जय शिव-शम्भु
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शिव शंकर को जिसने पूजा उसका ही उद्धार हुआ।
अंत काल को भवसागर में उसका बेडा पार हुआ॥
अंत काल को भवसागर में उसका बेडा पार हुआ॥
शिव मेरे अराध्य देवता हैं--
शिव बिन मैं कुछ नहीं ..ऐसा मै मानती हूँ ...
आज सावन का पहला सोमवार हैं ...
शिव को शंकर, भोले, महाकाल, निलकंठेश्वर और भी कितने ही नामों से पुकारा जाता है। शिव ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनका लिंग के रूप में पूजन किया जाता है। माना जाता है कि शिवजी ने कभी कोई अवतार नहीं लिया। मान्यता है कि शिवजी का शिवलिंग के रूप में पूजन करने से जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। कई लोग नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व आराधना कर व कुछ लोग नियमित रूप से मंदिर जाकर शिवलिंग को नैवेद्य अर्पित करते हैं।
सावन मैं शिव पूजा का अपना ही महत्व है
3 जुन 2011 को मैं महाकाल के दर्शन हेतु उज्जैन गई थी ---
उज्जैन भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो क्षिप्रा नदी के किनारे बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर १२ वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है । उज्जैन मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इन्दौर से ५५ कि मी पर है. उज्जैन के प्राचिन नाम अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा आदि है। उज्जैन मन्दिरो की नगरी है। यहा कई तीथ स्थल है। इसकी जनसंख्या लगभग ४ लाख है।
उज्जयिनी की ऐतिहासिकता का प्रमाण ई. सन600 वर्ष पूर्व मिलता है। तत्कालीन समय में भारत में जो सोलह जनपद थे उनमें अवंति जनपद भी एक था। अवंति उत्तर एवं दक्षिण इन दो भागों में विभक्त होकर उत्तरी भाग की राजधानी उज्जैन थी तथा दक्षिण भाग की राजधानी महिष्मति थी। उस समय चंद्रप्रद्योत नामक सम्राट सिंहासनारूत्रढ थे। प्रद्योत के वंशजों का उज्जैन पर ईसा की तीसरी शताब्दी तक प्रभुत्व था
शिव की पूजा सफल हैं
दिल्ली के दास एवं खिलजी सुल्तानों के आक्रमण के कारण परमार वंश का पतन हो गया. सन् १२३५ ई. में दिल्ली का शमशुद्दीन इल्तमिश विदिशा विजय करके उज्जैन की और आया यहां उस क्रूर शासक ने ने उज्जैन को न केवल बुरी तरह लूटा अपितु उनके प्राचीन मंदिरों एवं पवित्र धार्मिक स्थानों का वैभव भी नष्ट किया। सन १४०६ में मालवा दिल्ली सल्तनत से मुक्त हो गया और उसकी राजधानी मांडू से धोरी, खिलजी व अफगान सुलतान स्वतंत्र राज्य करते रहे। मुग़ल सम्राट अकबर ने जब मालवा अधिकृत किया तो उज्जैन को प्रांतीय मुख्यालय बनाया गया. मुग़ल बादशाह अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ व औरंगजेब यहाँ आये थे।
सन् १७३७ ई. में उज्जैन सिंधिया वंश के अधिकार में आया उनका सन १८८० ई. तक एक छत्र राज्य रहा जिसमें उज्जैन का सर्वांगीण विकास होता रहा। सिंधिया वंश की राजधानी उज्जैन बनी। राणोजी सिंधिया ने महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोध्दार कराया। इस वंश के संस्थापक राणोजी शिंदे के मंत्री रामचंद्र शेणवी ने वर्तमान महाकाल मंदिर का निर्माण करवाया. सन १८१० में सिंधिया राजधानी ग्वालियर ले जाई गयी किन्तु उज्जैन का संस्कृतिक विकास जारी रहा। १९४८ में ग्वालियर राज्य का नवीन मध्य भारत में विलय हो गया।
