वो समुंदर का मोती था ...सीप उसका घर था ..
बाहरी दुनियाँ से वो अनजान था .....
अपने दोस्तों से उसको बहुत प्यार था ...
कुर्बान था वो अपनी दोस्ती पर ,
मस्त मौला बना वो गुनगुनाता रहता था ...
दोस्तों के छिपे खंजर से वो अनजान था ..
एक दिन उसने दोस्तों का असली रूप देखा ..
दिल टूट गया उसका ..
एक भूचाल -सा आ गया उसके जीवन में ..
वो अंदर तक तिडक गया ...
फिर भी वो शांत रहा ...
शांति से निकल गया दूर बहुत दूर ...
इस स्वार्थी दुनिया से परे ...
अपनी छोटी -सी दुनियां में ...
जहाँ वो आज खुश है ...पर -----
"दिल पर लगी चोट कभी -कभी हरी हो जाती है ..
खून बहने लगता है ...कराहटे निकलने लगती है ..."
4 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना
काफी कुछ तो तस्वीर बोल रही है
और बहुत कुछ आपकी इस कविता ने बता दिया कि ये दुनिया कितनी निर्दयी है ...
वाह !
बहुत सुन्दर रचना....सबकी अपनी अपनी किस्मत हैं.....|
अरे वाह आपने अपना ब्लॉग तो बिल्कुल मेरा जैसा ही कर लिया.....| अच्छा लगा अब आसानी होगी पढ़ने में....
धन्यवाद....
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