मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शनिवार, 29 जनवरी 2011

डलहोजी ( २ )



डलहोजी का माल रोड 


    १२  जुलाई  

आज ही हम सुबह डलहोजी पहुंचे थे --थोडा आराम किया --करीब ४बजे हम नीचे उतरे --होटल वाले ने बताया की थोडा राइट चलना पड़ेगा ५ मिनट में मालरोड आ जाएगा ;हम पैदल ही मालरोड की तरफ चल दिए --रास्ते में कोई भी दिखाई नही दे रहा था --न इन्सान न जानवर !राइट साईट में होटलों की कतार  थी और लेफ्ट में गहरी खाई !  खाई के नजदीक रेलिंग पर कारे धुल से अट्टी  पड़ी थी --सिर्फ नजदीक से कोई कार गुजर जाती थी , पर इंसान कही दिखाई नही दिया --न कोई स्थानीय आदमी नजर आ रहा था-- मन में ख्याल आया की ' कही यहाँ आकर कोई गलती तो नही कर दी ' पर मन की बात मन में ही रखी ' वरना सब मुझे ही चिल्लाते '!
  
    खेर ,वैसे मौसम बहुत ख़ुशगवार था--आसमान एकदम साफ था--धुप   बिखरी हुई थी--जाता हुआ सूरज सारी  खाई को सुनहरी आभा प्रदान कर रहा था--ठंडी हवा के झोके तन- मन को मदहोश कर रहे थे --



(मौसम  बहुत अच्छा था )



( धुप खिली हुई थी )

खेर ,जैसे तैसे १० मिनट में बढते-  बढते अचानक एक मोड़ आया -- वाह अन्यास  मुंह से निकल पड़ा -- सामने ही मालरोड था --वहां काफी चहल पहल थी --ज्यादातर वैवाहित  जोड़े हाथो में हाथ डाले धूम रहे थे -- 


( माल रोड की सरगर्मियां )


( मालरोड का खुबसुरत नजारा)


( माल रोड पे  रेस्ट करने के लिए बनाई गई है बेन्चेस  )

माल रोड पर बहुत रश था --दुकाने सजी थी --लोग गर्मागर्म जलेबियाँ और उबले अंडे खा रहे थे -छोटा -सा मालरोड था --ढंडी हवा और धुप का मिलाजुला मंजर देखने को मिला --एक तरफ बैठने के लिए बेन्चेस लगे थे --काफी फेमेलियाँ वहाँ बैठी थी --बच्चे खेल रहे थे क्योकि वहां बंदर भी सबका मनोरंजन कर रहे थे - यहाँ आकर मन शांत हुआ की हम अकेले नही हे  दिल में जो डर था वो भाग चूका था हम भी भीड़ में शामिल हो गए--

(शाल व् स्वेटर की दुकाने )

(  पावभाजी का स्टाल )

(यममी  sss- --आइसक्रीम )

( गरमा-गरम ममोज  )    

तिब्बती मार्केट बहुत ही छोटा और संकरा बना हुआ था --दोनों तरफ दुकाने सजी हुई थी --अंदर बहुत भीड़ थी ४-५ फिट के गलियारे में मेरा तो दम धुटने लगा इसलिए मै बाहर निकल आई --बच्चे अपने लिए औरअपने     दोस्तों के लिए गिफ्ट ले रहे थे -हम दोनों ने ठेले पर चाय पी --मुझे ठेले की चाय बहुत पसंद हे --कडक ! मीठी !

