"नहीं "?
"क्या मैं आपको जानती हूँ "?
"पता नहीं " उसने कहा |
"फिर ?"
"आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ " उसने कहा |
"क्यों " मैने पूछा |
"बस यू ही"
अजीब आदमी हैं, दोस्ती ऐसे मांग रहा हैं..जैसे परचुने की दूकान पर नमक खरीद रहा हो..दोस्ती नहीं हुई कोई वस्तु हो गई हो की दाम दो और लो ? जैसे मैं उधार ही बैठी हूँ दोस्ती करने को ..' ऊंह..हूँ' .. मैने सोचा --मैं ऐसे नेट प्रेमियों को अच्छी तरह से जानती हूँ जो लडकियों को देखकर लार टपकाते रहते हैं ..मुझे ऐसे मंजनू बिलकुल पसंद नहीं ???
मैं २३ साल की एक खुबसुरत लडकी हूँ ..ऍम.बी.ऐ.( f ) की स्टुडेंट हूँ ..अक्सर नेट पर अपना प्रोजेक्ट बनाती रहती हूँ ..कभी -कभी चेटिंग भी कर लेती हूँ..सिर्फ अपने दोस्तों से जिनको मैं जानती हूँ .जो मेरे साथ पढ़ते हैं, ..अनजान लोगो को मुंह नही लगाती ?
उस दिन 'उसका 'अचानक से आया रिक्वेस्ट मैं भूल चुकी थी --पर शायद वो नहीं भुला था | २-३ दिन बाद उसने फिर रिक्वेस्ट भेज दी --मैने फिर टाल दिया ,पर ज्यादा दिन मैं उसे नही टाल सकी --मुझे उसको एक्सेप्ट करना ही पड़ा --
उस दिन 'उसका 'अचानक से आया रिक्वेस्ट मैं भूल चुकी थी --पर शायद वो नहीं भुला था | २-३ दिन बाद उसने फिर रिक्वेस्ट भेज दी --मैने फिर टाल दिया ,पर ज्यादा दिन मैं उसे नही टाल सकी --मुझे उसको एक्सेप्ट करना ही पड़ा --
धीरे -धीरे मैं उससे चेटिंग करने लगी --वह बहुत दिलचस्प इंसान था --उसकी बाते मुझे बहुत अच्छी लगती थी --उससे बात करके मैं 'फ्रेश' हो जाया करती थी | वह बहुत अजीब आदमी था ,दोस्तों पर जान देता था --जिंदादिल था ! रोतो को हंसा दे ,उसमें वो हुनर था .|.उसको अपने दोस्तों की कई कविताए मुंह जवानी याद थी --जिन्हे वो अक्सर मुझे सुनाया करता था --कभी-कभी मैं बोर हो जाती थी, पर उससे कुछ नहीं कहती --कभी -कभी वो थर्ड क्लास बाते करता था जो मुझे पसंद नहीं थी-- लेकिन मेरे मना करने पर वो बंद भी कर देता था --उसकी यही अदा मुझे पसंद थी ...| और मैं उसपर मरती थी ?
वो दोस्तों का दीवाना था ..मेरा नहीं ? मैं; जिस पर सारा जहाँ फ़िदा था --मेरी एक झलक देखने को लोग उतावले रहते थे --? मुझसे दोस्ती करने को कई लडके कतार में खड़े रहते थे --? पर मैं किसी को भाव नही देती थी --मैं तो सिर्फ उसकी दीवानी थी --लेकिन, उसको मेरी परवाह ही नही थी --वह तो बस बातो का राजा था !
कभी -कभी लगता था की क्या उसने मुझसे सिर्फ बातो के लिए ही दोस्ती की हैं ? या अपना टाइम -पास करने के लिए ? तब मन बहुत उदास हो जाता था ,कई बार मैं उससे नाराज हो जाती --फोन करना बंद कर देती --चेटिंग नहीं करती, उसको ताने देती,झगड़ा करती; तब वो परेशांन हो जाता ! माफ़ी मांगता! आगे से ऐसा नहीं होगा कहता; मैं अक्सर उसको माफ़ कर देती क्योकि मै खुद उसके बगैर रह नही पाती थी | लेकिन वो अपनी आदत से मजबूर था --कुछ दिन ठीक चलता फिर वही हरकते शुरू हो जाती जो मुझे पसंद नहीं थी |
वो एक सरकारी संस्था में नौकरी करता था ..बहुत व्यस्त रहता था ..मैने उसको तस्वीरों में देखा था --ठीक - ठाक ही लगता था --न बहुत सुंदर न भद्दा --उसके बारे में ज्यादा जानती नही थी --वैसे मुझे भी परवाह नही थी --मेरी सगाई हो चुकी थी --कुछ दिनों बाद मेरी शादी होने वाली थी --मेरे होने वाले पति बहुत अच्छे थे -- मैं उनसे संतुष्ट थी ..वो मुझे बहुत प्यार करते थे ..मेरी हर बात मनते थे ..
