मेरे अरमान.. मेरे सपने..

सोमवार, 28 नवंबर 2011

और शाम ढल गई....


और शाम ढल गई 


    कितना अजीब जिन्दगी का सफ़र निकला !
सारे जहाँ का दर्द अपना  मुकद्दर निकला !
       जिसके नाम जिन्दगी का हर लम्हां कर दिया  
    वो ही मेरी चाहत से बेखबर निकला ...........!





  वो एक सर्द शाम थी --
जब मैनें उसे देखा था --
वो मफलर से अपना मुंह ढांके 
मेरे सम्मुख आ खड़ा हुआ था ---
उसके हाथो में एक पुर्जा था ?
आँखों में मौन इल्तजा ---!

मैं अपलक उसे निहार रही थी --
"सुंदर गुलाबी चेहरा --"
"नशीली आँखें "
"आँखों में उभरे गुलाबी डोरे "
"लम्बा कद "
चेहरे पर फैले बाल 
बड़ी हुई दाढ़ी ---
बेतरतीब से पहने कपडे --
किसी  का पता पूछते वो कंपकपाते होंठ--
किसी को खोजती वो निगाहें--- 
निगाहों में एक व्यग्र निवेदन --
कहीं पहुँचने की व्याकुलता --
शायद किसी से मिलने की तलब--?




मेरे दिल में मानो टन-न- न से घंटी बजी --
पहली नजर का प्यार ---
उसे तो पता भी नहीं था ---?
जो एक पल मैनें जिया था वहां --
कब उससे प्यार हो गया पता ही नहीं चला --?
कुछ संभली तो देखा, वो जा चूका था -- 
धुंध में विलीन हो चूका था ---
मैं विस्मय से उसे ताकती रही ----


उसका वो चेक़ का शर्ट !
वो लाल रंग का स्वेटर !
जिसमें मैंरी भावनाए गुंथी थी |
पर वो उन्हें कुचलकर आगे बढ चूका था |
जैसे सबकुछ रिक्त हो गया था ---
एक आंधी चली--
और सबकुछ उड़ा ले गई --
कुछ ही क्षणों में स्वाह !
तिनका -तिनका बिखर गया ---!

   
वो घडी मेरे जीवन में फिर दुबारा नहीं आई --
ऋतुए आती रहीं --जाती रहीं --
मौसम बदलते रहें ---
पर वो शख्शियत मेरे मानस-पटल पर जरा भी धूमिल नहीं पड़ी 






अचानक !उस रोज उसे अपने सामने देखा --?
वही शक्ल ! वहीँ आँखें ! वही होंठ !
आँखों में वही गुलाबी डोरे --
कुछ भी तो नहीं बदला था ?
वो आज भी वैसा ही था
हाँ, आज उसका सर मफलर में छुपा नहीं था ?
उलझे हुए भूरे बाल माथे पर लहरा रहे थे --
मानो चुगली खा रहे हो उसकी सुन्दरता की --
आज उसकी गोद में एक नन्हा चिराग भी था ?
जो मुझे देखकर खिलखिला रहा था ?
एक पल को मुस्कान मेरे होठो पर आई और ओझल हो गई --
उसके पीछे एक नवयोवना ग्रीन साडी में लिपटी मुझे घुर रही थी ?
मैने एक निर्जीव द्रष्ठी डाली और फींकी -सी मुस्कान ओढ़ ली !
भाग्य की कैसी विडम्बना थी -----
"जिसको चाहती थी वो बैगाना बना दूर खड़ा था !
जिसको अपनाना चाहती थी वो मेरा नहीं पराया था ! "






कितना जुदा था मेरे इश्क का अंदाज --
मैं उसके लिए पागल थी जो मेरा  'कभी' था ही नहीं ?
मैं हंस दी --आँखों से दो आंसू टपक पड़े 
उसने मुझे सरसरी निगाहों से देखा और आगे बढ गया 
मैं उसे देखती रहीं ----गुब्बार उड़ता रहा --
साँझ ढल रही थी --------! 



सदियाँ गुजर गई उसके इन्तजार मैं ...
जब किस्मत ने पलटी खाई तो 'वो' नहीं था ..?



