मेरे अरमान.. मेरे सपने..

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

दरबार साहेब ..||

दिन भर दरबार साहिब मे ही गुजर गया | और रात का मंज़र तो लाजबाब ही निकला , चारो ओर बस प्रकाश ही प्रकाश था , लोगो का हुजूम उमड़ पड़ा था | हम लंगर खाने चल दिए |  बर्तनों की सेवा के लिए लम्बी लाईन लगी थी ,हम भी शामिल हो गए |


( लंगर का दृश्य )


( बर्तनों की सेवा )

रात के ११ बजे सुखासन होता है , महाराज की सवारी पालकी मे दरबार साहिब से गाजे -बाजे के साथ अकाल तख्त मे चली जाती है | विश्राम के लिए |


      
( सुखासन की तैयारी )




( पालकी साहेब )




जिथे जाये बहे मेरा सतगुरु
वो थान सुहावा राम राजे..



( सुखासन )


रात को दरबार साहिब के दरवाजे बंद हो जाते है.. पर संगत बंद दरवाजे के पास कीर्तन और पाठ करने मे मगन हो जाती है.. यह सिलसिला पूरी रात चलता है... सुबह ४ बजे तक... जब  दरबार साहिब की पहली अरदास होती है... और महाराज की सवारी सुबह ६बजे पालकी साहेब से आती है |
हम भी सुबह ५ बजे  दरबार साहिब मे पहुच गए... दुबारा दर्शन करने के लिए .. न जाने फिर कब मौका मिले  ... 




जलियांवाला बाग़

१२ बजे हम अमृतसर साहेब से चल दिए | जलियांवाला बाग़ देखने .....
जलियांवाला बाग़ उन शहीदों की याद मै बना है जो १३ अप्रेल १९१९ मे बैशाखी वाले दिन जनरल डायर की गोलियो से छलनी हुए थे ..
महिलाए, बच्चे व् बुजर्ग भी शामिल थे ..कुछ तो अपनी जान बचने के लिए एक अंधे कुए मे कूद पड़े थे .. वही उनकी समाधि बन गई | आज भी वो कुआ उस समय की अंग्रेजी हुकूमत का जीता जगाता उदाहरण है |








( शहीदी कुआ )



( शहीदों की याद में )




जारी है..

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बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......