पर अचानक इसके आने से सब गड़बड़ हो गई --शायद मैं उससे प्यार करने लगी थी,पर वो मुझसे प्यार नहीं करता था ? जब भी मैं उससे पूछती --तो वो बहाने बनाने लग जाता था---"प्यार क्या होता हैं ?" वह अक्सर पूछता था? और मैं निढाल- सी कुछ कह नहीं पाती थी --कैसे उसको अपनी भावनाए समझाऊ --शायद वो समझकर भी नासमझ बनता था--
पर यह पक्का था की मैं उससे प्यार करने लगी थी ! मुझे हरदम उसकी याद आती थी-- भूख खत्म हो गई थी --जिस दिन उसका फोन नहीं आता तो मन बैचेन रहता था, पर वो मस्त रहता --मैं गुस्सा होती और वो हंसता --मुझे कविताए सुनाता हमेशा कहता --"लाइफ को इन्जाय करो " पर उसके बगैर मेरी लाइफ सूनी थी मैं कैसे उसे समझाती ? मैं सम्पूर्ण रूप से उसके मोहपाश में बंध चुकी थी ----?
हम कभी मिले नहीं थे --न हमने कभी एक दुसरे को देखा था --वो असल में कैसा होगा ! मैने कभी सोचा ही नही था ! वो कैसा भी हो ; मैरे मन ने उसे स्वीकार कर लिया था --हम काफी करीब आ चुके थे ! बहुत सी बाते जो सिर्फ पति -पत्नी ही करते हैं हम एक दुसरे से अक्सर करते रहते थे --कई बार उसकी कुछ अनगर्ल बाते मुझे पसंद नही आती थी पर अनमने भाव से मैं सुनती थी -- और वो समझता था की मुझे ऐसी ही बाते पसंद हैं -- वो दुने जोश से करता था -- कई बार मना भी कर देती थी जिसे वो एक अच्छे बच्चे की तरह मान भी जाता था-- वादा करता था की आगे से कभी नही करूँगा ?पर जल्दी ही भूल जाता था -- फिर वही बातो का लम्बा सिलसिला -- कविताओं का न खत्म होने वाला राग ! पर मुझे उसकी हर चीज़ पसंद थी---?
मैं चाहती थी की वो रोमांटिक बाते करे ; मुझसे प्यार भरी मिठ्ठी बाते करे ? पर शायद वो यह करना जानता ही नहीं था --ज्यादा जोर देती तो वो मुझसे बात करना ही छोड़ देता , तब न फोन करता न एस. ऍम. एस. करता --अक्सर कह्ता-- "व्यस्त हूँ ?"
जीवन यू ही गुजरता रहा ---मै जहां भी जाती उसको अपने सामने पाती --अपने होने की एक -एक पल की खबर उसको देती--पर मानो उसे मेरे प्यार में रूचि थी ही नहीं --जब उसकी इच्छा होती बात करता --जब इच्छा होती मेसेज करता; मेरी भावनाओ की उसको कोई कद्र ही नही थी? कई बार सोचा उसे छोड़ दू --फिर डर जाती --कैसे रहूंगी उसके बगैर --?
एक बार तो उसे F.B. से निकलने को कह भी दिया और वो तुरंत तैयार भी हो गया --और निकल भी गया---मानो कुछ हुआ ही नही हो ? पर लाख कोशिश के बावजूद भी मैं उसे दिल से निकाल नही सकी --पता नही किस मिटटी का बना हुआ था ? सीने में दिल ही नही था उसके ? यदि था भी तो मेरे लिए धडकता नही था ?
ऐसे ही समय दौड़ता रहा --हम बहुत नजदीक आ गए थे -- मै उससे शादी करना चाहती थी ,पर वो हमेशा मुझे टाल देता था -- एक दिन मैने उससे जबरदस्ती की तो अचानक वह बोला--मैं शादीशुदा हूँ ? एक साथ दो औरतो से प्यार नहीं कर सकता ? " धडाम "--- मैं धरा पर आ गिरी ?
