मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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मंगलवार, 24 अक्तूबर 2023

525 शिवलिंग के दर्शन"




525 शिवलिंग के दर्शन"
शिवपुरी धाम 













थेगड़ा (शिवपुरी धाम ) कोटा ( राजस्थान)
करीब 37 साल पहले जब मैं राजस्थान के इस शहर कोटा में आई थी तो यह शहर काफी पुराना और नये ज़माने के बीच झूल रहा था , मैं ठहरी इंदौर (MP) शहर की एक चंचल लड़की पर मुझे यहाँ  किसी भी तरह का कोई आदेश धोपा नहीं गया और मैं कुछ समय आराम से निकाल कर करीब 83 में बॉम्बे आ गई । मेरे आने के बाद ही इस मंदिर की स्थापना हुई । इसीकारण ये मंन्दिर देख नहीं पाई ।

कल अचानक इस मंदिर का जिक्र सुना तो रहा नहीं गया।
हम सारा परिवार 4 बजे इस मंदिर को देखने निकल पड़े ,स्टेशन रोड (हमारा घर) से एक बड़ी नगरीय सेवा (

टाटा मैजिक) से हम 9 लॉगो का झुण्ड चल पड़ा।

नयापुरा, बसस्टॉप, तालाब, नहर से होते हुए बोरखेड़ा के पास ही पुराना गाँव है थेगड़ा  जहाँ ये 525 शिवलिंग है हम पहुँच गए  ।

भीड़ अधिक तो नहीं थी पर सुनसान भी नहीं था ,कुछ लोगो की गोट (पिकनिक) चल रही थी जहाँ दाल - बाटी बन रही थी और बाटी की सोंधी - सोंधी खुशबु फिजाओं में फ़ैल रही थी । मन बाटी खाने को मचल रहा था पर दर्शन करने भी जरुरी थे हम आगे बढ़ गए।

सामने ही ढाई टन का पारद का शिवलिंग था सब उस पर जल चढ़ा रहे थे शिवलिंग के नजदीक ही एक विशाल नन्दी भी बना हुआ था । 

कुछ आगे एक बाबा जैसे नागा साधु बैठे थे सब उनके चरणस्पर्श कर रहे थे उनके पास ही हवनकुण्ड बना हुआ था जिसमें अग्नि जल रही थी ये आज के इस मंदिर के संस्थापक थे ।

उनके सामने उनके गुरु का मोम से बना तपस्या में लीन पुतला था जिसके आगे भी अग्नि प्रज्वलित थी। नमस्कार कर आगे बढे तो राईट साईड में कल्पतरु का पेड था कुछ आगे बढे तो पारस पीपल का पेड़ था जो नगण्य ही पाया जाता है  ।आगे चले तो रुद्राक्ष का पेड़ नजर आया जिसपर काफी मात्रा में हरे हरे रुद्राक्ष लगे थे ,वही गिरा एक हरा रुद्राक्ष भी मिझे मिला ।

उससे आगे बढे तो एक अनोखा दृश्य मेरे सामने था सामने त्रिशूल के आकार पर स्थापित अनेक शिवलिंग थे पास ही पानी की टँकिया थी और लोटे थे जिनमें पानी भर श्रद्धालु शिवलिंग पर चढ़ा रहे थे बहुत ही भक्तिपूर्ण मनमोहक दृश्य था...

इतने शिवलिंग देखकर मन प्रफुल्लि होना स्वाभाविक था \ काफी देर तक हम इस भक्तिपूर्ण माहौल में घूमते रहे जब अँधेरा धिर आया तो सब तृप्त हो वापसी के लिए निकल पड़े। ....







