मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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रविवार, 25 नवंबर 2012

"अद्रश्य डोर "









उसके  और मेरे बींच वो क्या है  जो हम दोनों को जोडती  है ...
एक अद्रश्य डोर है  जो  मजबूती से हमे जकड़े  हुए है ....
वो इसे प्यार नहीं कहता ---
पर यह मेरे प्यार का  एहसास है---  
मैं उसे बेहद प्यार करती हूँ  ---
मैं  इस एहसास को क्या नाम दूँ  ...
समझ नहीं पाती  हूँ ...
वो कहते है न---- ' दिल को दिल से राह होती  है---'
जब भी वो अचानक मेरे ख्यालो की खिड़की खोल कर झांकता  है ...
तो मैं  तन्मयता से उसे  निहारती हूँ --
तब सोचती हूँ की यह क्या है ? जो हमे एक दुसरे से जोड़े हुए है --?
मैं इसे प्यार का नाम देती हूँ --
तब वो दूर खड़ा इसे 'इनकार' का नाम  देकर मानो अपना पल्ला झाड लेता है -- 
 क्यों वो इस 'लौ ' को पहचानता नहीं ----?
या पहचानता तो है पर मानता नहीं ..?
पर इतना जरुर है मेरे बढ़ते कदम उसके इनकार के मोहताज नहीं .......



शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

पुणे का सफ़र भाग 1


पुणे का सफ़र भाग 1



चित्र ...गूगल बाबा से धन्यवाद 



पुणे महाराष्ट्र का दूसरा बड़ा शहर है ....यह महाराष्ट्र की  दो मशहूर नदियों के किनारे बसा हुआ है ...यह  पुणे  जिले का प्रशासकीय मुख्यालय भी है ..पुणे भारत का छटा बड़ा शहर है ..यहाँ अनेक मशहूर शिक्षण संस्थाने है ..इसलिए इसे पूरब का आक्सफोर्ड भी कहा जाता है ...मराठी यहाँ की मुख्य भाषा है ...

26 सितम्बर 2012
मैं और मेरी सहेली रेखा ने पुणे जाने का प्रोग्राम बनाया ..करीब 30 साल से मैं मुंबई में हूँ पर पूना  जाने का कभी प्रोग्राम नहीं बना ...हर साल गणेश उत्सव पर प्रोग्राम बनाती थी पर हमेशा फेल हो जाता था इस बार हम दोनों सहेलियों ने जाने का मन बना ही लिया ..गणेश उत्सव चल रहे थे ...और हम सुबह 11 बजे  दादर से वोल्वो बस पकड़ने चल दिए ....
दादर से हर एक घंटे में ट्रेन भी चलती है पर इस बार बस से  जाने का मन था सो चल दिए ...ट्रेन से जाते तो फायदा होता जनरल टिकिट 60 रु का आ जाता पर वोल्वो का टिकिट था 250 ..लेकिन ऐसी में सफ़र करना था और आराम से करना था सो , जब जाना तो क्या सोचना ...मौसम बहुत खुशगवार था ..बादलो से आकाश भरा हुआ था ...कभी -कभी बूंदा बूंदी भी आ जाती थी ...सूरज महाराज भी आँख -मिचोली खेल रहे थे ....और हम ऐ सी की ठंडी हवा में मदहोश हुए रास्ते की सुंदरता को देखते हुए गप्पे मारते हुए चले जा रहे थे ...टी वी पर अजय देवगन की फिल्म 'तेज' चल रही थी ..कभी फिल्म तो कभी बाहर की द्रश्यावली कब पुणे  आ गया पता ही नहीं चला .... शाम के 4 बज गए थे और हम पुणे के बस स्टेंड शिवनेरी पर खड़े थे ...

