकदम संकरा रास्ता है--आधा कच्चा आधा पक्का रास्ता बना है कई जगह काम चल रहा है --सडक पर रेलीग भी नही है --घोडा जब टर्न लेता है तो जान निकल जाती है क्योकि आगे सिर्फ खाई है और नीचे बहती नदी है --घोड़े बड़े समझदार है फिर भी चोकस होकर बेठना पड़ता है अपना बेलेंस तो बनाना पडेगा --घोड़े सिर्फ पहाडो से निकला पानी ही पीते है --भरा हुआ या बहता हुआ पानी नही पीते है --
रास्ते में कई लोग सेवा कर रहे है --कोई गुलुकोश खिला रहा है तो कोई मेवे बाट रहा है --खट्टी -मीठी गोलिया भी संगत नीचे उतरने वाली बाट रही है यह रास्ता 13 किलोमीटर का है 6 - 7 घंटे लगना है --रास्ते की संगत पाठ करते हुए 'सतनाम वाहेगुरु' का जाप करते हुए ऊपर चढ़ रही है-- कुछ नीचे उतर रहे है --कुछ बुजुर्ग पालकी में सवार होकर पाठ करते हुए ऊपर जा रहे है --वाहेगुरु का जाप वायुमंडल में गूंज रहा है --
हम भी आनंद साहेब का पाठ करते हुए आगे बढ़ रहे है -- रास्ता बहुत खराब हो चला है --धीरे -धीरे चल रहे है --
(रास्ता संकरा है और उबड़ -खाबड़ भी है )
इतने छोटे रास्ते से घोड़े पर निकलना सचमुच कमाल का है-- और जब सामने से दूसरा घोडा आता है तो जान निकल जाती है --पैदल चलने वालो के लिए यह स्थान स्वर्ग से कम नही है फिर इन रास्तो पर झरने भी निकले रहते है --फोटू ज्यादा खिंच नही सकी हु --क्योकि हाथ में घोड़े की रास पकड़ रखी है --जरा -सा हाथ छुट्टा की गए काम से --
(बाबाजी आराम कर रहे है )
नीचे उतर कर रुक -रुक कर सफ़र कर रहे है --साथ ही नदी बह रही है --यहाँ नदी किनारे के पत्थर एकदम सफ़ेद है --नदी में कभी पानी अचानक बढ़ जाता है --बहुत खतरनाक माहोल हे भाई --?
पहाड़ो के बाद चलते -चलते एकदम मैदानी एरिया आ गया --बहुत सुन्दर जगह थी --ढेरो फुल खिले थे --यहाँ एक हेलीपेड भी बना है --घोड़े वाले से पूछा तो उसने बताया की यह फारेस्ट वालो का है --काफी सुन्दर लकड़ी के मकान बने हुए थे --ऐसा लगता है मानो विदेश में आ गऐ हो --या स्वर्ग में; जेसा फिल्मो में होता है --यहाँ से ३किलो मीटर और है गोविन्द धाम --
६ घंटे का कमर तोडू सफ़र तैय करके आखिर हम एक बजे पंहुच ही गऐ गोविन्द -धाम--कमर का हलवा बन गया था --पेर जमीन पर रक्खे नही जा रहे थे --चला भी नही जा रहा था; मै तो वही बेंच पर बैठ गई--आगे बढ़ने की हिम्मत ही नही थी --पूरा शरीर दर्द कर रहा था --यह घोड़े का सफर !भगवान बचाए !!