संस्थापक देवलोक वासी  गुरु जी की मोम की प्रतिमा 




रुद्राक्ष का पेड़ जो नेपाल में बहुतयात में पाए जाते है 

पीपल पारस भी बहुत विरले ही दीखता है  





कच्चा रुद्राक्ष  



















पारद के  ढाई टन के शिवलिंग 


अभी के नागाबाबा  श्री सनातन  गुरु जी   


पारस  पीपल का पेड़  


 कल्पतरु का पेड़ 


शिवलिंग के विहंगम दृश्य   




कश्मीर फाईल#3

कश्मीर फाईल #भाग 3

जम्मू से श्रीनगर।

3 सेप्टेंबर 2023


कल हमने जम्मू घूमकर रात आराम से गुजारी सुबह गुल्फम बने हम श्रीनगर को निकले।
अब आगे...
मैंने कश्मीर के लिए 8 दिन ओर 7 रातों का एक टूर पैकेज लिया है जो 41 हजार का है ।जिसमें कार,होटल और लंच व डिनर सम्मलित हैं। 5 हजार मैंने एडवांस दिया हैं।ये मैंने पहला टूर पैकेज लिया है।
जम्मू के होटल में ही ड्रायवर अजीत हमको लेने आ गया और हम 9 बजे जम्मू से निकल पड़े।रास्ते मे हमने एक रेस्तरॉ में नाश्ता किया और आगे चल पड़े।
जम्मू से बनिहाल तक ट्रेन का ट्रैक बन रहा हैं ।सुरंगे खुद रही हैं , सड़क बन रही हैं।काम तेजी से हो रहा है।जल्दी ही हम जम्मू से डायरेक्ट श्रीनगर ट्रेन से पहुँच जायेगे। लेकिन उसके  कारण रास्ता बड़ा ही खराब हो गया हैं ओर मिट्टी भी काफी उड़ रही हैं। जब हमारी गाड़ी बनिहाल से आगे निकली तब रास्ता सुहाना हुआ। दूर तक फैले पहाड़ ओर चावल के हरे भरे खेत दिखाई देने लगे जो देखने पर काफी दिलकश नजर आ रहे थे।छोटे छोटे सुंदर घर ,साफ सड़के ओर लम्बे पेड़ दिखने लगे।मेरी आँखें इन खूबसूरत नजारों से एक पल के लिए भी झपकी नही,सारी ख़ूबसूरती को मैं इन आँखों से ही पी रही थी।सबकुछ एक दिवास्वप्न -सा लग रहा था।
बनिहाल से श्रीनगर एक ट्रेन भी चलती हैं ।समर सीज़न में जब बर्फ गिरती हैं तो ट्रेन से सफर करना बहुत अच्छा लगता हैं।चारों ओर सफेद बर्फ ओर उसपर चलती लाल रंग की ट्रेन।
बनिहाल के आगे हमको 2 लम्बी सुरंग मिली जो करीब 9 km लम्बी थी। एक का नाम जवाहर सुरंग हैं जो पुरानी हैं ।दूसरी नई बनी हैं। चेनानी – नैशारी सुरंग' यह NH-44 पर बनी सबसे लंबी सुरंग हैं । इसके बनने से जम्मू और श्रीनगर की 2 घण्टे की दूरी कम हो गई हैं।मैंने आजतक इतनी लंबी सुरंग नही देखी जो खत्म होने का नाम ही नही ले रही थी।☺️मेरा तो दम ही घुटने लगा😂😂😂
कंजिगुड आते-आते माहौल एकदम आशिकाना हो गया मतलब हवा में भी ठंड़क हो गई थी और आसमान एकदम साफ और नील नीला था।यहाँ मैंने मिलिट्री के जवान हाथो मे रायफल लिए मुस्तेदी से खड़े हुए देखे। काफी मिलिट्री की गाड़ियां भी दिखाई दी।ऐसी ऐसी गाड़ियां देखी जिन्हें सिर्फ कभी Tv पर 26 जनवरी की परेड में ही देखी थी।
श्रीनगर आने से पहले एक मिलिट्री जवान ने हमारी गाड़ी साईड में लगाने को बोला, थोड़ी देर में मैंने एक काफिला गुजरते हुये देखा जिसमे कई तरह की मिलिट्री गाड़िया थी जिस पर जवान खड़े हुए थे सबके हाथों में शस्त्र थे।मैंने तुरन्त अपना मोबाइल चला दिया ।बढ़िया वीडियो बनाने के लिए पर हाय री किस्मत🕵️ वीडियो बनी ही नही🤪 कैमरा तो चालू किया था पर स्टार्ट करना भूल गई।🤦
करीब 5 बजे हम श्रीनगर इंटर हो रहे थे। यहाँ काफी गर्मी लग रही थी।माहौल भी गर्म था। श्रीनगर में काफी चहल पहल थी।हमारी गाड़ी फेमस डल झील से होकर गुजर रही थी। झील में नावे चल रही थी जिसे शिकारा बोलते हैं उसमें बैठकर लोग बोट का आनन्द ले रहे थे।
डल लेक के नजदीक ही हमारा होटल था।हमारी गाड़ी हमारे होटल "हॉलिडे विला" में आकर रुकी ।अब 3 दिन हमारा यही बसेरा था। होटल काफी खूबसूरत था और लकड़ी का काम बड़ी बारीकी से हुआ था।
होटल में सामान रखकर थोड़ा फ्रेश हो, हम चल दिये  श्रीनगर की फेमस डल झील की तरफ।ड्रायवर हमको छोड़कर चला गया।
डल झील पर काफी भीड़ थी। अभी थोड़ा दिन था ।हम एक राउंड घूमकर वही झील की बाउंड्री पे बेठ गए। झील में तैरते शिकारे बड़े सुंदर लग रहे थे।धीरे धीरे अंधेरा छाने लगा।और हाउसबोट रंगबिरंगी लाइटों से जगमगाने लगे।
हम भी काफी थक गए थे इसलिए एक ऑटो में बैठकर अपने होटल आ गए।नीचे डायनिग हाल में जाकर खाना खाया। दाल चावल एक सब्जी और चपाती थी। पेट भर खाकर ऊपर कमरे में  आकर हम सो गए। कल हम दुधपत्री घूमने जायेगे।
तो मिलते हैं एक ब्रेक के बाद🙏










