मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शनिवार, 5 मार्च 2011

यादें ! गुजरे जमाने की



यादें !  गुजरे जमाने की





क्यों याद आता हैं  -- 
वो गुजरा हुआ ज़माना, 
जहां पहले -पहले ---
ये दिल लडखडाया --!
वो गलियाँ ! 
वो चौबारा !
वो छत पर खड़े,तेरा मुस्कुराना, 
मेरे आँगन में तेरा सीटी बजाना, 
पत्थर से लिपटा वो कागज़ का टुकड़ा,
मुझे मन -मन्दिर की देवी बताना,
कभी आँख -मिचोली,
कभी प्यार जताना,
आँखों पे चश्मा चडाकर
मेरे पीछे चक्कर लगाना ---
मुझे याद हैं  तेरा वो पान चबाना--




क्यों याद आता हैं वो गुजरा हुआ जमाना --
बहाने से बार -बार मेरे घर में आना ,
मेरी दादी के पैरों को हल्के -से दबाना ,
अम्मा के सारे कामो को जल्दी - से निपटाना, 
कनखियों से मुझे ताकते रहना, 
होले से मुस्कुराकर,आँखों को घुमाना; 
मुझे छूने की कोशिश में,
मुझसे टकरा जाना --
फिर हडबडा कर तेरा भाग जाना-- 
मुझे याद हैं  तेरा वो पागल हो जाना ---

क्यों याद आता हैं वो गुजरा हुआ जमाना --
मेरे पीछे -पीछे तेरा सायकिल से आना 
कालेज की सीढियों पर धीरे -से बाय करना 
पुस्तक में छिपा कर अपना संदेश देना
घर के पिछवाड़े अकेले मिलने बुलवाना 
फिर नज़रे झुका कर मेरा पलट कर जाना
मुझे याद हैं तेरा वो आँखों का रोना---




क्यों याद आता हैं वो गुजरा हुआ ज़माना --
जहां पहले -पहले ये दिल लड़खड़ाया--
खुली किताब में तेरे चेहरे को  ढुंढती-- 
तुझसे मिलने को आँखे तरसती --
तुझे न पाकर मेरा वो बौखला जाना --
कहीं  तू नाराज तो नही -- ?
इसी शंका से मेरे दिल का धडकना 
मुझे परेशान देख,तेरा छिप -छिप कर ताकना 
फिर ठहका लगा कर वो 'चुम्बन 'का लहराना  
मुझे याद हैं वो पल मेरा शरमा के भाग जाना-- 

क्यों याद आता हैं वो गुजरा हुआ ज़माना-- 
मेरे पहलू में तेरा हिचकियो से रोना, 
अपने हाथो में दबाए वो 'शादी का जोड़ा '
अपनी किस्मत को यू उजड़ता देखना, 
मुझे याद हैं तेरा वो पराया होना !
मुझे याद हैं  तेरा वो सिंदूर भरना
मुझे याद हैं तेरा वो बे-वफा होना ! 




क्यों याद आता हैं वो गुजरा हुआ जमाना  
आज में कहाँ --तू कहाँ --
क्यों ये खालीपन हैं --
यह दर्द कैसा --
क्यों वो जगह रिक्त हैं   --
जहां का तू सर्वे था --
क्यों आँखों में आंसू हैं --
क्यों लबो पर थर -थराहट हैं  --
चाह कर भी तुझे भूला नहीं सकती 
प्यार किया था निभा नहीं सकती 
क्योकिं मैं  जानती हूँ की --
तू गैर हैं -मगर यू  ही---?      



 क्यों याद आता है वो गुजरा हुआ ज़माना !
जहां पहले -पहले ये दिल लड़खड़ाया !   
                                                            ( सभी चित्र गूगल से  ) 

26 टिप्‍पणियां:

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

किसकी बात हो रही है भाई ???

Roshi ने कहा…

bahut dard bhari prastuti per bahut sunderta se kahi gai hai

mridula pradhan ने कहा…

marmik.....

G.N.SHAW ने कहा…

सोंचने वाली कविता , रचना काबिले तारीफ है बहुत - बहुत धन्यवाद !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुंदर रचना ....

Sushil Bakliwal ने कहा…

गजब...

