तख़्त श्री सचखंड साहेब 'नांदेड '
गुरुद्वारा --सचखंड
"किसी भी कौम का इतिहास उस कौम का आधार होता हैं अतीत में खो चुकी अहम धटनाओ को इतिहास अपने आप में समेटे हुए रहता हें --इसी इतिहास में से मार्ग दर्शन लेकर उस समय के महा पुरुषो के द्वारा दिए गए ज्ञान के आधार पर कौम का भविष्य बनता हें और नई दिशा लेकर ही हम लोग उच्चतम जीवन प्राप्त करते हें --"
तख्त श्री हजूर साहेब नांदेड (महाराष्ट्र ) में स्थित हैं --यह पवित्र स्थल 10वे गुरुगोविंद सिंह जी के अंतिम स्थल में शामिल हें ,जहाँ वे ज्योति में विलीन हुए थे --
10 सितम्बर 2011
मैं अपनी सहेली रेखा के साथ सुबह 6.30 को दादर पहुंची --हमें वहाँ से 'तपोवन -एक्सप्रेस' पकडनी थी --यह गाडी बाम्बे से सीधी नांदेड ही जाती हैं --बड़ी ही खटारा ट्रेन हैं --केवल सिटीग होने के कारण यह 12 घंटे की यात्रा बेहद उबाऊ और थका देने वाली थी --वैसे रास्ता इतना दूर नहीं था पर सिंगल लाईन होने के कारण गाडी हर स्टेशन पर रुक जाती थी --पर रास्ते की द्रश्यावली बेहद खुबसुरत थी ---कब टाइम निकला पता ही नहीं चला ...फिर सहेली जो साथ थी ----'जहाँ चार यार मिल जाए ...... वही रात हो गुलज़ार ......वाह !
तख्त श्री हजूर साहेब नांदेड (महाराष्ट्र ) में स्थित हैं --यह पवित्र स्थल 10वे गुरुगोविंद सिंह जी के अंतिम स्थल में शामिल हें ,जहाँ वे ज्योति में विलीन हुए थे --
10 सितम्बर 2011
मैं अपनी सहेली रेखा के साथ सुबह 6.30 को दादर पहुंची --हमें वहाँ से 'तपोवन -एक्सप्रेस' पकडनी थी --यह गाडी बाम्बे से सीधी नांदेड ही जाती हैं --बड़ी ही खटारा ट्रेन हैं --केवल सिटीग होने के कारण यह 12 घंटे की यात्रा बेहद उबाऊ और थका देने वाली थी --वैसे रास्ता इतना दूर नहीं था पर सिंगल लाईन होने के कारण गाडी हर स्टेशन पर रुक जाती थी --पर रास्ते की द्रश्यावली बेहद खुबसुरत थी ---कब टाइम निकला पता ही नहीं चला ...फिर सहेली जो साथ थी ----'जहाँ चार यार मिल जाए ...... वही रात हो गुलज़ार ......वाह !
(रेखा और मैं --दादर स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार में चाय पीते हुए )
(बाम्बे में भी आप हिल -स्टेशन का मज़ा ले सकते हो )
(सुबह का माहौल--- बहता हुआ पानी क्या कहने )
(खुबसूरत झरने )
( ईगतपूरी -----बाम्बे का हिल स्टेशन )
( हम पहाड़ के ऊपर और हमारे निचे एक और रेलवे लाइन )
यह लोनावाला को जाने वाली लाइन हैं
( धुंध में लिप्त प्रकृति की यह सुंदर चादर)
(पेंड़ो से झांकता 'थम्ब -गिरी' )
(इसे कहते हें ---थम्ब- गिरी --यानी अंगूठे के आकर वाला पर्वत )
" सुहाना -सफ़र और ये मोसम हंसी "
गर्मी बहुत थी --पर हवा ठंडी थी
( कल -कल बहती नदियाँ )
" वादियाँ मेरा दामन ---रास्ते मेरी बाहें "
यह कसारा - घाट कहलाता हैं
( ये कौन चित्रकार हें ----ये कौन चित्रकार)
(हरी- भरी वसुंधरा को तुम निहार लो )
(यह हैं --नांदेड साहेब का रेलवे -स्टेशन )
(खुबसूरत झरने )
( ईगतपूरी -----बाम्बे का हिल स्टेशन )
( हम पहाड़ के ऊपर और हमारे निचे एक और रेलवे लाइन )
यह लोनावाला को जाने वाली लाइन हैं
( धुंध में लिप्त प्रकृति की यह सुंदर चादर)
(पेंड़ो से झांकता 'थम्ब -गिरी' )