    धीरे -धीरे अँधेरा छा  रहा था --समय का पता ही नही चला --नजदीक ही हिमाचल टूरिज्म का आफिस था हमको कल के लिए वाहन की जरूरत थी --इंतजाम करना था --वहां कई पैकेज थे जैसे --खजियार -डलहोजी ,चंबा -डलहोजी -खजियार ,वगेरा ? हमारे पास टाइम कम था सो ,चंबा का प्रोग्राम केंसिल किया --वेसे लक्ष्मी नारायण का मंदिर और चम्बा देखने की इच्छा  बहुत  थी- अगर एक दिन और  होता तो मै चंबा जरुर देखने  जाती  --खेर ,खजियार के लिए तो गाडी करनी ही थी रात वही गुजारनी हे  --हिमाचल टूरिज्म की गाडी 1600 रु में की --सुबह पंचकुला दिखाकर खजियार जाने का प्रोग्राम बना |

( रात का नजारा एक खूबसूरत पप्पी के साथ )

 रात  को वापस आ रहे थे तो मोहन मिला वो हमे इतना सफर 1200 रु में करवाने को तैयार था --हमने पूछा की तुमको कैसे पता चला तो वो बोला --आप आफिस में बात कर रहे थे तब मै वही था खेर ,वो हमे कल खजियार धुमाकर रात वही  गुजारकर दुसरे दिन पठानकोट तक छोड़ देगा --कुल किराया 2600 रु में बात पक्की हुई --सुबह ही वो होटल में आ जाएगा -हमने होटल का नाम बताया और होटल चल दिए --मोहन चला  गया -हम भी चल दिए जब--मोड़ पर पहुचे तो शाम की बात अचानक याद आई 'अरे यह रास्ता तो एकदम सुनसान हे'--अब क्या करे मोहन को देखा तो वो जा चूका था -सामने रोड एकदम सुनसान थी --हम अकेले थे--पराया शहर !रात के ९बज रहे थे , मेरी तो हालत पतली हो चुकी थी -पर मिस्टर बोले -वाहेगुरु का नाम  जप बेडा पार होगा --ऐसी परेशानी आजतक कही नही आई थी --अब तक कितने ही हिल स्टेशन धूम चुकी हु पर ऐसा कभी नही हुआ --खेर वाहेगुरु -वाहेगुरु जपते -जपते चल रहे थे तो, देखा-- दिन में जहाँ परिंदा  नही था वही   रात में काफी लोग अपने होटलों के आगे मटरगस्ती कर रहे थे --हम फटाफट अपने होटल में आ गए --कमरे में आकर वाहेगुरु का शुक्रिया अदा किया --उस पर सब छोड़ दो --सब कुछ ठीक हो जाता हे --!
   बाहर बहुत ठंडी है  --रात को हम जल्दी ही सो गए --बच्चे फ़ुटबाल का मैच देख रहे थे--आज फ़ाइनल जो हे --सुबह खजियार जाना हैं  --
जारी  ---

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

डलहोजी ( १ )




डलहोजी 






ता. १२ जुलाई


    सुबह ८बजे नींद खुली -- अभी भी थकान बाकी थी -- धर्मशाला की याद ताजा हो गई उसी खुमारी में तैयार होने लगे -- अगले पड़ाव की उत्सुकता बनी हुई थी की डलहोजी कैसा होगा ---?


    पठान कोट में बहुत गर्मी थी -- उतनी ही गर्मी हम सबके पेट में हो गई -- इस लिए सबसे पहले लस्सी पीने पहुंचे --  पठानकोट की लस्सी बड़ी 
फेमस हे -  यह बात प्रीत ने बताई क्योकि वो यही का रहने वाला हे --
 खेर, बिना नाश्ता किए हम लस्सी पीने चल दिए -- |


    लस्सी चांदी के बड़े - बड़े गिलासों में मिलती हे-- हम तो आधा भी नही पी सकते -- इसलिए १\३ करना पड़ा -- नाश्ता तो भूल ही चुके थे क्योकि लस्सी से ही पेट भर चूका था |


    ऐ. सी. कार में जब तक बैठे रहे तब तक की पहाड़ियां शुरू नही हो गई --और जैसे ही ऊँची-ऊँची पहाड़ियां शुरू हुई हमने शीशे खोल दिए --
वाह ! क्या नजारा था ! बेमिसाल कुदरत बिखरी पड़ी थी --- ठंडी हवा के झोके गले मिल रहे थे -- मानो पूछ रहे हो 'कहाँ थी इतने दिन ?'


