* माउन्ट आबु *
# आज से कुछ सालो पहले आबू गई थी --कुछ स्म्रातियाँ हे --
जो आपके साथ बाटना चाहती हूँ #
10 मई 1998
हम बाम्बे सेन्ट्रल से चल कर वाया अहमदाबाद होते हुए आबू रोड पहुंचे --मई का महिना था गर्मी चिलचिलाती पड रही थी--आबू रोड जेसे ही आया हम AC डिब्बे से बाहर निकले--बाहर बेहद गर्मी थी --इतनी गर्मी में बाहर निकलना बड़ा बेढंगा लगा, पर क्या करते जेसे -तेसे स्टेशन के बाहर आए -टेक्सी ली ,पहाड़ पर जाने के लिए !यहाँ से आबू पहाड़ 28 KM हे-यहां पहुंचने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर है जो यहाँ से 185km है
आबू रोड पर स्थानीय लोग माउन्ट को पहाड़ ही कहते है--यहाँ जीप चलती है --सवारी पेसे 20 रु. --आज कल ज्यादा होता होगा --
2 घंटे की उबाऊ सवारी करके हम माउंट आबू पहुंचे --जेसे -जेसे हम उपर जा रहे थे --वेसे -वेसे ठंडक बड रही थी --मोसम खुश गवार हो रहा था --वरना मै तो उसे गाली दे रही थी जिसके कहने पर हम आबू आए थे --
यहाँ आप फरवरी से जून तक और सितम्बर से दिसंबर तक आ सकते है यहाँ हमेशा सेलानियो के साथ -साथ स्थानीय लोगो का भी समावेश रहता है --कई मेलो का आयोजन होता रहता है --
यहाँ आप फरवरी से जून तक और सितम्बर से दिसंबर तक आ सकते है यहाँ हमेशा सेलानियो के साथ -साथ स्थानीय लोगो का भी समावेश रहता है --कई मेलो का आयोजन होता रहता है --
(रेगिस्तान का जहाज )
( रास्ते मे आपको ऐसे नजारे आम मिलेगे - ऊँट -गाडी )
इतिहास:--
सिरोही जिले में गुजरात की सीमा से सटी अरावली पर्वतश्रंखला दक्षिण -पश्चिम में माउंट आबू एक मात्र राजस्थान का हिल स्टेशन है --अहमदाबाद -दिल्ली मार्ग पर आबू रोड रेलवे स्टेशन है --समुद्रतल से 1220मि.की उंचाई पर स्थित माउन्ट आबू राजस्थान का एकमात्र पहाडी नगर है -सिरोही जिले मे स्थित अरावली कि पहाडियो कि सबसे ऊंची चोटी पर बसे माउन्ट आबू कि भोगोलिक स्थिति ओर वातावरण राजस्थान के अन्य शहरो से भिन्न व मनोरम है--यह स्थान राज्य के अन्य हिस्सो कि तरह गर्म नही है --यहाँ हिन्दु ओर जैन धर्म के प्रमुख तीर्थस्थल है--यहाँ का ऐतिहासिक मन्दिर ओर प्राकृतिक खुबसुरती सैलानियो को अपनी ओर खिचती है --माउन्ट आबू पहले चोहान साम्राज्य क हिस्सा था बाद मे ;सिरोहि के महाराजा ने आबू को राजपुताना मुख्यालय के लिए अग्रेजो को पट्टे पर दे दिया --ब्रिटिश शासन के दोरान माउन्ट आबू मैदानी इलाको कि गर्मियो से बचने के लिए अंग्रेज अधिकारी यहाँ आया करते थे |
माउन्ट आबू प्राचिन काल से साधु सन्तो क निवास स्थल रह है --हिन्दु धर्म के तैतीस करोड देवी -देवता यहाँ भ्रमण करते है --कहाँ जाता है कि महान सन्त विशिष्ट ने पृथ्वी से असुरो के विनाश के लिए यहाँ यज्ञ का आयोजन किया था --जैन धर्म के २४ वे तीरथनकर भगवान महावीर स्वामी भी यहाँ आए थे --उसके बाद से माउन्ट आबू जैन अनुयायियो के लिए एक पवित्र ओर पूजनीय तीर्थस्थल बन गया है !
