" एक वीर कौम का स्थापना दिवस "
" बैशाखी "
(इस लिंक पर चटका लगा सकते है )
आज वैसाखी का पावन दिवस है --आज ही गुरु गोविन्द सिंह जी ने सिख -धर्म की स्थापना कि थी--असत्य पर सत्य की विजय --
सन 1699 में बैशाखी के महान पर्व को गुरु गोविन्द सिंह जी ने सम्पूर्णता दी ,यही वो ऐतिहासिक ,क्रन्तिकारी दिन था जिस दिन गुरूजी ने धर्म एवं मानवीय मूल्यों की रक्षा ,राष्ट्र हित और जन समुदाय को शक्तिशाली अखंड राष्ट्र के निर्माण हेतु शूरवीर सिपाही के स्वरूप 'खालसा 'का सर्जन किया --
आज के दिन ही सिख -पंथ की स्थापना की --चिडियों को बाजो से अधिक शक्तिशाली बना देने वाले --एक को सवा लाख का सामना करने की ताकत देने वाले हाजरा हुजुर श्री गुरु गोविन्दसिंहजी के पिताजी गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने 1664 मे गुरुगद्दी प्राप्त की और एक नया नगर बसाया जिसे :
आनंदपुर साहेब नाम दिया !
( गुरुद्वारा आनंद पुर साहेब ~पंजाब )
इतिहास:--
आनंद पुर साहेब में दिवाली और बैशाखी का त्यौहार बड़े श्रधा नाल मनाया जाता था पर सन 1699 की वो बैशाखी एक यादगार बैशाखी साबित हुई --उस दिन गुरूजी ने अपने सारे शिष्यों को आनंद पुर साहेब आने का न्योता दिया --काबुल ,कंधार .आसाम से शिष्य पधारे ,इनका लंगर -पानी का इनजाम किया हुआ था --चारो और ख़ुशी का माहोल था --
एक दिन पहले दरबार सजा हुआ था --'गुरूजी गद्दी पर विराजमान थे की अचानक गुरूजी ने म्यान से तलवार निकाली और जोश से बोले --
" है कोई बन्दा जो मुझे अपना शीश दे "
चारो और सन्नाटा छा गया--सब ख़ुशी मनाने आए थे --अचानक ऐसी स्थिति से कोई तैयार नही था पर हजारो के हुजूम में ५ बंदे खड़े हुए :--
१.भाई दयाराम जी लाहोर वाले !
२.भाई धर्मदास जी दिल्ली वाले !
३.भाई हिम्मत रायजी जगन्नाथ जी वाले !
४.भाई साहिब चंद जी बिदुर वाले !
५.भाई मोहकमचंद जी द्वारका वाले !
इंन पांचो ने अपना शीश गुरूजी के आगे नवा दिया -- ' देश की और कौम की खातिर हमारा सर आपके कदमो में निछावर है '--तब गुरूजी ने कहा :--
"जो तो प्रेम खेलन का चाओ !
शीर धर तली गली मेरी आओ !!"
