मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

ओंकारेश्वर .... शिव का ज्योतिर्लिंग




शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक   
ओंकारेश्वर --भाग 1 


(यह चित्र  गूगल से ---क्योकि यहाँ  फोटू खींचना मना है  )


अपनी भतीजी की शादी में इंदौर जाने का मौका मिला ..वैसे मैं  इंदौर जाने के कई मौके तलाशती रहती हूँ ...जनम स्थान का सवाल है भाई .....

दिनांक--21/1 /2013:--
 .कल तक शादी थी ..आज कुछ फ्री हुए तो सोचा कहीं घुमने जाया जाये ..कल तो वापस जाना ही है अपने गाँव ..फिर सोचा कहाँ जाया जाए क्योकिं इंदौर में ज्यादा घुमने -फिरने की जगह नहीं है ..अहिल्या की नगरी है तो शिव भक्त अहिल्या बाई होलकर के यहाँ शिव के मंदिर ही ज्यादा होगे ...तो सबने सोचा की अब ओंकारेश्वर ही  जाया जाये ..पिकनिक की पिकनिक और शिव के दर्शन भी हो जायेगे .....माध महिना चल रहा है तो इसी तरह कुछ पूजा -पाठ हम राक्षस लोग भी कर लेगे ..हा हाहा हा

अपने बचपन के दोस्त ' श्री राधेश्याम सिसोदिया साहेब' आये थे भोपाल से मुझसे मिलने ...पिछले कई सालो से उनसे मुलाकात नहीं हुई थी अब तो वो रिटायर्ड भी हो गए है ..फ़ूड कंट्रोलर रहे सिसोदिया साहेब ने ही ओंकारेश्वर का प्रोग्राम बनाया था-- बहुत धार्मिक प्रवृति के इंसान है ..उनकी पत्नी सरिता भाभी काफी समय पहले ही स्वर्ग सिधार गई थी--- उनसे भी मेरी काफी पटती थी ..मैने उनके साथ ही सन 1976 में  पहली बार ओंकारेश्वर के दर्शन किये थे ,..तब मैं  अविवाहित थी--- और उन्होंने ही कहा था की 'तुझे शिव जैसा ही पति मिलेगा' जो की  पूरी तरह सत्य हुई थी !

आज काफी साल बाद उनके साथ ही जाने का सौभाग्य मिला ...वैसे तो मैं  ओकारेश्वर कई बार गई हूँ ... 6-7 बार तो चक्कर लगाये होगे  ही ..जब भी इंदौर आती हूँ तो ओंकारेश्वर  या मांडव का एक चक्कर तो हो ही जाता है खेर ,

सुबह 11 बजे सब तैयार होकर निकल पड़े ....


गाडी नहां -धोकर तैयार है और हम सब भी  रेड्डी 




हमारी टीम चलने को तैयार 


वाहेगुरु की फ़तेह बुलाते ही गाडी चल दी ..इंदौर के बाज़ार से गुजरती हुई हाई -वे पर ..-ठंडी ठंडी हवा दिल को सुकून दे रही थी और हम सब मस्त अंताक्षरी  खेलते हुए जा रहे थे ...रास्ते में शनिदेव का बहुत ही विशाल मंदिर आया पर हम रुके नहीं ,सोचा आते समय दर्शन करेगे ...भैरों -घाट  शुरू हो गया .. भैरों - धाट पार करते ही एक चाय की दूकान पर गाडी रोक दी,..पास ही भैरों बाबा का मंदिर था ..सब वहां चल दिए ..कहते है इस धाट को पार करने से पहले भैरों बाबा के जो दर्शन नहीं करता उसके साथ कोई न कोई अनहोनी  धटना धट  जाती है ...इसलिए सभी यहाँ कुछ टाईम  अपना वक्त गुजारते है .... चाय वाले का भी फायदा हो जाता है .. वैसे जगह भी काफी खुबसूरत थी ..ठण्ड का  माहौल था ,ठंडी -ठंडी हवा चल रही थी ...बारिश में यहाँ की ग्रीनरी  देखने काबिल होती है ..चारी और पानी के झरने बहते है ...

 गुजरता  कारंवा 



भैरों बाबा का मंदिर 



जय बाबा की 


भैरों बाबा के मंदिर में मैं ....जय भैरों बाबा की 




भैरों बाबा के मंदिर में हमारी टीम 

भतीजा पापी,मैं ,भाभी,तन्नु ,भतीजी रिनू ,भतीजा बहू सरला,सरला का भाई बिट्टू ,और राधेश्याम जी  ----कैमरा गर्ल नन्नू के साथ हम सब  ....  
   


भैरों मंदिर के पास ही एक चाय की  दुकान पर प्रस्थान ---मैं, भाभी, राधेश्यामजी, और  बहू सरला 




कौन - क्या -क्या खायेगा पप्पी का सवाल ..हम तो सिर्फ चाय पियेगे भाई .




