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शनिवार, 8 जुलाई 2023
एक डॉक्टर
शनिवार, 10 जून 2023
तमिलनाड़ुडायरी#17
तमिलनाडुडायरी#17
कन्याकुमारी भाग #7
(समापन क़िस्त)
20 दिसम्बर 2022
अब हमारा आखरी डेस्टिनेशन बाकी था। कोवलम बीच जाना था पर शाम होने वाली थी तो हमने वहां जाना कैंसिल किया और मन्दिर की तरफ चल पड़े।
इस बीच पूवर बैकवाटर के बाद कृष्णा हमको गर्म मसालों के मार्केट में ले गया पर हमको कुछ खरीदना नही था तो हम वापस लौट आये वैसे भी वहां काफी महंगा सामान मिल रहा था।तो हम खाना खाने चले गए।
5 बज रहे थे और हम पद्धमस्वामी मन्दिर चल पड़े।वैसे हमारा प्रोग्राम कल जाने का था पर कृष्णा ने बोला कि कल शुक्रवार हैं और साउथ के मंदिरों में मंगलवार और शुक्रवार को बहुत भीड़ होती हैं।ओर भीड़ से मुझे बहुत एलर्जी थी तो हमने आज ही दर्शन करने का निर्णय लिया शायद आज ही भगवान का बुलावा हो।
जैसी प्रभु की इच्छा।🙏
हमने बाजार से 2 लुंगी खरीदी ओर कुर्ती के ऊपर ही मैंने लूंगी बांध ली।वैसे मैं एक साड़ी लाई थी पर अगर कल जाते तो पहनती पर अब रोड पर कैसे साड़ी पहनु😃
Padmanabha Templ :--
"दुनियां का सबसे अमीर मन्दिर"
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के मध्य में स्थित है पद्मनाभ स्वामी मंदिर। विशाल किले की तरह दिखने वाला यह मंदिर विष्णु भक्तों के लिए महत्वपूर्ण आस्था स्थल है। यहां भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम इस मंदिर में आए थे और यहां पूजा-अर्चना की थी।
मान्यता है कि मंदिर की स्थापना 5000 साल पहले कलयुग के प्रथम दिन हुई थी। लेकिन 1733 में त्रावनकोर के राजा मार्तण्ड वर्मा ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। यहां भगवान विष्णु का श्रृंगार शुद्ध सोने के भारी भरकम आभूषणों से किया जाता है।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुडी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से भगवान विष्णु की प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया ।
मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है जिसे देखने के लिए हजारों भक्त दूर दूर से यहाँ आते हैं। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। मान्यता है कि तिरुअनंतपुरम नाम भगवान के 'अनंत' नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है। यहाँ पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है और इस रूप में विराजित भगवान यहाँ पर पद्मनाभ स्वामी के नाम से विख्यात हैं।
तिरुअनंतपुरम का पद्मनाभ स्वामी मंदिर केरल के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। केरल संस्कृति एवं साहित्य का अनूठा संगम है। इसके एक तरफ तो खूबसूरत समुद्र तट है और दूसरी ओर पश्चिमी घाट में पहाडि़यों का अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य, इन सभी अमूल्य प्राकृतिक निधियों के मध्य स्थित- है पद्मनाभ स्वामी मंदिर। इसका स्थापत्य देखते ही बनता है मंदिर के निर्माण में महीन कारीगरी का भी कमाल देखने योग्य है।
