जयपुर की सैर == भाग 1
" कयामत की रात "
13 अप्रैल 2016 बुधवार
हम चार सहेलियों ने जयपुर घूमने का प्लान बनाया। मीना चोरे , अल्ज़िरा, मैँ और नीना जो चंडीगड़ से आने वाली थी। दरअसल, हम पुराने ब्लॉगर हरी शर्मा जी की बिटियाँ की शादी में शरीक होने जयपुर जा रहे थे । शादी 16- 17 अप्रैल को भीलवाड़ा में थी । अब किसी भी गाड़ी में रिजर्वेशन नहीं था। तो हमने कोटा से जयपुर जाने का प्लान बनाया, अब हमने 13 को कोटा का रिजर्वेशन करवाया जो कन्फर्म नहीं था पर 1,2,3, वेटिंग था हमने सोचा की एक महीना पड़ा है हो जायेगा पर दिन निकलते रहे और वोटिंग वैसा ही रहा ...
13 का आंकड़ा मनहुश् होता है ऐसा कहा जाता है और हमारे साथ भी ऐसा ही कुछ होने वाला है यह हमको पता नहीं था।
ठीक 1 बजे जब चार्ट कम्प्लीट हुआ तो हमारी सिर्फ एक सीट कंफर्म थी बाकी अभी भी वेटिंग थी।
सोचा TT के हाथ पैर जोड़ लेगे कुछ पहचान से काम चल जायेगा दिल को तसल्ली दे 3 बजे बोरीवली स्टेशन चल दी।
अल्ज़िरा और मीना बान्द्रा टर्मिनस से ही गाड़ी पकड़ने वाली थी ,मैंने भी सोचा की एक सीट तो है जैसे तैसे गप्पे मारते हुए रात निकाल लेंगे ।पर होनी तो होनी थी होकर ही रहेगी ,,,
अब, असली मशक्कत तो अब शुरू होने वाली थी ....
सेकण्ड क्लास का कूपा खचाखच भरा हुआ था एक सीट पर 3-3 आदमी एक दूसरे पर चढ़े हुए बैठे थे बहुत से लोग गेट के पास ही सामान के साथ पेपर बिछाकर बैठे बतिया रहे थे।
मैंने सेकंड क्लास में सफर बहुत कम किया है और जब भी किया है वहां रिजर्वेशन के साथ ही किया है ,मेरे लिए ये बहुत ही वेदनापूर्ण सफर होने वाला था।मूड़ अपसेट था। ..
मैं कोई मालदार पार्टी हूँ ऐसा नहीं है साधारण मिडिल क्लास की ही हूँ पर मिस्टर टी टी ई होने से फ्री पास पर सेकण्ड AC में ही सफर किया है जहाँ पास नहीं होता वहां दूसरे टी टी की मेहरबानी से यात्रा हो जाती है, यदि टिकिट से भी यात्रा की है तो वो भी थर्ड AC में ही की है, मुझे सेकण्ड क्लास का खास अनिभव नहीं था।
खेर, बोरीवली से हम तीनो एक सीट पर आराम से बैठकर चल दिए । टी टी आया तो उसको अपने मिस्टर का हवाला देकर कुछ सीट की गुहार लगाई पर उसने अपनी असहमति दिखाई 'आज गाडी बहुत पैक है मैडम कुछ नहीं कर सकता ?
अब ,परेशानियां तो हमसे दो कदम आगे ही चल रही थी क्योकि हम जिस निचे की साईड वाली सीट पर बैठे थे वो किसी और की थी हमारी तो इकलौती सीट ऊपर की थी हम तीनों ऊपर कैसे बैठे हमने उनसे बहुत विनती की की भाई आप ऊपर बैठ जाओ पर वो मुस्लिम लड़के मानने को तैयार ही नहीं थे आखिर जैसे तैसे हम 2 और वो भी दोनों लड़के एक ही सीट पर ठूसे हुए बैठे रहे । हम जरा भी हिल नहीं पा रहे थे... हमारे सामने वाली सीट पर बैठे हुऐ तो ड़ेढ़ सयाने थे वो तो हाथ भी नहीं रखने दे रहे थे, अब हम में से एक खड़ा रहता फिर वो बैठ जाता तो दूसरा खड़ा रहता करीब 1 घण्टा ऐसे ही गुजर गया तो सामने बैठी महिला थोड़ी पसीज गई उसने मीना को बोला आप यहाँ बैठ जाओ आंटी ,
अब हम तीनो आराम से बैठ गए।
मैंने फिर सोचा की थर्ड Ac में कोई सीट खाली मिल जाये तो डिफ़रेंस बनाकर ले ले पर कोई फायदा नहीं हुआ सारा थर्ड AC और सेकण्ड AC भी फुल था।ऊपर से उधर चेकिंग भी चल रही थी ।सो में वापस मुंह लटकाकर अपनी सीट पर आ गई।
13 का आंकड़ा मनहुश् होता है ऐसा कहा जाता है और हमारे साथ भी ऐसा ही कुछ होने वाला है यह हमको पता नहीं था।
ठीक 1 बजे जब चार्ट कम्प्लीट हुआ तो हमारी सिर्फ एक सीट कंफर्म थी बाकी अभी भी वेटिंग थी।
सोचा TT के हाथ पैर जोड़ लेगे कुछ पहचान से काम चल जायेगा दिल को तसल्ली दे 3 बजे बोरीवली स्टेशन चल दी।
अल्ज़िरा और मीना बान्द्रा टर्मिनस से ही गाड़ी पकड़ने वाली थी ,मैंने भी सोचा की एक सीट तो है जैसे तैसे गप्पे मारते हुए रात निकाल लेंगे ।पर होनी तो होनी थी होकर ही रहेगी ,,,
अब, असली मशक्कत तो अब शुरू होने वाली थी ....