( " हे, कोई जो मुझे अपना शीश दे " )
गुरु जी का आव्हान
अर्थात ,अगर आपको ईश्वर से प्रेम है तो इसके लिए दुसरो के लिए जीना और मरना सीखो ? और जो सर दे सकता है समझो वो सबकुछ दे सकता है
कुछ पाने के लिए किया गया प्रेम स्वार्थी होता है -प्रेम तो कुछ देने के लिए होना चाहिए और जो देने के नाम पर बंगले झाँकने लगे ,समझो वो सच्चा प्रेमी नही है --इन पांचो ने देश और कौम के लिए अपना शीश दिया है आज से ये मेरे सच्चे 'खालसा' हुए :-
" खालसा मेरा रूप है खास
खालसा में ही करू निवास "
( पञ्च प्यारे को अमृत -पान करते हुए गुरूजी )
उन्होंने उन पांचो को स्नान करवाया --नए विशेष वस्त्र पहनाए --फिर उन्हें वापस दरबार में उपस्थित किया --एक लोहे के बर्तन में जल भरवाया और उसमे बताशे डलवाकर खंडे से घोलते हुए अपने पांचो काव्य -रचनाओं का पाठ करते हुए उस मीठे जल को अमृत बनाकर 'अमृत' की उपाधि दी--और उन पांचो को ' पञ्च प्यारे 'की इज्जत से नवाजा --
अमृत -पान पहले उन्हेंने गुरु बनकर करवाया फिर खुद ने याचना करते हुए शिष्य बनकर उनके हाथो अमृत -पान किया और खुद भी 'सिंह' बने --
" ऐसे गुरु को बल -बल जाऊ "
( अमृत -पान के लिए याचना करते हुए )
आज से २०० साल पहले ही उन्होंने वर्गभेद.जातिभेद को हिन्दुस्तान से हटा कर एक नए युग का निर्माण किया था -- 1699 में ही उन्होंने हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र की रूप रेखा प्रस्तुत कर दी थी --जहां एक ही धर्म के इन्सान एक ही छत के निचे बैठकर हर जश्न मनाए कोई भी अकेला न रहे --
" गुरु गोविन्द सिंह जी संसार में एक अत्यंत बुद्धिमान ,सदेव उन्नति के पथ पर अग्रसर ,पवित्र भावनाओं से ओतपोत ,आशावादी एवं धर्म के रंग में रंगे हुए वह महान मार्ग दर्शक थे जिसने 'अमृत 'की रस्म के द्वारा समाज की नए सिरे से रचना की "
आज मैनें भी बैशाखी का पर्व वसई में न मनाकर मीरा रोड में मनाया :-
(मीरा रोड का नव- निर्माणधीन गुरुद्वारा )
(सहेलियों के साथ ~~ मग्न ! सुरजीत और रेखा,सोनू )
( सुरजीत और मै )
और इस तरह एक खुबसुरत यादगार दिन की शाम हुई !
सारे -ब्लोक जगत को बैशाखी की हार्दिक शुभकामनाए
जय हो जय हो
जवाब देंहटाएंसभी गुरुओं को मेरा हार्दिक नमन.
बैशाखी का शानदार तोहफा दिया है आपने.
मन तडफत हरी दर्शन को.
अब तो आप 'दर्शन' दे ही दें जी.
अपनी वाणी को आपके नजदीक लाने की कोशिश में लगा हूँ.
मेरे ब्लॉग पर आके बताएं कितनी मीटर नजदीक आई है.
बैशाखी की आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएँ.
बैशाखी की हार्दिक शुभकामनायें ......
जवाब देंहटाएंगुरु गोविन्द सिंह जी का कोटि-कोटि वंदन ...
निःसंदेह 'सिख धर्म' सच्चा धर्म है , भारत वर्ष का गौरव है , राष्ट्र प्रेम का दूसरा नाम है |
आदरणीय दर्शन कौर जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
...........बैशाखी की हार्दिक शुभकामनायें ......
अब की कहूँ या जब की,
जवाब देंहटाएंअब की न जब की।
अगर गुरूगोविन्द सिंह न आते.
तो सुन्नत होती सब की।
--
गुरु गोविन्द सिंह जी का कोटि-कोटि प्रणाम!
गुरु गोविन्द सिंह जी का कोटि-कोटि वंदन .
जवाब देंहटाएंबैशाखी की हार्दिक शुभकामनायें ......
" खालसा मेरा रूप है खास
जवाब देंहटाएंखालसा में ही करू निवास "
आपने मेरे ब्लॉग पर 'दर्शन' देकर दिल खुश कर दिया.
आपने चेहरा ही तो बदला है,दिल तो नहीं
कुछ थोडा आपने मजाक ही तो किया था,कोई नाराजी नहीं
पर 'वकील साहब' कह कर यूँ दिल न तोडो
प्यारा सा कोई ओर नाम देकर,दिल से दिल को जोड़ो.