चित्र --गूगल से ..   

25 टिप्‍पणियां:

  1. पेड वाला फ़ोटो तो कमाल का है।

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  2. कितना जुदा था मेरे इश्क का अंदाज --
    मैं उसके लिए पागल थी जो मेरा 'कभी' था ही नहीं ?
    मैं हंस दी --आँखों से दो आंसू टपक पड़े
    उसने मुझे सरसरी निगाहों से देखा और आगे बढ गया
    मैं उसे देखती रहीं ----गुब्बार उड़ता रहा --
    साँझ ढल रही थी --------!

    दर्द को एक नया आयाम दे गयी आपकी यह रचना ...!

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  3. मेरे दिल में मानो टन-न- न से घंटी बजी --
    पहली नजर का प्यार ---
    उसे तो पता भी नहीं था ---?
    जो एक पल मैनें जिया था वहां --
    कब उससे प्यार हो गया पता ही नहीं चला --?... bahut achhi rachna

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  4. सच बहुत खुबसूरत वो शाम रही.... बेहतरीन भावाभिवय्क्ति......

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  5. सुंदर रचना ...प्रेम में दर्द के भावों को शब्दों में पिरोकर बहुत खूबसूरती के साथ उकेरा है आपने!!! शुभकामनायें... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/.

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  6. सुन्दर रचना ......उम्दा भावाभिव्यक्ति

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  7. उम्दा अभिव्यक्ति एवं चित्रण.. शुभकामनायें !!

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  8. भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
    बधाई
    आशा

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  9. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!यदि किसी ब्लॉग की कोई पोस्ट चर्चा मे ली गई होती है तो ब्लॉगव्यवस्थापक का यह नैतिक कर्तव्य होता है कि वह उसकी सूचना सम्बन्धित ब्लॉग के स्वामी को दे दें!
    अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  10. क्या कहूँ इस रचना के लिये…………एक अजनबी अहसास के नाम जैसे कर दी हो उम्र तमाम्……।

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  11. बहुत खूब .....उम्दा भावाभिव्यक्ति

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  12. सदियाँ गुजर गई उसके इन्तजार मैं ...
    जब किस्मत ने पलटी खाई तो 'वो' नहीं था ..?

    ....प्रेम और दर्द की अद्भुत अभिव्यक्ति...लाज़वाब

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  13. वाह .. बहुत खूब

    कल 30/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, थी - हूँ - रहूंगी ....

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  14. दर्शन जी लगता है कि मेरी कही गयी बात भी मेरी तरह कहीं घुमक्कडी करने चली गयी है, वैसे पेड वाला फ़ोटो बहुत ही शानदार लग रहा है।

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  15. मेरे दिल में मानो टन-न- न से घंटी बजी --
    पहली नजर का प्यार ---

    ये दिल कि घंटी भी न जाने क्या क्या गुल खिला देती है,दर्शी जी.

    आपकी प्रस्तुति अति भावपूर्ण है.
    दिल में घंटी बजाने वाली.
    आभार.

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  16. आप तो बहुत रोमांटिक कवितायेँ लिख लेती है दर्शन जी ।
    बेहतरीन ।

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  17. रूमानियत की हद. प्यारे प्यारे अहसास. डूब जाने को मन करता है प्यार के इस दरिया मे.

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  18. sach bataun to mai saans rok ke padh raha tha..
    bahut hi behtarin prastuti ..komal bhaaw...!

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  19. कौर जी ...आप मेरे ब्लॉग पर आई ...आपका आभार ..... आपकी कलम से ... बहुत ही सुंदर शब्द निकले हैं

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  20. मेरे दिल में मानो टन-न- न से घंटी बजी --
    पहली नजर का प्यार ---
    उसे तो पता भी नहीं था ---?
    जो एक पल मैनें जिया था वहां --
    कब उससे प्यार हो गया पता ही नहीं चला --?
    कुछ संभली तो देखा, वो जा चूका था -

    ATI SUNDAR...ADBHUT.

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  21. बहुत खूब और कुछ अलग सा भी...
    शुभकामनायें आपको !

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  22. सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकृत करें।

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......