मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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बुधवार, 27 अप्रैल 2011

!!! जुदाई !!!



                            " हर मिलन  के बाद जुदाई क्यों है  " 






    फिर आई जुदाई की रात-----?  
      मै तुमसे जुदा होना नही चाहती !
तुझको पा न सकी क्योकि ,
   यह मेरी खुदाई नही चाहती ?   

**************************************

मिलकर बिछड़ना ही था इक दिन हमदम 
तो यह मुलाक़ात क्यों हुई ? 
उल्फत में ठोकरे थी ,दर्द था ,रुसवाई थी 
तो हसीन सपने क्यों दिखाए 
क्यों हसरते जवा हुई ?
   क्यों उमंगो ने पींगे भरी ? 
जब आँखों में चाहत के बादल नही थे तो ,
क्यों अरमानो की बारिश हुई ..





         ऐसे नही फैलाउंगी मैं अपनी लाज का आंचल      
तुम्हारे निष्ठुर,नापाक कदमो तले --?
         जब जिन्दगी से मुझे कोई सोगात नही मिली 
       पल भर की पहचान का क्या मानी 'दर्शी' 
          जब तेरा साथ ही नही मिला राह दिखाने मुझे  
           तो यह 'आस' का तोहफा आखिर किस लिए 


  


      थाम लिया था हाथ जब तुने किसी का
उम्र -भर निबाहने के लिए --
    तो मेरे मन में यह तृष्णा क्यों जगाई   ?
    जब जिन्दगी की कश्ती फंसी लहरों में 
तो हंसकर -- दामन छुड़ा ,जाने लगे !
      जब साथ ही नही देना था मंजिले -राह में मुझे   
      तो यह तक्कलुफ़ का इकरार किसलिए 


    

  जख्म खाकर जिन्दगी -भर का 
     यू बिछड़ना मुश्किल हुआ मुझसे 
जब साथ नही था राहगुजर में 
  तो इश्क की इब्तिदा क्यों हुई !

        आँखों में अश्क ही देना था निर्मोही --
  तो यह हार - श्रृंगार किस लिए !
      यह हसरतो की बारात किसलिए !
    यह सांसो की सोगात किसलिए !
      यह प्यार का अहसास किसलिए ! 
       तुझे पाने की चाह किसलिए !        

26 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

शानदार प्रस्तुति है चाहत से शिकायतों की. बेचारे से उसकी मज़बूरी भी सुन लेती.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जुदाई को लेकर लिखे सभी शब्दचित्र बहुत सशक्त है!

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

बिछङे अभी जो हम कल परसों ।
जियूँगा मैं कैसे इस हाल में बरसों ।
नींद न आयी.. तेरी याद क्यूँ आयी ।
हाय लम्बी जुदाई । ओ रब्बा ! लम्बी जुदाई
हाय कटोरी देवी ..कहाँ चली गयीं ।
अपने पति बच्चों के पास है । भाई ।

Satish Saxena ने कहा…

ऐसे नही फैलाउंगी मैं अपनी लाज का आंचल
तुम्हारे निष्ठुर,नापाक कदमो तले --?

प्यार का अहसास हर किसी के लिए हो ही नहीं सकता ....
शुभकामनायें !

G.N.SHAW ने कहा…

दर्शी जी ....मुझे वे गाने याद आ गए की ......बेकरार कर दिल को उ न जाईये ...आप को हमारी कसम लौट आईये ... बहुत सुन्दर जज्बा !

Rakesh Kumar ने कहा…

मै तो हैरान हूँ परेशान हूँ आपकी दर्द भरी इस नज्म को पढकर

आँखों में अश्क ही देना था निर्मोही --
तो यह हार - श्रृंगार किस लिए !
यह हसरतो की बारात किसलिए !
यह सांसो की सोगात किसलिए !
यह प्यार का अहसास किसलिए !
तुझे पाने की चाह किसलिए !