पहाड़ का  नजारा 





लो आ गई एकदम कडक चाय 



मंदिर का इतिहास :--

ओंकारेश्वर हिन्दुओ का एक धार्मिक स्थल है  यह शिव के 1२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है ..यहाँ शिव पिंडी रूप में विराजमान है --यह मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है --नर्मदा नदी के बीच मोरटक्का गाँव से लगभग २० किलो मीटर दूर बसा है ...दूर से देखने पर यह द्वीप    के आक़ार दिखता है, इसीलिए इसका नाम  ॐकारेश्वर पढ़ा ..यह नर्मदा नदी पर स्थित है ..नर्मदा नदी भारत की पवित्र नदियों में गिनी जाती है ..इस समय इस पर विश्व का सबसे बड़ा बाँध निर्माण हो रहा है----


 शेष अगले अंक मैं .....


रविवार, 17 फ़रवरी 2013

प्रेम - सेतु




"जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही--!
बीच मैं यह 'तुम' कहाँ से मिल गए राही --!!"




हम दोनों नदी के दो किनारों की तरह हैं --

जो आपस मैं कभी नही मिलते --?
दूर~~ क्षितिज मैं भी नहीं--?
जहां जमीन- आसमान एक दिखते हैं --
हमे यू ही अलग -अलग चलना हैं --
पुल का निर्माण ही,
हमारे मिलन की कसौठी हैं !
जो असम्भव हैं ---?

 क्योकि जीवन वो उफनती नदी हें 
जिस पर सेतु बनना ना मुमकिन हैं   
आधा पहर जिन्दगी का गुजर चूका है --
कुछ बाकी हैं --
वो भी गुजर ही जाएगा --???
फिर क्यों महज चंद दिनों के लिए यह रुसवाई --
हमे यू ही सफ़र तैय करना हैं --
अलग -अलग --जुदा -जुदा,




वैसे भी दोनों किनारों मैं कितनी असमानता हैं --

अलग प्रकृति !
अलग शैली !
अलग ख्वाहिशे हैं --!

इस तरफ --
प्यार हैं --चाहत हैं,
रंगीन सपने हैं --
मिलन की अधूरी ख्वाहिश हैं --
मर मिटने की दलील हैं --???

उस तरफ --
सिर्फ एहसास हैं --
जिन्दा या मुर्दा --
पता नही --?
पीड़ा देता हैं यह एहसास --!
चुभन होती हैं इससे -- !!
दर्द होता हैं --!!!
यह मृग-तृष्णा मुझे कब तक छ्लेगी --???

सिहर उठती हूँ---





यह सोच कर
कही उसके दिल मैं ' कुछ ' नहीं हुआ तो ?
कैसे रह पाउंगी --उसको खोकर ?
कैसे सह पाउंगी --उसका वियोग ?
यह मृत्यु -तुल्य बिछोह ???
मुझे अंदर तक तोड़ जाएगा ----!
"तो छोड़ दूँ"  
ज़ेहन में  उभरा एक सवाल ?
पर मन कहा मानने वाला हैं --
मन तो चंचल हैं !

समर्पित हैं ! 

उस अनजानी चाह पर,
यंकी हैं,उस अनजाने आकार पर ....   
 जो बसा हैं एक अनजाने नगर में --
दिल जिसे ढूंढता हैं एक अनजानी डगर पें--
तो चलने दूँ --- 
इस सफर को -- इस सिलसिले को ..
निरंतर --यु- ही --अलग -अलग --
कम से कम साथ तो हैं --?

अलग -अलग ही सही ???  





जिन्दगी से यही गिला हैं मुझे !
तू बहुत देर से मिला हैं मुझे  !




गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

लो फिर बसंत आया...






लो फिर बसंत आया
फूलों पे रंग छाया
पेड़ों पे टेसू आया
लो फिर बसंत आया...!

कलियों ने सिर उठाया
भंवरो ने प्यार जताया
लो फिर बसंत आया...!

जाड़े ने दुम दबाया
मौसम ने फिर तपाया
लो फिर बसंत आया..!

कोयल ने चहचहाया
बुगला भी फडफडाया
लो फिर बसंत आया...!

फागुन ने फाग चढाया 
होली ने रंग उड़ाया
लो फिर बसंत आया...!

सूरज ने भी गरमाया
कोहरा भी कसमसाया
लो फिर बसंत आया..!

चंदा भी मुस्कुराया
तारा भी टिमटिमाया
लो फिर बसंत आया..!

सरसों को फिर उगाया
मन झूम -झूम के गाया
लो फिर बसंत आया...!

फूलों पे रंग छाया
      लो फिर बसंत आया --!!