मेरे अरमान.. मेरे सपने..

शनिवार, 30 अप्रैल 2011

फिर तेरी याद आई !!!



फिर तेरी याद आई 



यू तो मरते है कई लोग मुहब्बत में यारा !
मै तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगी !


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मै भी क्या शै हूँ ,क्या चीज हूँ
खाया था कभी तीर कोई
आज जब दर्द ने सताया तो ,
तेरी याद आई !!!


जब राह में फूलो के अम्बार सजाए थे तुने
मुझ पर कलियाँ बरसाई थी तुने
आज उन कांटो ने  चुभाया तो ,
तेरी याद आई !!!








तेरी बांहों के घेरे में झूलती रही बरसों
खुद को महफूज़ समझती रही हरसों
आज उसी गिरेबा को जो देखा तो,
 तेरी याद आई !!!


तुझसे ख्यालो में मिलती रही छिप -छिपकर
खुद को अपना मुकद्दर समझा किए हरदम 
वो हसीन ख़्वाब टुटा तो ,
तेरी याद आई !!!







चाँद पे जाने  का तेरा वो होंसला
मुझको पाने की तेरी वो ख्वाहिश 
उदास चांदनी को जो देखा तो ,
तेरी याद आई !!!



राह में बिछे कांटो को लांधकर पहुंची सेहरा में ,मै
फुल नही थे वो थी,  खारे- आरजू
उस तपती हुई रेत से खुद को जलाया तो ,
तेरी याद आई !!!








जब चोट लगी दिल-पे तो आंसू निकल पड़े
खुद अपने जख्मो -पे मरहम लगाया हमने
आज उसी निशाँ को देखा तो ,
तेरी याद आई !!!


बरसो खेला किए एक ही अंगना में हम
कभी होली ! कभी दिवाली ! कभी ईद मनाई हमने
आज वो खाली मका देखा तो ,
तेरी याद आई !!!







  
जला दिया था मुहब्बत का आशियाना खुद अपने हाथो
जिन्हें बनाया था हम दोनों ने बरसों
आज उस जमी को वीरा देखा तो ,
तेरी याद आई !!!


जब बूझा दिया था तू ने मेरी फडफडाती लो को
अन्धकार गहन था, दूर था सवेरा--
आज जब उड़ता हुआ धुँआ देखा तो,
तेरी याद आई !!!


जो फरेब खाए थे मैने तुझे राजदा बनाकर ' दर्शी'
उन्हें रोंदकर तुने मुझे सरेआम बदनाम किया
आज वो  दास्ताँ फिर दोहराई तो ,
तेरी याद आई !!!





.
न मिटा ठोकरों से मेरी मजार को ऐ जालिम !
जरा रहम कर ! खुदाया ,यहाँ कोई सो रहा है
अपने 'बुत ' पे परेशां तुझे देखा तो ,
तेरी याद आई !!!    
   

33 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ,वाह !
    याद के दर्द को बहुत ही खूबसूरत शब्दों में ढाला है आपने,दर्शी जी.
    इतना दर्द है कि रचना में नहीं समा रहा है.
    बहुत ही खूब.

    ये पंक्तियाँ तो दिल पे नश्तर की तरह लगी.
    जब बूझा दिया था तू ने मेरी फडफडाती लो को
    अन्धकार गहन था, दूर था सवेरा--
    आज जब उड़ता हुआ धुँआ देखा तो,
    तेरी याद आई !!!

    आपकी कलम को ढेरों सलाम.

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  2. जब चोट लगी दिल-पे तो आंसू निकल पड़े
    खुद अपने जख्मो -पे मरहम लगाया हमने
    आज उसी निशाँ को देखा तो ,
    तेरी याद आई !!!

    दर्द छलक रहा है पूरी रचना से...
    भावुक करती रचना...........

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  3. खूबसूरत शब्द, भाव और चित्र...कुल मिला कर बेजोड़ प्रस्तुति...
    नीरज

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  4. bahut sunder yadon ka eahsas
    sunder abhivyakti.
    http://unluckyblackstar.blogspot.com/2011/03/blog-post_22.html

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  5. बहुत खूबसूरत रचना .... प्रभावी अभिव्यक्ति

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  6. यादो का सचित्र संयोजन बेहद ...कोमल

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  7. वाह!! क्या अभिव्यक्ति है...बहुत सुन्दर!!

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  8. इतना दर्द है कि
    इतना दर्द है कि
    इतना दर्द है कि
    इतना दर्द है कि
    इतना दर्द है कि
    इतना दर्द है कि
    घबराकर -
    आपके लिये कोरियर से पेन किलर
    टेबलेट का एक पूरा पत्ता ही भेज रहा हूँ ।

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  9. वाह!बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई......

