वाघा -बार्डर
अमृतसर पहुँच कर दरबार साहिब धुमने के बाद हमने जलियांवाला बाग़ देखा ---अब हम सब को तगड़ी भूख लगी थी सो ,हम खाना खाने चल दिए ---अमृतसर का खाना वेज -नानवेज दोनों बहुत लज़ीज़ होता है--यहाँ रेस्तरां की जगह ' ढाबे 'होते है --जेसे ----किशन दा ढाबा ' केसर दा ढाबा ' प्रो दा ढाबा' प्रिंस दा ढाबा' इत्यादी | खाना थोड़ा महंगा है पर स्वादिष्ट बहुत है ---
फटाफट खाना खाया क्योकि हमे ५ बजे तक वाघा - बार्डर जाना था --एक ऑटो किया और चल दिए - जब हम वाघा -बार्डर पहुंचे तो सूरज छिपने वाला था-- शाम हो चली थी लोगो की बहुत भीड़ जमा थी--सब लोग नाच -गा रहे थे --बहुत शोर मचा था --हमारी तरफ वाला गेट बंद था --दूसरी तरफ पाकिस्तान का गेट था- वंहा भी काफी भीड़ जमा थी --दोनों तरफ सैनिक तैनात थे --हमारे सैनिक बहुत लम्बे तगड़े थे-- उनके सर पर जो पगड़ी थी- उसका तुर्रा एकदम कडक और लम्बा था ---सैनिक -परेड चल रही थी---
अचानक-- सूरज डूबते ही माहोल मे हरकत आ गई --दोनों देशो के गेट खुल गए-- ' इंटर नेशनल लाईन ' (LOC )पार करके दोनों तरफ के सैनिक आपस मे एक दुसरे के राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देने लगे -- देखने लायक द्रश्य था --दोनों तरफ के जवानो ने एक दुसरे के झंडे को सम्मान पूर्वक एकदूसरे को सोंप दिया -- दोनों अपने - अपने झंडे को लेकर अपने- अपने देश मे आ गऐ ----- गेट बंद हो गया --रात भी हो चली थी --लोग सैनिको के साथ फोटो खिचवाने लगे ----हमने भी कुछ तस्वीरे खिचवाई ---कुछ लोग अपने -अपने वाहनों से वापस जाने लगे ---
हम भी चल दिए वापस दरबार साहिब की और -----
कल हमे पालमपुर की तरफ निकलना है --------
जारी --------
1 टिप्पणी:
घुमक्कडी चल रही है। ठीक है, चलते हैं हम भी पालमपुर।
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