( दूर से खिंचा पहाड़ियों का द्रश्य )

    जैसे - जैसे ऊपर जा रहे थे मनमोहक द्रश्यावली मन को मोह रही थी -- बादलो के बीच हमारी कार चली जा रही थी -- धुप आँख मिचोली खेल रही थी -- चीड और देवदार के लम्बे -लम्बे पेड़ हमे बाहों में समेटने को आतुर थे-- चक्करनुमा रास्तो से गाडी भागी जा रही थी --
    आगे, कुछ स्थानीय बच्चे गाडियों को रोक कर कुछ बेच रहे थे -- हमने देखा वो नाशपती थे -- एकदम मुलायम ,ताजा ! मेने - "पुछा कितने के है ?" बच्चे बोले - 30रु. के? मै कुछ बोलू इतने में एक बोला -- '20 दे दो मेडम!' मैने देखा करीब 2 किलो के बराबर थे -- हमारे बाम्बे में तो 20रु पाव मिलते हे वो भी इतने ताजा कभी नही मिले -- खेर ,हमने तुरंत लेने में ही अपनी भलाई समझी-- मुझे डर था कही वो १० रु  न बोल दे -- मैने फटाफट सारे  नाशपती झोले में रखे -- इतने स्वादिष्ट नाशपती, मैने कभी नही खाए थे --

( यही से नाशपती खरीदी थी पैसे लेते ही बच्चे रफूचक्कर )


( डलहोजी का सुंदर नज़ारा )


    कुछ देर रुक कर हम भी चल दिए -- सुहाने सफर पर --
डलहोजी धोलाधार पर्वतश्रंखलाओ के मध्य स्थित एक खूबसुरत पर्यटन  स्थल है यह चम्बा जिले में स्थित हे -- उस समय के वायसराय लार्ड डलहोजी को यह स्थान बहुत ही पसंद था - अपनी गर्मी की छुटियाँ वो यही गुजरते थे -- इसतरह  इस पर्वतीय स्थल का नाम डलहोजी ही पड गया | समुद्र -तल से इसकी उंचाई 2036 मीटर हे -- लक्ष्मी नारायण मन्दिर यहाँ का प्रसिध्द मन्दिर हे | डलहोजी दुसरे पर्यटन स्थल की तरह भीड़ - भाड वाला न  होकर सुनसान और शांत हे -- यहाँ की दुकानो में देशीपन झलकता हे -- आधुनिकपन न के बराबर हे -- यहाँ होटल भी अच्छे व् मध्यमवर्गीय हे - रेस्तरा में शराब नही बिकती हे -- हा, खाना वेज नानवेज दोनों मिलता हे -- पाव भाजी बिलकुल न खाए क्योकि यह कद्दू की बनी होती हे और वो मुझे जरा भी पसंद नही आई -- 'ममोज ' जरुर अच्छे लगे जो स्थानीय लोग निचे बैठकर गर्म - गर्म बनाते हे सस्ते  भी हे १० रु का एक ! यहां  का मालरोड बहुत छोटा हे -- तिब्बत  मार्केट भी हे -- जहाँ  से हमने कुछ शाले खरीदी --


    १२बजे हम डलहोजी पहुँच गए -- सीधे सुभाष चोक पहुचे -- यहां काफी टेक्सियाँ खड़ी थी -- बस स्टेंड भी यही था -- यही से चम्बा और खजियार के लिए वाहन मिलते हे -- लेकिन  हमको होटल चाहिए था सस्ता, सुन्दर, टिकाऊ सो; मिल गया -- 900 रु किराया पर --


(पतिदेव आराम के मुड में )


( होटल के कमरे के अंदर से खिंची तस्वीर )


( ऊपर होटल से लिया फोटो )

