मेरे अरमान.. मेरे सपने..

गुरुवार, 10 मार्च 2011

तपोभूमि श्री हेमकुंड साहेब ( २ )


                      धर्म चलावन संत उबारन !
                      दुष्ट सभन का मूल उपारन ! 



(गुरु गोविन्दसिंह जी यमुना किनारे बेठे हुए )  

      


10 सितम्बर 2008 

रात को ऐसे नींद आई की कुछ पता ही नही चला--सब घोड़े बेचकर सो रहे थे    सुबह कुछ शोर से नींद खुली --पता चला की सब तैयार हो गए है और मुझे जगाने को शोर मचा रहे है --अपुन  तो भाई ,नींद के गुलाम आदमी है बड़ी मिन्नतो से जागते है सो;जेसे तेसे जाग ही पड़ी --कल की थकान अभी तक उतरी नही थी --फिर भी लाचारीवश फटाफट तैयार होने भाग खड़ी हुई--दिल्ली की गर्मी से बेजार हुआ शरीर यहाँ ठंडे पानी से मचल उठा --खूब जी-भर कर नहाई --वापस कमरे  में आई तो सब जा चुके थे --रेखा बेचारी सहेली का धर्म -निभाने रुक गई थी---

हम सबसे पहले लंगर -हाल में गए चाय जो पीना थी--पर वहां पूरी- छोले देखकर नियत खराब हो गई --नाश्ता किया और चल दिए गुरुद्वारा देखने     
      


( गुरुद्वारा पोंटा साहेब )




पोंटा साहिब यमुना नदी  के  पुल से खीचा चित्र )


लंगर -हाल का द्रश्य पीछे यमुना नदी )



हम गुरुद्वारा देखने चले गऐ-- यमुना नदी के किनारे बना यह गुरुद्वारा काफी बड़ा है --इतिहासकार बताते है की अक्टूम्बर १६८४ ईस्वी में सिरमोर रियासत के राजा मेदनी प्रकाश ने गुरु गोविन्द सिंह जी को अपनी रियासत में आमंत्रित किया ,उस समय गुरूजी आनंदपुर साहेब में थे ,सिरमोर रियासत की राजधानी नाहन, आन्नदपुर साहिब से पूर्व -दक्षिण दिशा मै १५० किलो मीटर दूर थी -- वे अपने साथ कई विद्वान् ,कवि और ५००सो सशस्त्र सिक्ख सैनिक और परिवार के साथ सन १६८५ मे सिरमोर पहुंचे --सिरमोर का पडोसी राज्य गढ़वाल था (जो आजकल जिला चमोली है )उसके राजा फतहशाह थे -- दोनों रियासतों में आपस में दुश्मनी थी --गुरु जी के प्रयासों से उनमे दोस्ती हुई--फतहशाह गुरूजी के मुरीद हो गए और उन्होंने सिरमोर रियासत में  एक गुरुद्वारा बनाया जिसका नाम पोंटा साहेब रखा गया --यहाँ गुरूजी ने 'जाप साहेब','सवैया ',और 'अकाल-स्तुति 'जेसी काव्य रचनाए लिखी --
   
गुरूजी यहाँ ढाई साल रहे --जिस घर में वो रहते थे वो लकड़ी का बना है  जो आज भी मोजूद है --और वहा 'बीड-साहेब' रखी है --गुरूजी को यहाँ का शांत वातावरण इतना भाता था की सारी-सारी रात कवि- दरबार सजता था --दूर -दूर से कविगण आते थे और अपनी रचनाए सुनाते थे और गुरूजी  कीमती उपहार देकर उनकी होसला -अफजाई करते थे --उनके पुत्र साहबजादे अजितसिंह का जन्म भी इसी पावन-भूमि पर हुआ ---बाद में फिर वे आनंद पुर साहिब लोट गए --

हमारी बस काफी दूर खड़ी थी--हम सब पैदल ही वहाँ चल दिए-- रास्ते में यमुनाजी का पुल पार कर के बस में बेठ गए --आगे की यात्रा के लिए --     

(यमुना नदी का पुल निशा,मै,रेखा और विमला ) 