माउंट आबू में प्रति वर्ष समर फेस्टिवल यानी ग्रीष्म महोत्सव जून में मनाया जाता है --पारम्परिक रंग -बिरंगी वेशभूषा में लोक कलाकारों द्वारा लोक नृत्यऔर संगीत की रंगारंग झाकी प्रस्तुत की जाती है --घुमर ,गैर और धाप जैसे न्रत्यो के साथ डांडिया नृत्य देख सैलानी झूम जाते है यह कार्यक्रम ३दिन तक चलता है -निक्की झील में बोट -रेस भी होती है शाम को कव्वाली और आतिशबाजी का विशेष आयोजन होता है
हमारी जीप रेलवे -होलीडे होम पर आकर रुकी --हमने २महीने पहले से ही बुकिग करवा रखी थी --बहुत बढिया रूम थे --एक रूम और एक किचिन !रेलवे के होलीडे रूम बहुत अच्छे होते है किराया ५० रु या शायद उससे भी कम -और किचिन का किराया एक दिन का ५रु वो भी तनख्वाह से ही कटता है अब हम आज सामन लेकर आएगे और सुबह नाश्ता आमलेट- ब्रेड यही खाकर घुमने निकलेगे --लंच और डिनर बाहर करना है --
थोडा आराम किया फिर शाम को तैयार होकर निक्की झील पर घुमाने निकल पड़े -- झील का मोसम बहुत अच्छा था --
(शाम को निक्की झील पर जाते हुए बच्चो की गाडी में दोनों लडकियां )
(निक्की झील पर नाव में सवार सपरिवार )
(निक्की झील )
(छोटी बेटी )
(निक्की गार्डन में पारम्परिक ड्रेस पहने दोनों लडकियां )
(आइसक्रीम का मज़ा लेते हुए )
(किसी भी हिल स्टेशन पर आइसक्रीम का मज़ा कुछ अलग ही होता है )
(निक्की झील का विहंगम द्रश्य )
(राजस्थानी वेशभूषा )
और इस तरह हमारा पहला दिन खत्म हुआ --! रात बड़ी ठंडी होती है आबू की --पूरा दिन घुमने से बहुत थक गए थे --रात को आराम जरूरी है --
कल आबू से बाहर घुमने जाएगे --
जारी ---
माउंट आबू भी घुमा दिया आपने । आनंद आ गया । icecream का भी आनंद लिया बच्चों के साथ । राजस्थानी वेश भूषा में बहुत सुन्दर लग रहे हैं दोनों ।
जवाब देंहटाएंआबू अब पहले से काफी बदल चुका है...लेकिन इसका आकर्षण अभी भी वैसा का वैसा ही है...गर्मियां आ रहीं हैं आपने पहाड़ घुमा दिया...ठंडक पड़ गयी...माउंट बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है और नक्की लेक कमाल की है...सबसे बेहतर है देलवाडा के मंदिर जिसकी सैर शायद आप अगली किश्त में करवायेंगी ...चित्र भी कमाल के खींचे है...आनंद आ गया...
जवाब देंहटाएंनीरज
अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंहमें तो वहां सबसे सुन्दर ब्रह्माकुमारियों का आश्रम लगा ।
लेकिन एक बात समझ नहीं आई कि १२०० फीट की ऊंचाई पर भी स्नोफाल कैसे हो जाता है ।
दर्शन जी आपने मेरी पुरानी याद को ताजा कर दिया| मैं भी प्रजापिता ईश्वरीय विश्वविद्यालय में 15 दिन रहकर गर्मी की छुट्टी बिताया था| कितनी मनोरम है आबू की वादियों में अवस्थित सबसे ऊँची शिखर "गुरु शिखर "..... मजा आ गया..
जवाब देंहटाएंवाकई में राजस्थानी भेष भूषा में आपके बच्चे बहुत ही सुन्दर लग रहे हैं|
दर्शन हो गए हमे भी माउन्ट आबू के..
