मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

पटना के गुरुद्वारे --! ( 3 )

१  सितम्बर 2010 


(गुरूद्वारे का अंगना ) 



कल शाम को जब हम राजगीर से वापस आए तब बहुत थक गए थे --नींद जोर से आ रही थी इसलिए दरबार साहेब जाकर अरदास में शामिल हुए --सुखासन के बाद सीधे लंगर हाल में पहुंचे --ताकि खाना खाकर जल्दी सो सके --पंगत में बैठे ही थे की 'भोग की थाली' आ गई -- वहां  जो संगत बेठी थी पहली पंक्ति में; उसे उस भोग की  थाली का एक -एक टुकड़ा मिला --जो इतना स्वादिष्ट था की आज से पहले मैने कभी इतनी स्वादिष्ट रोटी  नही चखी  थी  --


मेरी गुजारिश हे :-
जो भी हरमिन्दर साहेब की यात्रा करे वो रात को पहली पंगत में लंगर अवश्य खाए ---गुरु का भोग किस्मत वालो को ही नसीब होता हे --


(गुरुद्वारे की धर्मंशाळा ) 




( गुरुद्वारे से निकलते वक्त हमारी मण्डली )

गुरुद्वारा दर्शन :-
आज हम पटना के दुसरे इलाको में जाएगे --जहां बालक गोविन्द के बारे में अधिक जानकारी मिलेगी और उनके पिताजी गुरु तेगबहादरजी  के बारे में भी --वेसे पटना में कई गुरूद्वारे हे --पर हम फेमस जगह ही जाएगे ---   


हम बाज़ार में आ गए --यह गुरुद्वारा मेंन बाज़ार में सडक के किनारे ही हे इस गुरुद्वारे का नाम हे :-

 गुरुद्वारा गाय-घाट


           


(गुरुद्वारा गाय-घाट  )  
     
इस जगह भगत जेतामल को गंगाजी गाय रूप में लाकर स्नान कराती थी           ( ऐसा वहां लिखा हे )



(इस चक्की से माता गुजरी अपने हाथो से आटा पिसती थी )    


(यह हे थम्ब साहेब )


(यहाँ एक खूंटा था जहां गुरु  तेगबहादरजी अपना घोडा बाँधते थे  )    


और अब हम जा रहे हे गुरुद्वारा हांडी साहेब --


जब पटना से बालक गोविन्दराय अपने पिताजी के साथ पंजाब जा रहे थे तब पहली बार यही पर ठहरे थे --यहाँ हमेशा नमकीन चावल प्रशाद के रूप में मिलते  हे -- 



(गुरुद्वारा हांडी साहेब  पीछे गंगा जी ) 




( हाजरा हजूर गुरु गोविन्दसिंह साहेब के चरण कमल )

(गुरुद्वारे के अन्दर का द्रश्य )

(गुरुद्वारे के बाहर का द्रश्य ) 

और अब हम जा रहे हे --गुरुद्वारा बाग़ साहेब :-  पटना के गुरुद्वारे 

इस गुरुद्वारे का महत्व यह हे की यहाँ बालक गोविन्दराय से उनके पिताजी गुरु तेगबहादरसिंह जी पहली बार मिले थे --जब उनकी उम्र चार वर्ष थी --उनका  हाथ का कड़ा यहाँ सुशोभित हे --यहाँ लम्बे चोडे बगीचे बने हे उन बगीचों के बीचो बिच एक तालाब  भी बना हे --             

(हाथ का कड़ा )

(लोटते हुए ) 

( गंगा नदी,लालू तेरी गंगा मेली  ) 



( गंगा नदी दूर गांधी -सेतु दिखाई दे रहा हे )



( दूर गोलघर दिखाई दे रहा हे )


(गोलघर ९६ फीट ऊँचा ) 


गोलघर यह ९६ फीट ऊँचा गुम्बदाकार गोदाम १७८६ में अनाज भरने के लिए बनवाया गया था-- आजकल हालत ख़राब हे --

इसके  आलावा हम तारा मंडल गए ---संग्राहलय गए --पर फोटू उतार ने पर  पाबन्दी होने की वजय से  फोटू नही उतर सके --
तारा मंडल में २० रु. खर्च करके एकदम बकवास प्रोग्राम देखा --पटना यूनिवर्ससिटी सड़क से ही देखि --गाँधी मैदान भी दूर से देखा --धुप और गर्मी की वजय से जा नही सके --      