  
रास्ते की द्रश्यावली ...दिल को लूटकर  ले जा रही है 




नहा-धोकर  साफ़ सुथरा खड़ा है पहाड़  


पहाड़ो से बहता झरना ..लुभावना द्रश्य ...हिमालय से कम नहीं 

 पुणे का इतिहास :---


 आठवी शताब्दी मे पुणे को 'पुन्नक' नाम से जाना जाता था। शहर का सबसे पुराना वर्णन इ स 758 का है, जब उस काल के राष्ट्रकूट राज मे इसका उल्लेख मिलता है। मध्ययुग काल का एक प्रमाण जंगली महाराज मार्ग पर पाई जाने वाली पातालेश्वर गुफा है, जो आठ्वी सदी की मानी जाती है।


17 वी शताब्दी मे यह शहर निजामशाही, आदिलशाही, मुगल ऐसे विभिन्न राजवंशो का अंग रहा। सतरहवी शताब्दी में शहाजीराजे  भोंसले को निजामशाहा ने पुणे की जमींदारी दी थी। इस जमींदारी मे उनकी पत्नी जिजाबाई ने ई .स1627 में शिवनेरी किले पर शिवाजीराजे  भोंसले को जन्म दिया। शिवाजी महाराज ने अपने साथियों के साथ पुणे परिसर में मराठा साम्राज्य की स्थापना की। इस काल मे पुणे में शिवाजी महाराज का वर्चस्व था। आगे पेशवा के काल में ईस 1749 सातारा  को छत्रपति की गद्दी और राजधानी बना कर पुणे को मराठा साम्राज्य की 'प्रशासकीय राजधानी' बना दी गई। पेशवा के काल में पुणे की काफी तरक्की हुई। ई स 1818 तक पुणे में मराठों का राज्य था।




शिवाजी महाराज 




शाम को हम जैसे ही बस स्टेशन पहुंचे ..हमारी दोस्त दीपा अपनी गाडी लिए हमारा इंतजार कर रही थी ..और हम चल दिए उसके घर कोरेगाँव में ....कोरेगाँव पुणे में बहुत प्रसिध्य है क्योकि यहाँ जगत प्रसिध्य 'ओशो' का आश्रम है ...यहाँ ओशो पार्क भी है ...जहाँ ओशो के अनुयायी आपको प्रेममयी वातावरण में मशगुल दिखाई देगे ...पर मेरा इरादा वहां जाने का हरगिज नहीं था--- 

थोडा सुस्ताने के बाद रात को  हमने पूना  की सड़के नापी ..वहां के  मशहूर  माल में कुछ खरीदारी की ...वहां की मशहूर बेकरी से कुछ खाने के  स्नेक्स ख़रीदे और एक होटल में मस्त बिरयानी का मजा लुटा ...वापस घर आकर सो गए ....

 

दीपा के घर  मैं  

सुबह नाश्ता करके हम चल दिए 'दगडूमल सेठ ' के गणपति देखने ...जिसे देखने हम यहाँ आये थे ..लाइन  काफी लम्बी थी ..पर हम भी कुछ कम नहीं ....आप भी देखे ....


 श्रीमंत दगडू शेठ हलवाई का गणपति :--




दगडूशेठ का गणपति  पंडाल 


गणपति बप्पा विराजमान है 



सामने दगडू शेठ का मंदिर 





दूर से भी गणेश की खुबसूरत कृति 



दगडूमल शेठ के मंदिर के सामने मैं ....और यह शाल मुझे मंदिर से ही मिली ...गणपति की कृपा ..



इस बार जयपुर के हवामहल की कलाकृति बनाई थी ..काफी भीड़ है और लम्बी लाइन भी ..



एक पुराना फोटू दगडू सेठ के गणपति का  ( गूगल से स - सादर ) 


1893 में श्रीमंत दगडू शेठ मिठाई वाले ने गणपति की स्थापना कि थी ...सम्पूर्ण महाराष्ट्र में यह गणेश सबसे एश्वर्य शाली माने जाते है ....इनकी मूर्ति पर 3 करोड़ रुपयों के गहने चढाये जाते है ..जब लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेश उत्सव मनाने  का आव्हान किया तो  यह गणपति भी सार्वजनिक हो गए ...यहाँ के गणेश की मन्नत लोग बाग़ रखते है फिर मन्नत पूरी होने के बाद कुछ जेवर चढाते है ....यह मंदिर एक ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है ...जिसमें कई कार्यक्रम होते है .... 

जेवरो से लदे गणेश ... यह चित्र भी गूगल बाबा  से                  


चलिए अब  यह  पोस्ट यही ख़त्म करती हूँ ....आगे देखिये आगा खान पेलेस .....