जवाब देंहटाएंहम जा नहीं पायें तो क्या आप के ब्लॉग से घूम लिया
आदरणीया दर्शन जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यात्रा चिट्ठा.
आपकी याददाश्त की दाद देनी पड़ेगी.
तेरह साल पुरानी बातें भी चलचित्र की तरह नज़र आती है आपको.
बधाई.
आपके संस्मरणों के द्वारा हम भी भ्रमण कर लेते हैं , चित्रों से देख लेते हैं और इतिहास की जानकारी भी मिल जाती है |
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार ....
@विशाल जी ,जब आप किसी विशेष चीज मै रम जाते है तो उसकी यादे सालो नही जाती मानो कल की ही बात हो -आबू मुझे सबसे प्यारा शहर लगा !
जवाब देंहटाएं@ डॉ. साहेब वहां बर्फ भी पढ़ती है--मालुम नही था ?
जवाब देंहटाएं@धन्यवाद दिव्या जी !
जवाब देंहटाएं@धन्यवाद नीरज जी ! इतने सालो में वाकई में आबू बदल गया होगा !
@धन्यवाद आकाश जी ब्रहमकुमारियो का आश्रम वाकई बहुत अच्छा है !
@ सुरेन्द्रे जी धन्यवाद !
@ आशुतोष जी धन्यवाद !
सुंदर वृतांत .....राजस्थान का यह स्थान सच में सुंदर है....
जवाब देंहटाएंमाउंट आबू भी घुमा दिया आपने| आनंद आ गया| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंमाउंट आबू भी घुमा दिया आपने
जवाब देंहटाएंआदरणीय दर्शन कौर जी नमस्ते !
जवाब देंहटाएंपिछले हर पोस्ट की तरह ये पोस्ट भी बेमिसाल!
आपने तो घर बैठे ही माउन्ट आबू का दर्शन करा दिया. बहुत सजीव चित्रण किया है आपने. बिलकुल महसूस ही नहीं हुआ की समय का पहिया बारह साल पीछे चल रहा है.
बहुत आभार आपका.....
इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है. इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं .
आदरणीय दर्शन कौर जी
जवाब देंहटाएंचित्र अति सुन्दर और यात्रा से तो आनंद आ गया अब रात हो गई है कल आता हु आभार आपका
मैं भी गई हूं माउंट आबू...दोबारा आपने सैर करवा दी...बेटियां पारम्परिक वेशभूषा में बहुत अच्छी लग रही हैं...
जवाब देंहटाएंआप भी आइए....
आपके संस्मरणों के लिये बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंचित्र भी बहुत अच्छे हैं।
आज भी आपने कई गलतियां की हैं-
जवाब देंहटाएं1. ऊंट की बैलगाडी (यह बैलगाडी नहीं बल्कि ऊंटगाडी है।)
2. इतिहास में आपने लिखा है कि माउंट आबू नीलगिरी की पहाडियों में है। यह नीलगिरी नहीं बल्कि अरावली की पहाडियों में बसा है।
कृपया इन गलतियों को सुधारें, खासकर दूसरी वाली को तो जरूर।
बाकी यात्राएं हमेशा अच्छी होती हैं। यह भी एक सदाबहार यात्रा रही होगी। अगले भाग का इंतजार है।
@ दराल साहब,
माउंट आबू 1200 फीट नहीं बल्कि 1200 मीटर पर बसा है। और वहां स्नोफाल नहीं होता। कभी नहीं।
Thak you for sharing your memories.Thanks for the post.
जवाब देंहटाएंKhoobsoorat chitron se saji Mount Abu ki yaatra lajawaab lagi ....
जवाब देंहटाएंMAM BAHUT HI BADHIYA ,CAMEL KE UPAR KYON NAHIN BAITHE AAP MAIN EK BAAR JAIPUR GAYA THA TAB BAITHA THA BADA HI MAJA AAYA THA,WAISE HAMESHA KI TARAH BAHUT HI BADHIA JOURNY,MAJA AA GAYA PADHKE AAGE JALDI LIKHIYE WAIT KAR RAHA HOON,PICTURE CHANGE KARNE KE LIYE THANKS MAM BYE.