(इसे कहते हें ---थम्ब- गिरी --यानी अंगूठे के आकर वाला पर्वत )
" सुहाना -सफ़र और ये मोसम हंसी "
गर्मी बहुत थी --पर हवा ठंडी थी
( कल -कल बहती नदियाँ )
" वादियाँ मेरा दामन ---रास्ते मेरी बाहें "
यह कसारा - घाट कहलाता हैं
( ये कौन चित्रकार हें ----ये कौन चित्रकार)
(हरी- भरी वसुंधरा को तुम निहार लो )
इस प्रकृति के आलौकिक दर्शन करते हुए हम परम आनंद की खोज में चल दिए --हुजुर साहेब की और ----
(यह हैं --नांदेड साहेब का रेलवे -स्टेशन )
जब हम गुरुद्वारे पहुंचे तो शाम के छः बज रहे थे --वहाँ गुरुद्वारे की गाड़ियाँ खड़ी थी जो हर यात्री को गुरूद्वारे ले जा रही थी --- हम भी बैठ गए --चार साल पहले जब आई थी तब के और अब के माहौल में काफी अंतर आया हैं --इन चार सालो में यहाँ कई चेंजेस हुए हैं --आप गुरूद्वारे को चलेगे तो लगेगा की कही और आ गए हैं --साफ सुधरी सड़के ---खुबसुरत बगीचे और रहने को आलिशान इमारते जो गुरुद्वारों की हैं ---जहां तक निगाहें जाती हैं सब जगह गुरुद्वारों के गुम्मद ही दीखते हैं --एकदम स्वप्न सा लग रहा हैं -- हम गुरूद्वारे के आफिस में पहुंचे रूम के लिए ---400 रोज में एक ऐ. सी. रूम लिया -- वैसे यहाँ फ्री के रूम भी मिलते हैं पर वो नार्मल होते हैं ऐ. सी. नहीं होता हैं --पर उनमे भी हर सुविधा होती हैं --कुछ पैसे वो जमा करते हैं बाद में लौटा देते हैं ---
(रात का शमा झूमे चन्द्रमा --मन मोरा नाचे रे जैसे बिजुरिया )
(वाह !-------ब्यूटीफूल फाउन्टेन )
(आराम के मूढ़ में --आखिर बुढ़ापा दस्तक देने लगा --हा हा हा हा )
(नींद बहुत आ रही हैं ----अब चलते हैं सोने )
( यह हैं सामान्य कमरे यानि फ्री के रूम --- 'गुरुद्वारा -लंगर साहेब में )
(रात का नजारा ---गुरूद्वारे का )
गुरुद्वारे के बाहर बगीचे में रंगीन फव्वारे चलते हुए
गुरुद्वारे के चारो और रहने के कमरे --इन्ही में से एक में हम भी ठहरे हुए थे
( गुरूद्वारे का ऐ. सी. रूम )
रूम में आकर हम नहा-धोकर तैयार होकर चल दिए बगीचे में घुमने को --बाहर रंगीन फव्वारे चल रहे थे -बहुत खुशनुमा माहौल था ---कीर्तन की सुर लहरिया चल रही थी --माहौल में भक्ति और मस्ती दोनों फैली हुई थी ---लोग फोटो खेंच रहे थे --सारी थकान छूमंतर हो गई थी --शरीर में एक नई उर्जा संचार हो गई थी -- हमे भूख लगने लगी थी --सुबह से कुछ नहीं खाया था --हमने सबसे पहले 'लंगर -हाल ' को ढूँढा -- आखिर वो हमें मिल ही गया ---और हमने छक कर लंगर खाया --
( लंगर -हाल )
(अभी खीर आनी हैं --पर मुझे बहुत भूख लग रही हैं --मैं इन्तजार नहीं कर सकती )
(रेखा और मैं ----फाउन्टेन का मज़ा लेते हुए )
(रात का शमा झूमे चन्द्रमा --मन मोरा नाचे रे जैसे बिजुरिया )
(वाह !-------ब्यूटीफूल फाउन्टेन )
(आराम के मूढ़ में --आखिर बुढ़ापा दस्तक देने लगा --हा हा हा हा )
(नींद बहुत आ रही हैं ----अब चलते हैं सोने )
अब सोने जाते हैं --खटारा गाडी ने सारे कल -पुर्जे ढीले कर दिए -- बाकी कल ...कल हम आस पास के कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे देखेगे--- गुड नाईट ! अगली किस्त में -------जारी !
बेहतरीन पेशकश ||
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ||
मुंबई में भी हिल स्टेशन ! क्या बात है !