(थोड़ी देर में ही ये बदलो का झुण्ड न जाने कहा से आ गया )

(  होटल हालीडे  प्लाजा )

    होटल में हमको  पंहुचा कर प्रीत चला गया -- कल से उसके कालेज खुल रहे थे और उसे धर भी जाना था -- हमने खाना खाने को कहा तो उसने मना कर दिया बोला धर जाकर ही खाउगा -- बहुत अच्छा लड़का लगा -- बेटे की कमी पूरी कर दी थी -- बेटा सन्नी ( IT इंजिनियर ) हमारे साथ नही आया - उसको आफिस से छुट्टी नही मिल सकी -- वैसे उसे धुमने में खास दिलचस्पी नही हे -- फ़ुटबाल-कप भी चल  था-- न आने का एक कारण  यह भी था- फिर हमारे 'शेडो' (पप्पी ) का ख्याल भी उसी को रखना पड़ता हे -- खेर, हमने खाना मंगवाया और थोडा आराम करने लगे -- शाम को माल रोड जो धुमना हे--

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

मेक्लोंडगंज, ( धर्मशाला )

५ जुलाई को बॉम्बे से यात्रा शुरु की थी --आज ११ जुलाई है --सुबह पालम पुर से निकले थे --रास्ते मे चामुंडा -माता  का मन्दिर देखते हुए --आगे बड़े    -१२बजे तक हम धर्मशाला पहुचे - --


(पहुँच गए धर्मशाला में )




मेक्लोंडगंज में धुसते ही जोरदार बारिश ने हमारा स्वागत किया --फिर पहाड़ी पर 'जाम'लगा हुआ था--- इसलिए थोड़ी परेशानी हुई, पर इस खुबसूरत पहाड़ी शहर ने हम सब का मन मोह लिया--मेरा अंतर्मन तो वेसे ही पहाड़ो को देखकर नाचने लगता हे --लेकिन यह शहर वाकई में खूब सुरत हे-- यदि ऐसा न होता तो तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा यहाँ अपनाआशियाना न बनाते --इसलिऐ बोध्य भिक्षु काफी नजर आ रहे थे ---
                         
  

बारिश  रुक गई थी --और मोसम बहुत ही खुशनुमा हो गया था-भीगा -भीगा समा था --चारो तरफ ठंडी हवा के झोके ,बादलो के झुण्ड,दूरधोलाधार की पहाड़ीयां,मन शायरी करने को मचल रहा था -- कार से उतरकर हम पैदल ही चल पड़े-भागसु नाग मन्दिर देखने --दोनों तरफ      पहाड़ी लोगो की दुकाने सजी हुई थी --छोटा -सा बाज़ार हे  -- मेरीलडकियों ने कुछ ज्वेलरी खरीदी ---
हम मंदिर में पहुचे यह शिव मंदिर हे काफी पुराना मंदिर हे --सामने ही  तालाब  में बच्चे -बड़े मस्ती कर रहे थे -कुछ दूर एक झरना हे -यह उसी का पानी हे - -पूछा- तो पता चला की २किलो मीटर हे झरना  --देखने की बहुत इच्छा थी -पर नही गए क्योकि रास्ता खराब था--और हम दोनों इतना पैदल चल नही सकते थे --बच्चो को कहा --तुम लोग धूम आओ हम यही पर बैठकर   इन्तजार करते हे --पर उन्होंने भी मना कर दिया --भूख जोरो की लग रही थी ,सुबह के आलू के पराठे कब के रफूचक्कर हो चुके थे --एक छोटे से होटल की छत पे खाना खाने पहुचे ---      


(खाना आया नही हे --पेट में चूहे कबड्डी कर रहे हे )

