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गुरुवार, 22 सितंबर 2011

-गोल्डन टेम्पल अमृतसर भाग -5





गोल्डन टेम्पल भाग -5





"गुरु गोविन्द सिंह जी ने ग्रन्थ साहेब को अंतिम गुरु का दर्जा दिया "






गोल्डन -टेम्पल का भाग ४ पढने के लिए यहाँ क्लिक करे 


सुबह बहुत बारिश थी ---मानो अमृतसर में बाढ़ आ गई हो --सारा बाज़ार बंद था ...गाडियां बंद थी ..धुटने -धुटने पानी भरा था --हम लाल माता के दर्शन कर दोपहर में चल दिए --जलियांवाला बाग़ देखने --पानी अब भी बरस रहा हैं और हम मस्ती करते हुए --कुछ भीगते हुए चले जा रहे हैं जलियांवाला बाग़   में----

इतिहास :--




जलियांवाला बाग़ तीनो और से दीवारों से धीरा हें --13 अप्रेल 1919 को वहां ब्रिटिश सरकार की नीतियों और रालेट एक्ट के खिलाफ शहर के लोग सभा कर रहे थे  -- जिसमें जनरल दायर नामक एक अंग्रेज आफिसर ने  अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलवा दी जिसमें 1000 से भी अधिक लोग मारे गए और 2000 से भी ज्यादा लोग जख्मी हुए इस  निहत्थी   भीड़ पर अंग्रेजो की फौज ने अन्धाधुन्ध  गोलियां चलाई --कई निरीह बेकसूर आदमी शहीद हो गए ---जिनमें कई मासूम बच्चे भी थे --
इस हत्याकांड के विरोध में रविंदरनाथ टैगोर ने अपनी 'सर' की उपाधि लौटा दी थी --और सरदार उधम सिंह ने लन्दन जाकर जनरल डायर को गोलियों से भुन दिया था  -- 


(यह हैं जलियाँवाला बाग़ का प्रवेश द्वार ) 


( खुबसुरत बगीचा )


इतना खूबसूरत माहोल --चारो और हरियाली --मानो प्रकुति भी उन बेगुनाहों को थपकी देकर सुला रही हो --शांत और तल्लीन वातावरण .. 




(अमर ज्योति --1961 को निर्माण हुआ )


शहीदों की याद में 

(शहीदों की याद में वो पल जो गुजर गए )

सन्नी के पीछे जलियांवाला बाग़ का एक हैरत अंगेज द्रश्य --जहा तक निगाहें जाती हैं --लाशें ही लाशे पड़ी हुई नजर आ रही हैं ....

(उस समय का खोफ्नाक मंजर --बेरहम ब्रिटिश शासको का कहर  )





(लहू -लुहान पड़े बेगुनाह लोग--ऐसा लगता हैं मानो अभी -अभी कोई बम विस्फोट हुआ हो  )

(यह हैं रत्ना देवी छज्जू भगत ) 


" रत्नादेवी  छज्जू भगत का आँखों देखा बयान "


मैं जलियांवाला बाग़ के समीप अपने धर में थी --जब मैने गोलिया चलने की आवाज सुनी --मैं तुरंत उठ कर बैठ  गई --मुझे चिंता हो गई --क्योकि मेरे पति भी बाग़ में गए थे --मैं दो स्त्रियो को साथ ले बाग़ में पहुंची --वहाँ मैने लाशो के ढेर देखे --मैं उन लाशो में अपने पति को ढूढने लगी--मुझे उनकी लाश मिल गई ---चारो -और खून -खून ही पड़ा था -----    



(  क्रपिया --इसे जरुर पढ़े ) 


(सरदार उधम सिंह जी )





सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब के संगरूर ज़िले के सुनाम गाँव में हुआ। उधमसिंह के माता -पिता बचपन में ही चल बसे थे -- उनके जन्म के दो साल बाद 1901 में उनकी माँ का निधन हो गया और 1907 में उनके पिता भी चल बसे। उधमसिंह और उनके बड़े भाई मुक्तासिंह को अमृतसर के खालसा अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। 1917 में उनके भाई का भी निधन हो गया। सन 1919 का 13 अप्रैल का वो काला दिन, जब अंग्रेज़ों ने अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में सभा कर रहे निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं थी और सैकड़ों बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतार दिया था ।इस धटना से उधमसिंह के मन में अंग्रेजी हुकूमत के प्रति नफरत पैदा हो गई --उन्होंने जनरल से बदला लेने की कसम खाई और उसे ढूंढते  हुए लन्दन पहुँच गए --वहाँ 1940 को जनरल डायर  को मारकर अपनी कसम पूरी की --और जलियांवाला बाग़  के हत्या कांड का बदला लिया ---आज मेरी तरफ से इस महा नायक को श्रधांजलि ...




