मेरे अरमान.. मेरे सपने..

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

वाघा -बार्डर

     अमृतसर पहुँच कर दरबार साहिब धुमने के बाद हमने  जलियांवाला बाग़   देखा ---अब हम सब को तगड़ी भूख लगी थी सो ,हम खाना खाने चल दिए ---अमृतसर का खाना वेज -नानवेज दोनों बहुत लज़ीज़ होता है--यहाँ रेस्तरां की जगह ' ढाबे 'होते है --जेसे ----किशन दा ढाबा  ' केसर दा ढाबा ' प्रो दा ढाबा' प्रिंस दा ढाबा' इत्यादी | खाना थोड़ा महंगा है पर स्वादिष्ट बहुत  है ---





     फटाफट खाना खाया क्योकि हमे ५ बजे तक वाघा - बार्डर  जाना था  --एक ऑटो किया और चल दिए - जब हम वाघा -बार्डर   पहुंचे तो सूरज छिपने  वाला था-- शाम हो चली थी लोगो की बहुत भीड़ जमा थी--सब लोग नाच -गा रहे थे --बहुत शोर मचा था --हमारी तरफ वाला गेट बंद था --दूसरी तरफ पाकिस्तान का गेट था- वंहा भी काफी भीड़ जमा थी --दोनों तरफ सैनिक   तैनात थे --हमारे सैनिक बहुत लम्बे तगड़े थे-- उनके सर पर जो पगड़ी थी- उसका तुर्रा एकदम कडक और लम्बा था ---सैनिक -परेड चल रही थी---



     अचानक-- सूरज डूबते ही माहोल मे हरकत आ गई --दोनों देशो के गेट खुल गए-- ' इंटर नेशनल लाईन ' (LOC )पार करके दोनों तरफ के सैनिक आपस मे एक दुसरे के राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देने  लगे -- देखने लायक द्रश्य था --दोनों तरफ के जवानो ने एक दुसरे के झंडे  को सम्मान पूर्वक एकदूसरे को सोंप दिया -- दोनों अपने - अपने झंडे को  लेकर  अपने- अपने देश मे आ गऐ  ----- गेट बंद हो गया  --रात भी हो चली थी --लोग सैनिको के साथ फोटो खिचवाने लगे ----हमने भी कुछ तस्वीरे  खिचवाई ---कुछ लोग अपने -अपने वाहनों से वापस जाने लगे ---   







        हम भी चल दिए  वापस दरबार साहिब की और -----
     कल हमे पालमपुर की तरफ निकलना है     --------    
जारी  --------

1 टिप्पणी:

जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही !
बीच में यह तुम कहाँ से मिल गए राही ......