सेकण्ड क्लास का कूपा खचाखच भरा हुआ था एक सीट पर 3-3 आदमी एक दूसरे पर चढ़े हुए बैठे थे बहुत से लोग गेट के पास ही सामान के साथ पेपर बिछाकर बैठे बतिया रहे थे।
मैंने सेकंड क्लास में सफर बहुत कम किया है और जब भी किया है वहां रिजर्वेशन के साथ ही किया है ,मेरे लिए ये बहुत ही वेदनापूर्ण सफर होने वाला था।मूड़ अपसेट था। ..
मैं कोई मालदार पार्टी हूँ ऐसा नहीं है साधारण मिडिल क्लास की ही हूँ पर मिस्टर टी टी ई होने से फ्री पास पर सेकण्ड AC में ही सफर किया है जहाँ पास नहीं होता वहां दूसरे टी टी की मेहरबानी से यात्रा हो जाती है, यदि टिकिट से भी यात्रा की है तो वो भी थर्ड AC में ही की है, मुझे सेकण्ड क्लास का खास अनिभव नहीं था।
खेर, बोरीवली से हम तीनो एक सीट पर आराम से बैठकर चल दिए । टी टी आया तो उसको अपने मिस्टर का हवाला देकर कुछ सीट की गुहार लगाई पर उसने अपनी असहमति दिखाई 'आज गाडी बहुत पैक है मैडम कुछ नहीं कर सकता ?
अब ,परेशानियां तो हमसे दो कदम आगे ही चल रही थी क्योकि हम जिस निचे की साईड वाली सीट पर बैठे थे वो किसी और की थी हमारी तो इकलौती सीट ऊपर की थी हम तीनों ऊपर कैसे बैठे हमने उनसे बहुत विनती की की भाई आप ऊपर बैठ जाओ पर वो मुस्लिम लड़के मानने को तैयार ही नहीं थे आखिर जैसे तैसे हम 2 और वो भी दोनों लड़के एक ही सीट पर ठूसे हुए बैठे रहे । हम जरा भी हिल नहीं पा रहे थे... हमारे सामने वाली सीट पर बैठे हुऐ तो ड़ेढ़ सयाने थे वो तो हाथ भी नहीं रखने दे रहे थे, अब हम में से एक खड़ा रहता फिर वो बैठ जाता तो दूसरा खड़ा रहता करीब 1 घण्टा ऐसे ही गुजर गया तो सामने बैठी महिला थोड़ी पसीज गई उसने मीना को बोला आप यहाँ बैठ जाओ आंटी ,
अब हम तीनो आराम से बैठ गए।
मैंने फिर सोचा की थर्ड Ac में कोई सीट खाली मिल जाये तो डिफ़रेंस बनाकर ले ले पर कोई फायदा नहीं हुआ सारा थर्ड AC और सेकण्ड AC भी फुल था।ऊपर से उधर चेकिंग भी चल रही थी ।सो में वापस मुंह लटकाकर अपनी सीट पर आ गई।
पहली बार पता चला की बुजुर्ग महिलाओ की कोई इज्जत नहीं करता। कोई अच्छा हो तो बात अलग है। हम वैसे ही बैठे रहे। .. सारा सफर का मज़ा किरकिरा हो गया। .. क्या सोचा था और क्या हो गया।
आखिर कब तक बैठे रहते रात 10 बजे सबका सोने का टाईम हो गया । हमको भी सोना था क्या करते अल्ज़िरा ने कहाँ तुम दोनों ऊपर चढ़कर सो जाओ मैँ निचे सो जाती हूँ पर मैंने कहा तुम चढ़ सकती हो तो चढ़ जाओ मैँ निचे ही सो जाउंगी, क्योकि मैँ ऊपर भी नहीं चढ़ सकती थी। ..