(सरदार उधम सिंह जी की जीवनी )


मदन लाल धींगरा ---1881--1909



   
(उनकी जीवन यात्रा )






(यहाँ से खड़े होकर गोलिया चलवाई गई थी )



(शहीदी कुआ ----यहाँ से कई लाशे  निकाली गई )





( आज भी यहाँ गोलियों के निशान हैं )




(ये गोलियों के निशान अपनी कहानी आप कह रहे हैं )






(बारिश का कहर ---बदस्तूर जारी हैं -- बारिश में भीगते यह शब्द जय हिंद  कितने अच्छे लग रहे हैं ) 


( खुबसुरती  में चार चाँद लगाते यह अक्षर--धरती माँ की वंदना  ) 



" रिमझिम के तराने लेकर आई बरसात 
     याद आए किसी से वो पहली मुलाक़ात "


"जिन्दगी -भर नहीं भूलेगी ये बरसात की शाम "





( अतुल और सन्नी --बरसात का मज़ा लेते हुए )



१९९२ का एक पुराना चित्र --जब मैं पहली बार अपने परिवार के साथ यहाँ आई थी ..





एक प्रार्थना स्थल --जहाँ कई लोग मारे गए थे 



( सन 2003 को जब मैं अपने परिवार के साथ दूसरी बार यहाँ आई थी----- 



(बारिश बंद हो गई थी --और सड़को  का पानी निकल चूका था )




शाम हो चली थी --बारिश भी बंद थी --हमने अमृतसर की फेमस 'बढ़िया ' पापड़ 'और आचार खरीदा जो हमे वही  जलियांवाला बाग़ के सामने ही मिल गए--यहाँ बादाम भी सस्ते ही मिले --कपडे लेने की इच्छा थी पर बारिश की वजय से मार्किट बंद था --हम पैदल ही हरमिंदर साहेब की और चल पड़े --सारे कपडे गिले थे और ठंडी भी लग रही थी --एक जगह भीड़ देखि तो वहाँ चल पड़े --वो एक जलेबी की दूकान थी --गर्म -गर्म जलेबी देखकर मेरी तो नियत खराब हो गई ---     


( जलेबी की दूकान )




(जलेबिया बन रही हैं --अमृतसर की जलेबी  बहुत फेमस हैं )



  
(वाह ! क्या बात हें ---मुंह में पानी आ गया न !!!! )



जलेबी देखकर दो जाट पुत्रो ( संदीप - नीरज ) की याद आ गई ---उनकी मन पसंद जलेबी जो थी --मैने अतुल से कहा --'चल अतुल गरमा -गरम जलेबी खाते हैं '  बहुत ही   टेस्टी रस से भरी कुरकुरी जलेबी थी --हमारे बाम्बे में तो ऐसी जलेबी के दर्शन दुर्लभ ही हैं  -- आधा किलो जलेबी हम तीनो चट कर गए --बाद में सन्नी और अतुल ने गुलाब जामुन भी खाए और लस्सी भी पी --पर मैंरी तृप्ति तो जलेबी ने ही पूरी कर दी थी ----


( रस से भरे गुलाब जामुन  सन्नी और अतुल के फेवरेट )


(पंजाब की लस्सी की बात ही वखरी हैं जी )

शाम को अतुल अपने घर सोनीपत चला गया --अब हमे भी अपना सामान समेटना था --आज हमे भी जाना हें !  


(यह हैं अतुल के साथ  मेरी आखरी फोटू ----बाय !)