जवाब देंहटाएंरोचक वृतांत और उम्दा तस्वीरें..
जवाब देंहटाएंnice कृपया comments देकर और follow करके सभी का होसला बदाए..
जवाब देंहटाएंमाऊन्ट आबू की निक्की झील घूमना रोचक लगा ।
जवाब देंहटाएंअगली तस्वीर सनराइज और सनसेट की प्रतिक्षा में...
भ्रष्टाचार के खिलाफ जनयुद्ध
माउण्ट आबू का आपका यात्रा संस्मरण बहुत रोचक लगा और चित्र भी बहगुत मनमोहक लगे!
जवाब देंहटाएंकभी अवसर मिला तो हम भी यहाँ घूमने अवश्य जाएँगें!
vah bahut sundar aap ne to pura bhraman hi kara diya aap ne
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna
bahut bahut dhanywaad
आपके साथ हम भी घूम लिए आबू.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया.
ऊँट भी अच्छा है .
mei b gya tha.......2004 me.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत दर्शन कराये माऊंट आबू के आपने.बिटियों को देखकर भी बहुत अच्छा लगा.आपका सहज वर्णन प्रवाहमय व रुचिपूर्ण है.
जवाब देंहटाएंलगता है आप नाराज हैं.अपराधी को भी दंड देने से पहले बताया जाता है उसके अपराध के बारे में.मेरे ब्लॉग पर आने में इतनी देर करना क्या अच्छी बात है.
काफी कुछा याद दिलाया इस पोस्ट ने ! शुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंदर्शन जी मैं माउन्ट आबू पार्ट-२ का इन्तेजार कर रहा हूँ |
जवाब देंहटाएंआपकी यात्रा मंगलमय हो |
और आपके नन्हे मुन्हे राही को शुभ प्यार जरुर बोल दीजियेगा |
@ हा आकाश जी बच्चो के एक्जाम की वजय से थोडा लेट हो गया --कल पोस्ट का दुगी --आपको इन्तजार है सुनकर अच्छा लगा धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंमजा आ गया। आपके बहाने हम भी घूम लिये।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
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प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्यादा खतरनाक है ?
धनोय जी सपरिवार चित्र बेहद अच्छे लगे ! अभी तक राजस्थान के सीमा में नहीं गया हूँ !अब प्लान बनाने होंगे ? बहुत सुन्दर ...धन्यबाद
जवाब देंहटाएं@जरुर जाए साव साहेब,जाने से पहले होलीडे होम बुक करवाना न भूले
जवाब देंहटाएंnice shots
जवाब देंहटाएंजीवंत वर्णन, सजीव तस्वीरें.
जवाब देंहटाएंआदरणीय दर्शन कौर जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
सुन्दर चित्र
......आपके साथ हम भी घूम लिए माऊंट आबू
जाट देवता की राम-राम,
जवाब देंहटाएंमुझे तो झील की सवारी देख कर आन्नद आ गया।
आप नक्की झील में बैठे और हम डल झील में आप 1998 की बाते बता रही है, इसी साल 2011 वहाँ तापमान -4 तक लुढक गया था। हाँ छोटे भाई नीरज जाट जी ने ये सही कहा कि वहाँ स्नोफ़ाल नहीं होता है।
झील तो निक्की ही लगी जी...:)
जवाब देंहटाएंअब आगे चलते हैं आपके साथ
दर्शन कौर जी , धन्यवाद माउंट आबू की सुंदर सैर कराने के लिये .........मै भी दो साल पहले वहां गया था और वहां का यात्रा वृतांत जल्द ही लिख रहा हूं .........वैसे ऐसा नही लगा कि माउंट आबू में जो आपने देखा हमने उससे कुछ अलग देखा पर पता नही क्या बात है इन पहाडो को जब भी देखो अलग ही नजर आते हैं
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है पर झील का नाम निक्की नहीं नक्की है
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