मेरे अरमान.. मेरे सपने..

शनिवार, 12 मार्च 2011

तपोभूमि श्री हेमकुंड साहेब ( ३ )



                         चरन चलो मारग  गोविन्द 
                          मिटे पाप जपिए हर बिन्द      





(तपस्या में लींन पिछले जन्म में दुष्ट -दमन गुरु गोविंदसिंहजी  )



( हाजरा हुजुर श्री  गुरुग्रन्थ साहेबजी ) 




 11 सितम्बेर 2008

सूरज की किरणों से नींद खुली --देखा खिड़की के ऊपर रोशनदान से धूप आ रही थी --पहाडो पर दिन जरा जल्दी निकल आता है --यहाँ की सुबह बहुत खुशगवार होती है --मंद -मंद हवा --धुंध से घिरे पहाड़ --कभी धुप कभी छाया-- आलोकिक द्रश्य होता है --नदी की जोरदार आवाज --हवा मे पेड़ो की सरसराहट बहुत सुंदर नजारा रहता है  --

(गढ़वाल गेस्ट -हाउस के बाहर) 




सुबह  तैयार होकर सामने के होटल में नाश्ता किया --हम सब करीब ५० -६० लोगो का जत्था है जिसमे ज्यादातर लोग पुरे परिवार के साथ आए है --कुछ लोग तो पिछले 10 साल से आ रहे है --वाहेगुरु की मेहर है वाहेगुरु   उन्हें नेमत बक्शे--
   
हमारा तो बुरा हाल है बैठे -बैठे हालत खराब हो रही है --यह बस का सफ़र बड़ा बेकार है-- ट्रेन का सफ़र मुझे बहुत पसंद है --उधर रेखा के साथ -साथ कई लोगो को उलटी हो रही है --सब सफ़र शुरू होने के पहले ही टेबलेट खा लेते है-- मैने एक उपाय बताया, जिसे मेरे पति सफ़र से पहले  इस्तेमाल करते है --

 (  सफ़र शुरू करने के बाद जैसे  से ही उलटी जैसा होने लगे--आप माचिस की एक तीली मुंह में रख ले(मसाले की साईट वाली ) उसे निगले नही बस मुंह में रखना है --जब कुछ खाए तो कुल्ला कर के ही खाए --दुबारा ऐसा हो तो फिर वही ट्रिक इस्तेमाल करे --बहुत बढ़िया उपाय है --आप भी कभी इस्तेमाल करके देखे ---)
  
रास्ते की सुंदर द्रस्यावली देखते हुए हमारी बस पहाड़ो का सीना चीरती हुई आगे बढती  जा रही है --कभी लगता की अब गिरी !अब गिरी ! क्योकि पहाडो पर रेलिग होती नही है-रास्ता छोटा होता है फिर झरने भी सडक पर ही बहते है --सारा माहोल गीला -गीला लगता है सूरज भी नही दिखाई देता है क्योकि पहाडो की वजय से धुप नीचे उतर नही पाती है खेर ,फिर भी माहोल बड़ा रोमांचक रहता है-- जब भी कोई बस क्रास होती तो कलेजा मुंह को आ जाता है --जो पहाडो पर सफ़र कर चुके है उन्हें अच्छी तरह पता होगा --कई बार ऐसे टाइम ही बेलेंस न होने की वजय से दुर्धटनाऐ हो जाती है --सुनने में अक्सर आता है कि फलाना जगह से पहाड़ी से गिरकर बस  खाई में गिरी --खेर, ' जिस को राखे साईया-मार सके न कोई '              

(खतरनाक रास्ता )

(कल -कल की ध्वनी कानो में गूंज रही है
इन वादियों की खुशबु सांसो में घूम रही है )

जोशीमठ पहुँचने से पहले ही हमारी बस खराब हो गई --हमसब नीचे उतर पड़े --और आगे ही पैदल चल पड़े --बड़ा सुहावना शमां था -- 

(नीचे उतरने के बाद माहोल ही रंगीन  था ) 

                       (ये उच्चे परवत, ये दरख़्त, ये नीला आसमान !
                           बेखुदी मे हम तो दूर तलक निकल  आए --)     


(चड्डा आंटी के बेटे और पोती के साथ )
(पीछे इतना सुन्दर झरना है जो सडक पर ही बह रहा है )



(जोशीमठ:-   गूगल चित्र )
      

गाडी ठीक होते ही हम जोशीमठ पहुँच गए --हमारी दूसरी बसे काफी टाइम पहले ही पहुँच गई थी और हमारा इन्तजार कर रही थी ---शाम से पहले हमे गोविन्द -घाट पहुंचना जो है ---

