मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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गुरुवार, 31 मार्च 2011

मुझसे न पूछो कौन हूँ मै !





          





मुझसे न पूछो कौन हूँ मै ?
मै हर क्षण बदलने वाला व्यक्तित्व हूँ 
मेरा रूप हर क्षण बदलता रहता है --
कभी उजला -उजला -सा नाम हूँ तो ,
कभी सहमी हुई ,
डरी हुई, आवाज हूँ --
कभी महत्वहीन हूँ ,
कभी समर्पिता हूँ  --
तो,कभी इशारों पर चलने वाली कठपुतली !
मेरे विविध रूप है --
कभी उबली हुई जलधारा हूँ---तो --
कभी ठंडी सहस्त्र धारा--
कभी मन की उथल -पुथल से विचलित हूँ ,तो 
कभी भार ढ़ोने वाली काया  ! 
कभी खनकते घुंघरू हूँ तो ,
कभी शांत पड़ी वीणा के तार,
कभी खिलोना हूँ खेलने वाला ,
कभी रुमाल  हूँ हाथ पोछने वाला,




मुझसे न पूछो की मै कौन हूँ --
मेरा अस्तित्व क्या है ,
मेरा व्यक्तित्व क्या है ,
अस्पष्ट है मेरा बसेरा ,
किसी की छाया में छिपा हुआ --
मेरा वजूद है --
कौन हूँ मै --
आसमान से कटी पतंग हूँ .
या --
आँख से गिरा अश्क हूँ .
या-- 
प्याले से छलक गई शराब हूँ .
या-- 
रास्ते में भटक गई प्यास हूँ .


कौन हूँ मै ?       



18 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मन की कश्मकश को अच्छे से लिखा है ...

Shikha Kaushik ने कहा…

uljhan me doobe man ki vyatha ko bhali prakar paribhashit kiya hai.

SANDEEP PANWAR ने कहा…

जाट देवता की राम राम,
आपका नया फोटो अच्छा लगा,
आप कौन हो, सब जानते है,
वाकई अच्छा लिखा है।

आशुतोष की कलम ने कहा…

विभिन्न पहलूं हो सकतें है एक व्यक्तित्व के विभिन्न समय में..इसका निर्धारण वो व्यक्ति स्वयं करता है की कौन सा पहलू उसके व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है..
कविता और लेखक द्वारा खुद से सवाल अच्छा लगा..
.........................
आशुतोष की कलम से.

केवल राम ने कहा…

मेरा अस्तित्व क्या है ,

यह एक गंभीर प्रश्न है इसका हल तलाशना कठिन है लेकिन इसका हल जिसे मिल जाता है सही मायने में वह जिन्दगी की वास्तविकता को समझ पाता है ..आपका आभार इस विश्लेष्णात्मक पोस्ट के लिए ..!

Sushil Bakliwal ने कहा…

कशमकश की शानदार अभिव्क्ति...

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

बहुत खूब।
अच्छा लगा। फोटो बदलते रहना चाहिये ताकि अगर कोई ब्लॉगर अचानक सामने पडे तो तुरन्त पहचान ले।

विभूति" ने कहा…

bhut hi muskil parshn hai ki kaun hu main?????? bhut hi khubsurti se bhaavo ko sabdo me piroya hai...

Sunil Kumar ने कहा…

खुद को तलाशती हुई रचना अर्थों को समेटे हुए अच्छी लगी , बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया!
आजकल हर व्यकित अपना मुखौटा मोम का लगाए हुए है।।
हर रोज धूप में अपना रूप बदल लेता है!
सुन्दर रचना!
अप्रैल फूल की बधाई!

Rakesh Kumar ने कहा…

आपकी 'मै कौन हूँ' की जिज्ञासा के लिए आभार.
भगवद्गीता अ.१५ श्.७ में बताया गया है
"ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातन:
मन:शीष्ठानी इन्द्रियाणि प्रक्रतिस्थानी कर्षति"
यानि जीवलोक में यह जीव मेरा ही सनातन अंश है ,और प्रकृति में स्थित होकर वह मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षित करता है.

जब हमारा मन प्रकृति में लिप्त हो बाहर की तरफ भागता है ,तो हमें अपने ना ना रूपों का मिथ्याभास होता है.कभी कटी पतंग ,कभी गिरा
अश्क ,कभी छलकी शराब , भटकी प्यास आदि आदि.
पर जब प्रकृति से हट कर मन अंदर अपने स्वरुप का ध्यान करता है तो 'सत्-चित-आनन्द' स्वरुप में ईश्वर का अंश ही जान पड़ता है.
'मै कौन हूँ' की सच्ची जिज्ञाषा ही मन को अंतर्मुखी कर ईश्वर के दर्शन कराने में गुरु कृपा से सक्षम हो पाती है.

आकाश सिंह ने कहा…

दर्शन जी वास्तव में एक इन्सान को ये नही मालूम होता है की " मैं कौन हूँ ? "
मुझे याद है की अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश से उनकी पहली प्रेस वार्ता में पूछा गया की अब आप कौन हैं?
उनका जवाब था -- मुझे नही मालूम मैं कौन हूँ ?
आपकी रचना वाकई में सभी को पढनी चाहिए |
धन्यवाद |

संध्या शर्मा ने कहा…

अस्तित्व को तलाशने की कशमकश दर्शाती इस सुन्दर रचना के लिए आपका बहुत - बहुत आभार..अनसुलझी पहेली
"कौन हूँ मैं"

मदन शर्मा ने कहा…

आदरणीय दर्शन कौर जी नमस्ते!
क्या है मेरा अस्तित्व? कौन हूँ मै बहुत सुन्दर विशलेषण किया है आपने.
यह यह एक ऐसा प्रश्न है जो सदिओं से मानव मन में गूंजता आ रहा है.
महाराज सिद्दार्थ इसी का पता लगाते लगाते गौतम बुद्ध बन गए.
एक बार फिर आपने अपनी कविता की सार्थकता सिद्ध की है.
बहुत बहुत बधाई आपको

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मन का अंतर्द्वंद ...बखूबी बयां किया आपने...

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

@sabko dhanyvaad ..

Anamikaghatak ने कहा…

bahut sundar prastuti

कविता रावत ने कहा…

manviya antardwandh kee sundar baangi....