वापस दरबार साहेब आ गए --नजदीक ही गुरुद्वारा बाल-लीला देखने चले गए --फिर गंगा किनारे बना छोटासा गुरुद्वारा गोविन्द -धाट देखने गए जो एक कमरे में बना हुआ था --निचे मेली गंगा थी --ऊपर गुरुद्वारा बना था --जहां मुश्किल से ६-७ बन्दे ही बेठ सकते थे --इस कमरानुमा गुरूद्वारे की यह खास बात थी की यहाँ गुरु नानक देव जी अपनी यात्रा  के दोरान १५०९ ईस्वी में आए थे और यहाँ ठहरे थे --फिर गुरु तेग बहादुर भी १६६६  ईस्वी में जब यहाँ आए तो इसी जगह ठहरे थे --      



(बालक गोविन्द राय )


(माता की गोद में बालक गोविन्द)




  ( गुरुद्वारा बाल -लीला )


(चमड़े का टुकड़ा )


इस जगह बालक गोविन्द अपनी माता गुजरीजी  के साथ रहते थे और मित्रो के साथ खेलते थे --यहा ऐक हाथ का लिखा हुआ ग्रन्थ साहेब भी हे जो काफी पुराना हे --यहाँ आज भी गाय  -भेंसे हे जिनका दूध निकल कर संगत के लिए खीर बनती हे --गुरु गोविन्द सिंह जी को खीर बहुत पसंद थी इसलिए   सेवादारो के आग्रह पर हमने वहाँ लंगर खाया जिसमे खीर प्रमुख थी --बेरी टेस्टी --!

यहाँ के गुरुद्वारों की एक बात खास लगी यहाँ के सेवादार बहुत प्यार से संगत की सेवा करते हे --पर यहाँ के गुरुद्वारों में बहुत गरीबी देखने को मिली --बड़ी मुश्किल से सेवादार अपना और अपने परिवार वालो का भरन पोषण करते हे --विदेशो की पेसे वाली संगत गोल्डन टेम्पल और नांदेड चली जाती हे जहां के गुरुद्वारों में करोड़ो की आमदनी होती हे--वहाँ सेवादार सीधे मुह बात भी नही करते हे -- पर यहाँ जहां महाराज का जनम हुआ वहां ऐसी बेरुखी ---? 

मेरी सिख -कोम से इल्तजा हे की वो पटना साहेब जरुर जाए---


कल हमारा रिटर्न रिजर्वेसन हे सुबह जल्दी ही निकल पड़ेगे --पटना में काफी जगह देखनी बाकी रह गई --फिर कभी ---         

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

( पटना ) राजगीर ! नालंदा ! ( 2 )

31  अगस्त 2010 


२८ तारीख से मुम्बई से सफ़र शुरू किया था--३० तारीख को हम यहाँ पहुंचे --कल पूरा दिन हम तख्त हरमिंदर साहब में ही रहे--


सिक्ख -पंथ के चार तख़्त हे --जहां से सिक्ख कोम को आदेश मिलते हे  और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी संचालन करती  हे--जिसका  नाम हे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेंटी-- ये तख्त हे =


(१)तख्त हरमिंदर साहिब अमृतसर |(पंजाब )
(२)तख्त हरमिंदर साहिब पटना साहब | (बिहार )
(३)तख्त हुजुर साहिब अविचल नगर (नांदेड, महाराष्ट्र)
(४)तख्त केशगढ़  साहिब आनंदपुर साहिब (पंजाब )       


"चायsssssss  चाय वाले की आवाज से नींद खुली --८ बज रहे थे --सारी  रात सो नही सके --गर्मी बहुत थी --उस पर बिजली की लानत ! जनाब, पटना   में बिजली का बड़ा रोना  हे--बार -बार जाती रहती हे -- ?
एक  बात बड़ी पसंद आई सुबह ही रूम पर चाय मिल गई --समझो जहाँ मिल गया --बेड-टी की आदत जो पड़ गई हे --


