मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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मंगलवार, 5 मई 2015

# कहानी # पथराई आँखों के सपने

"पथराई आँखों के सपने"
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#- उसकी गली से जब भी गुजरना होता था मेरा जाने क्यों मेरे कदम उसके दर के आगे रुक जाया करते थे एक लम्बी सांस लेकर फिर में  अचानक उस लम्बी सड़क को देखती जिस पर चलते हुए मैँ यहाँ तक पहुंची थी....
वो मेरा कुछ लगता तो नहीं था पर फिर भी मुझे उससे लगाव सा हो गया था -
कभी उस घर में जाने का सपना देखा था मैंने; वो बहुत संस्कारी और एजुकेटेड लोग थे कम से कम उनके 4 लड़को में से 2 लड़के डॉ थे । उन्ही में से एक लड़के पर मेरा दिल आ गया था ...शायद मैँ उससे प्यार करती थी...???
पता नहीं ?
उनका एक लड़का वकील था और जो सबसे छोटा था वो मेरी ही उम्र का था अभी पढ़ रहा था । मुझे वो पसन्द तो नहीं था पर अक्सर हम दोनों को दादा इंग्लिश पढ़ते थे ।
मैँ उनकी मम्मी को मौसी कहती थी और पापा को दादा कहती थी...दादा किसी कालेज में इंग्लिश के फ्रोफेसर थे। बहुत रोबीला व्यक्तित्व था उनका .... उनकी हाईट ही साढे 6 फिट थी।

अक्सर उनके घर में मेरा आना -जाना लगा रहता था । कभी माँ के काम से कभी मोसी के काम से मैँ उस घर की रौनक हुआ करती थी क्योकि उस घर में कोई लड़की नहीं थी तो सब मुझे बहुत प्यार करते थे और मैँ सिर्फ तुमसे प्यार करती थी- सिर्फ तुमसे .....

पर तुम मेरे प्यार से अनजान थे ? बात तो करते थे पर कुछ खास नहीं - न मुझे अपना दोस्त समझते थे न कोई और रिलेशन मानते थे...
मैँ व्यर्थ ही तुम्हारी राह जोहती थी । रात को जब तक तुम आ नहीं जाते मैँ सीढ़ियों पे तुम्हारा इंतजार करती थी ।मन ही मन तुम्हें पसन्द करती थी ।तुम्हारे सपने देखती थी।

फिर वो दिन आया ...
वो मनहूस काली शाम  मैँ कभी नहीं भूलूंगी जब  मेरे सपने टूटे थे ! जब मैँ जीते जी मर गई थी ! जब मेरा अस्तित्व ख़त्म हो गया था !जब मैँ तुमसे दूर बहुत दूर चली गई थी ....
तुम सब अपने गाँव गए हुये थे मुझे पता नहीं था क्योकि मैँ  अपने चाचाजी के घर गई थी # उस शाम मैँ बेधड़क तुम्हारे घर चली गई थी बहुत सन्नाटा था कोई नहीं था मैँ हर कमरे में तुम्हारा नाम लेकर घूम रही थी की अचानक एक कमरे से काफी आवाजे सुनाई दी तो मैंने झांककर देखा तो तुम्हारा भाई अपने दोस्तों के साथ शराब पी रहा था # मुझे उसका ये रूप अलग ही नजर आया # मुझे देखकर उसकी आँखों में एक अनोखी चमक आ गई जिसे नजरअंदाज कर मैँ पलट पड़ी । मैँ बहुत सकते में थी इस मंदिर रूपी घर में शराब !!!छिः
मुझे कुछ स्पर्श हुआ देखा तो अजय था बोला # छाया यार कुछ खाने को बना दो ना मेरे और मेरे दोस्तों के लिए , बहुत भूख लगी है"।
# मैँ टाल देती तो अच्छा था शायद वो सब घिनोना नहीं होता जो हो गया था #
मैँ बड़बड़ाती हुई उसको गालियां देती हुई किचन में आ गई ...अनजान-सा भाभी वाला अधिकार कही मुंह उठा रहा था ,..
# लो छाया , कोल्डरिंग पी लो आज बहुत गर्मी है फिर आराम से बनाना # ठंडी ड्रिंक मेरी कमजोरी है वो जानता था । मैंने फटाफट ड्रिंक ख़त्म की और काम से लग गई ........

जब होश आया तो मैँ पलंग पर चित लेटी थी माँ रो रही थी और पिताजी कमरे में चक्कर काट रहे थे ।मैँ आवक थी !असहाय थी! दो दिन में मेरी दुनियां बदल गई थी।
वो मोसी बदल गई थी ? वो दादा बदल गए थे? वो प्यार बदल गया था ?वो घर बदल गया था ?रह गया था तो सिर्फ माहौल! क्रंदन ! खामोशी!!!!

6 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 7 - 5 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1968 में दिया जाएगा
धन्यवाद

रश्मि शर्मा ने कहा…

कैसे बदलता है सब कुछ....कोई कि‍स पर करे वि‍श्‍वास..बढ़ि‍या कहानी लि‍खी है

स्वाति ने कहा…

भावपूर्ण कहानी। मैंने आपका पूरा ब्‍लॉग पढ़ा , अापके यात्रा संस्‍मरण पढ़कर बहुत ही मजा आया।

पर एक निवेदन है यात्रा संस्‍मरण कई भागों में है तो उसका लिंक ठीक से लगा नहीं है। जैसे आपकी पुणे यात्रा का भाग 1 तो पढ़़ने मिला , किंतु भाग 2 पर क्लिक किया तो वह वापस होम पेज पर गया । इसी तरह नैनीताल यात्रा वर्णन में भी हुआ।

Mukesh Bhalse ने कहा…

भावपूर्ण तथा मार्मिक कहानी दर्शन जी.

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

मैंने ठीक कर दिया है स्वाति जी

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

धन्यवाद मुकेश-^-