कश्मीर फाईल#भाग 2

कश्मीर फ़ाइल #भाग2
#जम्मू 
2 सेप्टेंबर 2023

1 सेप्टेंबर को हम बॉम्बे से निकले थे और आज 3 बजे हम जम्मू स्टेशन पर थे अब आगे....
मजेदार सफर निकला ।हमारे थर्ड Ac डिब्बे में 2 बढ़िया आदमियों से मुलाकात हुई।पहले व्यक्ति थे सुशील जो 45 मेम्बरों को लेकर कश्मीर घूमने निकले थे अपनी ट्रैवलर एजंसी के थ्रू....
ओर दूसरे थे फेमस यु टीयूबर राकेश खन्ना जिनका चैनल "हर दिन एक मंदिर" नाम से हैं।बहुत बढ़िया व्यक्तित्व के स्वामी हैं । अभी आपनी कैलाश यात्रा पर निकले हैं।
टाइम का पता ही नही चला खूब बातें हुईं।जब 3 घुमक्कड़ मिल जाये तो सफर का अपना ही मजा होता हैं।ये सफर भी यादगार रहा और हम सब जम्मू उतर गए।
जम्मू उतरकर हम टैक्सी से होटल ड्रीमलेंड पहुचे जो मेन बाजार में ही था। रेल्वे स्टेशन से ही टैक्सी ली थी जिसका किराया लगा 450 सो रु । ओर होटल प्रेमबजार में था जिसका रेंट था 1हजार रु। होटल ठीक ठीक ही था।होटल पहुँचकर हम फ्रेश हुए और  जम्मू घूमने निकल पड़े।
सबसे पहले हमने एक सिम खरीदा जो मुझे 400 रु का पड़ा।फिर हमने 800 रु में एक ऑटो किया जो रात तक जितना हो सकेगा घुमा देगा।
जम्मू शहर में बड़े बड़े विशालकाय पोस्टर दिखे जिनमें अमरनाथ यात्रियों को शुभकामनाएं दी गई थी क्योंकि अभी अभी अमरनाथ यात्रा खत्म हुई थी।
आटो वाला सबसे पहले हमको " जामवन्त गुफा पीर खो मन्दिर" दिखाने गया। इस गुफा में कई फकीर,साधु संतों ने तपस्याएं की थी इसलिए इसे पीर खोह बोलते है।डोंगरी भाषा मे गुफा को खोह बोला जाता हैं।यह बड़ी रहस्यपुर्ण गुफा हैं ऐसा स्थानीय लोग कहते है।यहाँ जामवंत ने हजारों साल गुजारे थे ।इसलिए इसे जामवंत गुफा भी कहते है।
कहते है कि राम रावण के युद्ध में जामवंत भगवान राम की सेना के सेनापति थे। युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान राम जब सब से विदा होकर अयोध्या लौटने लगे तो जामवंत जी ने उनसे कहा– "प्रभु युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला परंतु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। मैं युद्ध में भाग नहीं ले सका और युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई।"
उस समय भगवान ने जामवंत जी से कहा–"तुम्हारी ये इच्छा अवश्य पूर्ण होगी जब मैं कृष्ण अवतार धारण करूंगा। तब तक तुम इसी स्थान पर रहकर तपस्या करो।" इसके बाद जब भगवान कृष्ण अवतार में प्रकट हुए तब भगवान ने इसी गुफा में जामवंत से युद्ध किया था।

एक कथा के अनुसार राजा सत्यजीत ने सुर्य भगवान की तपस्या की तो भगवान ने प्रसन्न होकर राजा को प्रकाश मणि प्रसाद के रूप में दी। राजा का भाई मणि को चुराकर भाग गया पर जंगल में शेर के हमले में मारा गया और शेर ने मणि धारण कर ली। इसके बाद जामवंत ने युद्ध में शेर को हराकर मणि प्राप्त की। कृष्ण से हारने के बाद ये मणि जामवंत ने कृष्ण को दे दी।

यहीं से कृष्ण और जामवंत फिर से मिले। जामवंत ने कृष्ण को अपने घर आमंत्रित किया यहीं पर जामवंत ने कृष्ण के समक्ष अपनी पुत्री सत्य भामां से विवाह करने का अनुरोध किया और दहेज स्वरूप प्रकाश मणि दी।

