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गुरुवार, 26 जनवरी 2017

ओरछा की वीरांगनायें { Orchha ki Virangnaye}





* ओरछा  की वीरांगनायें *







24 दिसम्बर 2016  



झांसी से लेकर ओरछा तक का 18 किलो मीटर का दायरा वीरांगनाओं से भरा पड़ा है । एक तरफ झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई है,तो दूसरी तरफ ओरछा की महारानी गनेश कुँवरी है ।जिनकी कहानियां यहाँ क़े जनमानस में बोलकर गाई जाती है ।

और इसी तरह की वीरांगनाएं हमारे ग्रुप में भी है , कुछ ग्रुप में है कुछ ग्रुप के बाहर की है यानि ग्रुप के पतियों की पत्नियां है और पत्नियां भी ऐसी जो पतियों पर भरोसा कर चल पड़ी -----
" जीवन डोर तुम्ही संग बाँधी ...." इस तर्ज पर ।

और ग्रुप भी कौन - सा व्हॉट्सअप का जिसकी कई बातें झूठी ओर फ़ेक होती है ; पर मजाल है जो एक भी बीबी ने अपने शौहर को इस ग्रुप में आने से मना किया हो ,भले ही बेचारियां रात को चुपचाप  तकियों में सिर फँसाये कनखियों से अपने मियां के होठों पर नाचती मुस्कान देख खीझती नहीं, और न ही झल्लाती है बल्कि,  दिल ही दिल में संतुष्ट होती है की ये कोई सौत नहीं बल्कि ग्रुप मेम्बर की आपसी चुहलबाजी चल रही है ; यही विश्वास ,अपनापन, आपसी समझ ही हमारे ग्रुप की जान है ।
मैं दर्शन कौर सबकी बुआ यानि जगत बुआ:--




जब मुझे पता चला की ओरछा में मिलन समारोह का कार्यक्रम बन रहा है तो मैंने कुछ खास ध्यान नहीं दिया ,(अगर दे देती तो सारे कार्यक्रम का आनंद लेती ) क्योकि ग्रुपवासी आपस में मिलते ही रहते है कइयों से तो मैं भी मिल चुकी थी । फिर ये ओरछा है क्या बला !
कहाँ है ?
किधर है ?
और उस पर दिसम्बर की सर्दी ---
ना ! ना!! बाबा ना ना !!!
मेरा निकलना तो असम्भव ही है ।
पर पहली बार जब फैमिली का जिक्र हुआ तो माथा ठनका !

फैमिली के साथ आने की बात का पता चला तो मन थोड़ा व्याकुल हुआ पर मुझे पता था मेरी फैमिली से कोई न आएगा न मुझ अकेली को आने देगा ?

स्थिति बड़ी डांवाडोल थी ,
मन था, पर कहाँ रुकुंगी ? कैसे  मैनेज  करुँगी ????
लेकिन जब व्यवस्था की डोर पांडे जी के हाथ देखी तो थोड़ा मैं चौकी ---" ओ तेररी की....अब भला मैं क्यों पीछे रहती और गिरते पड़ते आख़िरकार पहुँच ही गई ओरछा ...





और फिर हुआ 40- 45 लोगो का मधुर मिलन  # ओरछा_महामिलन_दिल_से #
जिसकी कई स्मृतियां मानस पटल पर अंकित है और रहेगी जिंदगी - भर।

और उन सबमें प्रमुख है वो महिलाये जो इस ग्रुप में न होते हुये भी सिर्फ अपने पतियों के कहने पर ,उन पर विश्वास कर ओरछा आई और इस महा -मिलन को यादगार बनाया ।
तो अब चलते है अपने असली मकसद पर, हुआ यू की एक दिन मुकेश कुमार पांडे जी (जिन्हें मैं शार्ट में पांडे जी कहती हूँ )  ने बोला की --" बुआजी आप ओरछा आई महिलाओं के बारे में कुछ लिखिये ।" पहले तो समझ नहीं आया क्योकि बहुत सीमित समय के लिए सबसे मिली थी कुछ से तो सिर्फ हैलो मात्र ही हुई थी और इस समागम को अधूरा छोड़ भाग भी गई थी फिर सोचा विचार बढियां है क्यों न प्रयास किया जाये फिर मदद तो इनके पतिदेवो से मिल ही जायेगी☺
तो ओरछा आई हुई महिलाओं का परिचय मेरी नजर से ...