जोशीमठ :-

जोशीमठ वह स्थान है जहां शीतकाल में बद्री-विशाल यहाँ निवास करते है --यह मठ उन चार मठों में से एक है जिसका निर्माण श्री शंकराचार्य ने किया था --यह स्थान अलकनंदा व् घोली गंगा नदी के संगम स्थल से कुछ ऊँचाई पर स्थित है-- यहाँ एक गुरुद्वारा भी है जिसे दुष्ट -दमन गुरुद्वारा कहते है---                                         
(जोशीमठ में हम नही उतरे क्योकि हमारी बस खराब हो जाने से हम लेट हो गए थे --इसलिए तुरंत चल दिए --इस वजय से फोटो नही खीच सकी )

औली:-

जोशीमठ से १६ किलो मीटर की दुरी पर औली नाम का पर्यटक स्थल है --जनवरी से मार्च तक यहाँ बर्फ रहती है --बर्फ ३फिट तक जमी रहती है यहां से आप नंदा देवी ,कामत,और दूनागिरी पर्वतो का आनंद ले सकते है -हम तो जत्थे के साथ थे वरना जरुर जाते --औली बहुत सुन्दर जगह है --बर्फ से  ढके पर्वत और स्कीइग का मज़ा आप औली में ले सकते है --


(औली***चित्र :-गूगल ) 

(औली :- चित्र गूगल )


और अब हम पहुँच गए है --गोविन्द -धाम ! यह हमारा बस से आखरी सफर है --यहाँ से हमारी पैदल यात्रा शुरू होती है --यही से एक रास्ता बद्री नाथ को जाता है --हम पैदल ही चल पड़े --हमारा सामान चड्डा सा. की निगरानी मै पीछे -पीछे आ रहा है --दूर पहाड़ी पर लोग आते -जाते दिखाई दे रहे है --शायद हमे भी उसी पहाड़ी पर चड़ना है--साथ-साथ  अलकनंदा नदी बह रही है --चारो और पहाड़ ही पहाड़ है --शाम घिर आई है --गोविन्द घाट का बाज़ार जगमगा रहा है --दुकाने सजी है --पंथ से सम्बंधित वस्तुए बिक रही है --कुछ होटल भी है --टूरिज्म के आफिस है --और कुछ जड़ी बूटियों की दुकाने भी सजी है -स्वेटर -शाल ,कम्बल की दुकाने भी है --हम गुरूद्वारे चल दिए --हमे वही ठहरना था --   


(गुरुद्वारा गोविन्द -घाट )


हम गुरुद्वारे जा रहे है --सराय में रुकेगे --हमको दुसरे -माले पर रूम मिला --रूम अच्छा है --चार पलंग बिछे है--हम ८ महिलाओं के लिए काफी है --अलमारी में काफी कम्बल रखे है जिसको जितनी जरूरत हे ले सकते है--

  कुछ परिवार होटल में चले गए --वेसे होटल ही ठीक है --पेसे जरुर खर्च होते है --पर सुविधा भी मिल जाती है जो गुरूद्वारे की सराय में मुश्किल है --यह बात मुझे सुबह मालुम पड़ी --

यहाँ हमारे मोबाइल बंद हो गए सिर्फ बी एस एन एल चालू था --हमने STD
बूथ पर जाकर अपनी खेरियत की खबर दी घरवालो को --वेसे यहाँ से लाईट भी आगे नही है ---

कल हम गोविन्द -धाम चलेगे --- 

जारी ---

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया प्रस्तुति
    मजा आ रहा है आपके साथ घूमने में

    प्रणाम

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  2. यहाँ तक का सफ़र बहुत रोमांचक है लेकिन सांस अटक जाती है मूंह में । विशेषकर नदी में बस गिरने की कहानियां सुनकर ।

    नर और नारायण पर्वतों की तो छटा ही निराली है ।
    बहुत सुन्दर चल रही है यात्रा दर्शन जी ।

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  3. सेवा करत होई निहकामी,तिस कउ होत परापति स्वामी।

    रब्ब दी मेहर है जी। सारी तकलीफ़ें वो ही दूर करता है।

    आभार

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  4. ठीक है। कल मिलते हैं गोविन्द धाम में।

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  5. वाहे गुरू जी का खलसा!
    वाहे गुरू जी की फतह!!
    बहुत खूबसूरत नजारे
    और
    बहुत सुन्दर धार्मिक स्थलों के दर्शन करके
    हम भी धन्य हुए!