जवाब देंहटाएंसुन्दर तस्वीरों से सुसज्जित बढ़िया यात्रा वर्णन ।
सच कहा आपने लगता है कि बुढापा/वजन अब आप पर असर दिखाने लगा है,
जवाब देंहटाएंअब बात उस थम्ब वाली पहाडी के बारे में,
ये भी तो बता देते कि ये पहाडी मनमाड स्टेशन से नांदेड की ओर चलते ही जब ट्रेन पूरी तरह घूमती हुई जाती है दिखाई देती है और कई किमी तक दिखाई भी देती है।
गुरु के द्धारे रहने व खाने का अपना आनन्द है। और अब तो नान्देड साहिब की रौनक भी कुछ ज्यादा ही खास हो गयी है।
मैं भी दो बार गया हूँ यहाँ पर तीसरी बारी भी जल्द ही आ रही है कुछ माह बाद।
सुन्दर यात्रा वर्णन...
जवाब देंहटाएंआदरणीय दर्शन कौर जी नमस्ते
जवाब देंहटाएंदर्शन कौर जी बढ़िया लिखा है आपने | इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद |
आप से अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है
बहुत ही सुन्दर भाव...उससे सुन्दर शब्द तथा चित्र सजाया है आपने !
आपने ठीक ही कहा है 'जहाँ चार यार मिल जाए ...... वही रात हो गुलज़ार ....
कोई भी काम असंभव नहीं है यदि इच्छा शक्ति हो तो मुश्किल से मुश्किल लक्ष्य हासिल किया जा सकता है
बहुत बढ़िया वर्णन किया है और फोटो के तो क्या कहने.
जवाब देंहटाएंबहुत मनोहारी वर्णन...लाज़वाब चित्र...आभार
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया, मानो पाठक भी यात्रा में आपके साथ चल रहे हों, आभार!
जवाब देंहटाएंआदरणीया दर्शन कौर जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने नांदेड साहिब की यात्रा का.
लगा कि आपके साथ साथ हम भी यात्रा कर रहे हैं.
बाकी की कड़ियों का इंतज़ार है.
मुआफी चाहूंगा ,बहुत देर बाद आपके ब्लॉग पर पहुंचा.
वाह सुन्दर चित्रों से सजा नांदेड गुरूद्वारे के दर्शन , बेहद खूबसूरत बधाई आपको प्रस्तुति के लिए
जवाब देंहटाएंवाह .....मन खुश हो गया ...बहुत ही मनोहारी दृश्य थे
जवाब देंहटाएंसुन्दर तस्वीरों से सुसज्जित बढ़िया यात्रा वर्णन ।.मन खुश हो गया
जवाब देंहटाएंबोले सो निहाल - सचखंड साहब के दर्शन पाकर सचखंड में ही पहुंच गए। आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर यत्र वृतान्त ...आभार
जवाब देंहटाएं*यात्रा
जवाब देंहटाएंमजा आ गया । क्या घुमाया है । लेकिन जहाँ भी जाती हो । भूख साथ जाती है । मैं तो खीर के लिये 1 आवर वेट कर सकता हूँ । बिकाज पहले ही जितना थाली में है । उतने के बाद खीर नहीं खायी जायेगी मुझसे । वैसे मैं - गुरु की नगरी पढकर आया था । पर हमेशा की तरह फ़ोटो अच्छे लगे । दर्शन जी लाजबाब । आय लव यू । माय गर्ल फ़्रेंड ।
जवाब देंहटाएं@ जय हो प्रभु....आज आपके दर्शन तो हुए ...मैं धन्य हुई ? आप जैसे दुबले पतले 'साधू' से और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं ? अजी राजिव साहेब, खाना तो हम जैसे खाते - पीते लोग खाते हैं ...हा हा हा हा हा
जवाब देंहटाएं@ राजीव जी,कटोरी देवी को बड़ी जल्दी भूल गए --क्या बात हैं जी ??? मेरे पीछे क्यों पड गए .....
जवाब देंहटाएंदूसरी किस्त में गुरूजी का इतिहास हैं ..
दर्शना जी , अभी-अभी अंतर्जाल के इस यात्रा में घूमते-घूमते अचानक आप के ब्लॉग "अरमानों क़ी डोली" पर पहुँच गया,
जवाब देंहटाएंफिर वहाँ पर जब हुजुर साहेब के बारे में देखा तो स्वयं को रोक नहीं सका और किलिक कर बैठा |
बहुत सुन्दर ब्लॉग है आप का | अच्छी जानकारी दी है आप ने नादेड के बारे में |
में गत बीस वर्षों से नादेड के आस पास ही निवास कर रहा हूँ
कभी समय हो तो मेरे ब्लॉग पर जरुर जाएँ |
www.apkinews.blogspot.com
www.pranamparyatan.blogspot.com
www.indurhindisamitinzb.blogspot.com
www.bolhslla.blogspot.com
प्रदीप श्रीवास्तव
निज़ामाबाद