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मंगलवार, 28 जुलाई 2015

एक बार फिर डलहौजी की यात्रा भाग 3

एक बार फिर डलहौजी की यात्रा
 भाग 3 


28 ऑक्टोबर 2014  

हम सब आज सुपर फ़ास्ट जम्मूतवी एक्सप्रेस से पठानकोठ जा रहे थे । 29  को हम सुबह पठानकोठ पहुंचे फिर कार से डलहौजी फिर वहां से रात को खजियार अब आगे :---

30 ऑक्टोबर 2014 

रात भर आराम से गुजरी सुबह देखा तो मंजर सुहाना था । सुबह रूम की बालकनी से पीछे का दृश्य देखा तो मुंह से 'वाह' निकल पड़ा । बहुत  खूबसूरत दृश्य था । पीछे सीढ़ी नुमा खेत थे जंहाँ आलू की खेती होती है दूर कई औरते और आदमी खेतों में काम करते हुए दिखाई दे रहे थे। इतना सुंदर लग रहा था की आँखें ठहर सी गई.…काफी देर तक हम सब ये नजारा देखते रहे जब ठण्डी लगने लगी तो अंदर आ गए वैसे हम सब ऊपर से नीचे  तक गरम कपड़ों से लेस थे रात को मोटे मोटे कम्बलों के कारण  ठंडी भी नहीं लगी थी ----

‌इतने में किसी ने दरवाजा खटखटाया खोलकर देखा तो मन्दिर का सेवक हाथ में गरमा गर्म चाय लेकर खड़ा था हम सबने अपने 4  मेंबर के हिसाब से 4 गिलास उठा लिए , गिलासों में भरी चाय पीकर शरीर में गर्मी का संचार हुआ और दिमाग ने कहा अब मैँ तैयार हूँ हा हा हा हा


‌हम सब फटाफट नहाकर तैयार हुए ।गरम पानी का गीजर लगा हुआ था आराम से नहाये सारी थकान दूर हो गई । अब तक सूरज देवता भी अपनी किरणों के साथ अठखेलियां खेलते हुए पधार चुके थे और सर्दी रानी  अपनी दुम दबाकर भाग खड़ी हुई थी । 

जब हम सबने कमरे से बाहर कदम निकाला तो बजरंगी सेना ने हमारा स्वागत किया।एकदम हट्टे- कट्टे लाल मुंह के बन्दर अचानक दरवाजा खोलते ही प्रकट हुए। हमने तुरन्त दरवाजा बन्द किया और सेना के कुच का इन्तजार करने लगे । इस बीच पीछे की बाल्कनी में भी इन लोगों की घुसपैठ हो गई ।अब हम कमरे में कैद हो चुके थे ।कुछ देर खिड़की से बजरंग सेना को बची हुई रोटी और साथ रखे बिस्कुट दे देकर बहलाते रहे आखिर पेट भरने के बाद बजरंगी सेना भाग खड़ी हुई और हम बाहर निकले..
सीधे मन्दिर की सीढियाँ चढ़ गए। आज माताजी को चुन्नी चढ़ानी थी।