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  6. धनोय जी ऐसे ही आप अपने बहुमूल्य यात्रा के अनुभव बांटते रहे ..बहुत अच्छा लगता है ..कल मै शोलापुर में रहूँगा..धन्यवाद "

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  7. आदरणीया दर्शन कौर जी,
    मैं आपके ब्लॉग पर रोज़ ही आ रहा हूँ.पर बैंक में व्यस्तता के कारण टिप्पणी नहीं कर पाया.मार्च का महीना है न.
    मुआफी चाहूंगा.
    हेमकुन्ट साहिब मैं पंद्रह साल पहले गया था.
    आपने सारी पुरानी यादें ताज़ा करवा दीं.
    बहुत पवित्र भूमी है यह.
    यहाँ पर जा कर जो दिव्य अहसास होता है वो शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता.
    बहुत ही कठिन यात्रा है.
    लेकिन जब वाहेगुरू साथ होता है तो
    कोई यात्रा कठिन नहीं रहती.
    मुझे याद रखने के लिए तहे दिल से शुक्रिया.
    ढेरों सलाम.

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  8. बड़े ही सुंदर चित्र हैं..... बहुत बढ़िया

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  9. सुबह चाय पीने ही जा रहा था कि ब्लाग वर्ल्ड पर
    आपकी नयी पोस्ट देखी । तो सोचा । चाय नाश्ता खाना
    दर्शन जी के साथ ही करते हैं । पर आज आपने नाश्ते में ही
    टरका दिया.."सुबह तैयार होकर सामने के होटल में नाश्ता किया" -
    अब रोज रोज के मेहमान को कौन खाना खिलाये ।..खैर दिल से कह रहा
    हूँ । दर्शन जी ..आप जिस तरह धार्मिक वर्णन और सचित्र भी लिखती
    हैं । इसी से मैं आपको ( बेहद ) पसन्द करता हूँ । आप जानती ही हैं ।
    दिल से मैं साधु ही हूँ । और इसीलिये हमारी दोस्ती है । वैसे मेरी ये
    उत्सुकता भी है कि आपके याददाश्त के खजाने में ऐसा तीर्थ दर्शन खजाना
    कितना भरा पङा है । ये तो आगे आप ही बताओगी । हम तो आपके साथ
    साथ चल रहे हैं ।

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  10. राजीव जी,उस दिन एक छोटे से ढाबे में खाना खाया था --जगह का नाम याद नही था इसलिए लिख नही सकी --वेसे आपकी इन मजेदार बातो से ही वृतांत लिखने में आन्नद आता है --धन्यवाद |

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  11. @रश्मि जी आगे की यात्रा और भी मजेदार है |
    @अंतर सोहिल जी धन्यवाद |
    @ललित शर्मा जी धन्यवाद |
    @नीरज जाट जी धन्यवाद कल जरुर गोविन्द -घाट में मिलेगे |
    @डॉ.साहेब लगता है नर और नारायण बदरी नाथ की यात्रा कर चुके है |

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  12. @G N shaw जी धन्यवाद --आप मेरी डल्होजी,धर्मशाला ,पालम पुर,खजियार यात्रा जरुर पड़े --धन्यवाद |

    @मोनिका जी आपका आभार |

    @शास्त्री जी आने के लिए धन्यवाद |

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  13. @ सगेबोब जी,अब में खुश हु --ब्लोक जगत एक परिवार जैसा है --कोई मेंबर अनुपस्थित हो तो खराब लगता है -धन्यवाद आपने इतने व्यस्त समय में मुझे टिप्पणी लिखकर मेरा होसला बढाया !

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  14. दर्शन कौर जी,
    दिलचस्प संस्मरण...रोचक प्रस्तुति..
    चित्र भी बहुत अच्छे हैं....
    अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !

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  15. आदरणीया दर्शन कौर जी,
    मैं आपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ जब कौर नाम पढा झट से क्लिक कर दिया बहुत अच्छा लगा आप को पढ्कर ....
    हेमकुन्ट साहिब ....बहुत पवित्र भूमी है यह.
    यहाँ पर जा कर जो दिव्य अहसास होता है वो शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता !

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  16. सुंदर यात्रा रही आपकी ... फोटो तो लाजवाब हैं ...

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  17. @संधू जी सत् श्री अकाल ! मेरा नानका भी संधू है--इस लिए आप के साथ मोह बढ़ गया है जी--मेरी यात्रा आपको पसंद आई धन्यवाद ! लिखने से लगता है की आप होकर आई है हेमकुंड सा.?

    मेरी पटना साहेब की यात्रा भी पढ़े--फरवरी अंक में !

    इसी तरह आते रहे और मेरा मित्र बने ---धयवाद |

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  18. @वर्षा जी धन्यवाद ! पहली बार आने पर आपका स्वागत है!

    @दिगंबर जी धन्यवाद !

    @सन्नी बेटा धन्यवाद |

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  19. आदरणीया दर्शन कौर जी,
    चित्र बहुत अच्छे हैं
    अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !

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  20. दर्शन जी , आप हमें मुफ्त में सैर करा रही हैं । एहसान हो गया हम पर । इतने सुन्दर स्थलों के दर्शन से हम कृतार्थ हुए जा रहे हैं । गोविन्द-घाट के चित्र बहुत मनोरम हैं।

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......