खाना खाकर हम चल दिए -दलाई -लामा-टेम्पल देखने --चीन के अत्याचारों  से दुखी हो दलाईलामा ने तिब्बत छोड़ मेक्लोंडगंज को अपना धर बनाया -- यह मठ तिब्बती करीगरी का बेजोड़ नमूना हे --यहाँ भगवान बुध्द की मूर्तियों पर सोने की पालिश हुई हे-- यह ३ मंजिला भवन हे निचे की मंजिल पर बहुत से भिक्षु इधर -उधर धूम रहे थे --कुछ अपना काम कर रहे थे --हम भी उनसे इजाजत लेकर ऊपर चढ़ गए --सीढियों  पर ही एक बड़ा -सा टोपा बना था--इसे क्या कहते हे पता नही ?- ऊपर सुंदर -सी बड़ी भगवान बुध्द की मूर्ति लगी

  
(यह शायद घंटा हो सकता हे )  
                                
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(  दलाई लामा टेम्पल )


(भगवनबुध्द की मूर्ति )

(तिब्बती -मठ के बाहर लगी मूर्ति )  


(मठ के अंदर का द्रश्य )



हल्की-हल्की बारिस होने लगी थी --हम भी भागकर कार में धुस गऐ --बहुत अच्छी जगह लगी हमेशा याद रहेगी --काफी स्थान देखने बाकी हे फिर जाने कब मोका मिलेगा--? वेसे दुबारा जरुर आउंगी --बिदा --|
रात को पठान कोट पहुचे --पहले होटल गए  --रूम अच्छे थे --यहाँ गर्मी बहुत हे --ऐ.सी. रूम लेना पड़ा -- थक गए --जल्दी सोना पडेगा--सुबह हमको डलहोजी के लिए निकलना हे ---
जारी ---

रविवार, 23 जनवरी 2011

# * पालमपुर की यात्रा ( 2) * #


११ जुलाई 2010 
   रात को बहुत अच्छी नींद आई --सुबह आँखें खुली तो कमरा एकदम ऐ.सी.की तरह ठंडा हो चूका था --रात को एक्स्ट्रा रजाईयां  ली थी फिर भी ठण्ड लग रही थी-पर धुप निकल चुकी थी --पर्दे हटाए तो  चीख निकलते -निकलते रह गई --इतना सुंदर द्रश्य --देखते ही रह गई 
   
(सुबह का   मन- मोहक  द्रश्य ) 


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(पालमपुर का चोराहा )            
(और यहाँ  मे )
नहा -धोकर तैयार होकर हम ने नाश्ता किया --पहाड़ो पर आलू के परांठे बहुत मिलते हे -नाश्ता करके हम धुमने चल दीऐ  'न्युग्ल केफे '--यहाँ बहुत सुन्दर पार्क बना हे बिच मे एक झोपड़ी नुमा काटेज बना हे-- बड़ा अच्छा मोसम था--अमृतसर की गर्मी हम भूल चुके थे ----    
(न्युगल केफे ) 

(न्युगल केफे के पार्क में )

(न्युगल केफे के पार्क में मिस्टर सिह ) 
सामने जो झोपडी दिखाई दे रही हे वो कचरा -धर हे --उसमे एक चरसी बैठा चरस के कश खीच रहा था --मेरी लडकियाँ डर गई --हम तुरंत वहां से चल दीऐ ---वेसे भी हमे नेशनल पार्क जाना था --पर सब ने मना कर दिया --सो,हम पालमपुर से  धर्मशाला को चल दिए ---                          
पालमपुर से धर्मशाला की यात्रा बहुत अच्छी रही रस्ते भर पालमपुर के चाय के खेत दीखते रहे --रात की बारिश ने शमां खुशनुमा बना दिया था --आम के पेंड़ो से आम गिरकर सड़क पर पड़े थे --बच्चो ने २-३ किलो आम इक्कठा कर  लिए -- यहाँ के आम छोटे -छोटे होते हे बिलकुल जामुन के बराबर --पर मीठे बहुत थे 
   
(चाय के फेमस खेत )
और अब हम पहुच गए धर्मशाला में --वहां रुके नही सीधे ऊपर गए वहां भी 
हमारा स्वागत किया बारिस ने --मेक्लोडगंज  ऊपर के हिस्से को कहते हे
जारी ----