हुआ यू की जब हम 2010 में इस मन्दिर में आये थे तो यहाँ के पुजारी ने कहा था की यहाँ की बड़ी मान्यता है जो मुराद माँगो वो पूरी होती है एक माँ का
कोमल दिल होने के कारण मैंने भी बेटे की शादी की मन्नत का  धागा बांधा जिसे शादी के बाद आज पूरा करने आई हूँ। बहु बेटे ने माँ को चुन्नी चढाई और पुजारीजी ने पूजा अर्चना की । 
‌ फिर हम चल दिए नाश्ता कक्ष में जहाँ गरम- गरम आलू के परांठे और दही हाजिर था भूख लग आई थी सो लपककर परांठों पर टूट पड़े, कालेज के बच्चे भी नाश्ता कर रहे थे आज वो पेंटिंग करने निकलने वाले थे  खेर, जब पेट भर गया तो हमने दोबारा चाय पी और बाहर निकल पड़े .....बाहर बहुत बड़ा खुला स्थान था जहाँ भगवान शिव की बड़ी ताँबे की मूर्ति लगी हुई थी 81 फ़ीट की  भगवान भोले की खूबसूरत मूर्ति । यहाँ काफ़ी   बजरंगदल मैदान की दीवारों पर चढ़ा था पर हमसे कोई बात नहीं हुई फिर हमने खूब धुआधार  फोटु खिंचवाये । तभी सरदारजी आ गए हमने मन्दिर का हिसाब किया 1100 रु की पर्ची फड़ाई और सेवादारो को 500 रु मेहतना दिया सब आपस में बाट लेना बोलकर अपना सामान् ले चल दिए खजियार के फेमस प्लेस पर जिसकी खूबसूरती को देखकर स्विजारलेण्ड की याद आती है। यह पहाड़ पर बना इतना बड़ा मैदान था  दूर दूर तक सिर्फ हरियली ही हरियाली दिखाई दे रही थी बीचों बीच बड़ा ही सुंदर रेस्त्रां बना था । पास ही मैदान के बीचो बीच एक झील थी जो प्रकृति थी पर कोई रख रखाव नहीं था बहुत गंदी लग रही थी --पर मौसम बड़ा ही  सुहाना था हम मैदान में उतर गए हमको देखकर एक बच्चा दौड़ा हुआ आया उसके पास एक डलिया में नक़ली  फ़ूल थे और एक असली खरगोश था जिसके बारे में पूछने पर उसने बताया की एक फोटू खरगोश के साथ खिंचवाने  का मैं 10 रु लूँगा ,खेर, हम सबने फोटू खिचवाये और झील की तरफ प्रस्थान किया ।     
झील का इतिहास :--

खजियार में एक फ़ेमस झील हैं इस झील का निर्माण उल्कापिंड के टकराने से हुआ हैं ,विश्व में ऐसी 3 झीलें हैं जिनका निर्माण उल्का पिंड के टकराने से हुआ है ---> 
1. अमेरिका के एरिजोना में स्थित है । 
2. महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित हैं --लुनार झील । 
3. चम्बा ज़िले के खजियार में --खजियार झील । 
यह झील करीब 50 हजार पुरानी हैं और 5 हज़ार वर्गफुट क्षेत्र में फ़ैली हुई हैं --झील के किनारे एक टापू बना हैं जहाँ सैलानियों के बैठने की जगह हैं -- टापू तक पहुँचने के लिए छोटा -सा लकड़ी का पुल बना हैं  जो यकीनन अंग्रेजों के टाईम का ही बना था । 
एक कहानी और प्रचलित है " कहते है की भगवान शिव और पार्वती जब धरती के भ्रमण पर निकले तो इस स्थान की खूबसूरती से बहुत प्रभावित हुए कुछ दिन ठहर कर आगे बढ़ने लगे तो खजी नाग का मन आगे जाने का नहीं हुआ तो शिव नाग को वही छोड़ने का विचार किया और उसको पीने के पानी के लिए ये नहर खोदकर  आगे बढ़ गए  " तब से इस जगह का नाम खजियार पडा ।  

हम झील के नजदीक गए और पूल से होते हुए टापू पर पहुँच गए वहां से चारों और का नजारा देखने काबिल था ,काफी लोग वहां बैठे थे मुझे तो थोड़ा डर भी लग रहा था क्योकि कहते है इस झील का कोई अंत नहीं है-- कभी ये लकड़ी का टापू गिर गया तो ???????