खेर, तैयार होकर हम गुरूद्वारे सा.पहुंचे--पाठ  किया फ़िर नाश्ता करने गए --तब तक गाडी आ गई थी --गाडी हमे गुरूद्वारे की प्रबन्धक कमेटी की तरफ से मिल गई  थी--वरना प्रायवेट गाडी वाले तो लुटते हे ---   



( रेखा और मै नाश्ता करने जा रहे हे )

(गुरूद्वारे जाते हुए मिस्टर )

और अब हम जा रहे हे --गंगा किनारे से सटे हुए बाज़ार चोक की और --
शहर में काफी गंदगी हे --मेंन बाज़ार की सडक पर ही टनो कचरा पड़ा हे-- इससे ट्राफिक जाम लगता रहता हे --गर्मी से वेसे ही बुरा हाल हे --यदि यहाँ आने का प्रोग्राम बनाए तो सर्दिया  ही बेस्ट हे --
हमने चोक से लस्सी पी ताकि ठंडक बनी रहे --यहाँ के मुनेर के लड्डू काफी फेमस हे जो की चावल के बने होते हे--और सिलाव का खाजा बड़ा पसंद आया वेसे खाजा यहाँ सभी जगह मिलता हे --          

इतिहास :-

पटना शहर के इतिहास की बात हो जाए --

पटना शहर बिहार राज्य की राजधानी हे--इसे ३००० हजार वर्ष से लेकर अब तक भारत देश का गोरव शाली शहर होने का दर्जा प्राप्त हे --गंगा किनारे बसा हुआ यह शहर बहुत -सी ऐतिहासिक इमारतो के लिए भी जाना जाता हे --पटना शहर मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था, यह चन्द्र गुप्त  मोर्य,सम्राट अशोक ,चन्द्र गुप्त दिवतीय व् समुद्र गुप्त यहाँ के महान शासक हुए हे --चीनी यात्री व्हेगसांग का प्रथम आगमन यही हुआ--महान                              कुटनितीज्ञ  कोटिल्य,ने अर्थशास्त्र की रचना यही की थी --यही विष्णु शर्मा ने पञ्चतन्त्र लिखी थी --फेमस विश्व विधालय नालंदा भी यही हे --
मुगलों और अंग्रेजो के समय भी पटना शहर व्यापर के लिए प्रमुख शहर माना जाता था--|

आजादी के बाद बिहार स्वतंत्र राज्य बना और पटना उसकी राजधानी बना --आजकल इसका एक नाम और हे वो हे ' लालू का पटना  |'


चलो -- अब हम पहुँच चुके हे,  राजगीर  = राजगीर पर्वत पर भगवान बुध्द ने कई उपदेश दिए --जापान के बुध्द -संध ने इसकी चोटी पर एक  शांति -स्तूप बनाया हे --स्तूप के चारो कोनो पर भगवान बुध्द की मुर्तिया स्थापित की हे --पहाड़ पर पैदल मार्ग के साथ ही एक रोप -वे का भी इंतजाम हे --जो आपको फटाफट पहाड़ पर चडा देगा --चित्र देखिए ---

( रोप - वे )


(ऊपर जाते हुए )
  

( नजदीक से )
              


(इसमें मिस्टर बैठे हुए हे )


( पहाड़ी से दिखता हुआ बड़ा घंटा )   




(पहाड़ी पर मै --बहुत दूर  घंटा दिखाई दे रहा हे  )




(शांति -स्तूप  पीछे  दिखाई दे रहा हे )


(  अपनी सहेलियों के साथ  )   

( चीनी भाषा में लिखा आलेख ) 


(चारो कोनो पर लगी मूर्ति ) 
(स्तूप के पास लगी हुई शेर की प्रतिमा )


(भगवान् बुध्द के मन्दिर के बाहर खड़ी रेखा ) 

