मेरे अरमान.. मेरे सपने..

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

विवाह !




विवाह से पूर्व ---
मैने एक सपनों का ,
शाल बुना था ---
जिसमे मेरी भावनाएं ---
मेरी तमन्नाएं ---
गुंथी हुई थी ---
लेकिन ---जल्दी में ,
मैने उस शाल का ,
अंतिम छोर ----
एक ' गलत ' हाथो में थमा दिया ---|
जिसके नासमझ  हाथो ने ,
उस अंतिम छोर को ,
उधेड़ कर ,सम्पूर्ण शाल को ,
उलछे हुए धागों में ,
तबदील कर दिया ---
शाल से मिलने वाला गर्म ताप ,
मुझे कताई न मिलता ---
पर उसे अस्वीकार कर ,
उधेडा तो नही गया होता ---?   

















7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही नाज़ुक है आपकी कविता.
    टिप्पणी करूंगा तो बिखर जायेगी.
    सलाम

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  2. धन्यवाद सगेबोब जी --आपकी टिपण्णी से भावुक दिल बहल जाता हे --

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  3. सच में ऐसे ना जाने कितने ख्वाब गलत हाथों में शोल के चले जाने से उलझ जाते हैं ...भावुक कर देने वाली प्रस्तुति ....शुक्रिया

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  4. @केवलराम जी सही कहा आपने | धन्यवाद |
    @आशुतोष जी धन्यवाद

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  5. आदरणीय दर्शन कौर जी
    नमस्कार !
    हम तो आपकी भावनाओं को शत-शत नमन करते हैं
    ......आपकी लेखनी को नमन

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  6. Darshan kaur ji really very touching poem.......I am speechless !

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जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......