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सोमवार, 7 सितंबर 2015

एक बार फिर डलहौजी की यात्रा भाग 4


एक बार फिर डलहौजी की यात्रा

 भाग 4  







28 सितम्बर  2014 

हम सब आज सुपर फ़ास्ट जम्मूतवी एक्सप्रेस से पठानकोठ जा रहे थे । 29  को हम सुबह पठानकोठ पहुंचे फिर कार से डलहौजी फिर वहां से रात को खजियार पहुंचे । रात को खज्जियार में गुजरा ; सुबह हम वापस डल्हौजी को निकल पड़े ;अब आगे :---

30 सितम्बर  2014 

दोपहर तक हम खजियार के मैदान में घूमते रहे फिर वहाँ से निकल पड़े । मन तो नहीं था पर क्या करे मजबूरी थी क्योंकि आज हमकों डलहौजी  भी घूमना हैं और कल वापस जलंधर जाना है ।  


हमारी कार खजियार से निकल पड़ी अभी कुछ दूर ही गए थे की पानी आने लगा सारा मज़ा किरकिरा कर दिया ।पानी भी मूसलाधार ! एकदम कुछ दिखाई नहीं दे रहा था चारों और धुंध ही धुंध ....ऊपर से बड़े बड़े ओले भी गिर रहे थे जो कार की छत पर गिर कर एक संगीत- सा माहौल बना  रहे थे मुझे तो बड़ा ही ख़राब लग रहा 
था क्योकि प्रकृति से मिलने वाला सुकून मुझे पहाड़ों  को देखकर ही मिलता था अब ये  बारिश सारा मज़ा ख़राब कर रही थी ।   

कब सारा नजारा चला गया पता ही नहीं चला ।और इसी बारिश के कारण हम पूर्व निर्धारित कालाटोप देखने से वंचित रह गए ।फिर भी हम सरदार अजितसिंह की समाधि तो देखने गए ही और बारिश में भी उस महान क्रन्तिकारी नौजवान को नमन किया।जब हम पंचकुला गए तो बारिश पुरे शबाब पर थी और हमारे पास एक अदद छतरी भी नहीं थी ।मैंने पास की दुकान से 2 छतरी किराये पर लेने को बोला पर बन्दा टस से मस नहीं हुआ बोला --"खरीद लो किराये से नहीं दूँगा ।" अब एक छोटी सी छतरी 250 में खरीदना मुझे थोडा महंगा भी लग रहा था ऊपर से उसको संभालना और भी टेडी खीर था ।पर ,मरता क्या करता -हमको छतरी लेनी ही पड़ी । गालियां तो बहुत दी मैंने पर मन ही मन .... हमारा बॉम्बे होता तो वो छतरियां किराये पर दे देकर काफी कमा चूका होता।
खेर,हम छोटी सी छतरी में एक एक आदमी उतरकर समधि स्थल पर जाते और वापस गाड़ी में बैठ जाते।यहाँ हमने बारिश में भी यादगार के लिए फोटु खिंचे । 

अब हमको भूख भी लगने लगी थी तो हम सरदारजी से बोले की हमको होटल हॉलिडे प्लाज़ा छोड़ दे । हम पिछली बार भी यही रुके थे ।अब  बारिश भी बन्द हो गई थी ।

वो हमको होटल छोड़कर अपना हिसाब लेकर चले गए।
अब हम होटल की लॉबी में बैठे होटल से सम्बन्धित बाते कर रहे थे जो रूम हमने पिछली बार 900 में लिया था हम वही मांग रहे थे जबकि इस समय वो खाली नहीं था। फिर उसने 1200 रु में हमको नया 2 रूम वाला  सुइट दिया जिसमें 2 रूम थे । पर में सर्फ 1000 देने पर अड़ी थी आखिर बड़ी मुश्किलो के बाद उसने हमको 1 
दिन के लिए रूम दिया और हम सामान रखकर आराम करने लगे। 

कुछ देर आराम करने के बाद हम फ्रेश होकर मालरोड घूमने निकले । भूख खूब जमकर लग रही थी मालरोड पर कई रेस्त्रां घूमने के बाद एक में बैठकर पाँव भाजी खाई ।बेस्वाद पाव भाजी। फिर पास के तिब्बती मार्किट में थोडा घुमा और नजदीक के सेंट जोन्स चर्च में चले गए।चर्च में बड़ा ही शांत वातावरण था कुछ देर वहां की शांति में बिताया वहां से निकल कर बाहर खूब फोटु खिंचे । जब मन भर गया तो गांधी चौक पर आकर कुछ फोटु गांधी बाबा के साथ भी खींचे। यहाँ कुत्ते बहुत है सभी छबरिले पर सड़क छाप । 

 तब तक शाम हो गई थी हमने वही कुछ टूर शॉप पर पठानकोट जाने वाली कारों के बारे में इन्क्वारी की सभी हमको 2 हजार में पठानकोठ तक लेजा रहे थे हमने एक कार बुक की और माल रोड पर ही घूमते रहे।ठण्ड बढ़ने लगी तो मालरोड पर ही गरमा गरम जलेबिया और ममोज खाये । अब तक काफी ठंडी हो चली थी और सबका पेट भी भर गया था तो हम सब होटल की तरफ चल दिये।

थकान की वजय से सभी जल्दी सो गए।

सुबह  12 बजे हॉटेल छोडना था सभी तैयार होकर पेकिंग कर सामान होटल में रखकर हम खाना खाने मालरोड आ गए।पर यहाँ तो एक भी  ढंग का  होटल नहीं था  पिछली बार तो हमने होटल में ही खाना खाया था पर इस बार होटल का खाना बनाने वाला स्टॉप छुट्टी पर था उन्होंने हमको पास ही एक ढाबे का खाना खाने को कहा हम वहां गए तो वो बड़ा ही गंदा सा ढाबा दिखा पर क्या करते खाना तो खाना था ही लेकिन उसका खाना लाजबाब निकला बहुत ही स्वादिष्ट और सस्ता भी हमने पेट भरकर खाना खाया और होटल आकर अपना सामान कार  में रखवा कर डलहौजी से रुखसत हुये  ----
  


 उमड़ - घुमड़ कर आई रे घटा 


भीगा भीगा मौसम 


 सड़क पर गिरते बर्फ के बड़े बड़े टुकड़े  -- ओले ओले --ओले ओले ओले 




 क्रांतिकारी सरदार  भगतसिंह के चाचा  स. अजितसिंह की समाधी 





पिछले साल का चित्र 


 सुबह का नजारा 


सुबह आसमान एकदम खुला था । मदहोश कर देने वाला आलम 

 मेरा होटल 

 सुबह की सैर 

 छबरिले डॉग 

गर्म जायकेदार चिकन ममोज 

गरमा गरम जलेबी 


 गांधी बाबा और मैं 








सेंट जोन्स चर्च 

अलविदा डलहौजी 


और इस तरह हमारी डलहौजी यात्रा ख़त्म हुई