    जवाब देंहटाएं
  10. राह में बिछे कांटो को लांधकर पहुंची सेहरा में ,मै
    फुल नही थे वो थी, खारे- आरजू
    उस तपती हुई रेत से खुद को जलाया तो ,
    तेरी याद आई !!!

    Awesome !

    ati sundar rachna !

    .

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  11. बहुत खूबसूरत ... ये गीत याद आ गया अनायास ही ...
    आपने याद दिलाया तो मुझे याद आया ....

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  12. मै भी क्या शै हूँ ,क्या चीज हूँ
    खाया था कभी तीर कोई
    आज जब दर्द ने सताया तो ,
    तेरी याद आई !!!
    बहुत खुबसूरत रचना |

    जवाब देंहटाएं
  13. जब बूझा दिया था तू ने मेरी फडफडाती लो को
    अन्धकार गहन था, दूर था सवेरा--
    आज जब उड़ता हुआ धुँआ देखा तो,
    तेरी याद आई !!!
    बहुत सुन्दर ....आपके जज्बे को सलाम !!
    बहुत खूबसूरती से पिरोया है भावों को ...मन की वेदना की सुन्दर अभिव्यक्ति.
    हमें मालुम न था की आपके सिने में इतना दर्द भी भरा है
    जब दर्दये इश्क सताता है तो रो लेता हूँ
    जब कोई हादसा याद आता है तो रो लेता हूँ

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  14. जब चांदनी की शीतलता तपती रेत की असहनीय उष्णता में परिवर्तित हो जाये तो, यादों के सहारे ही सही, अतीत में लौट जाने की इच्छा स्वाभाविक ही है. दर्द और पीड़ा को अभिव्यक्ति देने के लिए आपने जिन बिम्बों का प्रयोग किया है वह वास्तव में बेजोड़ हैं. इनसे कविता का प्रभाव कई गुणा हो गया है .
    मर्मस्पर्शी, इस सुंदर रचना के लिए बधाई !

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  15. न मिटा ठोकरों से मेरी मजार को ऐ जालिम !
    जरा रहम कर ! खुदाया ,यहाँ कोई सो रहा है
    अपने 'बुत ' पे परेशां तुझे देखा तो ,
    तेरी याद आई !!!

    ग्रेट, बहुत ही शानदार लफ्ज़. अनंत. सुन्दर. पीड़ा. सब कुछ शामिल.
    बहुत अच्छा लगा पढकर.

    मेरे ब्लॉग पर आयें, स्वागत है.
    चलने की ख्वाहिश...

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  16. न जाने किसकी नजर लग गई है हमारी 'दर्शी'जी पर

    दर्द को बिछातीं हैं,दर्द को ओढती हैं और दर्द में ही सोतीं हैं
    शब्दों को चुन चुन दर्द में भिगोती हैं,
    आँखों की सीपियों में आँसू बने मोती हैं.


    जरा थोडा बाहर आईये 'दर्शी'जी,दर्द भरी यादों से.
    आप तो एक खूबसूरत यात्रा पर ले चलनेवाली थीं न.

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  17. न मिटा ठोकरों से मेरी मजार को ऐ जालिम !
    जरा रहम कर ! खुदाया ,यहाँ कोई सो रहा है
    अपने 'बुत ' पे परेशां तुझे देखा तो ,
    तेरी याद आई !!!
    दर्द को शब्द और चित्रों से बहुत बढ़िया तरीके से उकेरा है आपने.....

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  18. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और चित्र!
    --
    पिछले कई दिनों से कहीं कमेंट भी नहीं कर पाया क्योंकि 3 दिन तो दिल्ली ही खा गई हमारे ब्लॉगिंग के!

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  19. बढ़िया रचना के लिए शुभकामनायें आपको !

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  20. रिक्त होने पर पूर्णता की याद आई । बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ।

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  21. आदरणीय दर्शन कौर जी नमस्ते ! बहुत खुबसूरत रचना जाने क्यों बार बार पढने को दिल करता है ........

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  22. बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आकर सुंदर कविता पढ़ने को मिला जिसके लिए धन्यवाद! बहुत बढ़िया लगा!

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  23. वाह ... हर पंक्ति बेमिसाल ।

    जवाब देंहटाएं
  24. न मिटा ठोकरों से मेरी मजार को ऐ जालिम !
    जरा रहम कर ! खुदाया ,यहाँ कोई सो रहा है
    अपने 'बुत ' पे परेशां तुझे देखा तो ,
    तेरी याद आई !!!

    वाह , लाजवाब लाजवाब लाजवाब

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......