पीर खोह् तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु मुहल्ला पीर मिट्ठा के रास्ते गुफा तक जाते है। मंदिर की दीवारों पर देवी देवताओं के मनमोहक चित्र उकेरे गए हैं। आंगन में शिव मंदिर के सामने पीर पूर्णनाथ और पीर सिंधिया की समाधिंया हैं। जामवंत गुफा के साथ एक साधना कक्ष का निर्माण किया है।जो तवी नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है। यह गुफा घने जंगलो के बीच स्थित है। स्थानीय लोग मानते है कि यह मंदिर भारत के बाहर के मंदिरों और गुफाओं से जुड़ा हुआ है। हजारों भक्त हर साल यहां के मंदिर में पूजा करने आते है।
गुफा के आसपास का दृश्य बड़ा ही सुहावना था।नजदीक ही तवी नदी बह रही थी। जिसके नाम से पहले जम्मूतवी ट्रेन चलती थी। दूर एक गंडोला भी दिखाई दे रहा था जो पहाड़ पर स्थित मां काली  के मंदिर में भक्त्तों को ले जा रहा था।वैसे मन्दिर तक सड़क भी बनी हैं जिस पर होकर हम भी माता के मंदिर में जायेगे।
हम जामवंत गुफा से निकलकर सीधे  नदी के अपोजिट साइड  में स्थित "हर की पौड़ी" मन्दिर में गए ।ये मंदिर नया नया बना है। मन्दिर का  प्रागण्ड काफी विशाल था। हमारा मोबाइल गेट पर ही जमा कर लिया था इसलिए कोई फोटू न ले सकी। इसका मुझे बहुत अफसोस हैं। खेर,इसी मंदिर में नीचे बहती हुई तवी नदी पर घाट बना हुआ हैं जिसमे सीढियां थी । उसी घाट का नाम हर की पौड़ी हैं। यहाँ बहुत बड़े गणेश, माता दुर्गा की ओर शिव जी की काफी विशाल प्रतिमाएं बनी हुई है ,देखकर ही मन प्रसन्न हो गया। मन्दिर परिसर एकदम शांत था । बैठने के लिए बेंचे लगी हुई थी ओर यहाँ भी बड़े बड़े पोस्टर अमरनाथ यात्रियों के स्वागत हेतु लगे थे।शानदार जगह थी पर फोटू न लेने के कारण मन उदास था। अंदर काफी भगवान की प्रतिमाएं थी। मुझे ये मन्दिर कम पिकनिक स्पॉट ज्यादा लगा।😀 शाम होने में कुछ देर थी और हम नदी की सीढियो पर कुछ देर बैठकर अपने आटो में वापस आ गए। इसके बाद हम एक छोटे से मन्दिर में ओर गए ।
अब हम माँ महाकाली के शक्तिपीठ मंदिर में जा रहे थे। जो कठुआ में था। ये मन्दिर पहाड़ पर बना है और काफी बड़ा और विशाल हैं। यहाँ थोड़ी चढाई थीं मन्दिर तक पहुँचे पहुचे अंधेरा हो चला था ।यहाँ काफी भीड़ थी और चेकिंग भी हो रही थी।यहाँ भी मोबाइल ले जाने पर रोक थी। पर मोबाइल काउंटर नीचे था जब पुलिस वाली ने मोबाइल जमा करने को बोला तो मुझे गुस्सा आ गया  मैंने बोला कि मैं ऊपर आ गई हूं अब वापस नीचे नही जा सकती अगर आप नही जाने देगी तो मैं इधर ही बैठकर माता का नमन कर लुंगी। पर वो लेडी पुलिस घोड़ी दयालु थी बोली ठीक है जाओ पर वादा करो कि फोटू नही लोगी😀मैंने बोला कि ठीक है माता का फोटू नही लुंगी ओर मैंने वादा निभाया।😄 मैंने मन्दिर में एक भी फोटू नही लिया लेकिन बाहर आकर मन्दिर परिसर के फोटू खिंचे। यहाँ एक छोटा भंडारा जैसा भी चल रहा था कुछ लोग खा रहे थे पर हमारे पहुँचने से पहले ही सब्जी और पकौड़े खत्म हो गए  सिर्फ पूड़ी ही बची थी तो हमने 1 पूड़ी प्रसाद समझकर खा ली☺️
यहाँ एक साउंड ओर लाइट का प्रोग्राम भी चल रहा था जो शायद हर दिन होता हैं।कुछ फिश एक्वेरियम जैसा भी था जिसका 100 ₹ टिकिट था और शाही बाग़ भी था जिसका 20 रु टिकिट था पर रात होने के कारण हम नही गए।इधर किला भी था अगर दिन होता तो देखते पर हमने नही देखा क्योकि हम थके हुए भी थे और नींद भी आ रही थी। इस कारण  हम तिरुपति मन्दिर, बलिदान स्थल वगेरा नही देख सके और नजदीक के एक ढाबे में खाना खाने चले गए।  छककर खाना खाया और अपने होटल आ गए।कल श्रीनगर के लिए जो निकलना था।
कल मिलते है शब्बाखेर🙏