मंदिर का गोपुरम द्रविड़ शैली में बना हुआ है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का अदभुत उदाहरण है। मंदिर का परिसर बहुत विशाल है जो कि सात मंजिला ऊंचा है ।गोपुरम को कलाकृतियों से सुसज्जित किया गया है। मंदिर के पास ही सरोवर भी है जो 'पद्मतीर्थ कुलम' के नाम से जाना जाता है।
लेकिन अंदर मोबाइल ले जाना मना हैं तो फोटु खींचने से वंचित रह गई।
दीपक के उजाले में होते हैं दर्शन
मुख्य कक्ष जहां विष्णु भगवान की लेटी हुई मुद्रा में प्रतिमा है, वहां कई दीपक जलते हैं। इन्हीं दीपकों के उजाले से भगवान के दर्शन होते हैं। स्वामी पद्मनाभ की मूर्ति में भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल पर जगत पिता ब्रह्मा की मूर्ति स्थापित है। भगवान पद्मनाभ की मूर्ति के आसपास दोनों रानियों श्रीदेवी और भूदेवी की मूर्तियां हैं। भगवान पद्मनाभ की लेटी हुई मूर्ति पर शेषनाग के मुंह इस तरह खुले हुए हैं, जैसे शेषनाग भगवान विष्णु के हाथ में लगे कमल को सूंघ रहे हों। यहां मूर्ति का दर्शन अलग-अलग दरवाजों से किया जा सकता।
मंदिर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के साथ ही यहां श्रद्धालुओं के लिए नियम भी हैं। पुरुष केवल धोती पहनकर ही मंदिर में जा सकते हैं और महिलाओं के लिए साड़ी पहनना जरूरी है। अन्य किसी भी लिबास में प्रवेश यहां वर्जित है। मंदिर में एक सोने का खंभा बना हुआ है। मंदिर का स्वर्ण जड़ित गोपुरम सात मंजिल का है। जिसकी ऊंचाई करीब 35 मीटर है। कई एकड़ में फैले इस मंदिर में अद्भुत कारीगरी की गई है।
एक ओर बात इस मंदिर के लिए सुनी हुई हैं कि इस मंदिर में 7 तहखाने हैं जिसमें बेशुमार धन छुपा हुआ हैं।इसीकारण इस मंदिर को दुनियां का सबसे अमीर मन्दिर कहते है।
हमने एक शॉप से 2लुंगी खरीदी ओर उसको लपेटकर हम मन्दिर के अंदर गए। आज यहां ज्यादा भीड़ नही थी।
आगे जाकर हमने 100 ₹ की 2पर्ची कटवाई ओर लंबे गलियारे में डोलते हुए आगे बढ़ते गए। सामने ही मेरे भगवान विष्णु की सोने की प्रतिमा थी चारो ओर दीपक की मद्धम रोशनी फैली हुई थी कुछ खास तो नजर नही आया पर एक जगह सफेद फूलों का ढेर देखकर समझ गई कि यही भगवान की मूर्ति होगी।दीपक की रोशनी में ज्यादा कुछ दिखाई नही देता। वैसे भी वहां ज्यादा खड़ा रहने नही देते इसलिये हाथ जोड़कर बाहर आ गए।बाहर आकर हमने प्रसादम खरीदा जो कि 100 ₹की गुड़ ओर गेंहू की खीर थी।वो लेकर हम बाहर निकल पड़े।
अब कृष्णा को अलविदा बोल हम होटल चल दिये। रात को हमने एक केरला रेस्टोरेंट में नूडल्स खाये ओर केरला का फ़ेमस लाल पानी पिया।दूसरे दिन हमने नाश्ता किया ओर ऑटो पकड़कर आराम से मन्दिर के आसपास का जायका लिया ,मार्किट घूमे ओर 4 बजे जाकर अपनी गाड़ी में बैठ गए।
इस तरह मेरी तमिलनाडु यात्रा समाप्त हुई 🙏
रविवार, 28 मई 2023
तमिलनाडुडायरी#16
सोमवार, 22 मई 2023
तामिलनायडु डायरी#15
गुरुवार, 11 मई 2023
तमिलनाडू डायरी#14
बुधवार, 10 मई 2023
तामिलनायडुडायरी#13
तमिलनाडुडायरी#13
कन्याकुमारी भाग 3
19 दिसम्बर 2022
हम आज सुबह ही कन्याकुमारी आये थे ।पहले सूर्योदय देखा फिर होटल में जाकर थोड़ा आराम किया और अब शिप में बैठकर विवेकानंद रॉक मेमोरियल देखने आए है अब आगे....
