मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

# मनिकरण #

#मणियों की घाटी#
मनिकरण

भाग 1
हरी भरी घाटियां,कल-कल बहते झरनें, शांत झीलें ,आसमान से होड़ लगाती चोटियां । फूलों की चादर ओढे वादियां और देवदारों से घिरे धने रास्ते ....प्रकृति की अद्भुत कारीगिरी के बीच बसा है देवभूमि हिमाचल प्रदेश का रमणीय तीर्थस्थल --- "मणिकरण "

ऊँचे ऊँचे पर्वतों के बीच बहती पार्वती नदी और व्यास नदी । इन्ही नदियों के बीच बसा है मणिकरण ...
हम 1994 में जब शिमला से मनाली जा रहे थे तो रास्ते में ड्रायवर के कहने पर मणिकरण जाने को तैयार हो गए।तब हमको इसके बारे में खास जानकारी नहीं थी ।सिर्फ ड्रायवर के कहने पर की "वहां आप लोगों का शानदार गुरद्वारा है और गर्म पानी के कुण्ड है।" इतनी जानकारी काफी थी सुबह 11 बजे नाश्ता कर के हम शिमला से निकल पड़े पर मंडी आते आते हमारी कार का पहिया पंचर हो गया । पंचर बनवाने में काफी वक्त निकल गया । सुंदर नगर जब पास से निकला तो दूर बर्फ के पहाड़ दिखाई देने लगे जिन्हें देखकर बच्चे चिल्लाने लगे 'सफ़ेद पहाड़ सफ़ेद पहाड़' नजदीक आये तो लगा ये तो बर्फ के पहाड़ है । उस समय बर्फ देखने का हम सबका पहला मौका था।हलाकि पहाड़ काफी दूर थे पर चोटियां चमक रही थी ।मुझे तो सारी कायनात बड़ी ही रंगीली लग रही थी । ठंडी हवा के थपेड़े दिलों दिमाग को तरो ताज़ा कर रहे थे ।सुंदर नगर अपने नाम को सार्थक कर रहा था। पास ही बहती नदी कल- कल ध्वनि निकालती निरन्तर बह रही थी ।

कार रोककर हमने एक दुकान से कुछ फ्रूट ख़रीदे जो बहुत ही फ्रेश लग रहे थे और वो थे भी फ्रेश ;खाने में भी रस भरे थे कार निरन्तर दौड़ती जा रही थी  उस समय हमने ये कार शिमला से मणिकरण फिर मनाली ,रोहतांग ,ज्वालादेवी होते हुए कालका छोड़ने के लिए 5000 में बुक की थी।

सफ़र बड़ा ही रोमांचक हो गया था रास्ते में कार रोक रोक कर बच्चे किसी पेड़ के गिरे हुए सूखे फूल उठकर रख रहे थे लकड़ी जैसे दिखलाई दे रहे बड़े बड़े फूल बड़े ही खूबसूरत लग रहे थे।इसी कारन रास्ते में ही अँधेरा हो गया ।हम किसी पहाड़ से उत्र रहे थे की फिर गाडी का पहिया पंचर हो गया। घुप अँधेरा !कोई वाहन भी क्रास नहीं हो रहा था और निचे बहती पार्वती नदी का भयानक शोर दिल ही दिल में हम सब डर गए । क्योकि पहाड़ी एरिये में हमारा पहला सफ़र था।बड़ी मुश्किल से टॉर्च के द्वारा पहिया बदला गया और हम करीब 11 बजे मणिकर्ण पहुँचे...
क्रमशः:--

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2144 में दिया जाएगा
धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

धन्यवाद

रमता जोगी ने कहा…

इतनी पुराणी याद...वाह बुआ।