एक बार फिर डलहौजी की यात्रा
28 सितम्बर 2014
हम कल बॉम्बे से सुबह जम्मू तवी एक्सप्रेस से पठानकोट के लिए निकले थे । आज 29 तारीख़ को हम डलहौजी पहुँचे अब आगे ----
इतिहास ;--
डलहौज़ी धौलाधार पर्वतश्रृंखलाओ पर बसा एक रमणीय स्थान है ।यह चम्बा जिले में स्थित है । अंग्रेजी शासनकाल में यहाँ के वॉयसराय लार्ड डलहौजी के नाम पर इस स्थान का नाम भी डलहौजी पड़ा । उनको यह स्थान इतना पसंद आया की उन्होंने ही इसे बसाया और अपनी हर छुटीयाँ यही गुजरा करते थे । यहाँ की इमारतों में अंग्रेजी शासनकाल स्पष्ट झलकता है । समुन्द्र तल से इसकी ऊंचाई 2036 मीटर है । यह ऐसा पवर्तीय स्थल है जहाँ ज्यादा भीड़भाड़ नहीं होती शांतिप्रिय लोगो के लिए ये स्थान वरदान है । मालरोड भी छोटा है ज्यादा बड़ा एरिया बसा हुआ नहीं है । यहां घूमने से ज्यादा लोग आराम करंने आते है । खाना आमतौर पर अपने होटल में ही मिलता है बहार के रेस्त्रां में सिर्फ स्नेक्स ही मिलते है । शराब होटल और रेस्त्रां में नहीं बिकती, छोटा सा मार्केट है जो मालरोड पर ही है , तिब्बत मार्केट है जिसमें विदेशी माल बिकता है
माल रोड की दुकानों पर स्वेटर और शाले मिलती है । यहाँ ममोज बहुत टेस्टी मिलते है । यहाँ का पब्लिक स्कूल बहुत प्रसिद्धी है दूर -दूर से बच्चे पढाई करने आते है। …
यहाँ के अन्य स्थल है :---
१. कालाटोप
२. पंचकुला
३. खजियार जिसे मिनी स्विजरलैंड भी कहते है ।
अब हम डलहौजी के सुभाष चौक में खड़े थे.…स्टेचू तो गांधी बाबा का था पर चौक एक बहादुर आदमी के नाम था … खेर, मालरोड के पास से ही खजियार जाने का रास्ता था । प्रीत को वापस पठानकोट पहुँचना था ।इसलिए हमने सोचा की प्रीत को यही से जय -हिन्द कर दे ताकि वो दिन से ही वापस पहाड़ से नीचे उतर जाये और आराम से घर पहुँच जाये ।ठंडी भी हो गई थी सबसे पहले सबने गरम कपडे पहने मुझे तो जरा ज्यादा ही ठंडी लगती है ।
हम सब को बहुत तगड़ी भूख लग रही थी और 3 से ऊपर हो आये थे इसलिए मैंने धोषणा कर दी की पहले कुछ खायेगे फिर आगे बढ़ेंगे । सब तैयार हो गए अब हम माल रोड के एक रेस्त्रां में गए तो यहां खाने को स्नेक्स थे हमको तो कम्प्लीट फ़ूड चाहिए था फिर आगे दूसरा , तीसरा , चौथे रेस्त्रां में गए पर सब जगह स्नेक्स ही थे । खाना कहीं नहीं था चाइनीज जरूर था पर काफी मंहगा था । यहाँ के रेस्टोरेंट में खाना नहीं मिलता है सिर्फ स्नेक्स मिलते है।मुझे याद आया पिछली बार हमने अपने होटल में ही खाना खाया था। खेर,फिर हमने फ्राइड चावल मंगवाए और एक नूडल्स भी ।थोडा थोडा खाया । बकवास था सब -- चाय पीने के बाद प्रीत हमको वापस निचे बस स्टेण्ड पर ले आया । यहाँ उसने एक कार आल्टो बुक की जो हमको खजियार लेजाकर छोड़ दे और कल सुबह पंचकुला और कालाटोप की यात्रा करवाकर वापस डलहौजी लाकर किसी होटल में छोड़ दे । कार वाले ने कार का भाड़ा 2000 बोला पर मैंने मोलभाव कर 1800 में नक्की किया ।
