( आज आपको अपनी २००8 की हेमकुंडसाहिब की आलोकिक यात्रा का वर्णन बता रही हु चलिए ---)
8 सितम्बर 2008
आज हम वसई गुरूद्वारे के जत्थे के साथ हेमकुंड साहिब की यात्रा पर निकल रहे हे --मेरे साथ मेरी कुछ सहेलियां है और उन सबमे विशेष सखी रेखा है ---
बांद्रा-टर्मिनस से शाम ५बजे हम 'गरीब -रथ 'से दिल्ली के लिए रवाना हुए ..सफ़र बड़ा ही सुहाना था --सब जाने -पहचाने चेहरे थे --हमारे जत्थेदार थे चड्डा सा.,उनकी तरफ से ही खाने-पिने का इंतजाम था --हमने सिर्फ किराया ही अदा किया हे बाकि इंतजाम उनका ही हे --वो पिछले १० सालो से संगत को हेमकुंड साहेब की यात्रा करवा रहे हे ---
9 सितम्बर 2008
9 सितम्बर 2008
दिन के ११बजे हम दिल्ली पहुंचे --स्टेशन के बाहर ही हमारी तीन बसे खड़ी थी --उसी में सवार हम दिल्ली के निजामुद्दीन गुरुद्वारे पहुंचे --इस गुरूद्वारे का नाम हे 'मजनू का टीला' क्यों हे पता नही ?
दोपहर १ बजे हम फ्रेश होकर गुरूद्वारे के दर्शन करके ,लंगर खा- पी कर चल पड़े आगे की यात्रा पर --
( निजामुद्दीन गुरुद्वारा ,दिल्ली )
दोपहर १ बजे हम फ्रेश होकर गुरूद्वारे के दर्शन करके ,लंगर खा- पी कर चल पड़े आगे की यात्रा पर --
दिल्ली में बहुत गर्मी हे --गर्मी के कारन कुछ समझ में नही आ रहा है --रास्ते में एक रिसोर्ट पर रुके जहां हमने चाय - नाश्ता किया --कुछ फोटो खिचवाए --
रिसोर्ट से हम एक घंटे बाद निकले --बहुत अच्छा था ,थोड़ी गर्मी से राहत मिली --हमारी बस हरिद्वार पहुंची हम थोड़ी देर बाज़ार में रुके,हमारे जत्थेदार चड्डा सा. को कुछ काम था --वहां से सीधे बस ऋषिकेश पहुची --हम ऋषिकेश गुरूद्वारे पहुंचे --लंगर हमे यही करना था --पर यहाँ रुके नही फटाफट लंगर खाया और चल दिए--अब ऋषिकेश वापसी में रुकेगे--
ऋषिकेश का इतिहास :--
ऋषिकेश को आप हिमालय का प्रवेश द्वार कह सकते है--1360फीट की उचाई पर स्थित यह सबसे पवित्र तीर्थ स्थल है-यहाँ से केदारनाथ,बद्रीनाथ गंगोत्री -यमुनोत्री,हेमकुंड साहेब का सीधा रास्ता है --
कहते है की भगवान शिव ने जो जहर समुन्द्र -मंथन में पीया था यह वही स्थान है --श्री राम ने वनवास में इसी स्थान का भ्रमण किया था --तब रस्सी से एक पुल का निर्माण किया था उसे अपने अनुज लक्ष्मण का नाम दिया और यही पुल लक्ष्मण -झुला कहलाता है --इसका पुनह निर्माण 1939ई में हुआ --यह झुला 450 फिट लम्बा है और बीच में से हिलता हुआ प्रतीत होता है --इस के नजदीक ही राम -झुला भी है --यहाँ काफी मात्रा में मंदिर और आश्रम बने हुए है --भोलेनाथ की यहाँ बड़ी -बड़ी प्रतिमाए बनी है ,,,,
अब हमें रात होने से पहले पौंटासाहेब पहुंचना है --आज रात वही रुकने का प्रोग्राम है --आगे पहाड़ों की श्रंखलाए भी शुरू हो गई--निचे बहती नदिया और ऊपर हम ! कभी हम नीचे और कभी ऊपर ऊँचे -ऊँचे पहाड़!