वर्तमान उज्जैन नगर विंध्यपर्वतमाला के समीप और पवित्र तथा ऐतिहासिक क्षिप्रा नदी के किनारे समुद्र तल से 1678 फीट की ऊंचाई पर 23डिग्री.50' उत्तर देशांश और 75डिग्री .50' पूर्वी अक्षांश पर स्थित है।
महाकालेश्वर मंदिर
उज्जैन के महाकालेश्वर की मान्यता भारत के प्रमुख बारह ज्योतिर्लिंगों में है।महाकवि तुलसीदास से लेकर संस्कृत साहित्य के अनेक प्रसिध्द कवियों ने इस मंदिर का वर्णन किया है। लोक मानस में महाकाल की परम्परा अनादि है। उज्जैन भारत की कालगणना का केंद्र बिन्दु था और महाकाल उज्जैन के अधिपति आदिदेव माने जाते हैं।
पर हमे अंदर कैमरा ले जाने नही दिया न मोबाइल ही अंदर ले जा सके----
आज काफी भीड़ थी और सबको दूर से ही दर्शन करा रहे थे--पर भाई की वजय से हमने अंदर जाकर रुद्राभिषेक किया----
महाकालेश्वर
सावन मैं शिव की आराधना करने से कहते हैं की सभी मनोरथ पुरे हो जाते हैं---सावन महीने को भगवान शंकर का महीना कहा जाता है। भगवान शिव की आराधना सावन महीने में उत्साह और उमंग से की जाती है। सावन मास के पहले दिन शिवालयो और मठों में रूद्राभिषेक का दौर शुरू हो जाता है।भारत के सभी शिवालयों में श्रावण सोमवार पर हर-हर महादेव और बोल बम बोल की गूँज सुनाई देती है । श्रावण मास में शिव-पार्वती का पूजन बहुत फलदायी होता है। इसलिए सावन मास का बहुत महत्व है।भगवान भोलेनाथ को प्रिय श्रावण मास में उनकी जितनी आराधना, भक्ति की जाए कम है। उनकी भक्ति आराधना में ही मानव जीवन की सही कुंजी है जो मनुष्य को अपने सारे पापों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष का रास्ता दिखाती है। सावन का महीना, बारिश की फुहारों के बीच शिव पर चढ़ाए जा रहे बिल्वपत्र, धतूरा, दूध और जल इस बात के साक्ष्य है कि सावन में किया गया प्रभु शिव का गुनगान ही मनुष्य को अपने कष्टों से मुक्ति दिलाकर मन को अपार शांति से भर देगा।
(शिव जी की 81 फिट की विशाल प्रतिमा )
खज्जियार (हिमाचल प्रदेश )
घ्र्र बैठे उज्जैन के तीर्थ स्थानों का तथा भगवान शिव शम्भू जी के दर्शन कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद... महाकालेश्वर मंदिर तथा सभी चित्र सुन्दर हैं...
जवाब देंहटाएंkhubsurat prstuti...
जवाब देंहटाएंसुन्दर एवं ज्ञानप्रद आलेख ! बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबोल बम बम बम
जवाब देंहटाएं81 फ़ीट की शिव प्रतिमा से आपकी हाईट थोड़ी ही कम है:)
बढ़िया जानकारी ....
जवाब देंहटाएंआभार.
सुन्दर चित्रों के साथ खूबसूरत प्रस्तुति की है आपने.
जवाब देंहटाएंउज्जैन के इतिहास का सार्थक व रोचक वर्णन आपकी पोस्ट के माध्यम से जानने को मिला.
शिव का अर्थ ही 'कल्याणकारी' है.
'कल्याण' या शिव के पूजन से सदा कल्याण ही होगा.
'कल्याण' की भावना अनुपम है,विलक्षण है.
हर जीव कल्याण ही चाहता है,फिर वह चाहे भूत ,प्रेत आदि ही क्यों न हों.इसलिये शिवगणों में भुत,प्रेत,पिशाच आदि कोई भी हो सकता है,जिसका मकसद केवल कल्याण हो.