सामान से लड़ी हुई दुकाने 


(सिक्ख धर्म से सम्बन्धित पुस्तके और तलवारे व् कटारे )






रात को हमने बिदा किया अमृतसर को --और चल पड़े स्टेशन की और --


अगली कड़ी हुजुर साहेब (नांदेड)  महाराष्ट्र ---


24 टिप्‍पणियां:

  1. जलियां वाला बाग के शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि।

    उधमसिंह और मदनलाल ढींगरा जैसे वीरों को जनने वाली माता का शत शत वंदन।

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  2. आप का ब्लाग शामिल कर लिया हे, आप की यात्रा का विवरण ओर सभी चित्र बहुत अच्छॆ लगे, चित्र देख कर दिल मे इन इगलेंड वालो से बदला लेने को दिल करता हे, वैसे भी मै तो इन्हे इन के मुंह पर खुब गालिया दे देता हुं, इस से ज्यादा कर भी नही सकता.....

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  3. देखा है जी मैंने भी ये सब और बताते है कि गोली से बचने के लिये लोगों ने कुएँ में कूद कर अपनी जान दी थी,
    जहाँ से आने जाने का मार्ग है वही से गोलियाँ चलाई गयी थी।
    आने जाने का मात्र पाँच फ़ुट का वही इकलौता मार्ग था।

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  4. @राज जी,धन्यवाद -- इन अग्रेजो को जितनी गालियाँ देंना चाहो आप दे सकते हो ---ये हैं ही इस काबिल ---
    आपका बहुत बहुत शुक्रिया की आप दुसरे देश में रहकर भी अपनी मिट्टी को नहीं भूले--मेरे लिए यह गर्व की बात हैं ....

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  5. आपकी ये पोस्ट कई अर्थो मे अद्भुत है. इतिहास के अन्याय और प्रतिशोध के नायको के साथ मे शहर की अपनी यादो को एक साथ पिरोया है. अद्भुत चित्र अद्भुत पोस्ट और अद्भुत अमृतसर "दर्शन".

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  6. जलियांवाला बाग देखने का बहुत मन था ......आपने विस्तारपूर्वक सबकुछ दिखाया और बताया भी .शहीदों को शत -शत नमन

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  7. सार्थक पोस्ट.. अद्भुत चित्र.. .सुन्दर विवरण...

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  8. सुन्दर चित्रों के साथ सुसज्जित अच्छी पोस्ट ... अच्छा सफर रहा

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  9. सभी शहीदों,सरदार ऊधमसिंह,मदनलाल धींगरा जैसे वीर शहीदों को सादर नमन.

    क्या अनुपम चित्रमय प्रस्तुति है आपकी

    'गर्म -गर्म जलेबी देखकर मेरी तो नियत खराब हो गई --- '

    दर्शीजी आपने अपनी नियत तो खूब पूरी की,अब हमारा क्या होगा जी ?

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  10. @धन्यवाद ललितजी..इन सपूतो को मेरा भी नमन

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  11. @हा, संदीप कहते हेई की वो कुआ अँधा था और सब अपनी जान बचने और गोलियों से छिपने उसमें कुदे थे -पर वहाँ भी उन्हें मौत ही मिली ---

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  12. @हरी जी ,अमृतसर- दर्शन हैं ही इतना खुबसुरत की आप सब कुछ भूल जाते हो ..

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  13. @संगीता जी मेरी पोस्ट के लिए धन्यवाद ..

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  14. @रेखा जी ,जलियाँवाला बाग़ हैं ही इतना सुंदर ..एक बार में दिल नहीं भरता ..

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  15. @ नीरज ..सही कहा ऐसी जगह जाकर आँखे भर ही आती हेई ..वेसे उस दिन आसमान भी रो रहा था .....

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  16. @रविकर जी धन्यवाद !
    @महेश्वरी जी धन्यवाद !

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  17. @ राकेश जी क्या आपकी नियत देख कर नहीं भरी --गरमा -गरम जलेबियो को ...

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  18. धनोय जी जलियाँ वाले बाग और उस घटना को याद कर दिल भर आता है ! आज हम एक दो के मारे जाने पर आपे से बहार हो जाते है ! वह दिन कैसे होंगे ? स्थानीय लोगो पर क्या गुजरे होंगे ! आज भी सोंचने और उस क्रूर कार्य की निंदा जीतनी की जय वह कम है ! आप का यह सफ़र सुहाना रहा आभार !

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  19. जलियांवाला बाग का विस्तारपूर्वक वर्णन बहुत ही अच्छा लगा खासकर सुन्दर फोटो... शहीदों को शत -शत नमन

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  20. वाह क्या नहीं है इस पोस्ट में।
    अच्छी जानकारी, सुंदर तस्वीरें और जलेबी भी क्या बात है।

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......