दर्शन कौर जी पवित्र वैशाखी पर्व की आपको बधाई और शुभकामनाएं गुरु को याद करना और उनके पदचिन्हों पर हमें चलना चाहिए ऐसे परमदेशभक्त महापुरुष को मेरा शत -शत नमन
जवाब देंहटाएंआदरणीय दर्शन कौर जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
...........बैशाखी की हार्दिक शुभकामनायें ...
ह्रदय स्पर्शी लेख !
सत्य के पथ पर बलिदान होने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी और महर्षि दयानंद जी बचपन से ही मेरे आदर्श रहे हैं|
ऐसी अच्छी जानकारी देने की लिए आपका दिल से धन्यवाद
सवा लाख ते एक लड़ावां,तब गुरु गोबिंद नाम कहावां,
जवाब देंहटाएंचिड़ियन ते मैं बाज तुड़ावां,तब गुरु गोबिंद नाम कहावां...
Wahe Guruji Ka Khalsa, Wahe Guruji Ki Fateh !
इस ह्रदय स्पर्शी और जानकारी भरी पोस्ट के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद ...आपने इतिहास और वर्तमान को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है ..!
जवाब देंहटाएं"जो तो प्रेम खेलन का चाओ !
जवाब देंहटाएंशीर धर तली गली मेरी आओ !!"
बङी जबरदस्त पोस्ट लिखी साहब जी । बस एक दरखास है । और गुरुओं
अर्जुन देव जी । अमरदास जी । नानक साहब की भी एक दो वाणी लेख में
हो । आपके इस बेमिसाल दोहे का मतलब वही है । जो इस दोहे का है ।
ये तो घर है प्रेम का खाला का घर नाहिं ।
शीश उतार भूँयी धरो तो पैठो घर माहिं ।
शीश या शीर उतारने का मतलब है । अपने अहम या मैं को पूरा समाप्त कर देना ।
अहम खत्म होते ही रब्ब नजर आने लगता है ।
बेदर्दी रब्ब रब्ब कर दी..
अभी दो महीने बहुत कम हाजिरी हो पायेगी । इसके लिये माफ़ करना ।
इतिहास के पन्नों से बैसाखी के महत्त्व को दर्शाता हुआ एक सामयिक व उत्तम लेख.
जवाब देंहटाएंवाह...वाह....दर्शन जी आपने जिस ढंग से बैसाखी का त्यौहार मनाया है दिल खुश हो गया ...
जवाब देंहटाएंखुबसूरत तसवीरें खुद सारी कथा बयां करती हैं ...
बहुत बहुत बधाई आपको .....
पर 'वकील साहब' कह कर यूँ दिल न तोडो
प्यारा सा कोई ओर नाम देकर,दिल से दिल को जोड़ो.
ओये होए .....!!
आदरणीय दर्शन कौर जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर
जानकारी देने की लिए धन्यवाद
"सुगना फाऊंडेशन जोधपुर" "हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम" "ब्लॉग की ख़बरें" और"आज का आगरा" ब्लॉग की तरफ से सभी मित्रो और पाठको को " "भगवान महावीर जयन्ति"" की बहुत बहुत शुभकामनाये !
सवाई सिंह राजपुरोहित
बैशाखी की हार्दिक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंआपने अच्छी जानकारी दी , शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआपने कहा कि सिख धर्म की स्थापना गुरु गोविन्द सिंह जी ने की है .
उनसे पहले के गुरु किस धर्म का पालन करते थे ?
कृपया इसके बारे में भी जानकारी दें .
बैशाखी की हार्दिक शुभकामनायें
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/04/mother-tounge.html
Anwar Ji
हटाएंSikh Dharma was established by Guru Nanak Dev Ji (first Guru). After that all 9 gurus followed it. At the time of Vaisakhi, Guru Gobind Singh Ji Created KHALSA. He demanded five heads and then gave them amrit and a new shape as Singh (Lion). Someone asked "its ok that You are creating KHALSA. But what is the need of this new shape (like wearing the turban or having uncut hair? Guru ji replied that I am not doing it with my own will and said "AGYA BHAI AKAL KI TABHAY CHALYO PANTH". It means that SUPREME LORD ordered me to creat KHALSA in this way. That is why I am creating KHALSA..