मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शनिवार, 26 मार्च 2011

तपोभूमि श्री हेमकुंड साहेब ( 6 ) Hamkund saheb ( 6 )





  




















        गगन दमामा बाजिओ परिओ नीसाने घाऊ !!
       खेत जु मांडियो सूरमा अब जुझन को दाऊ !!
 सूरा सो पह्चानिओ जु लरे दीन के हेत !!
             पुरजा - पुरजा कटी मरे कबहू न छाडे खेत !!      





(एक युग पुरुष गुरु गोविन्द सिंह जी )



14 सितम्बर 2008


सुबह 6 बजे नींद खुली --कल वापस गोविन्द धाम आने पर मै जो सोई तो रात को 11 बजे नींद खुली--देखा सब सो रहे थे --भूख बड़ी जोर से लग रही थी क्योकि कल हलवे के अलावा पुरे दिन कुछ नही खाया था--अच्छा खासा उपवास हो गया था --पास में कुछ बिस्कुट और मेवे पड़े थे उनसे ही अपनी    अतृप्त भूख मिटाई!चलो बाम्बे से लाए बिस्कुट आज काम आ ही गए --


सुबह सबने उठाया तो नींद खुली --सब तेयार हो रहे थे--हम भी फटाफट गर्म पानी से नहा लिए --नीचे गुरूद्वारे मै माथा टेका --ऊपर जो पर्ची कटाई थी उसका प्रसाद नीचे मिलता है ,प्रसाद लिया और चल पड़े यहाँ से --


घोड़े वाला आ गया था उस पर बैठ गए --मैने कहा -एक घोड़े का फोटो हि खीच ले ,तुरंत घोड़े वाले ने हमारी एक तस्वीर खीच ली :- 



( वापसी )

धुप खिल रही थी --पर ठंडक थी --वापसी में बड़ा आनंद आया --न डर न चिंता ,जब इच्छा होती घोड़े पर बैठ जाते ,जब थक जाते तो पैदल चलने लगते --जाते समय जो द्रश्य देखने से वंचित रह गए थे अब उनका खूब मज़ा ले रहे थे -- एक जगह हम सब हिम गंगा नदी के अन्दर चले गए -वहाँ बड़ा मज़ा आया -पहले फोटो देखे बाद में बात बताउगी :-




(रेखा मै और विमला पीछे हिम नदी )


(मै विमला और रेखा )




(ठंडे पानी की बोछारे पानी बड़ा तेज है )



( विमला और मै )


हुआ यु की हम पैदल चलते -चलते इस पुल पर पहुंचे --थोड़ी मस्ती करने का मन हुआ -पहले मै कूदी नदी के पास फिर विमला आई ,रेखा ऊपर ही खड़ी थी --हमने खूब पानी फेका फेकी की --स्वेटर उतार दिए थे हम मस्ती कर हि रहे थे की कुछ आदमी चिल्लाए --'बीबी जल्दी ऊपर आ जाओ ' हम धबरा गए --पानी काफी तेज था हम फटाफट पत्थरों पर चड़कर ऊपर आ गए --अभी हम खड़े हि थे की अचानक हमारे देखते -देखते पानी वहा तक आ गया जहा से हम चड़े थे --एक झुर झुरी सी हुई यदि हम वही पर होते तो कब के तेज धार में बह गए होते --पानी बहुत तेजी से नीचे बह रहा था --कान पकडे --?

 नदी और नालो का कोई भरोसा नही होता कब बहने लगे --कब कोई पत्थर सरक जाए और पानी का स्त्रोत बह निकले -पहाड़ी नदी से सावधान !