कश्मीर फ़ाइल भाग 1

कश्मीर -फाईल ★भाग 1
यात्रा की रूपरेखा।।
~~~~~~~`~💝

1Sep 2023

4 मई 2023 को मैंने एक ग्रुप के साथ अपनी कश्मीर यात्रा की रूपरेखा बनाई।
कश्मीर कैसा होगा?
कश्मीर वैसा होगा?
कहीं आतंकी मिल गए तो?
हमको किसी हिजबुद्दिन ग्रुप ने पकड़ लिया तो?
खर्चा कितना होगा?
अकेले जाये या ग्रुप के साथ?
जैसे अनेक सवाल मेरे ज़ेहन में घूमने लगे। फिर शुरू हुआ कश्मीर से सम्बंधित यू टियूब के सीरीज देखने का सिलसिला। तभी हमारे ग्रुप घुमक्कड़ी दिल से" पर इस यात्रा की काफी चर्चा हुई ।सारी  चर्चा मैंने स्टार कर ली और अप्रैल में हमारे ग्रुप के मेम्बर सन्दीपजी जब कश्मीर की यात्रा सकुशल कर आये तो दिल के सारे भ्रम भी खत्म हो गए। अब मन पक्का बना लिया कि चाहे कुछ भी हो जाये, मुझे कश्मीर जाना ही है।
मन पक्का बनाकर सबसे पहले मिस्टर को जम्मू का फ्री-पास (रेल्वे) लाने को तैयार किया ।एक काम खत्म हुआ।अब पक्की मोहर लग गई कि अब कश्मीर जाना ही हैं।
सारी इन्क्वारी इक्क्ठा करने में मेरी,सबसे ज्यादा मदद मेरे ग्रुप वाले घुमक्कड़ी दिल से के मेम्बरों ने की जिनका दिल से आभार हैं ।स्पेशली प्रतीक गांधी आशीष और संदीप शर्मा ने काफी अच्छे ढंग से समझाया ओर एक रूपरेखा भी बनाकर पकड़ा दी।
उन्हीं दिनों  प्रतीक ने मुझे एक ग्रुप के बारे में बताया जो इंदौर से काफी कम बजट में कश्मीर घुमाता हैं।मैंने उस ग्रुप के मालिक दीपक जी से  बात की ओर उनका ऑफर मुझे इतना पसंद आया कि अपना ओर मिस्टर का नाम लिखवा कर ग्रुप ज्वाइन कर लिया।
उनका ग्रुप 16 मई को निकल रहा था 20 लोग हो गए थे तो मैंने भी 16 मई का टिकिट बुक करवा लिया।
पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। ओर शायद मेरा दाना पानी अभी कश्मीर में नही था क्योंकि अचानक छोटी बेटी ने ऐलान कर दिया कि वो अपनी पहली डिलवरी मेरे घर करने आ रही हैं। वैसे उसकी डिलवरी की डेट 1 जून थी पर उसने मुझे 16 मई को बाहर जाने के लिए साफ मना कर दिया।
अब, मरता क्या करता! मैंने अपने आंसुओ को पीकर बेटी की खुशी में अपनी खुशी मिलाकर अपना प्रोग्राम केंसिल कर दिया। कोई नी, फिर चलेगे।।कश्मीर किधर भागा जा रहा हैं।☺️
16 मई को दीपक भाई की टीम खूब मजे करके, बर्फ में खेलकर वापस इंदौर आ गई ।
पास निकला हुआ था 5 महीने तक वेलिट था  तो चिंता की कोई बात नही थी।जून में बेटी को बेटा हुआ और सवा महीने बाद वो अपने ससुराल लौट गई। फिर पोते का पहला बर्थडे निपटाकर मैं अगस्त में फ्री हुई और अब मैंने 22 अगस्त का प्रोग्राम बनाया । ओर इंतजार करने लगी।पर तब बारिश बहुत थी। सारा कुल्लू,मनाली,पँजाब जलमग्न था तो क्यो रिश्क ले और इस बार भी टिकिट केंसिल हुए।
हमारे रेल्वे के पास पर आप 2 बार टिकिट केंसिल करवा कर तीसरी बार यात्रा कर सकते हो।
तो फिर से तीसरी बार मैंने 1 सेप्टेंबर का रिजर्वेशन करवाया।अब तक मैं बहुत बोर हो चुकी थी।इस बार कोई ग्रुप भी नही जा रहा था।मुझे अकेले ही यात्रा पर निकलना था।मैंने भगवान का नाम लिया और 1 सेप्टेंबर को दिन के 11 बजे की जम्मूतवी एक्सप्रेस जिसे अब स्वराज्य एक्सप्रेस कहते है उससे कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़ी।
बहुत इंतजार के बाद आखिर वो घड़ी आ ही गई जिसका मुझे इंतजार था।
मन में जोश हिलोरे ले रहा था।कश्मीर में फिल्माए कई फिल्मी गीय आंखों में नाच रहे थे और मैंने सुबह 10 बजे ही स्टेशन पर पहुचकर दम लिया☺️
शेष अगले एपिसोर्ट में🙏











शनिवार, 8 जुलाई 2023

एक डॉक्टर

 वो एक डॉक्टर था!
इस महामारी के चुंगल में फंसा हुआ!
छटपटाता हुआ,
निराशा के सागर में डूबता-उबरता,
एक बेबस इंसान!
कुछ न कर पाने की विवशता से हताश,
अंधकार की दलदल में धंसता ही जा रहा था।

चारों ओर दावानल की तरह फैली ये बीमारी,