हम शिप में कचरे की तरह लुढ़कते लुढ़कते एक जगह पहुँच गए ।यहां से देखा तो काफी सुंदर चट्टान पर विवेकानंद स्मारक बना हुआ था।बहुत ही खूबसूरती से सजा रखा था।हवा बेहद तेज थी जिससे मेरे गिने चुने बाल उड़ रहे थे😀
विवेकानन्द स्मारक
भारत के कान्यकुमारी में समुद्र में स्थित यह स्मारक बना है।यह किनारे से लगभग 500 मीटर अन्दर समुद्र में स्थित दो चट्टानों में से एक के ऊपर बना है।
कन्याकुमारी से 15 मिनट की फेरी की सवारी लेनी होती हैं जो मौसम के आधार पर सुबह 8 बजे से शाम 4:30 बजे तक या सुबह 7 बजे से शाम 5:30 बजे तक चलती है। टिकट की कीमत आमतौर पर 50₹ होती हैं।Vip की कीमत निश्चित नही हैं।मेरे टाइम 200₹ थी।
1970 में इस विशाल शिला पर ये भव्य स्मृति भवन स्वामी विवेकानंद के सम्मान में बनाया गया था।तब इसका उद्धाटन तत्कालीन राष्ट्रपति श्री V. V. गिरी ने किया था।कहते हैं स्वामी जी को इसी चट्टान पर बैठकर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
विवेकानंद स्मारक के पास ही दूसरी चट्टान पर प्राचीन तमिल कवि तिरुवल्लुवर की 133 फीट ऊंची विशाल मूर्ति है।मैंने देखा उसकी मरम्मत चल रही हैं। वहाँ किसी को जाने की अनुमति नहीं थी वरना जरूर जाती।
शिप से उतरकर हम एक गलियारे जैसे अलग से बने रास्ते से ऊपर की तरफ बढ़ चले।आगे चलकर हमको एक भव्य मंदिर दिखाई दिया।वाकई में बहुत सुंदर निर्माण हुआ हैं ।सामने ही बहुत सारी सीढ़िया ऊपर तक गई थी। सीढ़ियों के पास दोनोँ तरफ काले चमकदार पत्थर के हाथी बने हुए थे।हमने कुछ फोटु खिंचे ओर सीढ़ियों की तरफ कदम से कदम मिलाते हुए ऊपर चले गए।ऊपर फोटु लेना अलाउ नही था इसलिए मैंने मोबाइल पर्स में रख लिया।ऊपर तेज समुंद्री हवा चल रही थी ,हवा इतनी तेज थी कि मेरे पैरों का बैलेंस ही नही बन रहा था। बाल तो आपस में कबड्डी खेल रहे थे😃
आगे जाकर देखा तो एक लंबे चौड़े कमरे में स्वामी विवेकानंद जी की बड़ी -सी प्रतिमा खड़ी थी मानो अभी-अभी चलकर आई हो। मेरे मन मे स्वामी जी की एक अलग ही छबि बनी हुई हैं ।सम्मान उनकी छवि को अपने श्रध्या सुमन अर्पित कर हम दोनो दूसरी तरफ से नीचे उतर गए।
सामने ही गर्जन करता समुन्द्र था।कुछ देर समुन्द्र को निहारकर हम छोटी छोटी तरासी हुई सीढ़ियो से उतरकर नीचे आ गए। नीचे काफी लोग टहल रहे थे।नीचे ही जेंट्स ओर लेडिस वॉश रूम भी बने थे साफ और क्लीन।
नीचे एक लायब्रेरी भी थी जहां विवेकानन्द जी का साहित्य भरा पड़ा था ।हमने भी एक पुस्तक खरीदी ओर कुछ देर आराम कर के वापस अपनी शिप से किनारे लौट आये। लौटते वक्त भी 50 रु वाली टिकिट की लंबी लाइन लगी हुई थी।हमने एक ऑटो किया और अपने होटल के पास के एक रेस्तरां मे खाना खाया और वापस अपने कमरे में लौट आये।अब शाम को सूर्यास्त देखने जायेगे।
क्रमशः....
