मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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बुधवार, 21 दिसंबर 2011

मैं और मेरी तन्हाईयाँ -----!





 मैं और मेरी तन्हाईयाँ 



"अपने फ़साने को मेरी आँखों में बसने दो !
न जाने किस पल ये शमा गुल हो जाए !"  






बर्फ की मानिंद चुप -सी थी मैं ----क्या कहूँ  ?
कोई कोलाहल नहीं ?
एक सर्द -सी सिहरन भोगकर,
समझती थी की   "जिन्दा हूँ मैं " ?
कैसे ????
उसका अहम मुझे बार -बार ठोकर मारता रहा --
और मैं ! एक छोटे पिल्लै की तरह --
बार -बार उसके  कदमो से लिपटती रही --
नाहक अहंकार हैं उसे ?
क्यों इतना गरूर हैं उसे ?
क्या कोई इतना अहंकारी भी हो सकता हैं  ?
किस बात का धमंड हैं उसे ???
सोचकर दंग रह जाती हूँ मैं ---

कई बार चाहकर भी उसे कह नहीं पाती हूँ ?
अपने बुने जाल में फंसकर रह गई हूँ  ?
दर्द के सैलाब में  बहे जा रही हूँ --
मज़बूरी की जंजीरों ने जैसे सारी कायनात को जकड़ रखा हैं --
और मैं ,,,,
अनंत  जल-राशी के भंवर में फंसती जा रही हूँ ?
आगे तो सिर्फ भटकाव हैं ? मौत हैं ..?
समझती हूँ --  
पर, चाहकर भी खुद को इस जाल से छुड़ा नहीं पाती हूँ

ख्वाबों को देखना मेरी आदत ही नहीं मज़बूरी भी हैं  
खवाबों में जीने वाली एक मासूम लड़की --
जब कोई चुराता हैं उन सपने को
 तो जो तडप होती हैं उसे क्या तुम सहज ले सकते हो ?
यकीनन नहीं ,,,,,,
सोचती हूँ -----
क्या मैं कोई अभिशप्त यक्षिणी हूँ ?
जो बरसो से तुम्हारा इन्तजार कर रही हूँ  ?
या अकेलेपन का वीरान जंगल हूँ --?
जहाँ देवनार के भयानक वृक्ष मुझे घूर रहे हैं !
क्या ठंडा और सिहरन देने वाला कोई शगूफा हूँ ?
जो फूटने को बैताब  हैं !
या दावानल हूँ जलता  हुआ ?
जो बहने को बेकरार हैं    ?






क्यों अपना अतीत और वर्तमान ढ़ो  रही हूँ  ?
क्यों अतीत की  परछाईया पीछे पड़ी हैं  ?
चाहकर भी छुटकार नहीं ?
असमय का खलल !
निकटता और दुरी का एक समीकरण ---
जो कभी सही हो जाता हैं ?
 और कभी गलत हो जाता हैं ?

सोचती हूँ तो चेहरा विदूषक हो जाता हैं ?
लाल -पीली लपटें निकलने लगती हैं  ?
और शरीर जैसे शव -दाह हो जाता हैं ?
 मृत- प्रायः !!!!

मेरा दुःख मेरा हैं ,मेरा सुख मेरा हैं !
अब इसमें किसी को भी आने की इजाजत नहीं हैं ?
न तुम्हारा अहंकार !
न तुम्हारा तिरस्कार !





अब मैं हूँ और मेरी तन्हाईयाँ -----!

  
     
  

   

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

जीवन डोर तुम्ही संग बाँधी ....


* शादी की सालगिरह *




16   दिसंबर 1979



शुभ विवाह 



आज मेरी शादी की 32वी सालगिरह हैं .......एक खूबसूरत दिन !


 फ़ैरो के समय हमारे यहाँ घुंघट का रिवाज था ..उन दिनों 




आन्नद -कारज का  द्रश्य


छोटा भाई ..फेरे करवाता हुआ 



मेरी सहेली रुकमा, भाई व् कजिन बहन 




शादी के बाद...ज़नवासे में 


इस ज्योति की तरह  हमेशा हमारा जीवन जगमगाता रहे 




" जीवन  डोर तुम्ही संग बाँधी  "


जीवन के अंतिम चरणों तक जो साथ हमारा निभाता हैं--
जीवन -साथी वही कहलाता हैं !
जीवन साथी वही कहलाता हैं !
जीबन की नैया को जो पार लगता हैं --
जीवन साथी वही कहलाता हैं !
जीवन साथी वही कहलाता हैं !
जब -जब मुझ पर दुःख आया तो ,
तुमने मेरा साथ दिया ,
हर मुश्किल आसान कर दी ,
जीवन को गुलज़ार किया ---!

सात जन्मो के इस रिश्ते को ,
साजन तुमने नाम दिया !
मेरी हर अनदेखी गलती को .
प्रीतम तुमने मान दिया ---!

रानी मुझको बनाकर अपनी ,
ममता का सौभाग्य दिया --!
हर पल मेरे तन के सुख पर,
अपना जीवन तार दिया --!

मुझसे शुरू होती हैं उनके जीवन की हर खुशियाँ !
मुझ पर ही ख़त्म होती हैं उनकी इच्छा और रंगीनियाँ !
ऐसे जीवन साथी को रब ने मुझ पर वार दिया --!

दुनियां की हर रस्म निभाकर ,
जब उनसे नाता जोड़ा था ,
क्या पता था जीवन के इस अग्नि -पथ पर  --
संग -संग चलना मुश्किल होगा ,
अंगारों से भरी जमीं होगी ,
और झुलसता आसमान  होगा,
पर, तुम्हारे साथ ने प्रियतम हर मुश्किल को आसान किया --!





अंतिम इच्छा हैं रब से --- 
उनका हरदम साथ मिले ...
हर जन्म में वो ही हो वर मेरे 
ऐसा मुझको वरदान मिले ......!





इस मधुर बेला पर मेरे समस्त दोस्त आमंत्रित हैं ....दर्शन कौर