शनिवार, 22 जनवरी 2011

* # * जिन्दगी *# *

आरजूऐ  धूलि  हुई उजली ,
     हसरतो का लिबास लगती हे ,
         तुझको मायुस देखती हु जब भी,
               सारी खुशियां उदास लगती हे  |
                    जिन्दगी की अज़ीज़ -शे अपने ,
                            इक दुश्मन पे वार  दी  मैं ने,
                                    आप -बीती न पूछिऐ दोस्तों ,
                                         जैसे गुजरी,गुजार दी मेने |     
        

* पालमपुर की यात्रा (1) *


ता. १० जुलाई को हम सुबह हीअमृतसर से निकल पड़े --बेटे का एक ' चैट -दोस्त ' अपनी गाडी लेकर आया था उसी मै सवार हम अमृतसर में  ही   स्थित 'लाल माता 'के मन्दिर गए --मन्दिर बहुत ही विशाल था --अन्दर की सजावट उससे भी सुन्दर थी --- गेट पर ही माता की विशाल मूर्ति थी---
( लाल माता )

( मैं लाला माता मंदिर में )

(मेरे mr. गुफा में )

( भगवान् शिव )
मन्दिर से फ्री होकर हम चल पड़े पालमपुर की और ----

( हम कार से पालमपुर की और )

( पालमपुर के सुंदर झाड )

( पालमपुर के प्रसिद्ध खेत )

( पालमपुर का सुंदर नज़ारा )

मन भावक रास्ते ,पहाड़ो के निचे बहती नदी , ठंडी चलती पुरवैया किसका मन न मोह लेगी  | "सुहाना सफर और ये मोसम हसीं "  
रास्ते  मे आया शिवजी का यह मन्दिर..
( शिवजी का मंदिर )

( मंदिर के बगल में बड़े से शिवजी )
अमरनाथ यात्रा चल रही हे इसलिए जगह -जगह खाने के पंडाल सजे हे --इस मन्दिर में भी खाने की व्यवस्था थी पर हम अमृतसर से खाकर चले थे-- इसलिए किसीको भी भूख नही थी --चाय पिने की इच्छा जाहिर की --पर उन लोगों ने मना कर दिया की अभी चाय का टाइम नही है --खेर, आगे होटल मे पिएगे यह सोच कर चल दीऐ --रास्ते मे  बहुत छोटे -मोटे होटल मिलते है सो ,आगे का सफर जारी रखा --         
कुछ दूर गए थे की जोरदार बारिश शुरू हो गई ---चारो और अँधेरा छा गया --हमारा सफर जारी था -- आगे बारिश बंद थी --
खूब सुरत माहोल में कब टाइम निकल गया पता ही नही चला --रात करीब ८बजे हम पालमपुर पहुचे --होटल का कमरा ठीक -ठाक था --सीज़न ख़त्म हो गया फिर भी कमरों का रेट ज्यादा हे --थकान से ऑंखें बंद हो रही थी --सो सब सो गए ---|
जारी ---- 

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

# सुनहरी यादें #

* याद आते हो तो कितने ----
अपने -से लगते हो तुम ----
वर्ना,  हर लम्हां गुजरता हे ----
तुम्हारे ख्यालो में ----
चुप -सी आँखों में आज ----
फिर वही सवाल उठा ----
क्या राहत मिलेगी मुझे ----
इन बंद फिजाओ में ----!
खेर, अँधेरे  भी  भले -जीने के लिए ----
गैर, हो जाते हे सभी चेहरे उजालो में----
मुस्कुराओ तो भी अच्छा हे ----
बेरुखी भी भली तुम्हारी ----
बेअसर हे सभी बाते यहाँ मलालो में ----
याद आते हो तो एहसास -ऐ -ख़ुशी मिलती हे ----
यूँ तसल्ली भी गिरफ्तार हे सो (१००) तालो में----|           