हम  काफी देर तक टापू पर मस्ती करते रहे और फोटू खींचते रहे फिर हम मैदान में गए और घूमते रहे धुप और ठंडी हवा का मिलाजुला माहौल मन को तरोताजा कर रहा था ।
यहाँ कई होटल वगैरा तो हैं पर बाजार नहीं हैं रेस्त्रां भी है और ठेले भी है जहाँ गरमा गर्म ममोज और उबले अंडे लोग खा रहे थे कई जगह पर भुट्टे सिक रहे थे और चाय भी मिल रही थी ।पर हमारे पेट में पराठें अब तक विराजमान थे इसलिए हमने सिर्फ कोल्ड ड्रिंक पी ----


काफी देर तक हम मैदान में घूमते रहे फिर अपनी गाडी में वापस आ गए और डलहौजी जाने को तैयार हो गए  
शेष अगले अंक  में ------


मंदिर में आने का रास्ता  
मंदिर के कमरे, इसके नीचे और कमरे बने है  
 पीछे का दृश्य 
पीछे का दृश्य  

मंदिर की दीवार  

बालकनी में वानर सेना  

माता की चुन्नी पुजारी को देते हुए  








गंदी झील जो फैलती जा रही है  

 @#$* हम चार *$#@



 खजीनाग का मंदिर जिसके नाम पर खजियार नाम पड़ा 
2010 का खजियार का मिस्टर के साथ लिया फोटू 



वापसी में  पहाड़ी के ऊपर से लिया चित्र  



शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

एक बार फिर डलहौजी की यात्रा भाग 2



एक बार फिर डलहौजी की यात्रा 
भाग 2 


 डलहौजी 


28  सितम्बर 2014 


हम कल बॉम्बे से सुबह जम्मू तवी एक्सप्रेस से पठानकोट के लिए निकले थे । आज 29  तारीख़ को हम डलहौजी पहुँचे अब आगे ----

इतिहास ;--

डलहौज़ी धौलाधार  पर्वतश्रृंखलाओ पर बसा एक रमणीय स्थान है ।यह चम्बा जिले में स्थित है ।  अंग्रेजी  शासनकाल में यहाँ के वॉयसराय लार्ड डलहौजी के नाम पर इस स्थान का नाम भी डलहौजी पड़ा  ।  उनको यह स्थान इतना पसंद आया की उन्होंने ही इसे बसाया और अपनी हर छुटीयाँ यही गुजरा  करते थे । यहाँ की इमारतों में अंग्रेजी शासनकाल स्पष्ट झलकता है । समुन्द्र तल से इसकी ऊंचाई 2036  मीटर  है । यह ऐसा पवर्तीय स्थल है जहाँ ज्यादा भीड़भाड़ नहीं होती शांतिप्रिय लोगो के लिए ये स्थान वरदान है । मालरोड भी छोटा है ज्यादा बड़ा एरिया बसा हुआ नहीं है । यहां घूमने से ज्यादा लोग आराम करंने  आते है । खाना आमतौर पर अपने होटल में ही मिलता है बहार के रेस्त्रां में सिर्फ स्नेक्स ही मिलते है । शराब होटल और रेस्त्रां में नहीं बिकती, छोटा सा मार्केट है जो मालरोड पर ही है , तिब्बत मार्केट है जिसमें विदेशी माल बिकता है 
माल रोड की दुकानों पर स्वेटर और शाले मिलती है ।  यहाँ ममोज बहुत टेस्टी मिलते है । यहाँ का पब्लिक स्कूल बहुत प्रसिद्धी है दूर -दूर से बच्चे पढाई  करने आते है। …

 यहाँ के अन्य स्थल है :---

१. कालाटोप 
२. पंचकुला 
३. खजियार जिसे मिनी स्विजरलैंड भी कहते है ।     

अब हम डलहौजी के सुभाष चौक में खड़े थे.…स्टेचू तो गांधी बाबा का था पर चौक एक बहादुर आदमी के नाम था … खेर,  मालरोड के पास से  ही खजियार जाने का रास्ता था । प्रीत को वापस पठानकोट पहुँचना था ।इसलिए हमने सोचा की प्रीत को यही से जय -हिन्द कर दे ताकि वो दिन से ही वापस पहाड़ से नीचे उतर जाये और आराम से घर पहुँच जाये ।ठंडी भी हो गई थी सबसे पहले सबने गरम कपडे पहने मुझे तो जरा ज्यादा ही ठंडी लगती है ।