शुक्रवार, 5 मई 2023
तमिलनाडुडायरी#12
तमिलनाडुडायरी #12
कन्याकुमारी,भाग 2
19 दिसम्बर 2022
आज के दिन की शुरुवात सूर्यमहाराज की कृपा से अच्छी रही, पूरा दिन मजेदार रहा।
हम सुबह सूर्योदय देखकर वापस अपने होटल में आ गए वही हमने चाय ओर पानी मंगवाया ओर थोड़ा आराम किया
फ़िर करीब 1 घण्टे बाद हम दोनों गुलेगुलजार बन घूमने निकल पड़े।होटल से बाहर निकलकर पास के रेस्टोरेंट में डोसे का नाश्ता किया।मैंने इडली मांगी तो मुझे इडली नही मिली हारकर डोसा ही खाया और चाय पीकर बाहर निकल गए।पता नही क्यो तमिलनाडु में जब से आई हूं मुझे इडली नही मिल रही हैं।रामेश्वरम में रोड पर खाई थी तो मजा नही आया एकदम बेकार थी। मुझे कर्नाटक की इडली की याद सताने लगी😪
खेर, नाश्ता कर के हमने एक ऑटो वाले से विवेकानन्द रॉक मैमोरियल तक जाने का पूछा,उसने 50 रु बोला हम उसमे बैठ गए।मुझे किराया बहुत सस्ता लगा, लेकिन बाद में देखा तो 50 ₹ ज्यादा लगे क्योकि वो 1 km भी नही था पैदल भी जाया जा सकता था।😜
खेर,ऑटो वाले ने ऑटो एक लाइन के पास खड़ा कर दिया। हमने उतरकर देखा एक लंबी सी लाइन आगे जाकर गुम हो गई थी।लाईन को देखकर मेरे हाथ पैर फुल गए ।अरे बाबा,इतनी भीड़!!"
विवेकानन्द रॉक मैमोरियल समुन्द्र में बना है और वहां तक जाने के लिए स्टीमर में सवार होना पड़ता हैं ।और ये लाईन उसी स्टीमर में जाने की थी।मरता क्या न करता !हम् भी लाईन में लग गए।
इतने में एक लेडिस पुलिस वाली आई और अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में बोली कि, सर आप स्पेशल टिकिट ले लो,इद्दर कीधर धक्के मुक्की में खड़े रहोगे। बात जंच गई।
वो हमको एक दूसरी छोटी लाइन में ले गई जिधर छांव भी थी वहाँ हमने 200-200 रु का स्पेशल टिकिट लिया ओर वही खड़े हो गए।हमारी लाईन जल्दी आगे बढ़ रही थी जबकि पिछली 50₹ वाली लाईन अभी तक एक इंच भी सरकी नही थी। धूप अपने पूरे शबाब पर थी। हमने उस पुलिस वाली का ओर भगवान का शुक्रिया अदा किया क्योकि सुबह जो ये शहर बर्फ की मानिंद ठण्डक दे रहा था वो अब आग उगल रहा था।
हमारी भी लाइन काफी बड़ी थी पर छाव में थी और बैठने को भी बेंच लगी थी इसलिए थोड़ी राहत थी।
हमारी लाईन को फटाफट छोड़ दिया और हम सब एक कतार में दूर तक आगे चल दिए।फिर मैंने पलटकर देखा तो 50₹ वाली लाईन भी थोड़ी थोड़ी छूट रही थी। फिर आगे जाकर लेडिस को अलग लाइन में खड़ा कर दिया और जेंट्स अलग हो गए।
इतने में शिप भी आ गया पहले वो खाली हुआ फिर हमको धीरे धीरे छोड़ा गया।लेकिन इधर आकर सब ऑफरा तफरी मच गई। लोग भाग भाग कर सेफ्टी जैकेट लेकर शिप में सीट लेने दौड़ पड़े।मैं भी भागकर अंदर गई पर तब तक सारी किनारों वाली सीट फुल हो चुकी थी । हमदोनो बीच वाली सीट पर बैठ गए।सेफ्टी जैकेट हमने पहन ली।शिप में उस समय 100 लोग दिख रहे थे,मुझे डर लगने लगा कहीं शिप पलट न जाये😂🤣😂
हिचकौले खाता हुआ शीप अपनी राह चल पड़ा ।मुश्किल से 10 मिनिट में हम विवेकानन्द रॉक पर मौजूद थे।
शेष फिर....