(गोविन्द घाट पहुँचने से पहले थोडा सुस्ता ले ) 


12 बजे तक हम नीचे गोविन्द घाट तक आ गए थे --पहले सोचा 'फूलो की घाटी'चलते है पर 13 किलो मीटर और घोड़े पर बैठ कर पहाड़ चड़ना फिर पैदल भी सफ़र करना बच्चो का काम नही था --कोई जाने को तेयार नही हुआ - फिर हमें बद्रीनाथ भी जाना था और हमारे पास आज का ही दिन था सो ,फूलो की घाटी केंसल की और हमने नीचे उतर कर पहले खाना खाया फिर वाहन की तलाश में निकल पड़े --




(फूलो की घाटी का एक दुर्लभ चित्र )
( गूगल से )




(दुर्लभ फूल )


(ये फूल आपने कही नही देखे होगे )



(ये फूल वहाँ भरे पड़े है )

फूलो की घाटी हि नही अपितु सारे पहाडो पर ऐसे फूल बिछे हुए है मानो प्रकृति ने गलीचा बिछा रक्खा है हर रंग का तालमेल है--

सबसे पहले घर वालो को खेरियत की खबर दी --आज तीन दिन हो गए थे

नीचे उतर कर हमने आराम नही किया --फटाफट जिसको चलना था उसे तेयार किया -हमारा सामान लाक था --चड्डा सा. आए नही थे --हमने उनका इन्तजार न करके सीधे बद्रीनाथ चल दिऐ--

हम कुल 8 लोगो ने मिलकर एक जीप की 800 रु में आने-जाने के लिए जीप मिल गई--सबको 100 रु. का शेयर आया कोई बुरा नही था --जीप वाले ने हमारे साथ एक हवलदार भी कर दिया -वो बढ़िया लड़का था हमारा अच्छा मनोरंजन किया -- 


(बदरीधाम का एक विहंगम द्रश्य )
(चित्र < गूगल जी से )




(शायद यही नर और नारायण पर्वत है )
(चित्र <गूगल से )






बद्रीधाम का इतिहास:--

बदरीधाम को धरती का मोक्ष कहा जाता है -पुराने जमाने में लोग जब इसकी यात्रा पर निकलते थे तो समझा जाता था की अब यह आखरी यात्रा पर जा रहे है पता नही वापसी होगी या नही ?क्योकि उस समय यातायात के साधन नही थे लोग पैदल ही यह यात्रा सम्पूर्ण करते थे-- 
   
बद्रीधाम नर और नारायण पर्वतों के मध्य स्थित है यह समुद्र तल से 10,276 फीट  उंचाई पर स्थित है --अलकनंदा नदी इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देती है --इस मन्दिर में 15 मूर्तियाँ है -भूस्खलन के कारण यह मन्दिर बार -बार क्षतिग्रस्त होता रहता है--और दुबारा इसका निर्माण होता है --भगवान् विष्णु का यह मन्दिर चारधामों में से एक है --इसकी स्थापना 8 वी शताब्दी में श्री आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी -उन्होंने भारत के चारो कोनो में चार -धाम स्थापित किये थे--उतर में बदरीधाम दक्षिण में रामेश्वरम,पश्चिम में द्वारका और पूर्व में जगन्नाथ पूरी !इसके क्षतिग्रस्त होने के बाद इसका निर्माण गढ़वाल राजाओ ने करवाया -यहाँ तृप्तकुण्ड अलकनंदा नदी के किनारे ही स्थित है --जो गरम पानी का कुण्ड है --मन्दिर में प्रवेश करने से पहले सब यहाँ स्नान करते है पानी बहुत गरम रहता है --ओरतो के लिए अलग से कुंड की व्यवस्था है - यह मंदिर हर साल अप्रेल - मई में खुल जाता है और नवम्बर के आखरी सप्ताह में बंद होता है--- 


हम २बजे बद्रीविशाल के लिए निकल पड़े--२ धंटे का सफ़र था-- रास्ता बहुत अच्छा है --पर पहाड़ कच्ची मिटटी के बने है छोटे -छोटे गोल -गोल पत्थरों के पहाड़ है जो ज्यादा बारिश में बह जाते है-- इस समय मिटटी उड़ रही थी --आगे एक आकस्मिक पुल था जो मिलिट्री ने वहां लगाया था लोहे का यह पुल फोल्डिग होता है इमरजेंसी में मिलिट्री यूज करती है -