सुबह १० बजे हम पोंटासाहिब से रवाना हुए --पर्वत- श्रंखलाए शुरू हो गई थी सारा रास्ता आलोकिक सोंदर्य से भरा पड़ा था --ऊँचे -ऊँचे पहाडो की चोटिया जिन्हें देखकर मै आनंद -विभोर हो जाती हु --खुबसुरत झरने --ठंडी हवा के झोके --बलखाते  पहाड़ी रास्ते--खुबसुरत जंगली फूल--और उनसे आती मदहोश कर देने वाली खुशबु --छोटे -छोटे ग़ाव !सर पर लकड़ी का गठर उठाए पहाडीने उनके साथ लम्बे बालो वाले छ्बरिले कुते ! क्या बात है यह एक भुक्त भोगी ही जान सकता हे दिल चाहता हे यही एक झोपड़ी बना कर रहू --कितना सुकून है यहाँ !एक फ़िल्मी गीत याद आ रहा है ---
                " ये हंसी वादियाँ ये खुला आसमा 
                   आ गए हम कहाँ ऐ मेरे साजना  "                 


(मन मोहक द्रस्यावली )


(क्या लुभावना द्रश्य है )


(पोंटा साहेब से श्रीनगर जाते हुए) 

पहाड़ो के ऊपर से देखने पर नीचे का द्रश्य यू प्रतीत होता है--मानो हम स्वर्ग में प्रवेश कर रहे है --(पर --मै स्वर्ग वासी नही --?) रास्ते में  सात प्रयाग आते है केशु ,सोन,देव,रूद्र ,कर्ण ,नन्द प्रयाग और विष्णु प्रयाग---यह प्रयाग अलकनंदा -भागीरथी -मन्दाकिनी और दूसरी नदियों के संगम पर है--हर संगम पर मन्दिर बने हुए है -- पहाड़ी घरो से निकलती सीढियां नीचे नदी के घाटो तक जाती हुई बहुत सुन्दर प्रतीत होती है-- उस पर रस्सी के बने झुला-पुल  जगह -जगह दिखाई देते है सारा द्रश्य स्वपन -सा जान पड़ता है --     


(देव प्रयाग का लुभावना द्रश्य ) 

(देव- प्रयाग अलकनंदा-भागीरथी का संगम --यह वो स्थान है जहां भगवान विष्णु ने बाली से तीन कदम भूमि मांगी थी )
  
अगला पड़ाव था हमारा श्रीनगर !यह श्रीनगर जम्मू -कश्मीर का नही है यह उतराखंड का श्रीनगर है यह शहर अलकनंदा नदी के किनारे बसा है --यह एक प्राचीन शहर है --बद्रीनाथ,केदारनाथ,गंगोत्री ,यमुनोत्री और हेमकुंड साहेब की यात्रा करने वाले तीर्थ यात्री यहाँ विश्राम करते है --यहाँ एक छोटा -सा गुरुद्वारा भी है --कभी गढवाल के पवार राजवंश के राजाओ की श्रीनगर राजधानी हुआ करती थी --इसलिए यह शहर सांस्कृतिक गतिविधियों का  केंद्र भी रहा है--यहाँ कमलेश्वर /सिध्देश्वर मंदिर है जहां असुरो के साथ संग्राम हुआ था तो भगवान विष्णु को शंकर जी ने सुदर्शन चक्र दिया था  

शाम को ५बजे हम श्रीनगर पहुँच गए--यहाँ का गुरुद्वारा बहुत छोटा है इसलिए हम ' गढवाल -विश्रांति गृह' में ठहरे --शाम को फ्रेश होकर गुरूद्वारे गए --वहाँ कीर्तन -शब्द का रस बरस रहा था --हम वही रम गए --    


(शबद का रस बरस रहा है ) 
                 
  रात को लंगर खाया और कुछ देर गप्पेमारी --यहाँ ठंडी बहुत है हमने स्वेटर निकाल लिए है --कुछ जरूरत के कपड़े घोए और पंखे में सूखने डाल     दिए--देर रात नींद आ ही गई--कल गोविन्द -घाट पहुंचना है --

जारी ---           

( यदि कोई गलती हो तो मुझे जरुर बताए :--दर्शन ! ) 

21 टिप्‍पणियां:

  1. आपके संस्मरण और सुन्दर चित्रों को पढ़ -देखकर मुझे भी अतिशय आनंद की प्राप्ति हो गयी |

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  2. काबिले तारीफ है बहुत - बहुत धन्यवाद !