(बस से उतारा चित्र )
उतराखंड को भगवान शिव की पहली पसंद कह सकते है --रास्ते की सुन्दर द्रशावली देखते हुए समय का कुछ पता ही नही चलता है-- रात होते ही यह पहाड़ जो दिन की रौशनी में इतने सुन्दर जान पड़ते है रात होते ही भयानक नजर आते है --पहाडो पर दिन के उजाले में ही अपने गतव्य स्थान पर पहुँच जाना चाहिए --रात को सफ़र भी करना ठीक नही है --
अब हम उतराखंड से हिमाचल प्रदेश जा रहे है---
हम रात के ११ बजे पौंटा साहेब पहुंचे --हमारी बस को एक किलो मीटर दूर खड़ी कर दी क्यों पता नही ? हमारा सामान बस में ही था --सिर्फ एक ड्रेस रख ली थी सुबह पहनने के लिए --रात को कोई सवारी भी नही मिली इसलिए हम पैदल ही गुरुद्वारे चल दिए --ठंडी हवा के झोके नींद की झपकिया ला रहे थे- ऐसा लग रहा था की कोई यही बिस्तर लगा दे --और हम गहरी नींद में सो जाए --
गुरुद्वारे पहुच कर सबसे पहले सबने लंगर खाया --भूख नही थी फिर भी थोडा -सा खा लिया --बस अब सोने को मिल जाए --हमारे कमरे दूसरी मंजिल पर थे --थकान से सबका बुरा हाल था--आज की जर्नी सबसे लम्बी थी --रेस्ट भी नही मिला था --
कल हम श्रीनगर रुकेगे -
जारी ---
इन्ही बातों के लिये आपको मेल भेजा था रिपोर्टर साहब ।
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अभी जल्दी है । इसलिये इस पोस्ट के बारे में बाद में बात होगी ।
धनोय जी ..मुझे भी आज इस यात्रा का आनंद मिल गया !संक्षिप्त में बिषय और मजेदार लगा..मेरे जैसे लोगो के लिए ! क्यों की हमें समय ही नहीं रहता ! बहुत ही सुन्दर यात्रा !धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंआदरणीया दर्शन कौर जी नमस्कार
जवाब देंहटाएंमेरे विचार में आप कुछ भूल कर रही हैं। पौंटा साहिब हिमाचल प्रदेश में है। (हरियाणा के यमुना नगर से देहरादून के बीच में)
जबकि श्रीनगर एकदम दूसरी दिशा में, हेमकुंड साहिब, बद्रीनाथ और केदारनाथ के रास्ते में आता है।
क्या आप लोग ॠषिकेश के बाद पौंटा साहिब गये थे और वापिस देहरादून और ॠषिकेश आये थे।
अगर मैं गलत हूँ तो क्षमाप्रार्थी हूँ।
प्रणाम स्वीकार करें
बहुत ही सुन्दर यात्रा| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबढिया यात्रा शुरु की आपने,हेम कुंड साहिब तो मेरी तमन्ना है इक बार जाने की। अभी तो ब्लॉग के माध्यम से यात्रा करते हैं आपके साथ। आगे रब ने चाहा तो जरुर जाएगें।
जवाब देंहटाएंथोड़ा वि्स्तार से लिंखे तो अच्छा रहेगा।
आभार
धनोए जी आपने तो घर बैठे बैठे ही हमे पावन स्थलों की यात्रा करवा दी। तस्वीरें देख कर यात्रा के लिये मन मचलने लगा है। धन्यवाद , शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंअन्तर सोहिल जी - मेने जिस पोंटा साहिब का वर्णन किया है| वो हरिद्वार -ऋषिकेश के बाद ही आया था और हमने रात वही गुजारी थी वापसी में जब हम आए तब पोंटा साहिब नही आया और हम श्री नगर से सीधे ऋषिकेश आ गए थे --हो सकता है आप ठीक कह रहे हो और हमे सिर्फ पोंटा साहिब के दर्शंन हेतु दुसरे रास्ते से ले गए होगे पर पोंटा साहिब के बाद हम सीधे श्रीनगर ही गए थे न की देहरादून या ऋषिकेश ...|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्र और रोचक यात्रा वृतांत ...
जवाब देंहटाएंइस वृत्तान्त से हम भी यात्रा का आनंद उठा रहे हैं ।
जवाब देंहटाएं@मोनिका जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएं@पतालि जी धन्यवाद
@ललित जी पहली बार आए है --आपका स्वागत है -हेमकुंड साहेब जरुर जाने का प्रोग्राम बनाए--
@राजीवजी आपका बहुत -बहुत धन्यवाद |
जवाब देंहटाएं@निर्मलाजी आप जरुर यात्रा करे|
@दिव्या जी धन्यवाद |
@G N shaw ji आपका बहुत -बहुत धन्यवाद|
@Pataliji आपका बहुत -बहुत धन्यवाद|
आपको पौण्टा साहिब के दर्शन करवाने के लिये ही बद्रीनाथ वाले मेन रूट से हटाकर देहरादून और विकासनगर होते हुए पौण्टा साहिब ले जाया गया होगा।
जवाब देंहटाएंइसी मौके पर आपने लिखा है कि अब हम उत्तर प्रदेश से उत्तराखण्ड जा रहे हैं।
कृपया इसे सुधारकर लिखिये कि हम उत्तराखण्ड से हिमाचल प्रदेश जा रहे हैं। पौण्टा साहिब हिमाचल में पडता है।
Dhanyvaad Nirj !
जवाब देंहटाएंआदरणीया दर्शन कौर जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
...........रोचक यात्रा वृतांत
मुझे भी यात्रा का आनंद मिल गया
जवाब देंहटाएंtuhade naal sanu vee darshan ho gaye
जवाब देंहटाएंमै भी हेमकुंट साहिब की यात्रा पर गया था जिसे आपकी इस यात्रा ने उन स्मृतियो को ताजा कर दिया http://onetourist.blogspot.in/2012/02/hemkunt-sahib-gurudwara.html........इतनी अच्छी यात्रा कराने के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंक्या आप हेमकुंट के साथ साथ् फूलो की घाटी भी गये थे ?
http://onetourist.blogspot.in/2012/02/vally-of-flower-uttrakhand_07.html
आदरणीय दर्शन जी नमस्कार.....
जवाब देंहटाएंयात्रा विवरण संक्षिप्त था, पर बहुत अच्छा लगा पढ़कर.... धन्यवाद !
मजनू का टीला इसलिए कहा जाता है क्यूँकि इस जगह पर मजनू नाम का एक बहुत पहुँचा हुआ सूफी दरवेश रहता था जिससे इस जगह पर गुरु नानक देव जी मिले थे। इसके आलावा 6वें गुरु, गुरु हरगोबिन्द जी भी इस जगह पर आ चुके है। बाद में सिख राज के समय भाई बघेल सिंह ने इस जगह पर गुरूद्वारे का निर्माण करवाया, जिससे पंजाब की तरफ से आने वाली सिख फौजें तथा दुसरे श्रद्धालु यहाँ रुक सकें।
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