ये सब करने में हमको शाम के 6 बज गए ।बारिश भी हो रही थी और शाम भी हो गई थी । पहाड़ों पर जितनी जल्दी सुबह होती है उतनी जल्दी शाम भी हो जाती है खेर, प्रीत को बिदा कर के हम 6 बजे खजियार जाने को निकल पडे । सरदारजी की गाडी थी । उन्होंने मुझे देखा तो बोले- " बीबी को थोड़ी अच्छी आरामदायक गाडी में ले चलता हूँ तुस्सी थोड़ी देर इंतजार करो '' । 'हम इंतजार करने लगे थोड़ी देर बाद ड्राइवर नई इनोवा गाडी लेकर आया और फिर हम आराम से खजियार को निकले। तब तक अँधेरा घिरने लगा था। खजियार का रास्ता बहुत ही सकरा और जंगली था। सरदारजी बता रहे थे की यहाँ शेर चीता है और भालू तो बहुत तादात में है। मैँ थोडा डर रही थी क्योकि रात को पहाड़ पर यात्रा करना मुझे बिलकूल पसन्द नहीं है । मन ही मन वाहेगुरु से अरदास भी कर रही थी की कोई अनहोनी न हो ।खुद को कोस भी रही थी की आज डलहौजी ही रुक जाना था की अचानक कार के सामने एक बच्चा चीता आ गया ।कार की हेडलाइट में मुझे साफ दिखाई दे रहा था उसने बकायदा हमारी कार की तरफ देखा और भाग कर कार के पास होता हुआ निचे उतर गया। डर कर सबकी घिग्गी बन्ध गई । पर वो हमको कोई क्षति पहुँचाये बगैर ही अँधेरे में लोप हो गया। सरदारजी ने बताया की ये कार की लाईट में आते ही भाग जाते है रौशनी से डरते है बेचारे रात को ही घर से निकलते है शिकार की तलाश में । पर मैँ सोच रही थी की वो डर रहा था की हम डर रहे थे हा हा हा हा
रात 8 बजे तक हम खजियार की माताजी के मन्दिर में पहुँच गए जहाँ हमारा रुम बुक था। ठंडी बहुत थी यहाँ दिसम्बर से जनवरी तक भारी बर्फबारी होती है। तब ये लोग निचे डलहौजी रहने चले जाते है । उस समय माताजी की पूजा नीचे ही होती है । मंदिर एकदम सुनसान था कोई भी नज़र नहीं आ रहा था । सन्नी मंदिर के पास बने ऑफिस में गया वहां से एक लड़का आया जिसने थोड़ी पूछताछ की फिर हमको लेकर मंदिर के पास बने रूम में ले गया । रूम बहुत ही अच्छा था हम पिछली बार भी यही रुके थे ।
इस मन्दिर में रूम हर किसी को नहीं मिलता । यहाँ के ट्रस्टी ही रूम बुक करते है । पिछली बार तो प्रीत के डैडी ने हमारे लिए रूम बुक करवाया था वो इसमंदिर के ट्रस्टी थे , पर इसबार मिस्टर ने खुद ही रूम बुक करवाया उनके एक ट्रस्टी के जरिये जो पिछली बार से उनका भी दोस्त बन गया था। .