ओरछा महा-मिलान की पहली मंथली ऐनिवर्सरी के अवसर पर .....
ओरछा आने से पहले मैं कुछ ही लोगो से मिली थी इतने मेम्बर्स से एक ही दिन एक ही छत के नीचे मिलना अपने आपमें काफी आश्चर्यजनक था। इस ग्रुप के एडमिन मुकेश भालसे को मैं पहले नहीं जानती थी इस ग्रुप में आने के बाद ही मुकेश को जाना फिर पता चला की इंदौर के नजदीक ही रहते है (अब तो इंदौर ही आ गए ) तो थोड़ा अच्छा लगा उन्ही के जरिये कविता के बारे में पता चला...ओर फिर बातें हुई ।
तो सबसे पहले जिक्र करुँगी हमारे एडमिन मुकेश भालसे साहेब की शोख, चंचल ,खूबसूरत ग्रुप मेंबर ---
कविता भालसे का :---






कविता के पीछे ओरछा की फ़ेमस छतरियां 

कविता को काफी टाईम से जानती थी और मेरे इकलौते जन्म स्थान की होने के कारण थोड़ा ट्चिंग ज्यादा था । फेसबुक पर भी कमेंट चलते रहते थे इसलिए मिलने की इच्छुक थी ,सोचा था कभी इंदौर जाऊंगी तो जरूर मिलूँगी पर सयोंग ओरछा में बन गया ओर जैसा सोचा था उससे काफी अधिक ही मिलनसार कविता को पाया । हंसमुख ,सौम्य,चंचल और मेरी ही तरह फ़ोटू खींचवाने की दीवानी हमारी कवितारानी जिनके पतिदेव मुकेश जी हमारे ग्रुप एडमिन उनकी हर अदा को अपने कैमरे में कैद करने कोे तत्पर ।हमारे ग्रुप के लव बर्ड्स ।
"हम बने तुम बने इक दूजे के लिये"
एकदम फिट गीत ☺☺☺☺


और अब आते है हमारे ग्रुप के दूसरे ग्रुप एडमिन संजय कौशिक की हमसफ़र नीलम कौशिक की तरफ----
नीलम कौशिक :----





संजय से मेरी पहली मुलाकात बॉम्बे में ही उनकी लाई मशहूर घेवर के साथ हुई थी, मुलाकात मीठी तो थी पर सीमित थी। लेकिन ग्रुप में बातचीत हंसीमजाक के जरिये काफी पहचान हो गई थी । सुलझे व्यक्तित्व के मालिक संजय भी तुरन्त उत्तेजित नहीं होते हमेशा शांत होकर ही ग्रुप के किसी मसले का फैसला करते है और हम लोग हमेशा उनको एक वाक्य से खुश करते रहते है -- "ऐसे ही कोई एडमिन नहीं बन जाता --'"

ओरछा में नीलम से मेरी पहली मुलाकात थी । धीर,गम्भीर ,सिम्पल नीलम अपने नाम के अनुसार ही नई थी मतलब नई नवेली ! जब हंसती थी तो खुलकर अपनापन झलकता था ,बेतवा माँ की गोद में जब हल्की हल्की ठंडी बुहार चल रही थी तब कुछ पल साथ बैठने और फ़ोटू खिंचने का मौका मिला था तब लगा ही नहीं की आज पहली बार मिल रहे है वो पल अपने आप में सम्पूर्ण था ।और जब नीलम ने कहा कि वो खुद भी कामकाजी महिला है और न्यायालय जैसी संस्था से जुडी है तो और भी गर्व महसूस हुआ की हमारा ग्रुप अपने आपमें कितना जीनियस है जहाँ एक पत्नी अपने पति के आभासी दोस्तों से मिलने चल दी ...जहाँ मेरे जैसी खूबसूरत लेडी भी थी हा हा हा हा हा
"धन्य है भारत की नारी"।

और अब आते है हमारे तीसरे एडमिन रीतेश गुप्ता के पास, जो मोहब्बत के शहर आगरा से ताल्लुक रखते हैे और अपनी खूबसूरत पत्नी  रश्मी गुप्ता के साथ ओरछा आये थे।
रश्मी गुप्ता :---