गुरूद्वारे के सामने ही हमने होटल लिया-- मेने चड्डा सा. से कह दिया की हमे होटल में ही रहना है -- कोई रहे या न रहे --रेखा और मै रहेगे--हमारी देखा देख सब महिलाए होटल ही चल दि --मै तो होटल आई तो जो सोई की खाना खाने भी नही गई--सब लंगर छकने नीचे चली गई --और मै जो सोई तो शाम के ६बजे ही उठी --
शाम को गुरूद्वारे में दर्शन करने गई --वो पेड़ भी देखा जहां कभी भाई सोहन सिंह जी और भाई मोदन सिंह जी रहते थे --इनकी स्टोरी बाद में --
ठंडी बहुत है --हमें स्वेटर में भी ठंड लग रही थी --फिर बारिश भी हो गई थी इसलिए पारा और लुड़का हुआ था --हमने बरसाती भी पहन रखी थी --फटाफट दर्शन किए लंगर खाया और रूम में आ गए --
पहाड़ो के बाद चलते -चलते एकदम मैदानी एरिया आ गया --बहुत सुन्दर जगह थी --ढेरो फुल खिले थे --यहाँ एक हेलीपेड भी बना है --घोड़े वाले से पूछा तो उसने बताया की यह फारेस्ट वालो का है --काफी सुन्दर लकड़ी के मकान बने हुए थे --ऐसा लगता है मानो विदेश में आ गऐ हो --या स्वर्ग में; जेसा फिल्मो में होता है --यहाँ से ३किलो मीटर और है गोविन्द धाम --
(हेलीपेड )
गुरूद्वारे के सामने ही हमने होटल लिया-- मेने चड्डा सा. से कह दिया की हमे होटल में ही रहना है -- कोई रहे या न रहे --रेखा और मै रहेगे--हमारी देखा देख सब महिलाए होटल ही चल दि --मै तो होटल आई तो जो सोई की खाना खाने भी नही गई--सब लंगर छकने नीचे चली गई --और मै जो सोई तो शाम के ६बजे ही उठी --
शाम को गुरूद्वारे में दर्शन करने गई --वो पेड़ भी देखा जहां कभी भाई सोहन सिंह जी और भाई मोदन सिंह जी रहते थे --इनकी स्टोरी बाद में --
ठंडी बहुत है --हमें स्वेटर में भी ठंड लग रही थी --फिर बारिश भी हो गई थी इसलिए पारा और लुड़का हुआ था --हमने बरसाती भी पहन रखी थी --फटाफट दर्शन किए लंगर खाया और रूम में आ गए --
31 टिप्पणियां:
'गुरु गोविन्द सिंह जी वीर बली'
आपके संस्मरण को पढ़कर मन प्रसन्न हो गया |
चित्रों का संयोजन ..क्या कहना !
अच्छा संस्मरण और चित्रों का संयोजन बहुत सुन्दर हमें तो बाबा जी का आराम अच्छा लगा
आदरणीय दर्शन कौर जी
नमस्कार !
अच्छा संस्मरण.....मन प्रसन्न हो गया |
लगता है । पिछली बात याद रही । आज तो इतना खिलाया कि एक सप्ताह का कोटा पूरा हो गया ।
..सीरीयसली आपके यात्रा वृतांत लिखने का स्टायल दिनोंदिन निखर रहा है । अब ब्लाग का नाम ..मेरे अरमान की जगह.. मेरे सफ़र.. सफ़रनामा.. हुआ जा रहा है । पर हमें तो इसी में मजा आ रहा है ।
फूलों की घटी के फूल बहुत सुन्दर हैं ।
रास्ते का विवरण बड़ा रोमांचक रहा ।
पढ़ते पढ़ते हमें भी ठण्ड लगने लगी ।
बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत ।
आपका यात्रा संस्मरण एक सुन्दर प्रस्तुति है!
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर संस्मरण का हिस्सा बना रही आप हम सभी को..... आभार
ओस में भीगे फूलों का चित्र बहुत सुंदर है......
@Dr.saheb dhnyvaad |
@Monika ji dhanyvaad |
@Surenderji dhanyvaad |
@Shastri ji dhanyvaad |
@sunil ji dhanyvaad |
@राजीव जी ,सचमुच एक नया ब्लोक और बनाना पड़ेगा जिस का नाम 'सफरनामा ' रक्खा जाए..
संजय जी आने का बहुत -बहुत शुक्रिया
MAM APKI YATRA KE BARE MAIN PADH KAR MAJA AA GAYA,AAGE JALDI LIKHIYE LEKIN APNE GHODE PAR APNI EK BHI PHOTO NAHIN KHICHI MERI GADHE PAR BAITHE WALI PHOTO APKO KAISI LAGI,APKI YATRA KE BAAD MERA MAN BHI HEMKUND JANE KA KAR RAHA HAIN EXAM HONE KE BAAD PAKKA JAUNGA.
@अतुल आपकी टिपण्णी देख कर अच्छा लगा--और मेरे ब्लोक पर आने का शुक्रिया --घोड़े पर मेरी दो तस्वीरे है जो अगले पोस्ट पर लगेगी --आगे और आनंद आया --आगे की पोस्ट के लिए २-३ दिन लगेगे मै फोन पर सुचना दुगी --आपकी परीक्षा के लिए अरदास करुगी --धन्यवाद |
दर्शन जी ।ये ब्लाग अगर बनाना चाहो । तो मुझे बताना । मैं
आपको एक सुन्दर ब्लाग बनाकर गिफ़्ट करूँगा । बाद में आप
पासवर्ड बदल लेना । तब आप उसकी सैटिंग देखना ।
यादों को तारो-ताज़ा करवाने केलिए बहुत-बहुत शुक्रिया...