इसमें फंसे निरह बेबस इंसान,
चींख, पुकार के इस माहौल में,
विकराल रूप धारण करती अर्थव्यवस्था!
चरमराया हुआ सिस्टम!
अवसरवादी लोग!
वो ये सब देखने को विवश था।

वो चाहता था; कुछ करूँ?
मर रही इंसानियत को पुनः जीवित करूँ!
फिर से लोगों में विश्वास की लौ जलाऊं!
खत्म हो रही इस सृष्टि को पुनः गठित करूँ!
"पर कैसे??"
"कैसे"???
"अचानक!!!"
अचानक! वो फरिश्ता अपना दर्द भूलकर,
लोगों को बचाने निकल पड़ा!
उसके बुलंद हौसलों ने करामात दिखाई!
लोग उसकी बातें मानने लगे!
उसके प्रयोग आजमाने लगे!
उसकी आवाज़ से अमृत बरसता था! 
उसकी दवाइयों ने जादुई काम किया,
लोग इस महामारी से निज़ात पाने लगे!
इस कैक्टस के जंगल से निकलने लगे!
लगा, अब जल्दी सवेरा होगा।

लेकिन....
लेकिन, एक दिन वो मानवता का पुजारी,
लोगों को जीवनदान देता हुआ,
खुद इस रोग में गले तक फंस गया...
इस कठिन वक्त में,
उसने किसी का सहारा न खोजकर;
अपनी जादुई दवा से,
खुद का इलाज करके,
इस महामारी से मुक्त हुआ!!

उसकी जीत हुई,
वो पुनः एक बार,
संधर्ष करने,
इस लड़ाई में;
एक विजेता की तरह, 
निकल पड़ा...

जिनके हौसले आसमां को छूते हैं
उनका साथ ईश्वर भी देता हैं..
ओर ऐसे लोग मानव जाति,
के लिए उदाहरण बन जाते है।

--दर्शन के दिल से




शनिवार, 10 जून 2023

तमिलनाड़ुडायरी#17

तमिलनाडुडायरी#17
कन्याकुमारी भाग #7
(समापन क़िस्त)
20 दिसम्बर 2022


अब हमारा आखरी डेस्टिनेशन बाकी था। कोवलम बीच जाना था पर शाम होने वाली थी तो हमने वहां जाना कैंसिल किया और मन्दिर की तरफ चल पड़े।
इस बीच पूवर बैकवाटर के बाद कृष्णा हमको गर्म मसालों के मार्केट में ले गया पर हमको कुछ खरीदना नही था तो हम वापस लौट आये वैसे भी वहां काफी महंगा सामान मिल रहा था।तो हम खाना खाने चले गए।
5 बज रहे थे और हम पद्धमस्वामी मन्दिर चल पड़े।वैसे हमारा प्रोग्राम कल जाने का था पर कृष्णा ने बोला कि कल शुक्रवार हैं और साउथ के मंदिरों में मंगलवार और शुक्रवार को बहुत भीड़ होती हैं।ओर भीड़ से मुझे बहुत एलर्जी थी  तो हमने आज ही दर्शन करने का निर्णय लिया शायद आज ही भगवान का बुलावा हो।
जैसी प्रभु की इच्छा।🙏
हमने बाजार से 2 लुंगी खरीदी ओर कुर्ती के ऊपर ही मैंने लूंगी बांध ली।वैसे मैं एक साड़ी लाई थी पर अगर कल जाते तो पहनती पर अब रोड पर कैसे साड़ी पहनु😃

Padmanabha Templ :--
"दुनियां का सबसे अमीर मन्दिर"

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के मध्य में स्थित है पद्मनाभ स्वामी मंदिर। विशाल किले की तरह दिखने वाला यह मंदिर विष्णु भक्तों के लिए  महत्वपूर्ण आस्था स्थल है। यहां भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम इस मंदिर में आए थे और यहां पूजा-अर्चना की थी। 

मान्यता है कि मंदिर की स्थापना 5000 साल पहले कलयुग के प्रथम दिन हुई थी। लेकिन 1733 में त्रावनकोर के राजा मार्तण्ड वर्मा ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। यहां भगवान विष्णु का श्रृंगार शुद्ध सोने के भारी भरकम आभूषणों से किया जाता है। 
पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुडी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान  से भगवान विष्णु की प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया ।

मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है जिसे देखने के लिए हजारों भक्त दूर दूर से यहाँ आते हैं। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। मान्यता है कि तिरुअनंतपुरम नाम भगवान के 'अनंत' नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है। यहाँ पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है और इस रूप में विराजित भगवान यहाँ पर पद्मनाभ स्वामी के नाम से विख्यात हैं।
