मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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बुधवार, 3 अप्रैल 2013

श्री ओंकारेश्वर .... शिव का ज्योतिर्लिंग



शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक  

श्री ओंकारेश्वर -- भाग २  








दिनांक --21/1/2013:---


इंदौर भतीजी कीशादी में गई थी तो आखरी दिन ओंकारेश्वर जाने का प्रोग्राम बना लिया ..दिन के ११  बजे  हम सब खाना खाकर चल दिए ....
रास्ते में चाय का भोग लगाकर हम सब चल दिए ..अपने नियत स्थान ओंकारेश्वर ...की और ..
खाना घर से खाकर निकले थे इसलिए खाने के लिए कोई रुका नहीं हम ३ घंटे में पहुँच गए ,हमारी गाडी जहाँ रुकी थी मंदिर उसके पल्ली तरफ था बीच में नर्मदा मैया अपनी बाहें फैलाये विराजमान थी  जिसे  नाव द्वारा पार करना था  ..मंदिर में जाने से पहले हमें स्नान करना था, वैसे तो सुबह नहा - धोकर निकले थे ..पर जब भी हम यहाँ आते है तो नदी में एन्जॉय  जरुर करते है ..हम त्रवेणी तक जाकर स्नान करते है ..नाव वाला हमें वहां ले जाता है और हम जब तक पानी में मज़े करते है वो वही इन्तजार करता है फिर हमें दूसरी तरफ मंदिर के पास छोड़ देता है और हम दर्शन करते है ...बाद में हमें हमारी जगह छोड़ देता है ...

अब नाव वाले से पैसा पूछा तो वो हमे नया समझकर बोला 1 हजार लूंगा ...अब हंसने की हमारी बारी थी हा हा हा हा ..मोलभाव करके 150/  में  मामला पटा ...फिर एक दिक्कत हुई की मामा -भांजे एक साथ नाव में नहीं बैठेगे ..मेरी भतीजा बहु सरला का भाई भी साथ ही था और बेटा भी--नाव वाले को कहा की  क्या करे क्योकि कहावत है की मामा -भांजा एक साथ नाव में बैठे तो नाव यक़ीनन डूब जाती है पर नाव वाले ने कहा की आप परेशां न हो कुछ सिक्के नाव को चढ़ा दे  और हाथ जोड़कर प्रणाम करे कुछ नहीं होगा ...? मुझे हंसी आ रही थी क्योकि मैं इन चीजो पर यकीं नहीं करती खेर, ...
 हम सब नाव में  सवार घाट पर चल दिए ..सब भूल गए की मामा -भांजे बैठे है हा हा हा हा --- आज नदी में पानी बहुत था कहीं भी लाल चट्टाने दिख नहीं रही थी जहाँ हम बैठकर एन्जॉय कर सके ....



उस पार ले जाने वाली नावे इनमे मोटर भी लगी है  
  
     
 नदी से दिखाई देता मंदिर का बुर्ज सफ़ेद रंग का ,पास ही सीढियाँ दिखाई दे रही है 

नाव में सवार  मैं 


और हम पहुँच गए घाट पर  ..यहाँ पानी थोडा कम था 


 पानी में अठखेलियाँ करती हमारी फौज  


जनवरी का महिना है ठंडी तो है ही पानी में भीगने से और भी ठण्ड लगने लगी -ऊपर से हवा भी चल रही थी ...पास ही गाँव की गोरियां अपने कपड़ो का मेल निकाल  रही थी ...हमारे देश की नदियों की यही दुर्दशा है ..नदी है तो मानो सारे पाप धुल जायेगे ..सारी  गंदगी नदी में फैको ... ? कौन नदी आएगी कुछ पूछने ...