वो मुझसे प्यार नही करता था ?शायद वो अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था --? उसने सिर्फ मुझसे दोस्ती की थी---सिर्फ दोस्ती ???
उसने कभी मुझसे कोई वादा नही किया ? न मिलने की कोशिश की --शायद वो बिना देखे मेरे इस अंधे प्यार को स्वीकार ही नहीं कर पा रहा होगा -- ? कैसे कोई बिना देखे किसी को प्यार कर सकता हैं ?यही सोचता होगा --पर मैने उसको सच्चे दिल से प्यार किया था ???
एक बार तो उसे F.B. से निकलने को कह भी दिया और वो तुरंत तैयार भी हो गया --और निकल भी गया---मानो कुछ हुआ ही नही हो ? पर लाख कोशिश के बावजूद भी मैं उसे दिल से निकाल नही सकी --पता नही किस मिटटी का बना हुआ था ? सीने में दिल ही नही था उसके ? यदि था भी तो मेरे लिए धडकता नही था ?
उसको निकलने का बोल तो दिया ,पर इस गुनाह की सज़ा मैने ही पाई --उसके न रहने से जो स्थान रिक्त हुआ --वो मुझसे देखा नही गया --मैं विचलित हो गई ---उसको देखे बगैर मैं रह ही नही सकती थी --एक दिन भी निकालना मुश्किल हो गया --आखिर तंग होकर मैने उससे कहा --"प्लीज ,मुझसे बाते करो , मैं पागल हो जाउंगी "? उसने तुरंत जवाब दिया --" I love you" !मेरा सम्पूर्ण व्यक्तित्व खिल गया --आँखों से आंसू बह निकले --ऐसा लगा मानो -कण -कण जीवित हो उठा हो ! वो भी मुझे प्यार करता हैं ? मन मयूर नाच उठा --तन मन में तरंगे दौड़ने लगी --एक सम्पूर्णता से मेरी बगिया खिल उठी ...
ऐसे ही समय दौड़ता रहा --हम बहुत नजदीक आ गए थे -- मै उससे शादी करना चाहती थी ,पर वो हमेशा मुझे टाल देता था -- एक दिन मैने उससे जबरदस्ती की तो अचानक वह बोला--मैं शादीशुदा हूँ ? एक साथ दो औरतो से प्यार नहीं कर सकता ? " धडाम "--- मैं धरा पर आ गिरी ?
वो मुझसे प्यार नही करता था ?शायद वो अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था --? उसने सिर्फ मुझसे दोस्ती की थी---सिर्फ दोस्ती ???
उसने कभी मुझसे कोई वादा नही किया ? न मिलने की कोशिश की --शायद वो बिना देखे मेरे इस अंधे प्यार को स्वीकार ही नहीं कर पा रहा होगा -- ? कैसे कोई बिना देखे किसी को प्यार कर सकता हैं ?यही सोचता होगा --पर मैने उसको सच्चे दिल से प्यार किया था ???
आजतक उसको भुला नही पाई हूँ --वह मेरा पहला प्यार था जिसे भुलाना नामुमकिन ही नही असम्भव था --मेरी यही भूल थी की मैने उसको प्यार किया ? और उसकी यह की उसने मुझसे दोस्ती की--पर मैं दोस्ती कर नही सकी ---????
"परछाई के पीछे भागने वाले ओढ़े मुंह गिरते हैं न "
काश,उस दिन तुम मिले ही नहीं होते ???
24 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना..
प्यार और दोस्ती की सुन्दर अभिव्यक्ति...सार्थक पोस्ट...
अच्छे से भावनाओं को उकेरा है ...
शुभकामनायें.
बहुत सुन्दर कथा प्रस्तुति।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
क्या कहू, कैसे कहू , कितनी सहजता से सामान्य से लगने वाले विषय को जीवंत बना दिया। प्रतिक्रिया के लिये शब्द ढुढने पड रहे है। बहुत ही सुन्दर एवं सधी हुई अभिव्यक्ति जो सीधे सीधे आईने की ओर ईशारा करती है। अगर एक शब्द में कहना हो तो कहुंगा ''क्या कहू'' हां यही कहूंगा।
अच्छी कहानी .. जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ !!
आभासी फ़ंतासी को आपने अच्छे उकेरा है। शुभकामनाएं।
अच्छी पोस्ट....
अच्छी प्रस्तुति !
"परछाई के पीछे भागने वाले ओढ़े मुंह गिरते हैं न "
बात तो सही है, पर इस कहानी में सटीक नहीं बैठती...