तिरुअनंतपुरम का पद्मनाभ स्वामी मंदिर केरल के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। केरल संस्कृति एवं साहित्य का अनूठा संगम है। इसके एक तरफ तो खूबसूरत समुद्र तट है और दूसरी ओर पश्चिमी घाट में पहाडि़यों का अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य, इन सभी अमूल्य प्राकृतिक निधियों के मध्य स्थित- है पद्मनाभ स्वामी मंदिर। इसका स्थापत्य देखते ही बनता है मंदिर के निर्माण में महीन कारीगरी का भी कमाल देखने योग्य है।
मंदिर का गोपुरम द्रविड़ शैली में बना हुआ है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का अदभुत उदाहरण है। मंदिर का परिसर बहुत विशाल है जो कि सात मंजिला ऊंचा है ।गोपुरम को कलाकृतियों से सुसज्जित किया गया है। मंदिर के पास ही सरोवर भी है जो 'पद्मतीर्थ कुलम' के नाम से जाना जाता है।
लेकिन अंदर मोबाइल ले जाना मना हैं तो फोटु खींचने से वंचित रह गई।

दीपक के उजाले में होते हैं दर्शन
मुख्य कक्ष जहां विष्णु भगवान की लेटी हुई मुद्रा में प्रतिमा है, वहां कई दीपक जलते हैं। इन्हीं दीपकों के उजाले से भगवान के दर्शन होते हैं। स्वामी पद्मनाभ की मूर्ति में भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल पर जगत पिता ब्रह्मा की मूर्ति स्थापित है। भगवान पद्मनाभ की मूर्ति के आसपास दोनों रानियों श्रीदेवी और भूदेवी की मूर्तियां हैं। भगवान पद्मनाभ की लेटी हुई मूर्ति पर शेषनाग के मुंह इस तरह खुले हुए हैं, जैसे शेषनाग भगवान विष्णु के हाथ में लगे कमल को सूंघ रहे हों। यहां मूर्ति का दर्शन अलग-अलग दरवाजों से किया जा सकता।

मंदिर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के साथ ही यहां श्रद्धालुओं के लिए नियम भी हैं। पुरुष केवल धोती पहनकर ही मंदिर में जा सकते हैं और महिलाओं के लिए साड़ी पहनना जरूरी है। अन्य किसी भी लिबास में प्रवेश यहां वर्जित है। मंदिर में एक सोने का खंभा बना हुआ है। मंदिर का स्वर्ण जड़ित गोपुरम सात मंजिल का है। जिसकी ऊंचाई करीब 35 मीटर है। कई एकड़ में फैले इस मंदिर में अद्भुत कारीगरी की गई है।

एक ओर बात इस मंदिर के लिए सुनी हुई हैं कि इस मंदिर में 7 तहखाने हैं जिसमें बेशुमार धन छुपा हुआ हैं।इसीकारण इस मंदिर को दुनियां का सबसे अमीर मन्दिर कहते है।

हमने एक शॉप से 2लुंगी खरीदी ओर उसको लपेटकर हम मन्दिर के अंदर गए। आज यहां ज्यादा भीड़ नही थी।
आगे जाकर हमने 100 ₹ की 2पर्ची कटवाई ओर लंबे गलियारे में डोलते हुए आगे बढ़ते गए। सामने ही मेरे भगवान विष्णु की सोने की प्रतिमा थी चारो ओर दीपक की मद्धम रोशनी फैली हुई थी कुछ खास तो नजर नही आया पर एक जगह सफेद फूलों का ढेर देखकर समझ गई कि यही भगवान की मूर्ति होगी।दीपक की रोशनी में ज्यादा कुछ दिखाई नही देता। वैसे भी वहां ज्यादा खड़ा रहने नही देते इसलिये हाथ जोड़कर बाहर आ गए।बाहर आकर हमने प्रसादम खरीदा जो कि 100 ₹की गुड़ ओर गेंहू की खीर थी।वो लेकर हम बाहर निकल पड़े।
अब कृष्णा को अलविदा बोल हम होटल चल दिये। रात को हमने एक केरला रेस्टोरेंट में नूडल्स खाये ओर केरला का फ़ेमस लाल पानी पिया।दूसरे दिन हमने नाश्ता किया ओर ऑटो पकड़कर आराम से मन्दिर के आसपास का जायका लिया ,मार्किट घूमे ओर 4 बजे जाकर अपनी गाड़ी में बैठ गए।

इस तरह मेरी तमिलनाडु यात्रा समाप्त हुई 🙏












रविवार, 28 मई 2023

तमिलनाडुडायरी#16


तमिलनाडूडायरी#16
कन्याकुमारी भाग# 6
20 दिसम्बर 2022


19 को हम कान्यकुमारी आये थे और आज 20 दिसम्बर को हम सुबह कन्याकुमारी से निकल गए पहले सुचिन्द्रम मन्दिर घूमकर अब कही और जा रहे है।अब आगे:--