हम सब को बहुत तगड़ी भूख लग रही थी और 3 से ऊपर हो आये थे इसलिए मैंने धोषणा कर दी की पहले कुछ खायेगे फिर आगे बढ़ेंगे । सब तैयार हो गए अब  हम माल रोड के एक रेस्त्रां में गए तो यहां खाने को स्नेक्स थे  हमको तो कम्प्लीट फ़ूड चाहिए था फिर आगे दूसरा , तीसरा , चौथे  रेस्त्रां  में गए पर सब जगह स्नेक्स ही थे । खाना कहीं नहीं था चाइनीज जरूर था पर काफी मंहगा था । यहाँ के रेस्टोरेंट में खाना नहीं मिलता है सिर्फ स्नेक्स मिलते है।मुझे याद आया पिछली बार हमने अपने होटल में ही खाना खाया था। खेर,फिर हमने फ्राइड चावल मंगवाए और एक नूडल्स भी ।थोडा थोडा खाया । बकवास था सब -- चाय पीने के बाद प्रीत हमको   वापस निचे बस स्टेण्ड पर ले आया । यहाँ उसने एक कार आल्टो बुक की जो हमको खजियार लेजाकर छोड़ दे और कल सुबह पंचकुला और कालाटोप की यात्रा करवाकर वापस डलहौजी लाकर  किसी होटल में छोड़ दे । कार वाले ने कार का भाड़ा 2000 बोला पर मैंने  मोलभाव कर 1800 में नक्की किया ।

ये सब करने में हमको शाम के 6 बज गए ।बारिश भी हो रही थी और शाम भी हो गई थी । पहाड़ों पर जितनी जल्दी सुबह होती है उतनी जल्दी शाम भी हो जाती  है खेर, प्रीत को बिदा कर के हम 6 बजे खजियार जाने को निकल पडे । सरदारजी की गाडी थी । उन्होंने मुझे देखा तो बोले- " बीबी को थोड़ी अच्छी आरामदायक  गाडी में ले चलता हूँ तुस्सी थोड़ी देर इंतजार करो '' । 'हम इंतजार करने लगे थोड़ी देर बाद ड्राइवर नई इनोवा गाडी लेकर आया और फिर हम आराम से खजियार को निकले। तब तक अँधेरा घिरने लगा था। खजियार का रास्ता बहुत ही सकरा और जंगली था। सरदारजी बता रहे थे की यहाँ शेर चीता है और भालू तो बहुत तादात में है। मैँ थोडा डर रही थी क्योकि रात को पहाड़ पर यात्रा करना मुझे बिलकूल पसन्द नहीं है । मन ही मन वाहेगुरु से अरदास भी कर रही थी की कोई अनहोनी न हो ।खुद को कोस भी रही थी की आज डलहौजी ही रुक जाना था की अचानक कार  के सामने एक बच्चा चीता आ गया ।कार की हेडलाइट  में मुझे साफ दिखाई दे रहा था उसने बकायदा हमारी कार की तरफ देखा और भाग कर कार के पास होता हुआ निचे उतर गया। डर कर सबकी घिग्गी बन्ध गई । पर वो हमको कोई क्षति पहुँचाये बगैर ही अँधेरे में लोप हो गया। सरदारजी ने बताया की ये कार की लाईट में आते ही भाग जाते है रौशनी से डरते है बेचारे रात को ही घर से निकलते है शिकार की तलाश  में । पर मैँ सोच रही थी की वो डर रहा था की हम डर रहे थे हा हा हा हा