राजगीर छोटी-सी जगह हे --छोटी -मोटी दुकाने हे --रोप -वे का शुल्क २५रु हे --यह सुबह 8 बजे से शुरू होकर12.30 तक रहता हे ,बाद में 2.00 से शाम ५बजे तक खुला रहता हे --पहाड़ी पर बड़ा मनोरम द्रश्य देखने को मिला -- यहाँ कई खूबसुरत बगीचे बने हुए हे -- मंदिर भी हे -ठंडी -ठंडी हवा के झोके गर्मी भुला देते हे --काफी सेलानी धूम रहे थे --काफ़ी सुन्दर वातावरण था     
हम जब वापस हुए तो १ बज रहा था उनका लंच -टाइम हो गया था -रोप -वे बंद हो गए थे-- अब हमे यही २बजे तक इन्तजार करना था--हमारे बहुत से साथी नीचे उतर गए थे --पास ही एक स्टाल पर ठंडा कोक पीने गए-- नीचे के चित्र तब उतारे जब लंच -टाइम हुआ था --वरना रोप-वे रुकते नही हे --चालू स्थिति में ही चड़ना पड़ता हे --वरना वो चेयर खाली जाती हे -

(रेखा की मम्मी,जो एक हार्ड पेशेंट भी हे )

(उतरने में बड़ा डर लग रहा हे ) 
(नीचे उतरते रोप-वे )
रोप वे पर जाने के लिए सबसे पहले रेखा की मम्मी तेयार हुई --सब डर रहे थे --मै तो डरने में नंबर वन हूँ --ऊंचाई  देखकर मेरी हालत पतली हो जाती हे -सबसे आखिर में मुझे चड़ा ही दिया --इतना सुन्दर नजारा था और मैने आँखे बंद कर रखी थी--कुछ ऊपर आई तो हाथो के झरोखो से देखा,  सामने वाले झूले में एक जवान लडकी मुझे देखकर हंस रही थी --वो ऊपर से नीचे उतर रही थी -मुझे बड़ी शर्म आई मेने तुरंत आँखे खोल दी -दिल मजबूत किया --और सबकुछ ठीक था --डर भाग चूका था --इतना सुन्दर माहोल !क्या कहने --? आप हवा में तैर रहे हो एक कुर्सी पर बैठे हुए --नीचे दूर तक जमींन नही दिख रही हो;   कैसा लगेगा ? एक गाना याद आ रहा हे ---
                   " आज मै ऊपर आसमा नीचे "               

नीचे उतरते ही तेज भूख लगी फिर वही एक छोटे -से होटल में खाना खाया --३ बज गए थे अब हम नालंदा जा रहे थे--नालंदा पटना शहर से सिर्फ १३ की. मी. हे --यहाँ विद्यालय तो नही हे पर उसके अवशेष जरुर हे --पास ही एक लेजर शो का हाल था जो हमे नालंदा के बारे में बताएगा--हम सब वो देखने चल दिए टिकिट था २० रु. --बहुत अच्छा शो लगा---        

(नालंदा के खँडहर )


(नालंदा के खंडहर ) 



(खूब सुरत बगीचा )

नालंदा सड़क से २कि. मी. अन्दर हे --पैदल जाना पड़ता हे --रास्ता बड़ा सुन्दर हे पर गर्मी  से परेशान हो गए-- इसलिए ज्यादा धूम नही सके --थोड़ी दूर जाकर वापस आ गए --
नजदीक ही पावपूरी ५कि. मी.दूर थी नालंदा से --जहाँ जेन मन्दिर थे और गर्म पानी के कुंड थे --पर सब थक गए थे --इसलिए प्रोग्राम केंसिल कर के वापस पटना चल दिए --|     

( वापस आते हुए ) 

(गंगा किनारे एक फोटू )

वापस लोट रहे थे तब ड्राइवर ने बताया की आप लोग बोध्दगया क्यों नही गए --किसी को पता ही नही था --सबलोग उसी पर चड गए --पहले क्यों नही बताया -?वो बोला मुझे क्या मालूम आप लोग मेरे मालिक से मिले थे -खेर ,इस बार छुट गया अगली बार देखेगे --

जारी ---

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

वेलेनटाइन-डे !!!



कल मेरे घर वेलेनटाइन-डे मनाया गया ---!
पहले  टीटू आया --
फ़िर टुन्नी को भी साथ लाया --
दोनों मस्त !