रीतेश से तो मैं कई सालों से परिचित थी और काफी अच्छी तरह से जानती भी थी इस ग्रुप में रीतेश ने ही मुझे जोड़ा था और मेरा नाम बुआ फेमस करने वाला भी रीतेश ही है ।

हम दोनों काफी टाईम से एक दूसरे को ब्लॉगिंग के जरिये जानते थे क्योकि हम दोनों ही यात्रा ब्लॉग लिखते थे और सफर के दौरान होने वाले अपने अनुभव एक दूसरे को सुनाते भी थे और सुनते भी थे  ।अपनी आगामी यात्रा के बारे में डिसकस भी करते थे --' मुझे याद है अपनी नैनीताल वाली यात्रा में मुझसे "पाताल भुवनेश्वर" छूट गया था और मैंने रिक्वेस्ट की थी की तुम जरूर जाना रीतेश और मुझे बताना ।वहां रीतेश गए भी और मुझे अनुभव बताये भी । हम फेसबुक पर भी कई स्थानों के बारे में आपस में बातचीत करते रहते थे पर असली साक्षात्कार स्थल बना ओरछा ।

यहाँ रीतेश की पत्नी रश्मी से भी मुलाकात हुई नाजुक- सी दुबली पतली रश्मी एक नजर में ही अपना ध्यान खींचने वाली शख्सियत है ,रीतेश के ब्लॉग में उनके साथ कई यात्रा तस्वीरों में रश्मी को देखा था इसलिए जब ओरछा पहुंची तो हाल में निगाह दौड़ाते वक्त रश्मी को पहचानना कोई बड़ा काम नहीं था , तुरन्त पहचान लिया; और रश्मी भी अपनी आँखों में आदर लिए मिलने आ पहुंची थी ,तब कोई अजनबीपन तो लगा ही नहीं ऐसा लगा मानो बहुत सालो से जानपहचान है। सबकुछ अपना अपना सा लगा था ।और वोही कशिश आज भी हम सबके दिलों में है ।

चलिए गाडी बढ़ाते है और पहुँच जाते है छतीसगढ़ यानी प्रकाश यादव के पास जो अपनी सहचर्या नयना के साथ विराजमान थे ओरछा की उस पावन सरज़मी पर,
नयना यादव :---



प्रकाश से मेरा पहले से कोई परिचय नहीं था सिर्फ ललित के मुंह से एक दो बार नाम सुना था वो भी भूटान यात्रा की बुकिंग के टाईम  पर; पर किसी कारण वश मुझे भूटान का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा ,प्रकाश हमारे ग्रुप में है मुझे तो यह भी मालूम नहीं था बहुत कम ग्रुप पर आते थे और कम बाते करते थे शायद इसलिए कम जानती थी ,जिस दिन ओरछा आने का हुआ तो ग्रुप पर प्रकाश अपनी फैमिली के साथ आ रहे थे ये मालूम पड़ा फिर उनका फ़ोटू भी देखा अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ तब पता चला था ।

प्रकाश से और नयना से मेरी मुलाकात ओरछा में ही हुई । अपनी चमकती आँखों से मुस्कुराती नयना मुझे हाल में ही दिखाई दी थी पर मैंने उनको पहचाना नहीं था शाम को जब भगवान राजा राम की आरती मैं गये तब परिचय हुआ। और रात को जब परिचय -पार्टी चल रही थी तब पता चला की असल में घुमक्कड़ी ग्रुप तो नयना को ज्वॉइन करना था फ़ालतू में प्रकाश फँस गए  क्योकि असली घुमक्कड़ तो वही थी जिन्होंने अपने मजबूत इरादों से प्रकाश  को भी घुमक्कड़ बना दिया ।

वैसे, पत्नी की बातों में आने वाले पहले शख्स है प्रकाश  वरना कौन घर का सुख छोड़कर कठिन राह अपनाता है घुमक्कड़ी की ☺वैसे उम्दा फोटुग्राफर है प्रकाश।

और अब मिलते है दिल्ली गाज़ियाबाद से आये एक और घुमक्कड़ परिवार से ये है सचिन त्यागी । सचिन हमारे ग्रुप के पुराने मेम्बर है पर उनकी पत्नी आभा ग्रुप की मेम्बर नहीं है ।
आभा त्यागी :-