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  3. हम भी आपके साथ-साथ ही चल रहे हैं, हेमकुंड साहिब के दर्शन के लिए।

    आभार

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  4. @Anter sohil ji Dhanyvaad|
    @surendra ji Dhanyvaad|
    @G.n.Shawji Dhnyvaad|
    @Llitji Dhanyvaad|

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  5. पोंटा साहब की तरफ कभी जाना नहीं हुआ । लेकिन आगे की यात्रा में आनंद आ रहा है । लग रहा है जैसे पुराने दिन वापस आ गए ।
    सुन्दर तस्वीरें ।

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  6. बहुत सुन्दर यात्रा वर्णन ...हम लोग पौंटा साहिब के पास ही ढालीपुर जगह पर काफी रहे हैं ...मेरे पापा वहाँ पोस्टेड थे ...तब मैं ६-७ वीं कक्षा में थी ..:)

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  7. बद्रीनाथ की यात्रा के समय हमने भी हेमकुंड साहब के बारे में जाना था अब वहाँ की यात्रा आपके सौजन्य से सम्पन्न हो रही है । धन्यवाद...

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  8. सुंदर तस्वीरें सुंदर वृतांत ...आभार दर्शनजी

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  9. बढ़िया...आपके साथ घूम ले रहे हैं.

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  10. अपुन तो भाई ,नींद के गुलाम आदमी है..
    (किस किस को याद कीजे किस किस को रोईये ।
    आराम बङी चीज है मुँह ढक के सोईये ।)..मजेदार ।
    हम सबसे पहले लंगर -हाल में गए चाय जो पीना थी--
    पर वहां पूरी- छोले देखकर नियत खराब हो गई --
    नाश्ता किया..रात को लंगर खाया ।..ये और भी
    मजेदार..लज्जतदार..रोचक सफ़रनामे के लिये तो
    वैसे ही मैं आपको रिपोर्टर साहब कहता हूँ ।

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  11. वो क्या कहते है न -- ' भूखे पेट भजन न होवे गोपाला' ---
    जब भक्ति भूखे पेट नही हो सकती तो यात्रा केसे संभव है --
    राजीव जी ,मित्र धर्म खूब निभा रहे है आप ? धन्यवाद |

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  12. @मोनिका जी --मेरी हर पोस्ट में आने के लिए आपका तहे दिल से शुक्र गुजार हु धन्यवाद |

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  13. @डॉ. साहेब धन्यवाद |
    @ समीर लाल जी धन्यवाद |
    @सगीता जी सुनकर अच्छा लगा की आप कभी उस पावन भूमि में रहती थी
    @सुशिल जी धन्यवाद |

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  14. बहुत ही सुन्‍दर सचित्र प्रस्‍तुति ...आभार ।

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  15. आदरणीय दर्शन कौरजी,
    नमस्कार

    बहुत ही सुन्‍दर तस्वीरों और हेमकुंड साहिब के दर्शन के लिए.....आभार

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  16. बहुत सुंदर तस्वीरें हैं....

    --------------

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.....

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  17. यात्रा बहुत ही अच्छी चल रही है। कृपया कुछ सुधार कर लीजिये:
    १. सोन प्रयाग इस रास्ते में नहीं पडता है।
    २. गंगोत्री और यमुनोत्री जाने वाले यात्री श्रीनगर से होकर नहीं जाते हैं।

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  18. नीरज जी आपकी बात से मै सहमत हु पर मै ने यात्रा हरिद्वार और ऋषिकेश से शुरू की है और चारो धाम की यात्रा भी यही से शुरू होती है लिखने में आगे पीछे हो गया है -वेसे यात्रा के समय इतने प्रयाग आ रहे थे की मेने गिने नही --और यात्रा मेने ३साल पहले की थी --छोटी -मोटी गलती तो चलती है --वेसे मेरी गलती बताने का शुक्रिया

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  19. बहुत ही सुन्‍दर सचित्र प्रस्‍तुति ..

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......