खुबसूरत लाल पत्थर ..इस नदी में लाल पत्थर के बने गोल -गोल पिंड बहुत मिलते है जिन्हें लोग शंकर बना कर पूजते है 



यह है नर्मदा नदी पर बना उड़न पुल 

कहते है नर्मदा नदी पर पुल बनता नहीं था ..रात को पूरा निर्माण  ख़त्म करके जब मजदुर जाते थे तो सुबह देखते थे की वापस पुल बीच में से टुटा हुआ है ..कई प्रयास हुए पर कोई फायदा नहीं ? फिर किसी ने सजेशन दिया और इस उड़न पुल के बीच में खाली स्थान रखा गया जहाँ दो टुकड़े लकड़ी के लगाये गए है ..आज भी ये लकड़ी के टुकड़े ज्यो के त्यों लगे है ..

मंदिर का इतिहास:--

इस मंदिर में शिव भक्त कुबेर ने तपस्या की थी तथा शिवलिंग की स्थापना की थी... जिसे शिव ने देवताओ का धनपति बनाया था I कुबेर के स्नान के लिए शिवजी ने अपनी जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की थी I यह नदी कुबेर मंदिर के बाजू से बहकर नर्मदाजी में मिलती है, जिसे छोटी परिक्रमा में जाने वाले भक्तो ने प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में देखा है, यही कावेरी ओमकार पर्वत का चक्कर लगते हुए संगम पर वापस नर्मदाजी से मिलती हैं, इसे ही नर्मदा कावेरी का संगम कहते है I  धनतेरस के एक दिन पहले  इस मंदिर पर प्रतिवर्ष दिवाली की बारस की रात को ज्वार चढाने का विशेष महत्त्व है ..इस रात्रि को जागरण होता है तथा धनतेरस की सुबह ४ बजे से अभिषेक पूजन होता हैं इसके पश्चात् कुबेर महालक्ष्मी का महायज्ञ, हवन,(जिसमे कई जोड़े बैठते हैं, धनतेरस की सुबह कुबेर महालक्ष्मी महायज्ञ नर्मदाजी का तट और ओम्कारेश्वर जैसे स्थान पर होना विशेष फलदायी होता हैं ..भंडारा होता है लक्ष्मी सिद्धि के पेकेट बाटे जाते है, जिसे घर पर ले जाकर दीपावली की अमावस को विधि अनुसार धन रखने की जगह पर रखना होता हैं, जिससे घर में प्रचुर धन के साथ सुख शांति आती हैं I इस अवसर पर हजारों भक्त दूर- दूर से आते है व् कुबेर का भंडार प्राप्त कर प्रचुर धन के साथ सुख शांति पाते हैं I 

हर सोमवार को यहाँ भगवान् शिव की पांच मुख वाली सोने की मूर्ति नाव में रखकर नर्मदा नदी में घुमाते है ..आज भी सोमवार था ..हमने पास ही बैठी प्रसाद बेचने वाली महिला से पूछा तो उसने कहा की बस अभी  सवारी निकलने वाली है हमने जल्दी -जल्दी कपडे पहनने और नाव में जा बैठे ...नदी में चढाने के लिए हमने उसी महिला से नारियल खरीदे ...

जब नदी के बीचो बीच हमारी नाव पहुंची तो  हमने सभी नारियल नदी को समर्पित कर दिए ...पर ये क्या ..???????
एक 9-10  साल का लड़का अपनी थर्माकोल की बनाई हुई नाव में तेजी से आ रहा था ..हमने ध्यान नहीं दिया पर जब वो हमारे फैके हुए नारियल  उठाने लगा तो मालुम हुआ की ये बच्चा तो उसी महिला का था जिससे हमने नारियल  ख़रीदे थे ... यही नारियल वो हमे बेच देती है फिर बच्चा वापस उठा लाता है वाह  भाई वाह ...
मैं संभलती और उसका फोटू खींचती तब तक तो वो  तेजी से जा भी चूका था ..दूर से फोटू खिंचा पर ठीक से आया नहीं ...इतने मैं हमें दूर से  शिवजी को फेरी लगाने वाली नाव दिखी जिस पर भजन कीर्तन हो रहे थे ..पर दूर होने के कारण  मैं उसका भी फोटू नहीं ले सकी  और हमारी नाव किनारे आ लगी ....      