अपनी मस्तियो में --
न दुनिया की खबर --
न रस्मो का झंझट --
प्रेम की पिंग बड़ाई --
लब से लब टकराए ---


टीटू बोला --
'तुझे चाहा  टूटकर  मैने --
हर घडी --हर पल --
तुझे महसूस किया --
दिल के पास --
बहुत पास --
आज भी हे दिल में --
तेरे प्यार का एहसास --
तुझसे वफा की उम्मीद हे --
दिल मेरा ख़ुशी से चूर हे --
आँखों से ख़ुशी के आंसू बहते हे --
क्योकि आज  वेलेनटाइन -डे  हे -- ! '


टुन्नी बोली --- ' मेरे हमदम मेरे दोस्त --
आज ख़ुशी का मोका हे --
इजहारे मुहब्बत करने दो ---
एक हाथ लो, एक हाथ दो --
हमसे जफा की उम्मीद मत करना --
कोई शिकायत--कोई शंक-शुबह मत करना --    
हम तुम्हारे हे --तुम्हारे ही रहेगे --
बस ,यही गुजारिश बार -बार करेगे --
मेरी मुहब्बत पर एतबार करना --
आज वेलेनटाइन- डे  हे ---
मेरा इन्तजार करना---- 



शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

गुरु गोविन्द सिंह जी का जनम- स्थान (1) पटना साहेब !

२८  अगस्त 2010




(पटना साहेब !गुरु गोविन्द सिंह जी का जनम- स्थान !)


आज  मै एक धार्मिक -यात्रा कर रही हु --हमारे गुरूद्वारे के स्त्री -जत्थे के साथ ! साथ में मेरे पतिदेव ,मेरी अजीज सहेली रेखा और उसकी मम्मी भी है --बच्चे नही आए --क्योकि उनके कालेज खुल चुके हे ---

 छत्रपति शिवाजी टर्मिनस ( वी.टी.) से रात को ग्यारह बजे चलने वाली राजेंद्र नगर एक्सप्रेस से हमारा रिजर्वेसन था --हम चारो सेकंड ऐ सी में बैठ गए बाकी की लेडिस सेकंड क्लास में थी --सफर परसों सुबह तक का था --गर्मी बहुत थी --बिहार में वेसे भी गर्मी बहुत पडती हे --खेर,

(मिस्टर ट्रेन में मैगज़ीन का आनंद लेते हुए )  


( ट्रेन में यात्रा का लुत्फ़ लेते हुए )

   चलिए ---चलते -चलते आपको पटना साहेब का इतिहास बता दू--आप सोच रहे होगे की इतना बड़ा पंजाब छोड़कर हमारे गुरु को यहाँ बिहार में गंगा किनारे जन्म लेने की क्या जरूरत थी ---?



गुरु गोविन्द सिंह जी के पिताजी सिख धर्म के ९वे धर्मगुरु थे --उनका नाम गुरु तेगबहादर जी था --सन १६६६ ईसवी में जब वे धर्म प्रचार करते हुए बिहार पहुचे तो उनकी पत्नी माता गुजरी माँ बनने वाली थी ,ऐसी हालत में वो सफर करने लायक नही थी इसलिए उन्होंने अपने एक विशवास -पात्र अनुयायी  के यहाँ उन्हें  छोड़ दिया-- और खुद प्रचार करने निकल पड़े --
यही बालक गोविन्द का जनम २३ दिसम्बर  १६६६ को  हुआ--
६ वर्ष तक बालक गोविन्द यही पर रहे --यही उनकी बाल लीलाए हुई --जहाँ आज गुरुद्वारे खड़े हुए रोनक बखश रहे हे ---

बाद में; ६ साल बाद जब वे वापस बिहार आए तो अपने साथ माँ -बेटे दोनों को आनंदपुर साहेब ले गए |
  
दिनांक ३०अगस्त २०१०


 सुबह ६ बजे गाडी राजेंद्र नगर स्टेशन पर पहुंची पर हमे यहाँ नही उतरना था क्योकि यह गाडी सीधी पटना साहेब स्टेशन ही जाएगी --स्टेशन का नाम ही ' पटना- साहेब ' हे--यहाँ बेहद गर्मी हे ,धुल -मिटटी से बुरा हांल हे --सुबह का यह नजारा हे, दोपहर को क्या होगा ?