सुचिन्द्रम से निकलकर हमारी कार आगे बढ़ने लगी अब हम किसी जलप्रपात यानी कि वाटरफॉल पर जाने वाले हैं और उसका नाम हैं "थिरपराप्पु वाॅटरफाॅल" यह कन्याकुमारी से 1घण्टे की दूरी पर था।यहां से 60 फीट नीचे पानी झरने के रूप में गिरता है। जहाँ पर आप स्नान कर सकते है ओर नाव के द्वारा यहाँ पानी में घूम भी सकते है।
ये कृष्णा हमारे ड्राइवर ने जो 5 स्थान बताये थे उसमें नम्बर 2 पर था ये वाटरफॉल,पर ये थोड़ा अपोजिट साइड था इसलिये कृष्णा कुछ आनाकानी करने लगा बोलता हैं कि अभी बारिश हुई हैं ? पैदल चलने का रास्ता हैं ,छोटी पगड़न्ड़ी हैं आप लोग चल नही पाओगे?वगैरा वगैरा।
इसलिए हमने वहां जाने का प्रोग्राम कैंसिल किया और अब हम डायरेक्ट केरल राज्य में प्रवेश कर रहे थे।केरल और तमिलनाडु बार्डर पर हैं "पूअर बैकवाटर" जो प्राकृतिक हैं।

पूअर बैक वाटर (Poovr Back water)

पूवर दक्षिण भारत के केरल राज्य के त्रिवेंद्रम जिले का एक छोटा सा तटीय गाँव है। यह गांव लगभग त्रिवेंद्रम के दक्षिणी सिरे पर है। इस गांव में एक खूबसूरत समुद्र तट और बैकवाटर हैं ।अनछुआ, पूवर बैक वाटर एक दुर्लभ स्थान है जो दक्षिणी केरल में सबसे शांत बैकवाटर हैं ।यह बैक वाटर चमकीली रेत के समुद्र तट की ओर खुलता है। पूवर बैकवाटर वास्तव में स्वर्ग का एक द्वार है। यह क्षेत्र मसालों, पक्षियों, विदेशी फूलों, केले और नारियल के पेड़ों की सैकड़ों प्रजातियों के साथ अच्छी तरह से संरक्षित क्षेत्र है।
हमको कृष्णा एक बोट के  मालिक के पास ले गया वो हम दोनों को एक बोट में ले गया जो स्टिमर की तरह था।2500₹ किराया 1घण्टे की तफरीह का था।
हमने वो बोट किराए पर ली और सेफ्टी जैकेट पहनकर पानी मे कूद पड़े।यानी कि स्टीमर में बैठ गए😀 शानदार नजारा था हमारी नाव शांत पानी मे धीरे धोरे चल रही  थी।यह एक छोटी सी गली टाइप जगह थी,जिधर से हमारी बोट गुजर रही थी, नजदीक ही पेड़ दिख रहे थे जिन्हे हाथों से छू सकते थे।मुझे बोट वाले ने एक पानी का साँप भी दिखाया।पर दूर होने की वजय से ठीक से दिखाई नही दिया। मुझे पाइन एप्पल के पेड़ दिखाये जिसमें पाईंनऐप्पल लगे हुए थे।
धीरे धीरे हमारी बोट आगे बढ़ रही थी। इतना सारा पानी ! उसमें ढेर सारे पेड़, बहुत ही एक्साइटेड लग रहा था।मैं कभी इधर का, कभी उधर का पागलों की तरह विडियो बना रही थी फिर थक गई तो सारा नजारा आंखों से पीने लगी।एक जादुई माहौल था, सस्पेंस क्रियेट कर रहा था।मैंने ऐसा पहले कभी देखा नही था ।मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। अचानक मैंने बोट चलाने वाले से पूछा कि "भई, इधर मगरमच्छ तो नही हैं?" वो मुस्कुराकर बोला– "नहीं।"☺️

फिर हम सकरी सी गली से निकलकर बाहर आये इद्दर पानी का फैलाव ज्यादा था यानी जैसा बड़ी नदी होती हैं वैसा ही कुछ लग रहा था । इधर आकर बोट वाले ने मोटर चला दी और हम नदी में तैरते एक रेस्टोरेंट के नजदीक पहुँच गए।इस साइड में कुछ रेस्तरां बने थे जो बोट में ही थे और छोटी छोटी बोट में घूमने वाले हमारे जैसे लोग इनके अंदर जा रहे थे।अंदर टेबल कुर्सी लगी थी कुछ अंदर फ़ोटुग्राफी कर रहे थे।
हम तो बोट से उतरे नही बस वही पर बैठे बैठे चाय और पकौड़े मंगवा लिए।पकौड़ों का साइज बहुत बड़ा था पर टेस्टी थे ।कीमत 250 रु पर प्लेट थी।
चाय पीते हुए हमारी बोट फिर चल दी, दूर सुनहरी रेत वाला तट दिखाई दे रहा था। हमारी बोट वहां पहुँचकर  एक जगह खड़ी हो गई ओर हम उससे उतरकर रेत पर घूमने लगे ।वही दूर तक फैला समुन्द्र दिखाई दे रहा था।बार बार लहरें किनारे आती और चली जाती थी। एक तरफ बैकवाटर ओर दूसरी तरफ समुन्द्र हिल्लोरे ले रहा था ।बीच मे सुनहरी रेत का भाग बहुत ही दिलकंश लग रहा था।
कुछ देर घूमकर हम वापस बोट में आ गए और हमारी बोट आ गई वही जिधर हमारी गाड़ी खड़ी थी।ये इस ट्रिप का सबसे यादगार पल था।🥰 मुझे ये बैकवाटर बहुत पसन्द आया।
क्रमशः...