रेलिंग का फोटू तो बनता है जी :)

नाव से उतर कर रेलिंग के सहारे हम ऊपर चढ़ने लगे ..रेलिंग के दोनों तरफ प्रसाद और फूल बेचने वालियां बैठी हुई थी ...हमने भी फुल और प्रसाद खरीदा  ..यहाँ सभी औरते ही  प्रसाद बेचती हुई नजर आई ...हमने अपने जुते एक प्रसाद विक्रेता के यहाँ उतारे और मंदिर के अन्दर चल दिए ..अंदर एक पंडितजी सबके माथे पर कुमकुम से ॐ बना रहे थे और पैसे ले रहे थे हमने भी सबने ॐ का  तिलक लगाया ...ॐ सुंदर लग रहा था ..एक फोटू खीचना चाहती थी की अचानक एक और पंडित ने चन्दन पोत दिया ..सारा सुंदर ॐ  खराब कर दिया मैने उस पंडित को मन ही मन गन्दी सी गाली दी और एक भी पैसा नहीं दिया .. 



और यह है श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मुख्य दरवाजा




रेलिंग के पास सीढियों पर फ़ूल माला बेचती हुई महिलाये



चन्दन से पुता हुआ चेहरा ..कैसी लग रही हूँ  जी ?


मंदिर में प्रवेश करते ही एक पंडितजी सबके माथे पर कुमकुम से ॐ बना रहे थे और पैसे ले रहे थे हमने भी सबने ॐ का  तिलक लगाया ...और २ रु दे दिए ..ॐ सुंदर लग रहा था ..एक फोटू खींचना चाहती थी पर  अचानक एक और पंडित ने चन्दन पोत दिया ..सारा सुंदर ॐ  खराब कर दिया मैनें उस पंडित को मन ही मन गन्दी सी गाली दी और एक भी पैसा नहीं दिया .. .. हालांकि चन्दन से सर ठंडा हो गया था और तरावट भी आ गई थी ...पर अब गुस्से का क्या कीजे ....






मंदिर मैं प्रवेश करते ही एक गणेश का मंदिर आया जहाँ हमारे नारियल रख लिए या यु कहु छीन लिए ..आगे कुछ नहीं लेजा सकते है क्योकि मंदिर में ४ बजे के बाद कुछ ले जाना मना है ...हमारे हाथो के फूल इसी रेलिंग के साईट में रखे ड्रमो मैं रखवा दिए ..और हम बेवकूफ बने चलते रहे .. सामने जो दिख रहा है वही मंदिर है पर फोटू खींचना मना है---



ओंकारेश्वर महाराज की जय 


हमने लिंग के दर्शन किये जो की अब झार हो रहा है ,बहुत ही छोटा -सा पिंड है इसलिए मध्यप्रदेश गवर्मेंट ने  शिव पर जल चढ़ने की सख्ती से मनाई की है ..कई लोग कहते है ये नकली पिंड है  असली तो नीचे  रखवा दिया है ..पर मुझे वो पुराना ही लगा --शिव के पिंड के चारो और कांच की दिवार खिंची हुई  थी--- न वहां हम जल चढ़ा सकते थे न कोई फूल ...पुजारीजी ने मुझे पिंड पर पड़ी एक माला अर्पित की --आज तो शिव जी की बहुत कृपा हो रही है मुझ पर ...

 हमारे बाहर निकलते ही पंडितो का अचानक हमला हो गया .... कोई हमे यहाँ खींचता तो कोई हमें वहां खींचता ..अगर मैं अकेली होती तो कभी भी इनके चक्कर में नहीं फसती पर राधेश्याम जी बहुत ही धार्मिक प्रवृति के इंसान है सो उन्होंने एक पंडित से मोल भाव करके अभिषेक करवाने के लिए तैयार करवा लिया ...