. १५ मिनिट बाद हम फ्रेश होकर रूम में गप्पे लड़ा रहे थे, ठीक ९ बजे हमको एक मंदिर में काम करने वाला लड़का खाना खाने का बोलकर चला गया इस मंदिर में सुबह नाश्ता और दोपहर में खाना और रात को भी खाना मिलता है वो भी बिलकुल फ्री ---खाना बहुत ही टेस्टी होता है हम सुबह से भूखे थे हम जब नीचे डायनिंग हॉल में आये तो वहां दिल्ली के किसी कालेज के आर्ट स्टूडेंट लड़के लड़कियां उनके टीचर्स भी खाना खा रहे थे राजमा चावल आलू की सब्जी और मीठी खीर खाने में थी खूब छककर खाना खाया । ठंडी बहुत थी प्लेट खुद ही साफ़ करनी होती है । चाय भी थी मैं तो थक गई थी इसलिए अपने कमरे में सोने आ गई बच्चे प्लेटे साफ़ कर और खूब फोटु उतारकर रूम में आये । रूम में डबल पलंग था और कम्बल और २ गद्दे पड़े थे अलमारी में-----हम कुछ पलंग पर कुछ नीचे आराम से सो गए …।
. १५ मिनिट बाद हम फ्रेश होकर रूम में गप्पे लड़ा रहे थे, ठीक ९ बजे हमको एक मंदिर में काम करने वाला लड़का खाना खाने का बोलकर चला गया इस मंदिर में सुबह नाश्ता और दोपहर में खाना और रात को भी खाना मिलता है वो भी बिलकुल फ्री ---खाना बहुत ही टेस्टी होता है हम सुबह से भूखे थे हम जब नीचे डायनिंग हॉल में आये तो वहां दिल्ली के किसी कालेज के आर्ट स्टूडेंट लड़के लड़कियां उनके टीचर्स भी खाना खा रहे थे राजमा चावल आलू की सब्जी और मीठी खीर खाने में थी खूब छककर खाना खाया । ठंडी बहुत थी प्लेट खुद ही साफ़ करनी होती है । चाय भी थी मैं तो थक गई थी इसलिए अपने कमरे में सोने आ गई बच्चे प्लेटे साफ़ कर और खूब फोटु उतारकर रूम में आये । रूम में डबल पलंग था और कम्बल और २ गद्दे पड़े थे अलमारी में-----हम कुछ पलंग पर कुछ नीचे आराम से सो गए …।
आगे जारी है ---------
डलहौजी का खुशनुमा माहौल मालरोड
मालरोड से लगा हुआ यह चर्च
गांधी बाबा
ख़जियार जाते हुए
रात को सर्दी से बुरा हाल
माताजी अंदर विराजमान
6 टिप्पणियां:
खजियार के बारे में काफी सुना है,थोड़ा विस्तार से बताइये,बाकि फूट्स बहुत अच्छे हैं
आपकी डलहौजी यात्रा काफी रोचक लगी और तस्वीरें भी एक से बढ़कर एक हैं. सादर ... अभिनन्दन
नई कड़ियाँ :- जून 2015 माह के महत्वपूर्ण समसामयिकी और सामान्य ज्ञान
गूगल+ पेज :- ज्ञान कॉसमॉस गूगल+
यात्रा लेख अच्छा लगा, मैं कालाटॉप गया हूँ पर इस मंदिर के बारे में जानकारी नहीं थी ! यकीन नहीं हो रहा कि आप लोगों की गाड़ी के आगे चीते का बच्चा आ गया ! अपनी यात्रा के दौरान तो हम लोग कालाटॉप सेंचुरी में पैदल ही गए थे, जल्द ही अपना लेख भी प्रकाशित करूँगा ! लेख में फोटो की कमी लगी, उम्मीद है अगले लेख में ये पूरी हो जाएगी !
हा हर्षिता अगले भाग में खजियार के बारे में ही लिखुंगी।
हम कालाटॉप नहीं जा सके प्रदीप क्योकि बारिश बहुत थी ।यह मन्दिर खजियार मैदान से आधे किलोमीटर दूर है।अगले भाग में इसके बारे में लिखुंगी।
बहुत रोचक यात्रा वर्णन और चित्र भी बहुत सुंदर. मेरी विशलिस्ट में भी शामिल हैं डलहौजी और खजियार.....
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