विवाह से पूर्व ---
मैने एक सपनों का ,शाल बुना था ---
जिसमे मेरी भावनाएं ---
मेरी तमन्नाएं ---
गुंथी हुई थी ---
लेकिन ---जल्दी में ,
मैने उस शाल का ,
अंतिम छोर ----
एक ' गलत ' हाथो में थमा दिया ---|
जिसके नासमझ हाथो ने ,
उस अंतिम छोर को ,
उधेड़ कर ,सम्पूर्ण शाल को ,
उलछे हुए धागों में ,
तबदील कर दिया ---
शाल से मिलने वाला गर्म ताप ,
मुझे कताई न मिलता ---
पर उसे अस्वीकार कर ,
उधेडा तो नही गया होता ---?
बहुत ही नाज़ुक है आपकी कविता.
जवाब देंहटाएंटिप्पणी करूंगा तो बिखर जायेगी.
सलाम
धन्यवाद सगेबोब जी --आपकी टिपण्णी से भावुक दिल बहल जाता हे --
जवाब देंहटाएंसच में ऐसे ना जाने कितने ख्वाब गलत हाथों में शोल के चले जाने से उलझ जाते हैं ...भावुक कर देने वाली प्रस्तुति ....शुक्रिया
जवाब देंहटाएंनिःशब्द हूँ...
जवाब देंहटाएंकविता को प्रणाम
@केवलराम जी सही कहा आपने | धन्यवाद |
जवाब देंहटाएं@आशुतोष जी धन्यवाद
आदरणीय दर्शन कौर जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
हम तो आपकी भावनाओं को शत-शत नमन करते हैं
......आपकी लेखनी को नमन
Darshan kaur ji really very touching poem.......I am speechless !
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