हमें भी बहुत मज़ा आया था, जब हम गए थे...
बढ़िया पोस्ट...
देरी से ही सही लेकिन वादे के मुताबिक आपकी इस हेमकुंड साहब की यात्रा का साक्षी बनने मैं भी हाजिर हो ही गया हूँ । फिलहाल तक के वृत्तांत के साथ ही फूल अतयन्त ही खूबसुरत लगे । धन्यवाद...
ब्लागराग : क्या मैं खुश हो सकता हूँ ?
बहुत सुन्दर वृतांत लिखा है आपने.
आपका लेखन तो बढ़िया है ही,साथ में खाने का ज़ायका लेखन को तड़का लगा देता है.
फूलों की तसवीरें तो गज़ब की हैं.
ओस वाले फूल की तस्वीर सब से बेहतर लगी.
लगता है अब तो मेरी हाजिरी पूरी है.
सलाम.
दर्शन जी आप बेहद खूबसूरती से दर्शन करा रही है...मै अकेले रास्ता ही भूल जाऊंगा ..बेहद सुन्दर !
@राजीव जी,जरुर आपको तकलीफ दुगी --फिलहाल इसी ब्लोक पर कुछ अजमाइश हो जाए -- कोई नया लुक! अपनी राय दीजिएगा ?
@पूजा जी,धन्यवाद ! आपकी यात्रा मैने पड़ी है--सेवफल का खट्टा स्वाद भी चखा है --मुझे यात्रा पसंद है और उनके वृतांत भी ! आपके आने का शुक्रिया ....
@Shaw साहेब ,ऐसा गजब मत करिएगा वरना यात्री कहाँ से कहाँ पहुँच जाएगे ... :)
@सगेबोब जी,आपकी टिपण्णी की जरूरत रहती है --धन्यवाद ! अब कोई मलाल नही .. :)
@देर ही भली पर आपकी उपस्थिति हो ही जाती है सुशिल जी धन्यवाद |
आनंद आ गया ....क्या कहूँ अब आपका कमाल है सब .....शुक्रिया आपका
मेरे दुसरे ब्लॉग धर्म और दर्शन पर आपका आशीष अपेक्षित है ...आपका आभार इस प्रोत्साहन के लिए
spiritual information ke liye dhanyawad........:)
दर्शन जी आप वास्तव में शानदार प्रस्तुति को चित्रों के माध्यम से दर्शन करवा देने में माहिर है.आप मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' की फालोअर बनी इसके लिए धन्यवाद.लेकिन अभी तक भी आपके सुवचन रुपी प्रसाद से मै वंचित हूँ.कृपा बनाये रखियेगा प्लीज.
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मजेदार । गुझिया अनरसे जैसा ।
दर्शन कौर जी आपको होली की शुभकामनायें ।
कृपया इसी टिप्पणी के प्रोफ़ायल से मेरा ब्लाग
सत्यकीखोज देखें ।
तो मेरे बारे में क्या कहना है? इस इलाके में कभी गया नहीं हूं। कहो तो चला जाऊं क्या?
बहुत बढिया वृत्तान्त चल रहा है।
सतनाम वाहेगुरू
नीरज भाई आपको जरुर जाना चाहिए --साथ में अतुल को भी ले जाए --उसकी भी बड़ी इच्छा है --मै तो ३ साल पहले गई थी --अब नजारे और होगे -- कुछ नई बाते मालूम पड़ेगी --धन्यवाद ...
Mukesh kumaar ji dhanyvaad
Rakesh ji dhanyavaad
Keval ram ji dhanyavaad
बिलकुल सत्य कहा आपने .....
पहली बार आपके ब्लॉग पे आकर अच्छा लगा !
अच्छा संस्मरण और चित्रों का संयोजन बहुत सुन्दर !!
बहुत बेहतरीन दुर्लभ जानकारी के लिए धन्यवाद !
आपको, आपके परिवार को होली की अग्रिम शुभकामनाएं!!
यह एक औलोकिक अनुभूति हैं।
एक टिप्पणी भेजें