टेम्पो करके हम गुरुद्वारा पहुंचे --दो मज्ज़िदो के बीच गुरुद्वारे का गेट देखकर थोडा अजीब लगा पर जब अंदर पहुंचे तो विशाल आँगन को देखकर हमारी ख़ुशी का ठिकाना न रहा --पर संगत(लोग )बिलकुल भी नही थी--सिख धर्म के स्थापक गुरुगोविंद सिंह जी के जन्म स्थान पर संगत का  न होना आश्चर्य की बात थी ---       

पास ही आफिस था एक रूम का किराया १००रु.!रूम ठीक थे पर ऐ.सी रूम नही मिले --गर्मी बहुत थी ,कैसे रहेगे! पर हमे बड़े पंखे मिल गए --हम तो होटल जाने वाले थे पर दुसरे लोग तेयार न हुए-- मजबूरी वश हमे भी वही रुकना पड़ा --| खेर, यात्रा करने आए हे--तफरीह करने नही --? 

नहाधोकर तैयार हो गुरुद्वारे चले --माथा टेकने --सबसे पहले प्रशाद खरीदा यहाँ दो तरह का प्रसाद मिलता हे --कड़ा प्रसाद ,पिन्नी प्रसाद | 
 .
(ग्रन्थ साहेब की सवारी के साथ ही महाराज का फोटू )

(शास्त्र दिखाते हुए पाठी )

( गुरूद्वारे के  अंदर का द्रश्य )


 ( माता गुजरी का पवित्र कुआं  )
           
(चोला साहब, गुरु का पहना हुआ कपड़ा )  

(चोला साहब का इतिहास )

(ग्रन्थ साहेब की सवारी ) 
बहुत अच्छा माहोल था --रागी जत्थे शबद-कीर्तन कर रहे थे --यहाँ थोड़ी संगत जरुर थी पर हुजुर साहेब (नांदेड ) से १०% भी नही थी | सबने बैठकर सुखमनी -साहेब का पाठ किया --प्रसाद चडाया,  फिर  अरदास के बाद  नाश्ता करने पीछे की तरफ चल दिए --यहाँ नाश्ते का कमरा अलग हे और लंगर का हाल अलग हे --यहाँ के सेवादार बड़े भले हे --सबसे अदब से पेश आते हे --सुबह -सुबह भूख जोरो की लग रही हे-- हम सब पंगत में बेठ गए --वाह ! क्या नाश्ता हे --पराठे के साथ कड़ी ,वह भी पकोड़ो वाली --साथ में चाय भी --     


( नाश्ते का लुत्फ़ उठती रेखा पीछे पतिदेव भी ) 


(सफर के बाद मजेदार गरमा - गरम पराठे -कड़ी का नाश्ता)


नाश्ते के बाद हम वही गुरुद्वारे में धुमने लगे पास ही गली में मार्किट हे जहाँ गुरमत से सम्बंधित पुस्तके और सामान मिलता हे --आचार-बड़ियोकीबड़ी दुकाने हे यहाँ ,हमने कुछ सामान खरीदा --वापस रूम में आ गए --     

(आराम के पल गुरूद्वारे में ) 
शाम को ५ बजे हम वापस गुरूद्वारे पहुंचे- रहिरास साहिब का पाठ चल रहा था  --बाद में कीर्तन शुरू हो गया --करीब ८बजे सुखासन हुआ इसमे सिरकत करके हम लंगर -कक्ष्य में खाने चल दिए --


(रात को आरती करते हुए पाठी जी  )


(आरती करते हुए ज्ञानी जी )


(बाहर खुले आगन में बैठे है )     


(रात को कुछ सहेलियों के साथ गुरूद्वारे के बाहर )


(सुखासन के बाद वापस जाते हुए ) 


रात को गुरुद्वारे में आरती होती हे --वेसे हमारे धर्म में मूर्ति -पूजा,आरती मना हे पर नांदेड साहेब में भी आरती होती हे और यहाँ भी --क्योकि गुरु गोविन्द सिंह जी एक योध्या भी थे और शास्त्र  रखते  थे  इसलिए मान्यता हे की शास्त्रों की पूजा करनी चाहिए सो ;यहाँ भी शास्त्र रखे हुए हे और उनकी ही आरती होती हे --यह मेरी राय हे ? हो सकता हे इसके पीछे कोई और कारण हो---? कल के लिए एक गाडी किराए पर की हे --पटना धुमने के लिए --      

रात को हम वापस कमरों में आ गए --गर्मी बहुत हे --पर रात सुहानी हे  --कल हमे धुमने जाना हे --राजगीर,नालंदा !देखते हे कहाँ कहाँ जाते हे --

जारी---