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

मुझे भी सबकुछ याद है
चॉकलेट खाकर बर्गर की फरमाइश करना,
पैसे भी मुझसे ही दिलवाना,
मिसकॉल मारकर मेरी कॉल लगवाना,
सण्डे को तसल्ली से सोने भी ना देना,
इवनिंग में जबरदस्ती मूवी देखने जाना,
और भी पता नहीं क्या-क्या याद है।
अच्छी प्रस्तुति।

Udan Tashtari ने कहा…

यादें तो होती ही आने के लिए हैं...बहुत उम्दा रचना. बधाई.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जीवन के विभिन्न रंगों से रंगी सुन्दर रचना!

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

सबको धन्यवाद मेरी इस हल्की -फुलकी प्रस्तुति के लिए ?

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

@ नीरज जी,आपकी इस कविता ने तो सारी यादे ही भुला दी --जोरदार प्रस्तुति ---

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

समीर लाल जी,आपके प्रथम आगमन पर आपका स्वागत हे धन्यवाद |

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

राजीव जी,कभी -कभी कुछ हादसे जिन्दगी की राह बदल देते हे ...

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

@Shastri ji dhanyvaad|
@Monika ji dhanyvaad|
@Sushil ji dhanyvaad |
@G. N. shaw ji dhanyvaad|
@Roshi ji dhanyvaad|
@Mridula ji dhanyvaad|

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बहाने से बार -बार मेरे घर में आना ,
मेरी दादी के पेरो को हल्के -से दबाना ,
अम्मा के सारे कामो को जल्दी - से निपटाना,
कनखियों से मुझे ताकते रहना,
होले से मुस्कुराकर,आँखों को घुमाना;
मुझे छूने की कोशिश में,
मुझसे टकरा जाना --
फिर हडबडा कर तेरा भाग जाना--
मुझे याद है तेरा वो पागल हो जाना ---
yaad aate hain , yaad aayenge ...

आशुतोष की कलम ने कहा…

मेरे पहलू में तेरा हिचकियो से रोना,
अपने हाथो में दबाए वो 'शादी का जोड़ा '
अपनी किस्मत को यू उजड़ता देखना,
मुझे याद हे तेरा वो पराया होना !
मुझे याद हे तेरा वो सिंदूर भरना !
मुझे याद हे तेरा वो बे-वफा होना
.......................

aap ise halki fulki prastuti kaisae kah saktin hai...ye to paripurn hai sabhi rango sae jiwan ke.....
Badhaiyan

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मेरे पीछे -पीछे तेरा सायकिल से आना
कालेज की सीढियों पर धीरे -से बाय करना
पुस्तक में छिपा कर अपना संदेश देना
घर के पिछवाड़े अकेले मिलने बुलवाना
फिर नज़रे झुका कर मेरा पलट कर जाना

कुछ नाज़ुक लम्हे समेत कर लिखा है इस मासूम सी रचना को ... सीधे दिल में उतर जाती है .....

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

अतीत की कुछ यादें जीवन भर की सहचरी बन जाती हैं।

ZEAL ने कहा…

.

पत्थर से लिपटा वो कागज़ का टुकड़ा,
मुझे मन -मन्दिर की देवी बताना...

बहुत अच्छी लगी ये मनमोहक प्रस्तुति ।

.

संतोष पाण्डेय ने कहा…

क्या बात है. याद न जाये बीते दिनों की. बढ़िया कविता.

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

@Santosh ji Dhanyvaad|
@Divyaa ji Dhanyvaad|
@Mahendra ji Dhanyvaad|
@Manpreet ji Dhanyvaad|
@Digamber ji Dhanyvaad|
@Asutosh ji Dhanyvaad|
@Rshame ji Dhanyvaad|

Nirantar ने कहा…

423—92-03-11
नज़रें किसी और से अब ना लड़ाना

सब को
याद आता गुजरा हुआ
ज़माना
दिल किसी का दुखता
कोई रोमांच से भरता
जिस की जैसी किस्मत
उसके साथ वैसा होता
पीछे को
भूल आगे है जाना
आने वाले वक़्त को
हंस हंस कर जीना
जो मिलता नहीं अब
दुआ उस के लिए
करना
जो हैं साथ अब
साथ उनका पूरा निभाना
निरंतर दिल-ओ-दिमाग में
उन्हें ही रखना
नज़रें किसी और से
अब ना लड़ाना
13—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

विभूति" ने कहा…

hi... very very nice... such me bhut yaad aata hai vo gujra jamana....

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय दर्शन कौर धनोए जी
नमस्कार !
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

Dinesh pareek ने कहा…

आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://vangaydinesh.blogspot.com/

बेनामी ने कहा…

Nice blog..I am looking forward to read your next great article.