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

पाक -सिक्ख कमेटी

       

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पाकिस्तानी  प्रसासन ने गुरुनानक देव जी के जन्म स्थान ननकाना साहिब मे भारत-पाकिस्तान और युरोपियन देशो के धार्मिक   जत्थों को जुलुस निकलने की अनुमति नही दी --इस निर्णय से  सारी सिक्ख कोम सकते में आ गई --अपने गुरु का जन्म दिन मनाना उसके जन्म स्थान पर ,भव्य जुलुस निकलना ,उसमे शरीक होना हर सिक्ख का एक सपना होता है --पर पाकिस्तानी प्रशासन के इस अड़ियल रवये से पाकिस्तानी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेंटी मायुश हुई |

       प्रशासन   का कहना था की ' जेहादी तालिबानी हमले की आशंका के डर से हम ऐसा कर रहे हे --क्योकि  कट्टरपंथी तालिबानी जेहादी पिछले कुछ वर्षो से पाकिस्तानी सिक्ख बिरादरी को अपना निशाना बना रहे हे --कई सूबे जहाँ सिक्ख परिवार बरसो से आबाद थे --उनके हमलो से इधर -उधर शरण ले चुके है |

            यह एक ऐतिहासिक त्रासदी हे की  1947 के  पहले ,जिस क्षेत्र  मे सिक्खों की एक बड़ी संखिया बरसो से आबाद थी वहां आज गिनती के परिवार रह गए हे | सबसे बड़ी बात तो यह हे की जिस मुकाम पर धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का  जन्महुआ (ननकाना साहेब}आज वहां उनकी याद में एक जुलुस भी नही निकाल सकते --उनका जन्म दिन नही मना सकते  ?  कितनी त्रासदी हे सिक्ख समाज के लिए |

        किसी जमाने मे सिक्ख सम्प्रदाय के महाराजा रणजीत सिंह के शासन काल (१८०१-१८३९) में  सिक्ख साम्राजय  पंजाब के अलावा सिंध, बलोचिस्तान ,जम्मू -कश्मीर ,पश्तून-सूबा सरहद तक फैला था | उन्होंने लाहोर को अपनी राजधानी बनाया और शासन किया था --उसी दोरान सिक्ख बिरादरी ने अपना कारोबार इन इलाको में फैलाया और वहीँ बस गए | अगर,रणजीतसिंह दिल्ली और अवध की ओर बड़ते , तो शायद हिंदुस्तानि सियासत की तस्वीर कुछ और ही होती |


        1947 के बंटवारे में यह सिक्ख बहुल क्षेत्र  विभाजित हो गया और हिन्दुस्तान का यह हिस्सा पाकिस्तान में चला गया | विभाजन के वक्त इंसानियत का जो खून बहा वो  सबको  पता हे --जिसमे ज्यादातर लाशे सिक्खों की थी ?


          आज बहुत थोड़े से सिक्ख-परिवार ही पाकिस्तान में रह गए हे , उन्होंने अपने ,गुरुद्वारों की सुरक्षा और देख भाल के लिए " पाकिस्तान सिक्ख गुरुद्वारा कमेटी "  बनाई हे और पाक सरकार ने भी उदारता का परिचय देकर इसको मंजूरी दे दी हे  |  इसके चलते आज सिक्ख बिरादरी ने पाकिस्तान  में  अपना  एक  खास  मुकाम  बनाना शुरू कर दिया हे --

             पाकिस्तान  के  इतिहास  में  पहली बार सरदार हरचरण सिंह फोज में और  ट्रेफिक इंस्पेक्टर सरदार कल्याण सिंह प्रशासन में आए हे |   यदि होसला बुलंद हो ,लगन हो तो कोंन आगे बढ़ने  से रोक सकता हे ?                              
एक गायक ने इसे  यु पेश किया हे -------
'रब्बा दिल पंजाब दा  पाकिस्तान ते  रह गया ऐ--- 
दीया न पूरा होना ऐसा घाटा पे गया ऐ |
नई  भूलन  दुःख संगता  नु  बिछड़े  ननकाना  दा | 