फिर दोनों ऊपर चढ़ गई और मैँ दोनों सीट के निचे अपनी चादर बिछाकर सो गई या यू कहिए सोने का नाटक करने लगी... बड़ी अजीब सी फीलिंग हो रही थी।
नींद कब आ गई पता ही नहीं चला । कहते है नींद तो काँटों पर भी आ जाती है ये मुहावरा आज मेरे साथ सच हुआ क्योकि ,आज कुछ मेरा भी यही हाल था।असली घुमक्कडी हो रही थी। क्यामत की रात थी कैसे गुजरेगी यही सोचते सोचते कब नींद लग गई पता ही नहीं चला...
( फोटू एक भी नहीं है ऐसी हालत में फोटो मजाक नहीं लगता )
आखिर कब तक बैठे रहते रात 10 बजे सबका सोने का टाईम हो गया । हमको भी सोना था क्या करते अल्ज़िरा ने कहाँ तुम दोनों ऊपर चढ़कर सो जाओ मैँ निचे सो जाती हूँ पर मैंने कहा तुम चढ़ सकती हो तो चढ़ जाओ मैँ निचे ही सो जाउंगी, क्योकि मैँ ऊपर भी नहीं चढ़ सकती थी। ..
फिर दोनों ऊपर चढ़ गई और मैँ दोनों सीट के निचे अपनी चादर बिछाकर सो गई या यू कहिए सोने का नाटक करने लगी... बड़ी अजीब सी फीलिंग हो रही थी।
नींद कब आ गई पता ही नहीं चला । कहते है नींद तो काँटों पर भी आ जाती है ये मुहावरा आज मेरे साथ सच हुआ क्योकि ,आज कुछ मेरा भी यही हाल था।असली घुमक्कडी हो रही थी। क्यामत की रात थी कैसे गुजरेगी यही सोचते सोचते कब नींद लग गई पता ही नहीं चला...
( फोटू एक भी नहीं है ऐसी हालत में फोटो मजाक नहीं लगता )
शेष अगले अंक में ...
वाह बुआ, यही है असली घुमक्कडी। अगले भाग के इंतज़ार में....
जवाब देंहटाएंसही कहा 😀
हटाएंहाहहहहाहा जब ज़रूरत पड़ी तो बुजुर्ग .....वेसे मैं अभी जवान हूँ |
जवाब देंहटाएंअसली यात्रा की इंतज़ार मे..........
अरे मैँ कहाँ बूढी हूँ महेश जी ☺ पर कभी कभी गधा बनकर घास खाने में क्या जाता है ☺☺☺
हटाएंसही बुआ जी.....
जवाब देंहटाएंआपने ने रेल में यात्रा करने की सही तश्वीर दिखा दी.... | हम लोग भी अक्सर ऐसे ही परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है.... |
बढ़िया मार्मिक पोस्ट :)
सही कहा रितेश पर उस समय को इंजॉय करना ही महानता है और घुमक्कडी भी 👍
हटाएंबुआ बहुत पापड बेलने पडे बैठने के लिए,कोई नही सब चीजो का पता होना चाहिए वैसे भी आप सहेलियाँ ग्रुप मे थी, कोई नही चलता है..
जवाब देंहटाएंसही कहा सचिन,कयामत की रात थी गुजर ही गई सिर्फ यादें छोड़ गई और उसका हर्जाना हमारी ज़ेब पर पड़ा क्योकि रिटर्न हमने फ्लाईट में करवाया ☺☺☺☺
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंसेकन्ड कलास की यात्रा ऐसी ही होती हैं मैडम, पर आपको कष्ट तो हुआ है
जवाब देंहटाएंसही पकड़े है yogendra जी
हटाएंथैंक्स शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंबुआ मस्त बात है, रेल के सफ़र अक्सर ऐसे ही हो जाते हैं। कयामत आनी तो अभी शुरू ही हुयी है,बढ़िया शुरुआत
जवाब देंहटाएंसही कहा हर्षा
हटाएंसफ़र और वह भी इन स्थितियों में बाप रे बाप , कभी भूलेंगी नहीं -हम तो पढ़ कर ही बेचैन हो गये .
जवाब देंहटाएंहमने तो भोगा है प्रतिमा जी
हटाएंअगली कड़ी का इन्तजार रहेगा
जवाब देंहटाएंघर से जब घुमक्कड़ी के लिए निकलो तो बुआ , सफ़र में होने वाली परेशानियों को पहले ही खूंटी पर टांग आओ ! वैसे कुछ लोग अच्छे भी मिल जाते हैं इसी सफर में !!
जवाब देंहटाएंहर प्रकार का अनुभव होना चाहिए, वैसे आप बुजुर्ग नहीं है।
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