दिन भर दरबार साहिब मे ही गुजर गया | और रात का मंज़र तो लाजबाब ही निकला , चारो ओर बस प्रकाश ही प्रकाश था , लोगो का हुजूम उमड़ पड़ा था | हम लंगर खाने चल दिए | बर्तनों की सेवा के लिए लम्बी लाईन लगी थी ,हम भी शामिल हो गए |
( लंगर का दृश्य )
( बर्तनों की सेवा )
रात के ११ बजे सुखासन होता है , महाराज की सवारी पालकी मे दरबार साहिब से गाजे -बाजे के साथ अकाल तख्त मे चली जाती है | विश्राम के लिए |
( सुखासन की तैयारी )
( पालकी साहेब )
जिथे जाये बहे मेरा सतगुरु
वो थान सुहावा राम राजे..( सुखासन )
हम भी सुबह ५ बजे दरबार साहिब मे पहुच गए... दुबारा दर्शन करने के लिए .. न जाने फिर कब मौका मिले ...
जलियांवाला बाग़
१२ बजे हम अमृतसर साहेब से चल दिए | जलियांवाला बाग़ देखने .....
जलियांवाला बाग़ उन शहीदों की याद मै बना है जो १३ अप्रेल १९१९ मे बैशाखी वाले दिन जनरल डायर की गोलियो से छलनी हुए थे ..
महिलाए, बच्चे व् बुजर्ग भी शामिल थे ..कुछ तो अपनी जान बचने के लिए एक अंधे कुए मे कूद पड़े थे .. वही उनकी समाधि बन गई | आज भी वो कुआ उस समय की अंग्रेजी हुकूमत का जीता जगाता उदाहरण है |
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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......