'शिव' में और भी अनेक गहन भावार्थ निहित है,
जितना 'शिव' का ध्यान किया जाये उतना ही साक्षात्कार भी होता जाता है.
आपकी शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
भक्तिमय माहौल बना दिया है आपने,
जवाब देंहटाएंसाभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
दर्शन जी आज सावन है और शिव भक्ति का समय भी ...साथ ही चातुर्मास भगवन शिव का प्रिय भी....ऐशे में शिव भगवन की भक्ति से भरी आपकी पोस्ट ने फिर याद दिलाया शिव ही सुन्दर, शिव ही सत्य. ..... हां एक बात.....उजैन बाद में भी मगध साशन में रहा था...४०० वीं शताब्दी में ... विक्रम वेताल की कहानी ... और रजा भोज की सिहासन बत्तिशी के राजा चंदार्गुप्त विक्रमादित्य ने पटना से हट कर उज्जैन को मगध की राजधानी बनाई थी...यही फिर उनके दरबार में कालिदास भी थे.....उन्ही के नवरत्न की नक़ल पैर अकबर ने नवरतन रखे थे अपने दरबार में..
जवाब देंहटाएंसावन के पहले सोमवार की शुभकामनायें ... अच्छी जानकारी देती पोस्ट
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव , पवित्र महाकालेश्वर महाराज के सुबह-सुबह सावन के सोमवार को पुण्य दर्शन से अभिभूत हुआ जय शंकर
जवाब देंहटाएंसुन्दर जानकारी! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंDarshan ji aapne ujjain ke baare me bahut achchi jankari di hai.achchi post.shukriya.
जवाब देंहटाएंsomvar ko bhole baba ke darshan karaane ke liye shukriyaa
जवाब देंहटाएंआदरणीय दर्शन जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
अच्छी जानकारी देती पोस्ट
......श्रावण मास की हार्दिक शुभकामनायें !
जय भोलेनाथ
जानकारी , ज्ञान और ध्यान का श्रेष्ठ संगम है आपकी यह पोस्ट ......!
जवाब देंहटाएंwah sawan ke mahine ke shuruat me itni pyari si post wo bhi shiv ko samrpit....:)
जवाब देंहटाएंbaba mahadev ke nagri se main bhi belong karta hoon....mera hometown Deoghar barah jyotirlingo me se ek hai...mujhe pata hai iss sawan ke mahine me kaise bhakt baba ki mahima se khush rahte hain..aur kaise khud ko bhula dete hain....:)
bol bum!!
रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारी से भरा हुआ एक भक्तिमय आलेख. आकर्षक चित्र तो आलेख की शोभा को और भी चार चाँद लगा गए . सच में सावन केवल मौज मस्ती का ही समय नहीं बल्कि शिवभक्ति में लीन होने का भी समय है !
जवाब देंहटाएंइस सुंदर सामयिक आलेख के लिए बधाई, दर्शी जी !
इतनी सहजता से आपने ये सारी जानकारी और विस्तृत विवरण प्रस्तुति किया आभार ।
जवाब देंहटाएंसबको सावन की हार्दिक शुभ कामनाए ..
जवाब देंहटाएंजय जय भोले,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
उज्जैन के इतिहास का सार्थक व रोचक वर्णन... सावन की हार्दिक शुभ कामनाए ..
जवाब देंहटाएंॐ नमः शिवाय शिव ही सत्य है!
जवाब देंहटाएंजय जय भोले,
जवाब देंहटाएंसावन के पहले सोमवार के दिन ही महाकाल भगवान का दर्शन हो गया जय-जय शिवशंकर .........आपका बहुत -बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख ! बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंदर्शन जी आप इन्हें दो पोस्ट बना सकती थी लेकिन आपने इन्हें आपस मई ठीक से जोड़कर भी ठीक ही किया है.
जवाब देंहटाएंहम घूम आये एक छोटी सी यात्रा से, श्रीखण्ड महादेव से,
जवाब देंहटाएंमहाकालेश्वर के पास से दो बार जा चुका हूँ,
अबकी बार मिल कर ही आना है