सचिन से भी मेरी मुलाकात ग्रुप में ही हुई थी उससे पहले मैं उसको नहीं पहचानती थी । हमेशा ग्रुप में सक्रिय रहना और पॉइंट की बातें करना सचिन की आदत है ,ग्रुप मेंबर के साथ सचिन ने  ट्रेकिंग भी काफी की है पर हमारी ये पहली ही मुलाकात थी , सचिन एक अच्छे स्वभाव के मालिक है , आभा से मेरी पहले कोई पहचान नहीं थी शर्मीली, अपने आप में खोई हुई मासूम सी मुस्कान लिए जब सचिन ने परिचय करवाया तो अच्छा लगा , जो पत्नियां पति के कंधे से कंधा मिलाकर साथ देती है मुझे वो पसन्द आती है फिर आभा तो सचिन की सारथी भी थी मतलब ये की  दोनों अपनी कार से ही ओरछा आये थे और वापसी भी उनकी कार से ही थी जब  मेरे  कहने पर की ---' इतना लंबा सफर कार से करना क्या सचिन को कोई परेशानी नहीं हुई ?' तो मुस्कुराते हुए आभा ने कहा--'' आधी दूरी तो मैंने भी नापी है उनके साथ बुआ जी '' सुनकर अच्छा लगा था । अगर दोनों को कार चलाना आता है फिर तो फतेह समझो ...और जब दोनों घुमक्कड़ हो तो क्या कहने ,सोने पर सुहागा ।
मेरे ही साथ वो लोग भी ओरछा से जल्दी ही निकल गए थे क्योकि उन लोगो को  ताजमहल के दीदार जो करने थे।

"बुआ प्रनाम " एक लंबी सी छरछरी सी काया मेरे कदमो में लिपटी हुई थी तो अचानक मैंने सोचा ये कौन है ? शक्ल कुछ जानी पहचानी लगी अरे, ये तो अपनी हेमा है ....


हेमा सिंग ;---








हेमा से भी मेरा यह पहला परिचय था । उसने अभी नया ही हमारा ग्रुप ज्वाइन किया है पर लगता ही नहीं की हेमा ने अभी हाल ही में हमारा ग्रुप ज्वॉइन किया है वो हमारे ग्रुप की सक्रिय सदस्या है । हेमा से ग्रुप में काफी बाते होती रहती है वो अपनी बेटी और बेटे के साथ रांची (झारखंड )से आई थी , हंसमुख हेमा ग्रुप में भी सबको अपनी बातों से खुश करती रहती है और यहाँ अपनी शैतान बेटी के पीछे भागती हुई नजर आई । बार-बार हेमा का ये कहना --' बुआजी आप रांची जरूर आना' मन को छू गया।
और अब सबसे अंत में हमारे मेजमान पांडे जी के गृहमंत्रालय का ज़िक्र न हो तो बात अधूरी ही रह जायेगी ।
निभा पांडे :--







निभा पांडे हमारे मुकेश पांडे जी की खूबसूत बिलौरी आँखों वाली धर्मपत्नी है जो थोड़ी शर्मीली और अपने आप में रहने वाली महिला है पर जब हम सब महिला वर्ग उनसे मिलने उनके सरकारी आवास पर गए तो लगा ही नहीं की वो आज से पहले अज़नबी थी ,बहुत आत्मीयता से सबसे मिली अपने न आने का सबब भी बताया और सबसे न मिलने के लिये माफ़ी भी मांगी । निभा सबको नाम से जानती थी और मुझे तो स्पेशल ही बुआ के नाम से सम्बोधित किया । मतलब ये साफ है की पर्दे क़े पीछे भी वो सक्रिय थी ।और पांडे जी की हर बात से सहमत भी ;

 बहुत छोटा और सीमित मिलन था फिर मिलने का वादा कर हम पांडेजी के घर से निकले क्योकि आज मुझे बॉम्बे के लिए निकलना था और सभी को जंगल में मंगल मनाने जाना था।
इस तरह ये ओरछा महामिलन मेरी तरफ से समापन हुआ क्योकि आज मुझे जाना था मजबूरी थी,  फिर भी अगली  ट्रिप में मिलने का वादा कर सब महिलावर्ग आपस में बिदा हुआ।

सारी महिला मंडल ओरछा मे