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बुधवार, 12 जनवरी 2011

प्रकाश - पर्व


( गुरु गोविंद सिंह जी साहेब )

    " गुरु गोविन्द सिंह जी के प्रकाश -पर्व पर सबको लख-लख बधाईया"  
        
 गुरु गोविन्द सिंह जी सिक्खों के १० वे  गुरु और सिक्ख पंथ की स्थापना करने वाले एक योध्था थे-- वो कभी भी लड़ाई करना नही चाहते थे --उनका दिल एक कवि का भावात्मक दिल था--लेकिन जब ओरंगजेब के अत्याचारों से हिंदुत्व खत्म हो रहा था-- तब उन्होंने सत्य और न्याय की रक्षा के लिए 'खालसा -पंथ ' की स्थापना की और उसे चेतावनी दी की---- " तेरे  साम्राज्य का  नाश करने के लिए मैने  खालसा फोज बनाई   है --|"

               ' खालसा मेरा रूप है ख़ास ,खालसा मे  मै  करू निवास'

गुरु गोविन्द सिंह जी का जन्म २२ दिसम्बर १६६६ मे पटना शहर
( बिहार ) मे हुआ --वो ६ साल तक वहां रहे |
अपने देश पर उन्होंने अपना सारा परिवार निछावर कर दिया --पिता गुरु तेग बहादुर साहेब ने अपना शीश सरेआम चांदनीचोक ( दिल्ली ) मे देकर शाहदत की एक अनोखी मिसाल पेश की (आज वहां शीशगंज गुरुद्वारा शान से खड़ा है) उनके दो बेटो का बलिदान चमकोर की लड़ाई मे हुआ--- तो दो बेटो को जिन्दा दीवार मे चुनवा दिया गया --

"ऐसे गुरु को ,बल -बल जाउ "  

सिक्ख -पंथ के संथापक गुरु गोविन्द सिंह जी एक ऐसे काल- पुरुष थे जिन्हें मालूम था की आगे जाकर मेरा खालसा 'गुरुओ' के जाल मे भटक सकता है, इसीलिए उन्होंने एक ऐसे  ग्रन्थ को 'गुरु 'का दर्जा दिया जिसमे उस समय के नामी कवियों के काव्य -संकलन थे ,भावी पीढ़ी गुमनामी के जंगल मे न फंस जाए क्योकि उन्हें दूर तक कोई योग्य गुरु नजर नही आ रहा था-इसलिए उन्होंने उस ग्रन्थ को गुरु का दर्जा दिया और समस्त सिक्ख कोम को यह आदेश दिया की ----

' सब  सिक्खन  को  हुकम है
    गुरु मानियो ग्रन्थ '

आज जब 'गुरुओ' के मायाजाल मे इस सदी का हर इंसान लिप्त है तब ऐसे युग- पुरुष को मेरी श्रधांजलि  !

आज उसी गुरु का १४५वा (जन्म -दिन ) प्रकाश -पर्व है  जिसे हम सब  मना रहे है  -----|
                           
   और अब चलते है मेरे शहर  वसई (बॉम्बे का एक उप नगर ) मे जहां प्रकाश-पर्व मनाया जा रहा है  ----



वसई का गुरुद्वारा )


( पंच प्यारे )


( महाराज की सवारी )


( नगर कीर्तन )


नगर कीर्तन )


( मैं और मेरा भाई नगर कीर्तन में )


गुरुद्वारा )


( रात का नज़ारा )


( और यहाँ मैं )

15 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लाग पर पधारने व फालो करने के लिये आपको धन्यवाद.
    आपका यहाँ तो मुम्बई निवास दिख रहा है । फिर इन्दौर में.

    प्रकाश पर्व की आपको लख-लख बधाईयां...

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  2. सुशिल जी ,दादा -परदादा , ननिहाल सब 'इन्दोरी' है ,सारी मित्र -मंडली ,बिरादरी ,स्कुल -कालेज -- सारी यादे इन्दोर मे बसी है बॉम्बे तो केवल शरीर है रोटी के जुगाड़ मे फंसा हुआ --? अपनी यांदे किसी दिन लिखुगीअभी तो शुरुआत है ---- --

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  3. सारी महोदया । आपने जो फ़ालोअर्स में फ़ोटो न दिखने
    के बारे में पूछा था । पर जब टाइम मिला और आपके ब्लाग पर
    आकर देखा तो समस्या हल हो चुकी थी । खैर..कार्य पूरा हो गया ।
    ये खुशी है । दूसरे आपने जो रोमन से हिन्दी शब्द नहीं बनते..इसके
    लिये आप अपने साफ़्टवेयर के हेल्प में जाँय । यदि आनलाइन टायप
    करती हों तो बाराह पैड नामक सा,वे डाउनलोड कर लें । फ़िर भी
    आपको न आये तो शब्द बतायें । कौन सा नहीं लिख पा रहीं । क्योंकि
    सभी अक्षर लिखे जा सकते हैं ।..सत श्री अकाल ।

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  4. दर्शन जी बड़ी खुशी हुई आपने गुरु गोविन्द सिंह पर आर्टिकल लिखा ...मैं भी लिखते लिखते रह गई .....
    हमारा एक पंजाबी का ब्लॉग है ....ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਖੁਸ਼ਬੂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਖੁਸ਼ਬੂ उसे भी ज्वाइन कीजिये .....

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  5. प्रकाश पर्व की आपको लख-लख बधाईयां...

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  6. बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ.

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  7. ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਵੀ ਲਖ ਲਖ ਵਧਾਯੀਯਾਂ

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  8. धन्यवाद ,पावला सा.मेरे ब्लोक पे आपका स्वागत है | लोहड़ी की आपको भी लख लख बधाई | सतश्री अकाल

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  9. हरकीरत जी ,संजयजी ,पाबला सा. मेरे दोस्त यानि मुझे 'फोल्लो' करेगे तो मुझे बहुत ख़ुशी महसूस होगी जी धन्यवाद

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  10. गुरू गोविन्द सिंह जन्मदिवस प्रकाशपर्व की बहुत-बहुत बधाइयाँ!

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  11. गुरु गोविन्द सिंह जी पर बहुत अच्छा आर्टिकल लिखा आपने .

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  12. आदरणीया दर्शन कौर धनोए जी
    नमस्कार ! सत श्री अकाल जी !!

    गुरू गोविन्द सिंह जन्मदिवस प्रकाशपर्व की बहुत-बहुत बधाइया और मंगलकामनाएं !

    आपके ब्लॉग पर दो-चार दिन पहले आया भी था, पता नहीं कमेंट कैसे रह गया … ? बहुत ख़ूबसूरत है आपका ब्लॉग और तस्वीरें मनमोहक !

    गुरु गोविन्द सिंह जी के बारे में बचपन में पढ़ा था, आपकी ज्ञानवर्द्धक और उपयोगी पोस्ट के माध्यम से और विस्तार से जान कर बहुत अच्छा लगा । आभार !

    >~*~ हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  13. डा. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' , कुंवर कुसुमेश, राजेंद्र स्वर्णकार जी आप सबको मेरे ब्लोक पर आने के लिए धन्यवाद | इसी तरह आते रहीये -----

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  14. " सहसा पानी की एक बूँद के लिए " पढ़े प्यार की बात और भी बहुत कुछ Online.

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......