मंगलवार, 18 जनवरी 2011

तालिबानी हुक्म

आज न्यूज चेनल 'आज -तक ' पर एक खबर देखि ---मुजफ्फर नगर के एक  गाँव मे पंचायत ने ये तालिबानी -हुक्म दिया है की --' सभी लड़कियां जिन्स न पहने और न ही मोबाइल का इस्तेमाल करे !अगर उन्होंने ऐसा किया तो उनका धर से निकलना बंद किया जाएगा '  | पंचायत का यह मानना है की इन विदेशी पहनावे ने लडकियों की शर्म - हय्या ख़त्म कर दी है और मोबाइल के इस्तेमाल से प्रेम -प्रसंग बढ़ रहे है ,लडकियों के धर से भागने की तादात ज्यादा हो रही है | उन्होंने समस्त देश वासियों से भी कहा है की वो भी हमारी बात का समर्थन करे --हमें अपनी संस्कृति की रक्षा करनी चाहिऐ |
अब ,यह हमारे सोचने की बात है की'क्या लडकियों पर थोपा यह इलजाम सही है ? हमारे संविधान का क्या जिसने हमको व्यक्तिगत स्वतंत्रता दी है ?क्या यह स्वतंत्रता पर कुठाराघात नही है ? आपकी क्या राय है -------- 

सोमवार, 17 जनवरी 2011

लोहड़ी

सभी ब्लॉगर -जगत को लोहड़ी और मकर -संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाए


   १३जनवरी को मनाऐ जाने  वाला पर्व ' लोहड़ी' कहलाता है| लोहड़ी यानि मोज -मजा मस्ती! ढोलक की थाप पर नाचना - गाना, तिल, रेवडिया, मूंगफली, आग मे डालना यही लोहड़ी की पहचान है| लोहड़ी का सम्बन्ध सूर्य से भी है - आज ही सूर्य का प्रवेश दक्षिण से उत्तर की और मकर राशी के जरिए होता है जिसे 'मकर -संक्रांति 'भी कहते है| लोहड़ी का पर्व उनके लिए भी हर्ष लाता है जिनके यहाँ पहले पुत्र का जनम हुआ हो या पुत्र की शादी हुई हो ,वो अपने रिश्तेदरो को आमन्त्रण देकर अपने धर बुलाते है और लोहड़ी मनाते है इस दिन मक्का की रोटी, सरसों का साग, गन्ने के रस की चावल की खीर बनाई जाती है| कुछ'खास' धरो मे मांस -मदिरा का भी सेवन होता है| यह पंजाब का एक महत्वपूर्ण -पर्व है, किसान अपनी फसल को पका हुआ देख ख़ुशी से नाचता - गाता है तब लोहड़ी के  उत्सव मे और भी उल्लास आ जाता है - लोहड़ी वाले दिन शाम को सब रिश्तेदार एक जगह एकत्रित हो कर आग जलते है और मिलजुल कर नाचते हुए आग के चारो तरफ चक्कर लगाते हुए लोहड़ी का गीत गाते है |


और अब मे अपने शहर वसई आती हु--" हम सब गुरूद्वारे मे मिलजुलकर यह पर्व मनाते है -हमारे वसई की यह खासियत है- सब मिलकर हर त्यौहार गुरुद्वारे मे मनाते है -- चाहे गुरु -पर्व हो या दिवाली हो ,शादी हो या जन्मदिन, खुशियाँ हम एकसाथ ही मनाते है किसी को भी अकेलेपन का एहसास नही होता "

(यहाँ लोहड़ी अभी जली नही है )


  ( लो लोहड़ी जलने लगी )

( चक्कर लगाती संगत )

( चक्कर लगाती संगत )


( और अब मैं और मेरे mr. )