रात 8 बजे तक हम खजियार की माताजी के मन्दिर में पहुँच गए जहाँ हमारा रुम बुक था। ठंडी बहुत थी यहाँ दिसम्बर से जनवरी तक भारी बर्फबारी होती है। तब ये लोग निचे डलहौजी रहने चले जाते है । उस समय माताजी की पूजा नीचे ही होती है । मंदिर एकदम सुनसान था कोई भी नज़र नहीं आ रहा था । सन्नी मंदिर के पास  बने ऑफिस  में गया वहां से एक लड़का आया जिसने थोड़ी पूछताछ की फिर हमको लेकर मंदिर के पास बने रूम में ले गया । रूम बहुत ही अच्छा था हम पिछली बार भी यही रुके थे । 
इस मन्दिर में रूम हर किसी को नहीं मिलता । यहाँ के ट्रस्टी ही रूम बुक करते है । पिछली बार तो प्रीत के डैडी  ने हमारे लिए रूम बुक करवाया था वो इसमंदिर के ट्रस्टी थे , पर इसबार मिस्टर ने  खुद ही रूम बुक करवाया उनके एक ट्रस्टी के जरिये  जो पिछली बार से उनका भी दोस्त बन  गया था। .
. १५ मिनिट बाद हम  फ्रेश होकर रूम में गप्पे लड़ा रहे थे, ठीक ९ बजे हमको एक मंदिर में काम करने  वाला लड़का खाना खाने का बोलकर चला गया  इस मंदिर में सुबह नाश्ता और दोपहर में खाना और   रात को भी खाना मिलता है वो भी बिलकुल फ्री ---खाना  बहुत ही  टेस्टी होता है हम सुबह से भूखे थे हम जब नीचे डायनिंग हॉल में आये तो वहां दिल्ली के किसी कालेज के आर्ट स्टूडेंट लड़के लड़कियां उनके टीचर्स भी खाना खा रहे थे राजमा चावल आलू की  सब्जी और मीठी खीर खाने में थी खूब छककर खाना खाया । ठंडी बहुत थी प्लेट खुद ही साफ़ करनी होती है । चाय भी थी मैं तो थक गई थी इसलिए अपने कमरे में सोने आ गई बच्चे प्लेटे साफ़ कर और खूब फोटु उतारकर रूम में आये । रूम में डबल पलंग था और कम्बल और २ गद्दे पड़े थे अलमारी में-----हम  कुछ पलंग पर कुछ नीचे आराम से सो गए …। 

आगे जारी है ---------



डलहौजी का खुशनुमा माहौल मालरोड 

मालरोड से लगा हुआ यह चर्च 




गांधी बाबा 




 




 ख़जियार जाते हुए 


रात को सर्दी से बुरा हाल 










 मंदिर बाहर से 




माताजी अंदर विराजमान 







गुरुवार, 16 जुलाई 2015

एक बार फिर डलहौजी की यात्रा भाग 1

एक बार फिर डलहौजी की यात्रा
भाग 1 





डलहौजी 





28  सितम्बर  2014

मैँ बड़ी बेटी , बेटा सन्नी और बहु किरण हम चारों  सुबह फटाफट उठकर तैयार हुए .आज सुपर फ़ास्ट जम्मूतवी ट्रेन से पठानकोठ जा रहे है ..वैसे तो हम शादी में जलन्धर जा रहे है पर वहां हमको 1-2  अक्टूम्बर को पहुंचना है इसलिए सोचा की  2 दिन के लिए डलहौज़ी भी हो आयेगे क्योकि सन्नी और किरण पहले वहां नहीं गए हुए थे ।
शादी किरण की भाभी के भाई की थी जो नवांशहर में होनी थी हमको भी उन्होंने इन्वाइट किया था काफी फ़ोर्स था इसलिए मुझे भी जाना पड़ा।
गाड़ी में काफी लोग थे दूल्हा उसके पापा- मम्मी,किरण की भाभी और किरण के मम्मी पाप भी थे ।सब साथ ही जा रहे है....गाड़ी में बहुत मज़े किये....सबके साथ इतना लम्बा सफ़र देखते ही देखते कब पास हो रहा था।
कोटा जंक्शन आते ही देवर देवरानी उनके दोनों बेटे दोनों बहुएं और मेरी एक ननद हमसे मिलने गाडी पर आये ।कोटा में करीब 20 मिनट गाडी रूकती है । बॉम्बे से चला रेलवे का सारा स्टाफ यहाँ बदलता है ।मिस्टर जब इस गाडी में आते थे तो कोटा अपने घर चले जाते थे और दूसरे दिन वापस दूसरी गाडी लेकर बॉम्बे आते थे। खेर , अब तो TT की नोकरी से रिटायर्ड हो गए है।
हा तो कोटा से काफी खाने का सामान और मिठाई आ गई थी। वैसे तो खाने का काफी सामान हमारे पास था।जिसे रास्ते भर हम खाते रहे ...