हमारे साथ जो हवलदार आया था उसने बताया की पिछली बार यहाँ बादल फट्टा था तो इस नदी पर पास वाला पहाड़ गिर गया था जिससे नदी ने रुख बदल लिया है इसलिए अब दूसरा पुल बनने तक यह लोहे का पुल ही इस्तेमाल होगा पर वहाँ का द्रश्य देखते बनता था -- क्या कारीगिरी है उस बनाने वाले की -शब्दों में बयाँ नही कर सकते --
आखिर हम बदरीधाम पहुँच ही गए




(बद्रीनाथ का मंदिर )

(बदरीधाम में मै और विमला )




( मै ,विमला और रेखा बाकी अंदर थी )


हमने सबसे पहले पुल पार करके बद्री विशाल के मंदिर में प्रवेश किया--पुल से नीचे नदी का द्रश्य बहुत लुभावना था -- वहाँ गरम पानी का कुण्ड था पहले स्नान करने चला जाए पर कपडे तो थे नही नहाते केसे !फिर किसी ने कहा की सुबह तो नहाए थे चलेगा कुछ चतुर लोग बोले -' चुन्नी लपेट कर नहा लेते है ' फिर यही कपडे पहन लेगे|अब चारा कोई और नही था --हमने दरवाजा बंद किया और बाल्टी भर -भर के गरम पानी से खूब नहाए --पानी काफी गरम था --यार,ये उतराखंड भी अजब है --कही इतना ठंडा पानी की पुश्ते भी हिल जाए और कही इतना गरम की हाथ जल जाए --खेर ,नहाने से सारी थकान भाग चुकी थी-- और हम 'फ्रेश' हो चुके थे --'जय बद्रीविशाल '!


प्रशाद की थाली खरीदी यहाँ पके चावल तथा चने की दाल का प्रसाद चडाया  जाता है-- प्रसाद लेकर हम अन्दर चल पड़े --भगवान् विष्णु की बेहद खूब सूरत मूर्ति थी यह पाषण शिला से निर्मित है-- यह डेढ़ फुट ऊँची मूर्ति है जो पध्मासन की योग मुद्रा में बैठी है -यहाँ दक्षिण भारत के नम्बूदिरिपाद ब्राह्मण पुजारी होते है-ये आजीवन ब्रह्मचारी होते है --जब पट बंद हो जाते है तो यह अपने गाँव चले जाते है -पट बंद होने पर बद्रीविशाल की पुजा अर्चना जोशिमठ में होती है ---


यहाँ से साढ़े 3 किलो मीटर आगे माणा गाँव है जो भारत का आखरी गाँव है  यहाँ सप्त बसु ,गणेश गुफा ,भोजवासा ,रूपकुंड ,तृप्त कुंड ,नारद शिला अनेक दार्शनिक स्थल है --  नारद शिला वह जगह है जहां बद्री विशाल की यह मूर्ति पाई गई थी --         


हमारे पास टाइम कम था इसलिए ज्यादा धूम नही सके --थोड़ी देर बाज़ार में घुमते रहे कुछ सामान घर वालो के लिए खरीदा थोड़े से अखरोट भी खरीदे --यादगार रहनी चाहिए --1-2 कंवल भी खरीदे -कभी -कभी भूले भटके बाम्बे में भी ठंडी पड़ जाती है --
    
6 बजे हम वापस चल पड़े --क्योकि फिर अँधेरा होने पर रास्ता बंद हो जाता है और हमे वहा रुकना नही था सो जल्दी ही खिसकने में अपनी भलाई समझी --रास्ता बड़ा सुन्दर तो है पर खतरों से भरा पड़ा है --रास्ते के लुभावने झरने देखते -देखते कब गोविन्द घाट आ गए पता ही नही चला -- 


रात को बहुत दिनों बाद ऐसी आराम भरी नींद आई --सुबह सारा समान समेटा और चल दिए हेमकुंड साहेब को बाय -बाय कर के--बस स्टाप पर गर्म गर्म पकोड़ो का नाश्ता किया --

आज ही हम ऋषिकेश पहुंच जाएगे --रास्ते में बस में बेठे हुए अब डर नही लग रहा था क्योकि हम सकुशल घर जा रहे थे ----