इतना हैरान और परेशान न कीजियेगा 'दर्शी'जी कि आँखों के आँसू
ही बस में न रहें.प्लीज....

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

दिल में तीर की तरह उतर गयी आपकी ये सशक्त रचना!

संध्या शर्मा ने कहा…

चाहत....... अहसास ही काफी है ....
दर्द भरी भावुक करती रचना....

नीरज गोस्वामी ने कहा…

इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकारें
नीरज

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

जीवन के सत्‍य को बडे सलीके से बयां किया है आपने।

---------
देखिए ब्‍लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्‍वासी आज भी रत्‍नों की अंगूठी पहनते हैं।

संजय भास्‍कर ने कहा…

चाहत का बेहतरीन चित्रण
....वाह..क्या खूब लिखा है आपने।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सार्थक सवाल हैं..... दूर होने की वेदना ऐसी ही होती है..... सुंदर रचना

विभूति" ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
विभूति" ने कहा…

bhut hi gahri aur sunder rachna hai...

Dr Varsha Singh ने कहा…

जख्म खाकर जिन्दगी -भर का
यू बिछड़ना मुश्किल हुआ मुझसे
जब साथ नही था राहगुजर में
तो इश्क की इब्तिदा क्यों हुई !

वाह..क्या खूब लिखा है आपने।

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

संवेदनाओं को विस्तार देेता है आपका शब्द संसार। अच्छा लिखा है आपने।

केवल राम ने कहा…

जख्म खाकर जिन्दगी -भर का
यू बिछड़ना मुश्किल हुआ मुझसे
जब साथ नही था राहगुजर में
तो इश्क की इब्तिदा क्यों हुई !


क्या कहूँ इन शब्दों पर .....बहुत मार्मिक पंक्तियाँ हैं आपकी ....इस रचना की ..आपका आभार

aarkay ने कहा…

" छोड़ के जाने वाले तुझको इतना भी एहसास नहीं
उस के दिल पर क्या बीतेगी , जिसको ग़म भी रास नहीं "

दर्द, एहसास, भावनाएं, कसक, किसी बात की कमी नहीं है इन बोलों में , पर दर्शन जी एक स्थान पर " मानिंद " की जगहn "मानी " ( meaning ) शायद अधिक उपयुक्त रहता !

इस उम्दा रचना के लिए बधाई स्वीकार करें !

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचना..बधाई.

आकाश सिंह ने कहा…

आँखों में अश्क ही देना था निर्मोही --
तो यह हार - श्रृंगार किस लिए !
यह हसरतो की बारात किसलिए !
यह सांसो की सोगात किसलिए !
यह प्यार का अहसास किसलिए !
तुझे पाने की चाह किसलिए !
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हृदयस्पर्शी रचना के लिए बधाई |

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

" हर मिलन के बाद जुदाई क्यों है "
हम तो ठहरे परदेसी, साथ ना निभायेंगे।

Sushil Bakliwal ने कहा…

प्यार के मनोरम अहसास के बाद की सच्चाई का दर्द.
उत्तम प्रस्तुति...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मै तो हैरान हूँ परेशान हूँ आपकी दर्द भरी इस नज्म को पढकर....

ओये होए .....
दर्शी जी बधाइयाँ .....

ZEAL ने कहा…

Fantastic creation Darshan ji . I'm short of words to praise this lovely poem.

Minakshi Pant ने कहा…

दर्द को दर्शाने में कामयाब रचना |
खुबसूरत रचना |

विशाल ने कहा…

आज तो दिल छू लिया आपकी रचना ने.
बहुत दर्द है.

यह हसरतो की बारात किसलिए !
यह सांसो की सोगात किसलिए !
यह प्यार का अहसास किसलिए !
तुझे पाने की चाह किसलिए !

बहुत खूबसूरत हैं पंक्तियाँ.
दर्शी नाम को सार्थक कर दिया आपने.