यहाँ एक रोचक मामला हुआ :-
हुआ यू की हम दिनभर थर्ड AC में बैठे बैठे बोर हो गए थे और हम कुछ लेडिस घूमने गाडी में निकल पड़े ।इस बोगी से उस बोगी में जाना हिलते हुए  बड़ा मज़ा आता है। हम जैसे ही पेंट्री-कार में पहुंचे वहां उन्होंने माताजी को बैठा रखा था नवरात्रि के दिन थे और माताजी की बहुत बढ़िया झांकी बना रखी थी । हम लोगो ने दर्शन किये और प्रसाद लिया ।लगे हाथो वेटरों ने हमको शाम को 7 बजे आरती में भी इन्वाइट कर लिया । अब हम 7 बजे का इंतजार करते रहे जैसे ही 7 बजे हम सब चल दिए पर हमको थोडा और जल्दी जाना था क्योकि ठीक 7 बजे उन्होंने आरती शुरू कर दी ।हम जब पहुँचे तब तक समापन हो चूका था । खेर ,उन्होंने कहा की अब आप भजन गा दो और हम लोग जो याद थे वो भजन गाने लगे  उनमें से एक ढोलकी बजाने लगा और हम सब तालिया । आसपास से भी कई मुसाफिर आ गए और सब तालियां बजाने लगे यह सब 1 घण्टे तक चला बहुत ही बढ़ियाँ माहौल हो गया था पर हमको बहुत गुस्सा आया क्योकि मोबाईल और कैमरा हम अपनी सीट पर ही छोड़कर आये थे वरना फोटु खीच लेते यादगार रहती ।हम लोगो ने सारे सफ़र में बहुत इंजॉय किया ....

सब लोग जालंधर उतर गए और अब हम चारो पठानकोट जा रहे थे अकेले हो गए थे इसलिए चुपचाप बैठे रहे ।


सुबह 11 बजे  हमारी गाडी चक्कीबैंक  पहुंची जो अब पठानकोट रोड के नाम से जाना जाता है .....वहां बेटे का FB दोस्त प्रीत अपनी कार से  लेने आ रहा  था हम स्टेशन पहुंचे तो प्रीत वहाँ आया नहीं था  हम उसका इंतजार करने लगे  वही एक मालगाड़ी  मिलिट्री का सामान लेकर खड़ी थी  हमने कुछ फोटु खिंचवाए  तब तक प्रीत भी आ गया और अब हम उसकी कार से डलहौज़ी जायेगे....
 खूबसूरत द्रश्य मन को मोह रहे  थे ठंडी हवा के झोके मन को धपकिया दे  रहे थे...और हमारी कार तेजी से डलहौजी जा रही थी ।रास्ते में बारिश भी हो जाती थी फिर बंद हो जाती थी
रास्ते में एक गाँव के पास प्रीत ने गाडि रोकी और वहां से हमारे लिए आम पापड़ ख़रीदे मैंने भी वहां से कुछ फ्रूट्स ख़रीदे जो एकदम फ्रेश थे और सस्ते भी थे 
 डलहौजी मैं इसके पहले 2010 में  जून में आई थी , उस समय भी हम प्रीत के साथ ही थे जो हमको डलहौजी  के एक होटल में छोड़कर चला गया  था । तब हमको ज्यादा आनन्द आया था।तब हमने खूब इंजॉय किया था।

शेष अगले अंक में जारी -----------





दूल्हे की मम्मी और मैं 








सन्नी और दूल्हा 


हमारा डिब्बा 


























शेष अगले अंक में -----