(घर सकुशल जाने की ख़ुशी )



( पिछे ऋषिकेश का गुरुद्वारा )
( रात को हम ११ बजे ऋषिकेश पहुंचे )

(कुछ गणमान्य लोग हमारी टीम के )

(बाए से हरपाल सिंह सेठी केशियर, नर्स हरजीत, विमला, मै, निशा, चड्डा साहेब और प्रन्सीपल साहिबा गुरमीत  ) 

(इस तरह समाप्त हुई एक यादगार यात्रा )




अगली बार एक नए सफ़र पर **** धन्यवाद  मेरा साथ देने के लिए --



28 टिप्‍पणियां:

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

इंतजार रहेगा नए सफ़र का.... यह प्रस्तुति बहुत पावन और रोचक रही ---- डॉ. मोनिका शर्मा

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

अच्छी यात्रा चल रही है. कुछ फोटो खुल नहीं पा रहे हैं ब्लॉग पर, कई जगह ये समस्या चल रही है.

आभार

Sushil Bakliwal ने कहा…

बढिया यात्रा वृत्तांत । वाकई कुछ चित्र ओपन नहीं हो रहे हैं ।

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत बढिया यात्रा और चित्र
आभार

Rakesh Kumar ने कहा…

सुहाना सफर और ये मौसम हंसी
हमे डर है हम खो न जाएँ कहीं

बेहतरीन रोचक यात्रा वृतांत. दर्शन जी क्या कहने आपके. लगता है पढता ही जाऊं ,पढता ही जाऊं और चित्रों में खोता चला जाऊं.

G.N.SHAW ने कहा…

वाह अतिसुन्दर प्रस्तुति ...वह भी सचित्र ..आप के साथ इस यात्रा का बहुत ही मजा आया ! आप परसों यानि २८-०३-२०११ ..के दिन अपने जन्म दिन की अग्रिम बधाई स्वीकार करें ! आप की दीर्घायु की कामना करता हूँ !

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

@ साव साहेब,धन्यवाद ! सबसे पहली बधाई आपके नाम धन्यवाद !

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

@ राकेश जी धन्यवाद मेरा फेवरेट गाना और वर्णन के लिए ..!

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

@ललित जी,सुशिल जी, क्यों फोटू नही खुल रहे है समझ में नही आ रहा है --हमेशा जेसे ही है --खेर ,शाम को बेटे से ठीक करवाउगी !

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

पोस्ट और यात्रा वृत्तान्त लाजवाब हैं।
लेकिन आज एक सुझाव दे रहा हूं। मानों या मत मानो।
पोस्ट लिखते समय शब्दों का रंग काला ही रखिये। हद से हद नेवी ब्लू भी चल जायेगा। आपकी बैकग्राउण्ड हरे रंग की है। लाल या पीले रंगों के साथ कुछ और रंगों को पढने में दिक्कत होती है। आंखों पर फालतू का जोर पडता है। शब्दों को पहले सलेक्ट करता हूं, फिर पढता हूं।
कृपया ध्यान दीजिये।
धन्यवाद।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

धन्यवाद जी हम भी आपके साथ घूम आए.

Sunil Kumar ने कहा…

यात्रा वृत्तान्त लाजवाब हैं, आभार

मदन शर्मा ने कहा…

कितना अच्छा यात्रा वर्णन करती हैं आप कब मैंने आप का पूरा पोस्ट पढ़ के समाप्त कर दिया पता ही नहीं चला.
बहुत ही सजीव चित्रण किया है आपने. बहुत बहुत धन्यवाद आपका.
आपको मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं....
एक अनुरोध है आपसे कृपया अपने पोस्ट का बैक ग्राउंड लाइट तथा अक्षर का रंग डार्क रखें .
आप के पोस्ट में और भी खूबसूरती आ जाएगी .