क्योंकि किसी से प्यार करना और साथ जिंदगी काटना दो अलग बातें हैं...!
कभी कभी हमें सिर्फ किसी का presence ही ख़ुशी देता है...
और शायद ये गलत भी नहीं है..!
एक प्यारी सी रचना.....
sunder prastuti..........
दर्शन जी , बहुत सुन्दर कहानी है । प्यार तो अचानक ही हो जाता है । अक्सर परछाईयाँ मन को आकृष्ट कर लेती हैं।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना
दर्शन जी आपकी इस कहानी में उभय पक्ष की इमानदारी स्पष्ट दिखाई देती है. नायक का दोस्ती के रिश्ते में विश्वास और नायिका का प्रेम में डूब जाना विसंगति जरूर पैदा करते हैं लेकिन इसके लिए किसी को दोष नहीं दिया जा सकता. प्रेम, दोस्ती और रिश्तो को नयी परिभाषा देती आपकी कहानी बार बार पढ़ने और समझने योग्य है.
कटु सत्य .......ऐसा पहले भी होता देखा है ....हो सकता है कि आपकी कहानी मात्र आभासी दुनिया का सच हो ....पर ऐसे असल कि दुनिया में ज्यादा होते देखा गया है ...आभार
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.कहानी की लम्बाई देख कर एक बार तो घबराई.मात्र कमेंट्स दे कर अपना लिंक छोड़ना या सामने वाले के ब्लॉग को 'वाह वाह' करके निकल जाना मेरा उद्देश्य कभी नही रहा............ पढ़ना शुरू किया.और....अंत तक पहुँच गई.:)
एक बहाव में बहती चली गई और....बहना अच्छा लगा.मेरा आपके ब्लॉग पर आना व्यर्थ नही गया. कुछ तो है ...और पढ़ना चाहूंगी.अपने दिल के बेहद करीब रचनाओं का लिंक दीजियेगा मुझे प्लीज़.मैंने उन्हें सबसे पहले पढ़ना पसंद करूंगी आज ही.
ऐसिच हूँ मैं तो-आज यानि आज
मेरा मेल आई डी indupurigoswami!gmail.com
बहुत खूब लाजावाब लिखा है आपने बधाई स्वीकारें
हमारे भी तरफ आने का कष्ट करेंगे अगर समय की पाबंदी न हो तो आकर हमारा उत्साहवर्धन के साथ आपका सानिध्य का अवसर दे तो हमें भी बहुत ख़ुशी महसूस होगी.....
MITRA-MADHUR
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
कहानी बहुत सुंदर है...स्वागत!
आप भी क्या क्या बाते कर लेतीं है दर्शी जी.
कल्पना की अच्छी उड़ान भरी है आपने.
इतनी लंबी पोस्ट पढ़ने में समय का पता ही नहीं चला.
'दिल दिया दर्द लिया' पुराना गाना सुना था.
पर दिल क्यूँ दे देते हैं,बिना दिमाग लगाये समझ नहीं आता.
और दिए हुए दिल को वापिस लेने में क्या परेशानी है.
बहुत ही अच्छी भावमय प्रस्तुति ।
बेहतरीन अभिव्यक्ति
जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक
क्या कहे इस कहानी के बारे मेँ
कुछ कहा नहीँ जाता हैं।
मगर बिना कहे चुप रहा नहीँ जाता है॥
इतना दर्द कैसै सह गये आप।
हमे सिर्फ कहानी पढकर दर्द सहा नहीँ जाता हैँ॥
एक ऐसी कहानी जो पाठक को न कि उससे अलग जाने की इच्छा करती है बल्कि उसको खुद नहीं मालूम की कब यह कहानी खत्म होगी और वह सोचता है कि यह ऐसी ही चलती रहे। सच में आप ने बहुत अच्छा लिखा है। आप के लिए कुछ शब्द हैं-
हम बहुत खुश थ्ो तब बचपन में अंजान थ्ो
उनको देख हम मुस्कुरा देते तो पहचान के थ्ो वो
जब आज हम जवां हुए
तो उन यादों की आज आहट सुनाई दी
जब उठकर दरवाजे पर देखा
तो बचपन की एक लंबी कराह सुनाई दी
न उसमें मेरा बचपन किसी के लिए दुख दे पाता
न मैं खुद उस उदासी में जी पाता
इसीलिए आज सोचता हूं ऐ बचपन वापस आ जा
इस गम के समंदर में अब अंजाने हो गए हम
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