 
 अभिषेक  हो रहा है---यहाँ  सभी चीजें रेडीमेट होती  है  ..फटाफट सब तैयार ..


भगवान ओंकारेश्वर की पाँच मुखों वाली सोने की प्रतिमा

हम अभिषेक कर ही रहे थे की नगाड़े और शंख की आवाजे आने लगी ..और जिस के लिए मन आतुर था वही सामने था यानी भगवान् शिव की पांच मुखी सोने की मूर्ति जो पालकी में  नदी भ्रमण को निकली थी वो हमारे सामने ही आकर ख़त्म हुई और हम सबने जी भर कर देखा और आरती करने का सोभाग्य भी मिला ...मुझे कभी - कभी  भ्रम भी होता है की शिवजी जिसे मैं अपना आराध्य समझती हूँ और मानती भी हूँ (पर व्रत वगैरा  नहीं करती )उन्हें मेरे दिक् की बाते कैसे मालुम हो जाती है ...आश्चर्य होता है ???
मैं  इस अद्भुत द्रश्य का फोटू लेने में लगी थी क्योकि यह सब अचानक और जल्दी - जल्दी हो रहा था  ..कई फोटू खराब हो गए थे और मुझे उठने का मौका भी नहीं मिला था ( इस मूर्ति के ठीक सामने मैं  बैठी हुई हूँ  ) राधेश्याम जी चिल्लाने लगे की पागल फोटू छोड़ और आरती कर ऐसा मौका फिर कभी नहीं मिलेगा ...और यह बात ठीक भी है बचपन से आज तक मैं अनेको बार यहाँ आई हूँ पर कभी भी मुझे मेरे ही सामने मेरी गोद के पास ही स्वयं शंकर की सवारी  मेरे इतने सम्मुख नहीं आई ...मैं इसे प्रभु की कृपा मान आरती करने लगी ....जब सवारी चली गई तो लगा मैं  दिवा स्वप्न से जागी हूँ ....  

ऊपर से खिंचा नर्मदा का  विहंगम द्रश्य ..यहाँ से नाव द्वारा पूरा चक्कर लगाया जाता है  क्योकि मंदिर बीच  में है और चारो और नदिया है  ..पर मैंने आजतक कभी पूरा चक्कर नहीं खाया ...

हमें सामने जाना है .. नदियाँ के उस पार 


वो सामने बना है ..हमारा गुरुद्वारा 

अब हम वापस इस  पार आ चुके थे .. वही हमने एक जगह देखि जहाँ से गाय के मुंह से पानी निकल रहा था ..जब पूछा तो मालुम पड़ा की यह गुप्त- गंगा है ..  इसमें पानी कहाँ  से आ रहा है किसी को पता नहीं  ..यह पानी कभी कम ज्यादा नहीं होता ..न गर्मियों में न बारिशो में ....हमने पीछे देखा तो ऊपर पहाड़ के अलावा कुछ नहीं था ...और इसकी एक बात और खास थी  वह यह की इस पानी का रंग  दूध जैसा सफ़ेद  था .. आप भी देखिये ...


 दूध के सामान पानी ..गुप्त गंगा 

ममलेशवर ज्योतिर्लिंग मंदिर 



ओकारेश्वर और ममलेशवर  ज्योतिर्लिंग एक ही है यह नदी के इस तरफ है और वो नदी के उस तरफ  इस मंदिर में भी पूजा अर्चना की जाती है पर यहाँ कोई भी व्यवस्था ठीक नहीं थी जितनी उस मंदिर में थी  जितना रख रखाव वहाँ था यहाँ नहीं ..



और अब प्रस्थान ..शाम होने को  थी ..और हमारा ड्रायवर बुला रहा था 


लौटते समय रात हो गई थी ठंडी भी बड गई थी और पेट में गड़बड़ होने लगी रही थी सुबह से खाना खाया था ...तो हम चलते है खाना खाने ....

 और इस तरह ओंकारेश्वर की यात्रा समाप्त हुई ....