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

हैप्पी बर्थ डे । दर्शन कौर जी ।
गगन दमामा बाजिओ परिओ नीसाने घाऊ !!
खेत जु मांडियो सूरमा अब जुझन को दाऊ !!
सूरा सो पह्चानिओ जु लरे दीन के हेत !!
पुरजा - पुरजा कटी मरे कबहू न छाडे खेत !!
...इन लाइन को पढकर आगे कुछ अच्छा नहीं लगा ।
दर्शन जी इनका सही वास्तविक अर्थ बताओ क्या है ??
ये बहुत गुप्त बात है । और आपके धर्म में लिखी है ।
आपके विचार जानने के बाद फ़िर मैं बताऊँगा ।

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

@ नीरज, आपने जो सुझाव दिया है वो सोलह आने सच है मैने चेंज कर दिया है आगे से ध्यान रखूंगी --धन्यवाद |

@मदन जी आपकी ख्वाहिश सर आँखों पर एक बार फिर से आए --?

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

@ साधुजी,क्यों मुझ 'गरीब ' की परीक्षा ले रहे हो ?

आप जेसे ग्यानी पुरुष की दोस्ती ही मेरे लिए सोभाग्य की बात है ?

बचपन से इन पंक्तियों को सुनती आ रही हु कुछ ज्ञान भी है पर वो अल्प ज्ञान है --और अल्प -ज्ञान का क्या मायने ? आप ही बताए ,सुनने को उत्सुक हु ! जन्म दिन का नायब तोहफा समझकर ग्रहण कर लूगी ... :)

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सारे फोटो देख लिए जी और फिर से यादें ताज़ा हो गई ।
नदी में अचानक पानी आ जाना वास्तव में बड़ा खतरनाक लगा ।
नर और नारायण --अलकनंदा के दोनों तरफ के पहाड़ों को कहते हैं । हम जब गए थे तो बर्फ पड़ गई थी । क्या अलौकिक दृश्य था ।
बढ़िया रही ये यात्रा ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बढ़िया यात्रा वृतांत ... चित्रमय सैर बढ़िया रही

आकाश सिंह ने कहा…

ब्लॉग में संगृहीत रचना रमणीय है... मजा आ गया ... चित्रण भी कमल की है |
यहाँ भी आयें...
यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ . हमारा पता है ...
www.akashsingh307.blogspot.com

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय दर्शन कौर जी
नमस्कार !
हैप्पी बर्थ डे हैप्पी बर्थ डे हैप्पी बर्थ डे हैप्पी बर्थ डे
बहुत ही सजीव चित्रण किया है आपने धन्यवाद

संजय भास्‍कर ने कहा…

दर्शन कौर जी जन्‍मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं

संजय भास्‍कर ने कहा…

जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें|

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

@धन्यवाद संजय !
@धन्यवाद आकाश जी मै आपके ब्लोक पर आई हु और टिप्पणी भी दी है --चेक करे !
@ धन्यवाद संगीता जी !
@धन्यवाद डॉ साहेब !
@धन्यवाद दिनेश जी पहली बार आए है आपका शुक्रिया !
@श्रीमान सच साहेब धन्यवाद !

Manish Kumar ने कहा…

फूलों की घाटी अगर इस तरह दिख जाए तो क्या कहने। आपने अपनी यात्रा का खूब आनंद उठाया।

SANDEEP PANWAR ने कहा…

दर्शन जी जाट देवता का नमस्कार,
आप का बद्रीनाथ पर ग्रिल के सामने व आखिरी का घर जाते समय का फोटो बहुत खुशी झलक रही है
माना, भीम पुल, फूलों की घाटी, जरुर जाना चाहिए था, इतनी दूर से आये थे, ऐसा मौका फिर कहाँ मिले ,रब जाने

SANDEEP PANWAR ने कहा…

मैं भी इन सभी जगह गया हूँ ,माणा गाँव, भीम पुल,फूलो की घाटी, कोई बात नहीं मेरे साथ देख लेना

Kunwar Kusumesh ने कहा…

भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.

Harshita Joshi ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है मजा आ गया।पर जो शुरुआत में कवीता जैसे पंक्तियाँ लिखी हैं वो समझ नहीं आई मुझे